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मंगलवार, 24 मई 2016

muktika

मुक्तिका
*
बँधी नीलाकाश में
मुक्तता भी पाश में
.
प्रस्फुटित संभावना
अगिन केवल 'काश' में
.
समय का अवमूल्यन
हो रहा है ताश में
.
अचेतन है ज़िंदगी
शेष जीवन लाश में
.
दिख रहे निर्माण के
चिन्ह व्यापक नाश में
.
मुखौटों की कुंडली
मिली पर्दाफाश में
.
कला का अस्तित्व है
निहित संगतराश में
***
[बारह मात्रिक आदित्य जातीय छन्द}
११.५.२०१६, ६.४५
सी २५६ आवास-विकास, हरदोई