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गुरुवार, 14 मई 2015

kavyanjali: amarshahid kunwar sinh -sanjiv

काव्यांजलि:
अमर शहीद कुंवर सिंह
संजीव
*
भारत माता पराधीन लख,दुःख था जिनको भारी
वीर कुंवर सिंह नृपति कर रहे थे गुप-चुप तैयारी
अंग्रेजों को धूल चटायी जब-जब वे टकराये
जगदीशपुर की प्रजा धन्य थी परमवीर नृप पाये
समय न रहता कभी एक सा काले बादल छाये
अंग्रेजी सैनिक की गोली लगी घाव कई खाये
धार रक्त की बही न लेकिन वे पीड़ा से हारे
तुरत उठा करवाल हाथ को काट हँसे मतवारे
हाथ बहा गंगा मैया में 'सलिल' हो गया लाल
शुभाशीष दे मैया खद ही ज्यों हो गयी निहाल
वीर शिवा सम दुश्मन को वे जमकर रहे छकाते
छापामार युद्ध कर दुश्मन का दिल थे दहलाते
नहीं चिकित्सा हुई घाव की जमकर चढ़ा बुखार
भागमभाग कर रहे अनथक तनिक न हिम्मत हार
छब्बीस अप्रैल अट्ठारह सौ अट्ठावन दिन काला
महाकाल ने चुपके-चुपके अपना डेरा डाला
महावीर की अगवानी कर ले जाने यम आये
नील गगन से देवों ने बन बूंद पुष्प बरसाये
हाहाकार मचा जनता में दुश्मन हर्षाया था
अग्निदेव ने लीली काया पर मन भर आया था
लाल-लाल लपटें ज्वाला की कहती अमर रवानी
युग-युग पीढ़ी दर पीढ़ी दुहराकर अमर कहानी
सिमट जायेंगे निज सीमा में आंग्ल सैन्य दल भक्षक
देश विश्व का नायक होगा मानवता का रक्षक
शीश झुककर कुंवर सिंह की कीर्ति कथा गाएगी
भारत माता सुने-हँसेगी, आँखें भर आएँगी
***



बुधवार, 13 मार्च 2013

shahadat katha: captain jaswant singh rawat




स्मरण :
*1962 में शहीद भारतीय फौजी, आज भी दे रहा ड्यूटी*

*1962 में शहीद भारतीय फौजी , जो आज भी दे रहा ड्यूटी*

1962 में चीन ने भारत को करारी शिकस्‍त दी थी...लेकिन उस युद्ध में हमारे देश कई जांबाजों ने अपने लहू से गौरवगाथा लिखी थी...आज हम एक ऐसे शहीद की बात करेंगे, जिसका नाम आने पर न केवल भारतवासी बल्कि चीनी भी सम्‍मान से सिर झुका देते हैं... वो मोर्चे पर लड़े और ऐसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई,

इससे भी ज्‍यादा हैरानी आपको ये जानकर होगी कि 1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात है...

शहीद राइफलमैन को मिलता है हर बार प्रमोशन...

उनकी सेना की वर्दी हर रोज प्रेस होती है, हर रोज जूते पॉलिश किए जाते हैं...उनका खाना भी हर रोज भेजा जाता है और वो देश की सीमा की सुरक्षा आज भी करते हैं...सेना के रजिस्‍टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है और उन्‍हें प्रमोश भी मिलते हैं...

अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं...इनका नाम है- "कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत।"

महावीर चक्र से सम्‍मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है...ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते... बाबा जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है...

पूरे तीन दिन तक चीनियों से अकेले लड़ा था वो जांबाज...

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में नूरांग में बाबा जसवंत सिंह ने वो ऐतिहासिक जंग लड़ी थी... वो 1962 की जंग का आखिरी दौर था...चीनी सेना हर मोर्चे पर हावी हो रही थी...लिहाजा भारतीय सेना ने नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुलाने का आदेश दे दिया...पूरी बटालियन लौट गई, लेकिन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गुसाईं नहीं लौटे...बाबा जसवंत ने पहले त्रिलोक और गोपाल सिंह के साथ और फिर दो स्‍थानीय लड़कियों की मदद से चीनियों के साथ मोर्चा लेने की रणनीति तैयार की...बाबा जसवंत सिंह ने अलग अलग जगह पर राईफल तैनात कीं और इस अंदाज में फायरिंग करते गए मानो उनके साथ बहुत सारे सैनिक वहां तैनात हैं...उनके साथ केवल दो स्‍थानीय लड़कियां थीं, जिनके नाम थे, सेला और नूरा।

चीनी परेशान हो गए और तीन दिन यानी 72 घंटे तक वो ये नहीं समझ पाए कि उनके साथ अकेले जसवंत सिंह मोर्चा लड़ा रहे हैं...तीन दिन बाद जसवंत सिंह को रसद आपूर्ति करने वाली नूरा को चीनियों ने पकड़ लिया...

इसके बाद उनकी मदद कर रही दूसरी लड़की सेला पर चीनियों ने ग्रेनेड से हमला किया और वह शहीद हो गई, लेकिन वो जसवंत तक फिर भी नहीं पहुंच पाए...बाबा जसवंत ने खुद को गोली मार ली...

"भारत माता का ये लाल नूरांग में शहीद हो गया।"

चीनी सेना भी सम्मान करती है शहीद जसवंत का...

चीनी सैनिकों को जब पता चला कि उनके साथ तीन दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे तो वे हैरान रह गए...चीनी सैनिक उनका सिर काटकर अपने देश ले गए...20 अक्‍टूबर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई...चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना और सम्‍मान स्‍वरूप न केवल उनका कटा हुआ सिर वापस लौटाया बल्कि कांसे की मूर्ति भी भेंट की...

उस शहीद के स्मारक पर भारतीय-चीनी झुकाते है सर...जिस जगह पर बाबा जसवंत ने चीनियों के दांत खट्टे किए थे...

उस जगह पर एक मंदिर बना दिया गया है... इस मंदिर में चीन की ओर से दी गई कांसे की वो मूर्ति भी लगी है...उधर से गुजरने वाला हर जनरल और जवान वहां सिर झुकाने के बाद ही आगे बढ़ता है...स्‍थानीय नागरिक और नूरांग फॉल जाने वाले पर्यटक भी बाबा से आर्शीवाद लेने के लिए जाते हैं...वो जानते हैं बाबा वहां हैं और देश की सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं...

"वो जानते हैं बाबा शहीद हो चुके हैं... वो जानते हैं बाबा जिंदा हैं... बाबा अमर हैं..."
जयहिंद।

1962 में चीन ने भारत को करारी शिकस्‍त दी थी...लेकिन उस युद्ध में हमारे देश कई जांबाजों ने अपने लहू से गौरवगाथा लिखी थी...आज हम एक ऐसे शहीद की बात करेंगे, जिसका नाम आने पर न केवल भारतवासी बल्कि चीनी भी सम्‍मान से सिर झुका देते हैं... वो मोर्चे पर लड़े और ऐसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई,

इससे भी ज्‍यादा हैरानी आपको ये जानकर होगी कि 1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात है...

शहीद राइफलमैन को मिलता है हर बार प्रमोशन...

उनकी सेना की वर्दी हर रोज प्रेस होती है, हर रोज जूते पॉलिश किए जाते हैं...उनका खाना भी हर रोज भेजा जाता है और वो देश की सीमा की सुरक्षा आज भी करते हैं...सेना के रजिस्‍टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है और उन्‍हें प्रमोश भी मिलते हैं...

अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं...इनका नाम है- "कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत।"

महावीर चक्र से सम्‍मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है...ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते... बाबा जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है...

पूरे तीन दिन तक चीनियों से अकेले लड़ा था वो जांबाज...

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में नूरांग में बाबा जसवंत सिंह ने वो ऐतिहासिक जंग लड़ी थी... वो 1962 की जंग का आखिरी दौर था...चीनी सेना हर मोर्चे पर हावी हो रही थी...लिहाजा भारतीय सेना ने नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुलाने का आदेश दे दिया...पूरी बटालियन लौट गई, लेकिन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गुसाईं नहीं लौटे...बाबा जसवंत ने पहले त्रिलोक और गोपाल सिंह के साथ और फिर दो स्‍थानीय लड़कियों की मदद से चीनियों के साथ मोर्चा लेने की रणनीति तैयार की...बाबा जसवंत सिंह ने अलग अलग जगह पर राईफल तैनात कीं और इस अंदाज में फायरिंग करते गए मानो उनके साथ बहुत सारे सैनिक वहां तैनात हैं...उनके साथ केवल दो स्‍थानीय लड़कियां थीं, जिनके नाम थे, सेला और नूरा।

चीनी परेशान हो गए और तीन दिन यानी 72 घंटे तक वो ये नहीं समझ पाए कि उनके साथ अकेले जसवंत सिंह मोर्चा लड़ा रहे हैं...तीन दिन बाद जसवंत सिंह को रसद आपूर्ति करने वाली नूरा को चीनियों ने पकड़ लिया...

इसके बाद उनकी मदद कर रही दूसरी लड़की सेला पर चीनियों ने ग्रेनेड से हमला किया और वह शहीद हो गई, लेकिन वो जसवंत तक फिर भी नहीं पहुंच पाए...बाबा जसवंत ने खुद को गोली मार ली...

"भारत माता का ये लाल नूरांग में शहीद हो गया।"

चीनी सेना भी सम्मान करती है शहीद जसवंत का...

चीनी सैनिकों को जब पता चला कि उनके साथ तीन दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे तो वे हैरान रह गए...चीनी सैनिक उनका सिर काटकर अपने देश ले गए...20 अक्‍टूबर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई...चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना और सम्‍मान स्‍वरूप न केवल उनका कटा हुआ सिर वापस लौटाया बल्कि कांसे की मूर्ति भी भेंट की...

उस शहीद के स्मारक पर भारतीय-चीनी झुकाते है सर...जिस जगह पर बाबा जसवंत ने चीनियों के दांत खट्टे किए थे...

उस जगह पर एक मंदिर बना दिया गया है... इस मंदिर में चीन की ओर से दी गई कांसे की वो मूर्ति भी लगी है...उधर से गुजरने वाला हर जनरल और जवान वहां सिर झुकाने के बाद ही आगे बढ़ता है...स्‍थानीय नागरिक और नूरांग फॉल जाने वाले पर्यटक भी बाबा से आर्शीवाद लेने के लिए जाते हैं...वो जानते हैं बाबा वहां हैं और देश की सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं...

"वो जानते हैं बाबा शहीद हो चुके हैं... वो जानते हैं बाबा जिंदा हैं... बाबा अमर हैं..."
जयहिंद।
आभार :
सचिन श्रीवास्तव

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद जयंती पर विशेष रचना

अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद जयंती पर विशेष नवगीत:

आचार्य संजीव 'सलिल'

तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
और हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....

तुम निडर थे
हम डरे हैं,
अपने भाई से.
समर्पित तुम,
दूर हैं हम
अपनी माई से.
साल भर
भूले तुम्हें पर
एक दिन 'सलिल'
सर झुकाए बन गए
विनत सलाम हैं...

तुम वचन औ'
कर्म को कर
एक थे जिए.
हमने घूँट
जन्म से ही
भेद के पिए.
बात या
बेबात भी
आपस में
नित लड़े.
एकता?
माँ की कसम
हमको हराम है...

आम आदमी
के लिए, तुम
लड़े-मरे.
स्वार्थ हित
नेता हमारे
आज हैं खड़े.
सत्ता साध्य
बन गयी,
जन-देश
गौड़ है.
रो रही कलम
कि उपेक्षित
कलाम है...

तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
'सलिल' हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....
*****************

सोमवार, 30 मार्च 2009


गीत

वीर प्रसूता माँ के उदगार

डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, बरेली

चलो, देश के काम आ गया, अपना प्यारा लाल...

जिसकी अर्थी ने जीवन का अर्थ हमें समझाया.
दुनिया के माया-जालों में कभी नहीं उलझाया.
जिसे तिरंगे में पाकर, उन्नत है मेरा भाल....

सीमा के उस प्रहरी ने मातृत्व सफल कर डाला.
मृत्युंजय बनकर जिसने सारा विषाद हर डाला.
अनुरागी नब गया उसी का, निष्ठुर चाहे काल...

बलिदानी सूत एक अकेला, बना मुझे वरदान.
सौंप गया है, भारत माँ को अमृतमय मुस्कान.
और पुत्र ऐसे पाकर हो, माता सदा निहाल...

वीर-प्रसूता रह्हों, सदा जब-जब मैं जीवन पाऊँ.
विदुला और कभी जीजाबाई बनकर हरषाऊँ.
हो बन्दूक खिलौना, उसकी वीरोचित हो चाल...

हर माँ अपने बालक को मानव बनना सिखलाये.
अर्थवान जीवन हो, ऐसा काम देश के आये.
रुद्र और दुर्गा सी सन्तति, करती सदा कमाल...

देश-धर्म पर मिटानेवाले ही जिंदा कहलाते हैं.
चट्टानों औ' गिरिश्रृंगों को, वे पल में दहलाते हैं.
हस शहीद के मेले पर, हृदयों में उठा, उबाल...

*****************************