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रविवार, 5 मई 2019

दोहा मुक्तक

दोहा मुक्तक
लता-लता पर छा रहा, नव वासंती रंग। 
ताल ताल में दे रहीं, मछली सहित तरंग।। 
नेह-नर्मदा में नहा, भ्रमर-तितलियाँ मौन-
कली-फूल पी मस्त हैं, मानो मद की भंग।। 
५.५.२०१८

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

doha muktak

साधना 
साध-साध कर लक्ष्य पर, कर नित शर-संधान। 
तब तक करिए साधना, जब तक लगे न बान।। 
*
पाकर गौरा सी धना, कौन न होगा धन्य?
किसने बौरा सा धनी, पाया कहो अनन्य??
*

तनहा करिए साधना, मस्ती सबके साथ। 
पीर न कहिए किसी से, जिएँ उठाकर माथ।।
*
दोहा मुक्तक 
नित श्रम; कठिन प्रयास कर, भाग्य तनिक हो संग। 
तब जीवन में सफलता, फैलाएगी रंग।
असफल होकर हार मत, फिर-फिर उठकर जूझ-
जीवट देखे सकल जग,मंजिल खुद हो दंग।।
*   

सोमवार, 17 सितंबर 2018

doha muktak

दोहा मुक्तक 
कभी न लगने दीजिए, दुर्व्यसनों की चाट. 
बिन दुश्मन करते व्यसन, खादी हमारी खाट.
कदम-कदम रखकर बढ़ें, गिर-उठ लक्ष्य न भूल 
ईश्वर जब होते सदय, तब हों आप विराट.
*

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

doha muktak

दोहा मुक्तक सलिला:
अमरनाथ
*
अमरनाथ! रहिए सदय, करिए दैव निहाल।
करूँ विनय संकट हरें, प्रभु! तव ह्रदय विशाल।।
अमरनाथ की कृपा से, विजय-तिलक वर भाल।
करतल में करताल ले, भजन करे हर हाल।।
*
अमर नाथ; सेवक नहीं, पल में हो निर्जीव।
प्रभु संप्राणित करें तो, शव भी हो संजीव।।
भोले पल में तुष्ट हो, बनते करुणासींव।
रुष्ट हुए तो खैरियत, मन न सकता जीव।।
*
अमर नाथ जिसके न वह, रहे कभी भयभीत।
शब्द-सुमन अर्पित करे, अक्षर-अक्षर प्रीत।।
भाव-सलिल साथी बने, नव रस का हो मीत।
समर सत्य-हित कर सदा, निश्चय मिलना जीत।।
*
अमरनाथ-जयकार कर, शंका का हो अंत।
कंकर शंकर-दास हो, कोशिश कर-कर कंत।।
आनंदित हैं भू-गगन, नर्तित दिशा-दिगंत।
शून्य-सांत हैं जो वही, हैं सर्वस्व अनंत।।
*   
अमर नाथ बसते वहीं, जहाँ 'सलिल' की धार।
यह पद-प्रक्षालन करे, वे रखते सिर-धार।।                                                           
गरल-अमिय सम भाव से, ईश करें स्वीकार।
निराकार हैं जो वही, हैं कण-कण साकार।।
*
अमरनाथ ही आस हो, शकुंतला सी श्वास।
प्रगति-योजना हर सके, जीवन का संत्रास।।
मन-दीपक जलता रहे, ले अधरों पर हास।
स्वेद खिले साफल्य का, सुमन बिखेर सुवास।।
*
अमरनाथ जो ठान लें, तत्क्षण करते काम।
राम मिल सकें जप 'मरा', सीधी हो विधि वाम।।
सुर-नर-असुरों से पूजें, करते काम तमाम।
दुराचार के नाश हित करते काम तमाम। ।
**
५.७.२०१८; ७९९९५५९६१८
  

शनिवार, 19 नवंबर 2016

काव्य वार्ता
नाम से, काम से प्यार कीजै सदा 
प्यार बिन जिंदगी-बंदगी कब हुई?        -संजीव्  
*
बन्दगी कब हुई प्यार बिन जिंदगी 
दिल्लगी बन गई आज दिल की लगी 
रंग तितली के जब रँग गयीं बेटियाँ 
जा छुपी शर्म से आड़ में सादगी            -मिथलेश 
*
छोड़ घर मंडियों में गयी सादगी 
भेड़िये मिल गए तो सिसकने लगी 
याद कर शक्ति निज जब लगी जूझने 
भीड़ तब दुम दबाकर खिसकने लगी    -संजीव्

एक दोहा 
शब्दसुमन को गूंथिए, ले भावों की डोर 
गीत माल तब ही बने, जब जुड़ जाएँ छोर
*
एक कुण्डलिनी 
मन मनमानी करे यदि, कस संकल्प नकेल 
मन को वश में कीजिए, खेल-खिलाएँ खेल 
खेल-खिलाएँ खेल, मेल बेमेल न करिए 
व्यर्थ न भरिए तेल, वर्तिका पहले धरिए 
तभी जलेगा दीप, भरेगा तम भी पानी
कसी नकेल न अगर, करेगा मन मनमानी

*
एक पद-
अभी न दिन उठने के आये 
चार लोग जुट पायें देनें कंधा तब उठना है 
तब तक शब्द-सुमन शारद-पग में नित ही धरना है 
मिले प्रेरणा करूँ कल्पना ज्योति तिमिर सब हर ले 
मन मिथिलेश कभी हो पाए, सिया सुता बन वर ले
कांता हो कैकेयी सरीखी रण में प्राण बचाए
अपयश सहकर भी माया से मुक्त प्राण करवाए
श्वास-श्वास जय शब्द ब्रम्ह की हिंदी में गुंजाये
अभी न दिन उठने के आये

*
दो दोहे 
उसके हुए मुरीद हम, जिसको हमसे आस 
प्यास प्यास से तृप्त हो, करे रास संग रास

मन बिन मन उन्मन हुआ, मन से मन को चैन 
मन में बस कर हो गया, मनबसिया बेचैन
*

दोहा-मुक्तक 
मुक्तक 
मन पर वश किसका चला ?
किसका मन है मौन?
परवश होकर भी नहीं 
परवश कही कौन?
*
संयम मन को वश करे,
जड़ का मन है मौन
परवश होकर भी नहीं
वश में पर के भौन
*

मुक्तिका 
*
पहले कहते हैं आभार 
फिर भारी कह रहे उतार 
*
सबसे आगे हुए खड़े 
कहते दिखती नहीं कतार 
*
फट-फट कार चलाती वे 
जो खुद को कहतीं बेकार 
*
सर पर कार न धरते क्यों 
जो कहते खुद को सरकार? 
*
असरदार से शिकवा क्यों?
अ सरदार है गर सरदार 
*
छोड़ न पाते हैं घर-द्वार
कहते जाना है हरि-द्वार 
*
'मिथ' का 'लेश' नहीं पाया 
थे मिथलेश प्रगट साकार 
***

मुक्तिका 
*
पहले कहते हैं आभार 
फिर भारी कह रहे उतार 
*
सबसे आगे हुए खड़े 
कहते दिखती नहीं कतार 
*
फट-फट कार चलाती वे 
जो खुद को कहतीं बेकार 
*
सर पर कार न धरते क्यों 
जो कहते खुद को सरकार? 
*
असरदार से शिकवा क्यों?
अ सरदार है गर सरदार 
*
छोड़ न पाते हैं घर-द्वार
कहते जाना है हरि-द्वार 
*
'मिथ' का 'लेश' नहीं पाया 
जब मिथलेश हुई साकार 
***

मुक्तिका
*
जीने से मत डरना तुम
जीते जी मत मरना तुम
*
मन की पीड़ा कह-कहकर
पीर नहीं कम करना तुम
*
कदम-कदम चल-गिर-उठकर
मंजिल अपनी वरना तुम
*
श्रम-गंगा में नहा-नहा
तार जगत को तरना तुम
*
फूल-फलो जब-जब, तब-तब
बिन भूले नित झरना तुम

***

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

doha muktak:

***

दोहा मुक्तक: 

मोती पाले गर्भ में, सदा मौन रह सीप 
गोबर गुपचुप ही रहे, दें आँगन में लीप 
बन गणेश जाता मिले, जब लक्ष्मी का संग 
तिमिर मिटाता जगत का, जल-चुप रहकर दीप 
*