पुस्तक सलिला:
चंद्रसेन विराट की प्रतिनिधि हिंदी गज़लें : गागर में सागर
चर्चाकार: संजीव 'सलिल'
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(पुस्तक
परिचय : नाम- चंद्रसेन विराट की प्रतिनिधि हिंदी गज़लें, गजलकार चंद्रसेन
विराट, संपादक डॉ. मधु खराटे, आकार डिमाई, बहुरंगी कड़ा आवरण, पृष्ठ संख्या
१९२, मूल्य २०० रु., प्रकाशक विद्या प्रकाशन कानपुर.)
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हिंदी ग़ज़ल के इतिहास में अग्रजवत चंद्रसेन विराट का नाम शीर्षस्थ
ग़ज़लकारों में है. हिंदी ग़ज़ल को उर्दू भाषियों द्वारा नकारने की चुनौती
का सामना उर्दू ग़ज़ल के रचना विधान पर खरी हिंदी गज़लें रचकर विराट जी ने
इस तरह दिया कि हिंदी ग़ज़ल को स्वीकारे जाने के सिवाय अन्य राह ही शेष न
रही. तेरह गीत संग्रहों(मेंहदी रची हथेली, ओ मेरे अनाम, स्वर के सोपान,
किरण के कशीदे, मिट्टी मेरे देश की, पीले चाँवल द्वार पर, दर्द कैसे चुप
रहे, भीतर की नागफनी, पलकों में आकाश, बूँद-बूँद पारा, सन्नाटे की चीख, गाओ
कि जिए जीवन, सरगम के सिलसिले), ११ ग़ज़ल संग्रहों (निर्वसना चाँदनी,
आस्था के अमलतास, कचनार की टहनी, धार के विपरीत, परिवर्तन की आह्ट, लडाई
लंबी है, न्याय कर मेरे समय, फागुन माँगे भुजपाश, इस सदी का आदमी, हमने
कठिन समय देख अहै, खुले तीसरी आँख), , २ दोहा संग्रहों ( चुटकी-चुटकी
चाँदनी, अँजुरी-अँजुरी धूप), ५ मुक्तक संग्रहों (कुछ पलाश कुछ पाटल, कुछ
छाया कुछ धूप, कुछ सपने कुछ सच, कुछ अंगारे कुछ फुहारें, कुछ मिशी कुछ नीम)
तथा ७ काव्य कृतियों (गीत-गंध, हिंदी के मनमोहक गीत, हिंदी के सर्वश्रेष्ठ
मुक्तक, टेसू के फूल, कजरारे बादल, धूप के संगमरमर, चाँदनी चाँदनी) के
संपादन से अपने सृजन आकाश को सजा चुके विराट की ग़ज़ल संकलनों का गहन
अध्ययन कर डॉ. मधु खराटे ने चुनिन्दा १६१ गज़लों का यह गुलदस्ता प्रस्तुत
किया है.
विराट जी पेशे से अभियंता हैं. फलतः वे मजदूर संवर्ग की समस्याओं,
गरीबी, समाज में श्रम की अवमानना, संपन्न वर्ग द्वारा शोषण, निर्माण की
समस्याओं, देश में व्याप्त मूल्यहीनता, राजनैतिक दिशाहीनता, सामाजिक
विडम्बनाओं, पाखंडों तथा अंतर्द्वंदों से भली-भाँति परिचित हैं. विराट की
कविता इन सभी रोगों की मानस चिकित्सा शब्द औषधि से करती है. विराट के लिये
लेखन यश या धन प्राप्ति का माध्यम नहीं समाज परिवर्तन और समय परिवर्तन का
जरिया है. डॉ. सुरेश गौतम के शदों में- 'विरत की गजलों ने गजल को हुस्न,
इश्क, मुहब्बत, जाम, सकी, मयखाना की रोमैयत से निकालकर बिजली के नंगे तारों
से जोड़ा और अनादर्शी जिंदगी को पारा-पारा बिखरने से बचाया, हिन्दी की
बुनावट में ग़ज़ल को बुनकर मनुष्य-समाज को जागरूक किया, खुद का पहरेदार
बनाया, संघर्ष का पथ दिया, उड़ने को आकाश.'
मूलतः हिंदी गीतकार विराट ने गीत में दुहराव से बचने, गीत की सीमा से
परे व्यक्त होने के लिये आलोड़ित मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिये ग़ज़ल को
चुना. डॉ. श्रीराम परिहार के अनुसार- 'गीत का संकल्पधर्मा कवि
गज़ल के
देश चला आया..उसे अपनी भाषा दी, नयी स्थापना दी, मुगलकालीन गलियारों से
निकालकर हिंदी की हरी दूब पर बैठा दिया, हिंदी में बोलने का तजुर्बा दिया,
तर्ज दी.'
गत ४ दशकों से अधिक समय से हिंदी ग़ज़ल को कथ्य, शिल्प, भाव, भाषा,
बिम्ब, प्रतीक, रस, माधुर्य तथा सामाजिक सरोकारों की नवधा संपदा से संपन्न
करते रहे विराट की ग़ज़लों के वैशिष्ट्य को भाँपकर आलोच्य संग्रह में संपादक
ने रचनाओं को स्थान दिया है. दृष्टव्य है कि विराट का साहित्य देश में हुए
सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक परिवर्तनों को भी शब्दायित करता रहा है. किसी कवि
की प्रतिनिधि रचनाओं को छांटना तलवार की धार पर चलने की तरह है. संपादक को
अपनी पसंद और श्रेष्ठता के साथ-साथ अन्य मापदंडों और प्रवृत्तियों के
प्रतिनिधित्व की ओर भी सचेत होना होता है. डॉ. मधु खराटे संपादक की भूमिका
में रचना चयन के प्रति सतर्क हैं. संग्रह में ली आगयी रचनाएँ प्रायः
दोषमुक्त तथा विराट-काव्य में अन्तर्निहित प्रवृत्तियों यथा गीत की
पक्षधरता, हिंदी हितों के पक्ष में आवाज, स्व-आकलन, राष्ट्रीयता, सात्विक
श्रृंगार, सामाजिक विसंगति पर प्रहार, सामयिक विडम्बनाओं के लिये चेतावनी,
सामजिक सद्भाव एवं समन्वय, मंचीय वातावरण पर प्रहार, पौराणिक प्रतीकों का
सार्थक उपयोग, गणितीय पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग आदि को समाहित किये हैं.