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शनिवार, 30 सितंबर 2017

ravan vadh aur dashahara


: शोध :
रावण ​वध ​की तिथि दशहरा ​नहीं​
*
न जाने क्यों, कब और किसके द्वारा विजयादशमी अर्थात दशहरा पर रावण-दाह की भ्रामक और गलत परंपरा आरम्भ हुई? रावण ब्राम्हण था जिसके वध से लगे ब्रम्ह हत्या के पाप हेतु सूर्यवंशी राम को प्रायश्चित्य करना पड़ा था। रावण वध के बाद उसकी अंत्येष्टि उसके अनुज विभीषण ने की थी, राम ने नहीं। रामलीला के बाद राम के बाण से रावण का दाह संस्कार किया जाना तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत, अप्रामाणिक और अस्वीकार्य है। रावण का जन्म दिल्ली के समीप एक गाँव में हुआ, सुर तथा असुर मौसेरे भाई थे जिन्होंने दो भिन्न संस्कृतियों और राज सत्ताओं को जन्म दिया। उनमें वैसा ही विकराल युद्ध हुआ जैसा द्वापर में चचेरे भाइयों कौरव-पांडव में हुआ, उसी तरह एक पक्ष से सत्ता छिन गई। रावण वध की तिथि जानने के लिए पद्म पुराण के पाताल खंड का अध्ययन करें।
पदम पुराण,पातालखंड ​ ​के अनुसार ‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ८७ दिन तक चले संग्राम के मध्य कारणों से १५ दिन युद्ध बंद रहा तथा हुआ। ​इस महासंग्राम​ का समापन लंकाधिराज रावण के संहार से हुआ। राम द्वारा रावण वध क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को किया गया था। ऋषि आरण्यक द्वारा सत्योद्घाटन- ​
​हैं- ''जनकपुरी में धनुषयज्ञ में राम-लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र का पहुँचना​,​ राम द्वारा धनुषभंग, राम-सीता विवाह ​आदि प्रसंग सुनाते हुए आरण्यक ने बताया विवाह के समय राम ​१५ वर्ष के और सीता ​६ वर्ष की ​थीं। विवाहोपरांत वे ​१२ वर्ष अयोध्या में रहे​ २७ वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई मगर रानी कैकेई ​दुवारा राम वनवास का वर ​माँगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।
पद्मपुराण​, पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में ​पहुँचकर, परिचय देकर प्रणाम करते ​हैं। शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले- ''गुरु का वचन सत्य हुआ। सारूप्य मोक्ष का समय आ गया।'' उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य ​के उपदेश ​का उल्लेख कर कहा ​की गुरु ने कहा ​था कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा ​आश्रम में आयेगा, रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी। वे तुम्हें राम के पास ​पहुँचा देंगे। इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथिवार उद्घाटित करते वनवास में राम प्रारंभिक
आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी कार्तिक शुक्लपक्ष से वानरों ने सीता की खोज शुरू की। समुद्र तट पर कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया कि सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी) को हनुमान ने ​सागर पार किया और रात में लंका प्रवेश कर सीता की खोज-बीन ​आरम्भ की।कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। कार्तिक शुक्ल तेरस को अशोक वाटिका विध्वं​कर, उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया। कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद का ब्रह्मपाश में ​बँधकर दरबार में गये और लंकादहन किया। हनुमानजी ​ने ​कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। प्रफुल्लित वानर​ दल ​ने नाचते​-​गाते ​५ दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया हनुमान की अगवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुँचे, हाल-चाल दिये।
​३ दिन जल पीकर रहे, चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया। ​पाँचवे दिन वे चित्रकूट पहुँचे। श्री राम ​ने ​चित्रकूट में​ १२ वर्ष ​प्रवास किया। ​१३वें वर्ष के प्रारंभ में राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुँचे और शूर्प​णखा को कुरूप किया। माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता हरण किया। श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे। जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया।​ बाल्मीकि रामायण, राम चरित मानस तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार राम ने वर्षाकाल में चार माह ऋष्यमूक पर्वत पर ​बिताए थे। ​मानस में श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं- ​घन घमंड गरजत चहु ओरा। प्रियाहीन डरपत मन मोरा।। अगहन कृष्ण अष्टमी ​उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और ​७ दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुचे। अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया। अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ। अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर चर्चा हुई। सागर से मार्ग ​की ​याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक ​४ दिन अनशन किया। नवमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया। अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक ​४ दिन में श्रीराम सेतु बनकर तैयार हुआ।
माघ कृष्ण द्वितीया से राम-रावण में तुमुल युद्ध प्रारम्भ हुआ। माघ कृष्ण चतुर्थी को रावण को भागना पड़ा। रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक ​४ दिन में कुंभकरण को जगाया। माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया। कुंभकरण बध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया। माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि ​५ राक्षसों का बध हुआ। माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया। माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ ​वध, माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष वध हुआ।
अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्र पार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया, अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक ​३ दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई। पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली। पौष कृष्ण एकादशी को ​रावण के गुप्तचर ​सुक​-​ सारन ​वानर वेश धारण कर ​वानर सेना में घुस आये। पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और ​उन्हें ​पहचान कर​ ​पकड़ा गया और शरणागत होने पर श्री राम द्वारा अभयदान दिया। पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया। ​श्री राम द्वारा शांति-प्रयास का अंतिम उपाय करते हुए ​पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया।​ ​अंगद के विफल लौटने पर ​पौष शुक्ल द्वितीया से युद्ध आरंभ हुआ। अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ। पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में ​जकड़ दिया गया। श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया, पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटकर राम-लक्ष्मण को मुक्त किया। पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध, पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध, पौष शुक्ल चौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक 3 दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का वध किया गया। फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध प्रारंभ हुआ। फागुन कृष्ण सप्तमी को लक्ष्मण मूर्छित हुए, उपचार आरम्भ हुआ। इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक ​५ दिन युद्ध विराम रहा। फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया, फागुन कृष्ण नवमी से फागुन कृष्ण तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया। इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव संवत्सर) से लंका में नये युग का प्रारंभ हुआ।
फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ। फागुन शुक्ल षष्टी से अष्टमी तक युद्ध में महापार्श्व आदि का राक्षसों का वध हुआ। फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूर्छित हुए, सुखेन वैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चैतन्य हुए। राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ। फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया। फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक ​१८ दिन युद्ध चला। ​अंतत: ​चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण मौत के घाट उतारा गया।
युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ​८७ दिन​ युद्ध ​(७२ दिन​ ​युद्ध, ​१५ दिन ​​युद्ध विराम​)​ चला और श्रीराम विजयी हुए। चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।
शुभकामना
विजयदशमी पर हम जीत सकें निज मन को
देश-धर्म के शत्रु हनें पल-पल निर्भय हो
रचें पंक्तियाँ ऐसी हों नव ऊर्जा वाहक
नमन मातु को करें जगतवाणी हिंदी हो
***

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

shakti vandana:

शक्ति वंदना:
१.

माँ अम्बिके जगदंबिके करिए कृपा दुःख-दर्द हर
ज्योतित रहे मन-प्राण मैया! दीजिए सुख-शांति भर

दीपक जला वैराग्य का, तम दूर मन से कीजिए
संतान हम आये शरण में, शांति-सुख दे दीजिए

आगार हो मन-बुद्धि का, अनुरक्ति का, सदयुक्ति का
सत्पथ दिखा संसार सागर से तरण, भव-मुक्ति का

अन्याय अत्याचार से, हम लड़ सकें संघर्ष कर
आपद-विपद को जीत आगे बढ़ सकें उत्कर्ष कर

संकट-घिरा है देश, भाषा चाहती उद्धार हो
दम तोड़ता विश्वास जन का, कर कृपा माँ तार दो

भोगी असुर-सुर बैठ सत्ता पर, करें अन्याय शत
रिश्वत घुटाले रोज अनगिन, करो इनको माफ़ मत

सरहद सुरक्षित है नहीं, आतंकवादी सर चढ़े
बैठ संसद में उचक्के, स्वार्थ साधें नकचढ़े

बाँध पट्टी आँख पर, मंडी लगाये न्याय की
चिंता वकीलों को नहीं है, हो रहे अन्याय की

वनराजवाहिनी! मार डाले शेर हमने कर क्षमा
वन काट फेंके महानगरों में हमारा मन रमा

कांक्रीट के जंगल उगाकर, कैद उनमें हो गये  
परिवार का सुख नष्टकर, दुःख-बीज हमने बो दिये

अश्लीलता प्रिय, नग्नता ही, हो रही आराध्य है
शुचिता नहीं, सम्पन्नता ही हाय! होता साध्य है

बाजार दुनिया का बड़ा बन, बेचते निज अस्मिता
आदर्श की हम जलाते हैं, रोज ही हँसकर चिता

उपदेश देने में निपुण, पर आचरण से हीन हैं  
संपन्न होता देश लेकिन देशवासी दीन हैं

पुनि जागकर माँ! हमें दो, कुछ दंड बेहद प्यार दो
सत्पथ दिखाकर माँ हमें, संत्रास हरकर तार दो

जय भारती की हो सकल जग में सपन साकार हो
भारत बने सिरमौर गौरव का न पारावार हो

रिपुमर्दिनी! संबल हमें दो, रच सकें इतिहास नव
हो साधना सच की सफल, संजीव हों कर पार भव
(छंद हरिगीतिका: ११२१२)
*

 

बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

विशेष रचना: विजयादशमी ...? राकेश खंडेलवाल

विशेष गीत:










विजयादशमी ...?
राकेश खंडेलवाल 
  *
विजयादशमी विजय पर्व है विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
जाने कितने दिन बीते हैं एक प्रश्न को लेकर फ़िरते
कभी धूप में तपे , ओढ़ कर कभी गगन पर बादल घिरते
चट्टानों के दृढ़ सीने से लौटा है सवाल टकराकर
और बह गया बिन उत्तर के नदिया की धारा में तिरते
 
रहा कौंधता यही प्रश्न इक हर इक प्रहर और हर पल छिन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
रामकथा ने बतलाया था हुआ अस्त इस दिन दशकन्धर
जिसकी खातिर अनायास ही बन्धन में था बँधा समन्दर
थी अस्त्य पर विजय सत्य की, तना न्याय का गर्वित सीना
एक तीर ने सोख लिया था आर्यावर्त पर टँका ववंडर
 
रातें हुईं चाँदनी तब से,मढ़े स्वर्ण से थे सारे दिन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
पर वो तब की बातें थीं जो मन को तो बहला देती हैं
किन्तु उदर की यज्ञाग्नि में आहुति एक नहीं देती हैं
सपनों के खींचे चित्रों से टकराता है स्थिति का पत्थर
तो मुट्ठी में शेष रही बस जमना के तट की रेती है
 
आशवासन चुभते हैं मन में जैसे चुभती हो तीखी पिन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
कल के स्वर्णिम आश्वासन में रँगते हुये बरस बीते हैं
मेहमां एक निशा का है तम गाते गाते दिन बीते हैं
इन्द्रधनुष के परे स्वर्ण मुद्राओं की बातों में उलझे
जितने कलश खोल; कर देखे पाये सब के सब रीते हैं
 
नवजीवन की आंखें खुलती हैं तो अब आशाओं के बिन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
अपना बस इतिहास लगाये सीने से कब तक जीना है
कब तक उगी प्यास को आंखों का ही गंगाजल पीना है
जीवन की चौसर पर बाजी कब कब किसके साथ रहे एहै
मा फ़लेषु को छोड़ अधूरा ही श्लोक  गया बीना है
 
जिन खोजा तिन पाया सुनते आये, दिखता कहीं नहीं तिन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
नहीं जीत का नहीं पराजय का ही पल हासिल हो पाया
इस यात्रा में कितना हमने खोया और भला क्या पाया
क्षणिक भ्रमों में अपनी जय का कर लेते उद्गोष भले ही
लेकिन सांझ ढले पर एकाकीपन महज साथ दे पाया
 
चुकता नहीं सांस की पूंजी का धड़कन दे देकर भी ॠन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
विजयी कौन? अराजकता के दिन प्रतिदिन बढ़ते शासन में
विजयी कौन? एक वह जिसको सांसें मिलती हैं राशन में
जयश्री का अपहरण किये बैठे हैं सामन्तों के वंशज
विजयी कौन?विजय के होते नये नये नित अनुवादन में
 
सत्यमेव जयते का नारा, काट रहा अपने दिन गिन गिन
विजयादशमी विजय पर्व है, विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
विजयी वह को हिन्दी का सम्मेलन करता है विदेश में
विजयी वह जो लक्ष्मी ढूँढ़ा करता आयातित गणेश में
विजयी वह जो फ़टी गूदड़ी भी तन से उतार लेता है
विजयी वह जो दोनों हाथों से संचय करता प्रदेश में
 
विजयी नहीं सपेरा, बजवाती जो बीन वही इक नागिन
विजयादशमी विजय पर्व है विजयी कौन हुआ है लेकिन
 
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रविवार, 27 सितंबर 2009

विजया दशमी पर दोहे

विजया दशमी पर दोहे




आचार्य संजीव 'सलिल'



भक्ति शक्ति की कीजिये, मिले सफलता नित्य.

स्नेह-साधना ही 'सलिल', है जीवन का सत्य..



आना-जाना नियति है, धर्म-कर्म पुरुषार्थ.

फल की चिंता छोड़कर, करता चल परमार्थ..



मन का संशय दनुज है, कर दे इसका अंत.

हरकर जन के कष्ट सब, हो जा नर तू संत..



शर निष्ठां का लीजिये, कोशिश बने कमान.

जन-हित का ले लक्ष्य तू, फिर कर शर-संधान..



राम वही आराम हो. जिसको सदा हराम.

जो निज-चिंता भूलकर सबके सधे काम..



दशकन्धर दस वृत्तियाँ, दशरथ इन्द्रिय जान.

दो कर तन-मन साधते, मौन लक्ष्य अनुमान..



सीता है आस्था 'सलिल', अडिग-अटल संकल्प.

पल भर भी मन में नहीं, जिसके कोई विकल्प..



हर अभाव भरता भरत, रहकर रीते हाथ.

विधि-हरि-हर तब राम बन, रखते सर पर हाथ..



कैकेयी के त्याग को, जो लेता है जान.

परम सत्य उससे नहीं, रह पता अनजान..



हनुमत निज मत भूलकर, करते दृढ विश्वास.

इसीलिये संशय नहीं, आता उनके पास..



रावण बाहर है नहीं, मन में रावण मार.

स्वार्थ- बैर, मद-क्रोध को, बन लछमन संहार..



अनिल अनल भू नभ सलिल, देव तत्व है पाँच.

धुँआ धूल ध्वनि अशिक्षा, आलस दानव- साँच..



राज बहादुर जब करे, तब हो शांति अनंत.

सत्य सहाय सदा रहे, आशा हो संत-दिगंत..



दश इन्द्रिय पर विजय ही, विजयादशमी पर्व.

राम नम्रता से मरे, रावण रुपी गर्व.



आस सिया की ले रही, अग्नि परीक्षा श्वास.

द्वेष रजक संत्रास है, रक्षक लखन प्रयास..



रावण मोहासक्ति है, सीता सद्-अनुरक्ति.

राम सत्य जानो 'सलिल', हनुमत निर्मल भक्ति..



मात-पिता दोनों गए, भू तजकर सुरधाम.

शोक न, अक्षर-साधना, 'सलिल' तुम्हारा काम..



शब्द-ब्रम्ह से नित करो, चुप रहकर साक्षात्.

शारद-पूजन में 'सलिल' हो न तनिक व्याघात..



माँ की लोरी काव्य है, पितृ-वचन हैं लेख.

लय में दोनों ही बसे, देख सके तो देख..



सागर तट पर बीनता, सीपी करता गर्व.

'सलिल' मूर्ख अब भी सुधर, मिट जायेगा सर्व..



कितना पाया?, क्या दिया?, जब भी किया हिसाब.

उऋण न ऋण से मैं हुआ, लिया शर्म ने दाब..



सबके हित साहित्य सृज, सतत सृजन की बीन.

बजा रहे जो 'सलिल' रह, उनमें ही तू लीन..



शब्दाराधक इष्ट हैं, करें साधना नित्य.

सेवा कर सबकी 'सलिल', इनमें बसे अनित्य..



सोच समझ रच भेजकर, चरण चला तू चार.

अगणित जन तुझ पर लुटा, नित्य रहे निज प्यार..



जो पाया वह बाँट दे, हो जा खाली हाथ.

कभी उठा मत गर्व से, नीचा रख निज माथ.



जिस पर जितने फल लगे, उतनी नीची डाल.

छाया-फल बिन वृक्ष का, उन्नत रहता भाल..



रावण के सर हैं ताने, राघव का नत माथ.

रिक्त बीस कर त्याग, वर तू दो पंकज-हाथ..



देव-दनुज दोनों रहे, मन-मंदिर में बैठ.

बता रहा तव आचरण, किस तक तेरी पैठ..



निर्बल के बल राम हैं, निर्धन के धन राम.

रावण वह जो किसी के, आया कभी न काम..



राम-नाम जो जप रहे, कर रावण सा काम.

'सलिल' राम ही करेंगे, उनका काम तमाम..



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