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शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

navgeet: sanjiv

नवगीत:

अंतर्मन में व्याप्त 
सुन 
नीरव का संगीत
ओ मेरे मनमीत!

कोलाहल में  
क्या पायेगा?
सन्नाटे में 
खो जायेगा
सुन-गुन ज्यादा 
बोल न्यूनतम 
तभी 
बढ़ेगी प्रीत 

सबद-अजान  
भजन-कीर्तन कर  
किसे रहा तू टेर?
सुने न क्यों वह?
बहरा है या 
करे देर- अंधेर?
व्यर्थ न माला फेर 
तोड़ जग-रीत 

कलकल, कलरव 
सनन सनन सन 
धाँय-धाँय 
क्या रुचता?
पंकज पूजता 
पूर्व-बाद क्यों 
विवश पंक में धँसता?
क्यों जग गाता गीत?
*