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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

nav varsh 2 navgeet:

नवगीतः
१. 
- ओमप्रकाश तिवारी
नये वर्ष तू बता
किस तरह
करूँ तेरी अगवानी !

जाने कैसे
बदल रहा है
मौसम अपना रंग,
खड़ी फसल पर
ओलों ने फिर
किया रंग में भंग ;

बेमौसम
खेतों में छहरा
पानी ही पानी।

देह बुजुर्गों
की सिकुड़ी है
ओढ़े पड़े रजाई,
सूरज की
हड़ताल चल रही
पड़ता नहीं दिखाई;

सर-सर बहती
हवा कर रही
तन से मनमानी।

जेब गरम है
जिनकी, पहुँचे
शिमला और मनाली,
रैन बसेरे
वालों का क्या
जिनकी जेबें खाली ;

शोर जश्न का
दबा रहा है
मजबूरों की वाणी

 २.  

- संजीव 
काल चक्र का 
महाकाल के भक्त
करो अगवानी 
तपूँ , जड़ाऊँ या बरसूँ 
नाखुश होंगे बहुतेरे 
शोर-शांति
चाहो ना चाहो 
तुम्हें रहेंगे घेरे
तुम लड़कर जय वरना 
चाहे सूखा हो या पानी 
बहा पसीना 
मेहनत कर 
करना मेरी अगवानी 
चलो, गिरो उठ बढ़ो 
शूल कितने ही आँख तरेरे  
बाधा दें या  
रहें सहायक 
दिन-निशि, साँझ-सवेरे 
कदम-हाथ गर रहे साथ  
कर लेंगे धरती धानी  
कलम उठाकर 
करें शब्द के भक्त
मेरी अगवानी
शिकवे गिले शिकायत 
कर हल होती नहीं समस्या   
सतत साधना   
से ही होती  
हरदम पूर्ण तपस्या  
स्वार्थ तजो, सर्वार्थ साधने   
बोलो मीठी बानी  
फिर जेपी-अन्ना 
बनकर तुम करो 
मेरी अगवानी
.
​​

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

awadhi geet: omprakash tiwari

अवधी गीत:

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा

- ओमप्रकाश तिवारी

पप्पू के पापा तुहूँ लड़ा
अबकिन चुनाव मा हुअव खड़ा।

निरहू-घुरहू अस कइव जने
सब दावं इलेक्सन मा जीते,
संसद का समझिन समधियान
सब जने देस का लइ बीते ;
न केहू कै वै भला किहिन
न केहू कै कल्यान किहिन,
सीना फुलाय घूमैं जइसे
वै हुवैं सिकंदर जग जीते।

टुटहा घर बनिगा महल अइस,
हैं छापिन नोटव कड़ा-कड़ा।
पप्पू के पापा -------

न काम किहिन न काज किहिन
सोने के भाव अनाज किहिन,
बभनौटन से तुहंका लड़ाय
अपुना दिल्ली मा राज किहिन ;
वै कहिन जाय निपटाउब हम
दुख-दर्द सकल भयवादी कै,
लेकिन सत्ता की गल्ली मा
वै जाय कोढ़ मा खाज किहिन।

खद्दर कै रंग चढ़ा अस की,
होइ गवा करैला नीम चढ़ा ।
पप्पू के पापा ---------

उनकी थइली मा माल भवा
तौ झूर गलुक्का लाल भवा,
मोटर पै बिजुली लाल जरै
हारन जिउ कै जंजाल भवा ;
सब गांव खड़ंजा का तरसै
वै घर तक रोड बनाय लिहिन,
जे तनिकौ मूड़ उठाय दिहिस
ऊ पिपरे कै बैताल भवा ।

केहू गड़ही मा परा मिला,
केहू पै मोटर जाय चढ़ा ।
पप्पू के पापा --------

मँगनी कै धोती पहिर-पहिर
वै नात-बाँत के जात रहीं,
घर मा यक जून जरै चूल्हा
वै भौंरी-भाँटा खात रहीं  ;
अब नेता कै मेहरि बनि के
गहना से लदी-फँदी घूमै,
सोझे मुँह बात न चीत करैं
नखरा नकचढ़ा अमात नहीं।

काने में झुमकी हीरा कै,
नेकुना पै सब्जा बड़ा-बड़ा ।
पप्पू के पापा -------

उनके लरिका कै सुनौ हाल
किरवा झरि जइहैं काने कै,
वकरे चपरहपन के किस्सा से
रंगा रजिस्टर थाने कै ;
बिटिया-पतुअह घर बंद भईं
पहरा लागै डड़वारे पै,
सगरौ पवस्त ऊबा वहसे
चक्कर काटै देवथान्हे कै ।

है गाँव-देस मा अब चर्चा,
इनके पापन कै भरा घड़ा ।
पप्पू के पापा -------
*
 Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau Dainik Jagran Jagran Prakashan Ltd., Peninsula Center, Dr. S.S.Rao Road, Opp. Mahatma Gandhi Hospital, Parel (E), Mumbai- 400012
Tel : 022 24197171, Fax : 022 24112009, M : 098696 49598
Visit my blogs :  http://gazalgoomprakash.blogspot.com/
http://navgeetofopt.blogspot.in/ http://janpath-kundali.blogspot.com/
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Resi.- 07, Gypsy , Main Street , Hiranandani Gardens, Powai , Mumbai-76 Tel. : 022 25706646

रविवार, 4 अगस्त 2013

navgeet: kaurav kul -Omprakash Tiwari

नवगीत:

कौरव कुल

- ओमप्रकाश तिवारी 

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कौन कह रहा
द्वापर में ही
कौरव कुल का नाश हुआ ।

वही पिताश्री
बिन आँखों के
माताश्री
पट्टी बाँधे,
ढो-ढो
पुत्रमोह की थाती
दुखते दोनों
के काँधे ;

उधर न्याय की
आस लगाये
अर्जुन सदा निराश हुआ ।

नकुल और
सहदेव सरीखे
भाई के भी
भाव गिरे,
दुर्योधन जी
राजमहल में
दुस्साशन से
रहें घिरे ;

जिसमें जितने
दुर्गुण ज्यादा
वह राजा का ख़ास हुआ ।

चालें वही
शकुनि की दिखतीं
चौपड़ के
नकली पाशे,
नहीं मयस्सर
चना-चबेना
दूध - मलाई
के झांसे ;

चंडालों की
मजलिस  में जा
सदा युधिष्ठिर दास हुआ ।

भीष्म - द्रोण
सत्ता के साथी
अपने-अपने
कारण हैं,
रक्षाकवच
नीति के सबने
किये बख़ूबी
धारण हैं ;

सच कहने पर
चचा विदुर को
दिखे आज वनवास हुआ ।
--
Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau
Dainik Jagran
41, Mittal Chambers, Nariman Point,
 Mumbai- 400021

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रविवार, 3 मार्च 2013

नवगीत: गाए राग वसंत ओमप्रकाश तिवारी


नवगीत:

गाए राग वसंत

ओमप्रकाश तिवारी  

चेहरा पीला आटा गीला
मुँह लटकाए कंत,
कैसे भूखे पेट ही गोरी
गाए राग वसंत ।

मंदी का है दौर
नौकरी अंतिम साँस गिने
जाने कब तक रहे हाथ में
कब बेबात छिने ;

सुबह दिखें खुश, रूठ न जाएं
शाम तलक श्रीमंत ।

चीनी साठ दाल है सत्तर
चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
वोट माँगने सब आए थे
अब दिखता न कोई पुछत्तर;

चने हुए अब तो लोहे के
काम करें ना दंत ।

नेता अफसर और बिचौले
यही तीन हैं सबसे तगड़े
इनसे बचे-खुचे खा जाते
भारत में भाषा के झगड़े ;

साठ बरस के लोकतंत्र का
चलो सहें सब दंड ।