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शनिवार, 29 जून 2019

गीत

एक रचना 
*
चाँदनी में नहा 
चाँदनी महमहा 
रात-रानी हुई 
कुछ दीवानी हुई
*
रातरानी खिली
मोगरे से मिली
हरसिंगारी ग़ज़ल
सुन गया मन मचल
देख टेसू दहा
चाँदनी में नहा
*
रंग पलाशी चढ़ा
कुछ नशा सा बढ़ा
बालमा चंपई
तक जुही मत मुई
छिप फ़साना कहा
चाँदनी में नहा
*
२९-६-२०१६

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

गीत

एक रचना:
संजीव
*
अरमानों की फसलें हर दिन ही कुदरत बोती है
कुछ करने के लिए कभी भी देर नहीं होती है
*
उठ आशीष दीजिए छोटों को महके फुलवारी
नमन ईश को करें दूर हों चिंता पल में सारी
गीत ग़ज़ल कवितायेँ पोयम मंत्र श्लोक कुछ गा लें
मन की दुनिया जब जैसी चाहें रच खूब मजा लें
धरती हर दुःख सह देती है खूब न पर रोती है
कुछ करने के लिए कभी भी देर नहीं होती है
*
देश-विदेश कहाँ कैसा क्या भला-बुरा बतलायें
हम न जहाँ जा पाये पढ़कर ही आनंद मनायें
मौसम लोग, रीतियाँ कैसी? कैसा ताना-बाना
भारत की छवि कैसी? क्या वे चाहें भारत आना?
हरे अँधेरा मौन चाँदनी, नील गगन धोती है
कुछ करने के लिए कभी भी देर नहीं होती है
****
salil.sanjiv@gmail.com,९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.in
#हिंदी_ब्लॉगर

शनिवार, 3 नवंबर 2012

गीत: समाधित रहो .... संजीव 'सलिल'

गीत:
समाधित रहो ....







संजीव 'सलिल'
+
चाँद ने जब किया चाँदनी दे नमन,
कब कहा है उसी का क्षितिज भू गगन।
दे रहा झूमकर सृष्टि को रूप नव-
कह रहा देव की भेंट ले अंजुमन।।

जो जताते हैं हक वे न सच जानते,
जानते भी अगर तो नहीं मानते।
'स्व' करें 'सर्व' को चाह जिनमें पली-
रार सच से सदा वे रहे ठानते।।

दिन दिनेशी कहें, जल मगर सर्वहित,
मौन राकेश दे, शांति सबको अमित।
राहु-केतु ग्रसें, पंथ फिर भी न तज-
बाँटता रौशनी, दीप होता अजित।।

जोड़ता जो रहा, रीतता वह रहा,
भोगता सुर-असुर, छीजता ही रहा।
बाँट-पाता मनुज, ज़िन्दगी की ख़ुशी-
प्यास ले तृप्ति दे, नर्मदा सा बहा।।

कौन क्या कह रहा?, कौन क्या गह रहा?
किसकी चादर मलिन, कौन स्वच्छ तह रहा?
तुम न देखो इसे, तुम न लेखो इसे-
नित नया बन रहा, नित पुरा ढह रहा।।

नित निनादित रहो, नित प्रवाहित रहो।
सर्व-सुख में 'सलिल', चुप समाहित रहो।
शब्द-रस-भावमय छन्द अर्पित करो-
शारदी-साधना में समाधित रहो।।

***

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

दोहा सलिला: पावस है त्यौहार संजीव 'सलिल'


दोहा सलिला:                                                                                                    
                                                                                            
पावस है त्यौहार

संजीव 'सलिल'
*
नभ-सागर-मथ गरजतीं, अगणित मेघ तरंग.                                                         
पावस-पायस पी रहे, देव-मनुज इक संग..
*
रहें प्रिया-प्रिय संग तो, है पावस त्यौहार.                                                              मरणान्तक दुःख विरह का, जल लगता अंगार..                                                
*
आवारा बादल करे, जल बूंदों से प्यार.
पवन लट्ठ फटकारता, बनकर थानेदार..
*                                                                                                                
रूप देखकर प्रकृति का, बौराया है मेघ.
संयम तज प्रवहित हुआ, मधुर प्रणय-आवेग..
*
मेघदूत जी छानते, नित सारा आकाश.
डायवोर्स माँगे प्रिय, छिपता यक्ष हताश..   
*  
उफनाये नाले-नदी, कूल तोड़ती धार.
कुल-मर्यादा त्यागती, ज्यों उच्छ्रंखल नार.. 
*
उमड़-घुमड़ बादल घिरे, छेड़ प्रणय-संगीत.
अन-आमंत्रित अतिथि लख, छिपी चाँदनी भीत..
*
जीवन सतत प्रवाह है, कहती है जल-धार.
सिखा रही पाषाण को, पगले! कर ले प्यार..
*
नील गगन, वसुधा हरी, कृष्ण मेघ का रंग.
रंगहीन जल-पवन का, सभी चाहते संग..
*
किशन गगन, राधा धरा, अधरा बिजली वेणु.
'सलिल'-धार शत गोपियाँ, पवन बिरज की रेणु.
*
कजरी, बरखा गा रहीं, झूम-झूम जल-धार.
ढोल-मृदंग बजा रहीं, गाकर पवन मल्हार.
*
युवा पड़ोसन धरा पर, मेघ रहा है रीझ.
रुष्ट दामिनी भामिनी, गरज रही है खीझ.
*
वन प्रांतर झुलसा रहा, दिनकर होकर क्रुद्ध.                                                                    
नेह-नीर सिंचन करे, सलिलद संत प्रबुद्ध..
*
निबल कामिनी दामिनी, अम्बर छेड़े झूम.
हिरनी भी हो शेरनी, उसे नहीं मालूम..
*
पानी रहा न आँख में, देखे आँख तरेर.
पानी-पानी हो गगन, पानी दे बिन देर..                                                                
*
अति हरदम होती बुरी, करती सब कुछ नष्ट.
अति कम हो या अति अधिक, पानी देता कष्ट..
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