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शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

geet: susheel guru

एक गीत
सुशील गुरु
डाँ सुशील गुरु
*
तुम सपनों का नीड़ बसाने आई वंदनवार लिए 
मैं द्वार पर खड़ा रहा गंधी पुष्पों का हार लिए 
मेरा नवजीवन प्रवेश था पावन था 
बिन बर्षा मदिर हृदय का सावन था 
मिलें गगन में तुम मुझको जल से 
निर्मल उषा जैसा अरुणिम तेरा आँचल था\ 
तुम मुझको बहलाने आई अंजलि भर भर प्यार लिए 
मैं द्वार पर खड़ा रहा गंधी पुष्पों का हार लिए 
रैन मृदुल होता है मृदुल रैन का जीवन 
तभी छितिज पर इन्द्रधनुष हो जाता है मन 
आँचल लहराकर तुमने ही राह् दिखाई 
वंधन तोड़ के अनचाहे भागा मन 
तुमने दिखलाये सपन ताज़महल आकार लिए 
मैं द्वार पर खड़ा रहा गंधी पुष्पों का हार लिए