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मंगलवार, 24 जून 2014

chhand salila: alha chhand -sanjiv

छंद सलिला:
आल्हा/वीर/मात्रिक सवैयाRoseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति , अर्ध सम मात्रिक छंद, प्रति चरण मात्रा ३१ मात्रा, यति १६ -१५, पदांत गुरु गुरु, विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।),

लक्षण छंद:

आल्हा मात्रिक छंद सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य.    
गुरु-लघु चरण अंत में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य..
अलंकार अतिशयता करता बना राई को 'सलिल' पहाड़.
    
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़..

उदाहरण:

१. बुंदेली के नीके बोल... संजीव 'सलिल'
*
तनक न चिंता करो दाऊ जू, बुंदेली के नीके बोल.
जो बोलत हैं बेई जानैं, मिसरी जात कान मैं घोल..
कबू-कबू ऐसों लागत ज्यौं, अमराई मां फिररै डोल.
आल्हा सुनत लगत हैं ऐसो, जैसें बाज रए रे ढोल..

अंग्रेजी खों मोह ब्याप गौ, जासें मोड़ें जानत नांय.
छींकें-खांसें अंग्रेजी मां, जैंसें सोउत मां बर्रांय..
नीकी भासा कहें गँवारू, माँ खों ममी कहत इतरांय.
पाँव बुजुर्गों खें पड़ने हौं, तो बिनकी नानी मर जांय..

फ़िल्मी धुन में टर्राउट हैं, आँय-बाँय फिर कमर हिलांय.
बन्ना-बन्नी, सोहर, फागें, आल्हा, होरी समझत नांय..
बाटी-भर्ता, मठा-महेरी, छोड़ केक बिस्कुट बें खांय.
अमराई चौपाल पनघटा, भूल सहर मां फिरें भुलांय..
*

२. कर में  ले तलवार घुमातीं, दुर्गावती करें संहार.
    यवन भागकर जान बचाते  गिर-पड़ करते हाहाकार.  
    सरमन उठा सूँढ से फेंके, पग-तल कुचले मुगल-पठान.  
    आसफ खां के छक्के छूटे, तोपें लाओ बचे तब जान.

३. एक-एक ने दस-दस मारे, हुआ कारगिल खूं से लाल 
    आये कहाँ से कौन विचारे, पाक शिविर में था भूचाल 
    या अल्ला! कर रहम बचा जां, छूटे हाथों से हथियार  
    कैसे-कौन निशाना साधे, तजें मोर्चा हो बेज़ार 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कमंद, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: alha  chhand  -sanjiv
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शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

veer chhand: deewali par -sanjiv


वीर छंद
दीवाली पर:
संजीव
*
दीवाली पर दीप जले शत, कोने में दुबका अँधकार
स्नेह-दीप सब 'सलिल' जलायें, 'मावस पूनम सम उजियार
मिटे मलिनता बढ़े स्वच्छता, रंग-बिरंगा हो संसार
खील-बताशे, खेल-खिलौने, खूब बढ़े हर कारोबार
*
धूम्र-धुआँ-ध्वनि दूषण कम हो, खुशियाँ खूब बढ़ें चहुँ ओर
जो साधन संपन्न देख लें, दुखी न हों निर्धन-कमजोर
दीवाली हो हर कुटिया में, उजली हो हर घर में भोर
विद्युत् अपव्यय न्यून करें हम, कहीं न हो कोई कमजोर
*
श्रम कर अर्जित करें लक्ष्मी, श्री गणेश हों तभी प्रसन्न
संस्कार बिन केवल धन हो, जिस घर में वह रहे विपन्न
राष्ट्रलक्ष्मी रोजगार-कृषि-उद्यम, उत्पादन, खाद्यान्न
'सलिल' मने दीवाली अनुपम, संकट कोई न हो आसन्न
*
देश-हितों का ध्यान रखें सब, तभी मने सच्चा त्यौहार
शांति-व्यवस्था, न्याय-सुशासन, जनहितकारी हो सरकार
घर-घर दीपक करे उजाला, दस दिश में मेटे अंधियार
मति-गणेश हर विघ्न हर सके, गृहलक्ष्मी जीवन उजियार
============
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

रविवार, 14 अगस्त 2011

बुंदेली लोकमानस में प्रतिष्ठित छंद आल्हा : बुंदेली के नीके बोल... संजीव 'सलिल'

बुंदेली लोकमानस में प्रतिष्ठित छंद आल्हा :

सोलह-पंद्रह यति रखे, आल्हा मात्रिक छंद
ओज-शौर्य युत सवैया, दे असीम आनंद
गुरु-गुरु लघु हो विषम-सम, चरण-अंत दें ध्यान
जगनिक आल्हा छंद के, रचनाकार महान 

बुंदेली के नीके बोल...
संजीव 'सलिल'
*

तनक न चिंता करो दाऊ जू, बुंदेली के नीके बोल.
जो बोलत हैं बेई जानैं, मिसरी जात कान मैं घोल..
कबू-कबू ऐसों लागत ज्यौं, अमराई मां फिररै डोल.
आल्हा सुनत लगत हैं ऐसो, जैसें बाज रए रे ढोल..

अंग्रेजी खों मोह ब्याप गौ, जासें मोड़ें जानत नांय.
छींकें-खांसें अंग्रेजी मां, जैंसें सोउत मां बर्रांय..
नीकी भासा कहें गँवारू, माँ खों ममी कहत इतरांय.
पाँव बुजुर्गों खें पड़ने हौं, तो बिनकी नानी मर जांय..

फ़िल्मी धुन में टर्राउट हैं, आँय-बाँय फिर कमर हिलांय.
बन्ना-बन्नी, सोहर, फागें, आल्हा, होरी समझत नांय..
बाटी-भर्ता, मठा-महेरी, छोड़ केक बिस्कुट बें खांय.
अमराई चौपाल पनघटा, भूल सहर मां फिरें भुलांय..

शनिवार, 13 अगस्त 2011

छंद सलिला: बुंदेलखंड के लोक मानस में प्रतिष्ठित आल्हा या वीर छंद -- संजीव 'सलिल'

छंद सलिला:      
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बुंदेलखंड के लोक मानस में प्रतिष्ठित आल्हा या वीर छंद
                                                                  संजीव 'सलिल'
*
                     आल्हा या वीर छन्द अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके हर पद (पंक्ति) में क्रमशः १६-१६  मात्राएँ, चरणान्त क्रमशः दीर्घ-लघु होता है. यह छंद वीर रस से ओत-प्रोत होता है. इस छंद में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रचुरता से प्रयोग होता है.                                                                                  
छंद विधान:
   
सोलह-पंद्रह यति रखे, आल्हा मात्रिक छंद
ओज-शौर्य युत सवैया, दे असीम आनंद
गुरु-गुरु लघु हो विषम-सम, चरण-अंत दें ध्यान
जगनिक आल्हा छंद के, रचनाकार महान 

आल्हा मात्रिक छंद सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य.     
गुरु-लघु चरण अंत में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य..
    अलंकार अतिशयताकारक, करे राई को तुरत पहाड़.
    
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़..
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                    महाकवि जगनिक रचित आल्हा-खण्ड इस छंद का कालजयी ग्रन्थ है जिसका गायन समूचे बुंदेलखंड, बघेलखंड, रूहेलखंड में वर्ष काल में गाँव-गाँव में चौपालों पर होता है. प्राचीन समय में युद्धादि के समय इस छंद का नगाड़ों के साथ गायन होता था जिसे सुनकर योद्धा जोश में भरकर जान हथेली पर रखकर प्राण-प्रण से जूझ जाते थे. महाकाव्य आल्हा-खण्ड में दो महावीर बुन्देल युवाओं आल्हा-ऊदल के पराक्रम की गाथा है. विविध प्रसंगों में विविध रसों की कुछ पंक्तियाँ देखें:   

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    पहिल बचनियां है माता की, बेटा बाघ मारि घर लाउ.
    आजु बाघ कल बैरी मारउ, मोर छतिया कै डाह बुझाउ..  ('मोर' का उच्चारण 'मुर' की तरह)
    बिन अहेर के हम ना जावैं, चाहे कोटिन करो उपाय.
    जिसका बेटा कायर निकले, माता बैठि-बैठि मर जाय..
                        
        *
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    टँगी खुपड़िया बाप-चचा की, मांडौगढ़ बरगद की डार.
    आधी रतिया की बेला में, खोपड़ी कहे पुकार-पुकार..  ('खोपड़ी' का उच्चारण 'खुपड़ी')
    कहवाँ आल्हा कहवाँ मलखे, कहवाँ ऊदल लडैते लाल. ('ऊदल' का उच्चारण 'उदल')
    बचि कै आना मांडौगढ़ में, राज बघेल जिए कै काल..
                                      *
    अभी उमर है बारी भोरी, बेटा खाउ दूध औ भात.
    चढ़ै जवानी जब बाँहन पै, तब के दैहै तोके मात..
                                      *
    एक तो सूघर लड़कैंयां कै, दूसर देवी कै वरदान. ('सूघर' का उच्चारण 'सुघर')
    नैन सनीचर है ऊदल के, औ बेह्फैया बसे लिलार..
    महुवरि बाजि रही आँगन मां, जुबती देखि-देखि ठगि जाँय.
    राग-रागिनी ऊदल गावैं, पक्के महल दरारा खाँय..
                                      *
           4292918593_a1f9f7d02d.jpg                                              
चित्र परिचय: आल्हा ऊदल मंदिर मैहर, वीरवर उदल, वीरवर आल्हा, आल्हा-उदल की उपास्य माँ शारदा का मंदिर, आल्हा-उदल का अखाड़ा तथा तालाब. जनश्रुति है कि आल्हा-उदल आज भी मंदिर खुलने के पूर्व तालाब में स्नान कर माँ शारदा का पूजन करते हैं. चित्र आभार: गूगल.
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com