दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 25 अप्रैल 2009
शब्द-यात्रा: चुनाव - अजित वडनेरकर
प्रजातंत्र में वोट vote का बड़ा महत्व है। कोई भी निर्वाचित सरकार वोट अर्थात मत के जरिये चुनी जाती है। यह शब्द अंग्रेजी का है जो बीते कई दशकों से इतनी बार इस देश की जनता ने सुना है कि अब यह हिन्दी में रच-बस चुका है जिसका मतलब है मतपत्र के जरिये अपनी पसंद या इच्छा जताना। चुनाव के संदर्भ में मत और मतदान शब्दों का प्रयोग सिर्फ संचार माध्यमों में ही पढ़ने-सुनने को मिलता है वर्ना आम बोलचाल में लोग मतदान के लिए वोटिंग और मत के लिए वोट शब्द का प्रयोग सहजता से करते हैं। वोटर के लिए मतदाता शब्द हिन्दी में प्रचलित है। वोट यूं लैटिन मूल का शब्द है मगर हिन्दुस्तान में इसकी आमद अंग्रेजी के जरिये हुई। लैटिन में वोट का रूप है वोटम votum जिसका अर्थ है प्रार्थना, इच्छा, निष्ठा, वचन, समर्पण आदि। भाषा विज्ञानी इसे प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का शब्द मानते हैं। अंग्रेजी का वाऊ vow इसी श्रंखला का शब्द है जिसका मतलब होता है प्रार्थना, समर्पण और निष्ठा के साथ अपनी बात कहना। वोटिंग करने में दरअसल यही भाव प्रमुखता से उभरता है।
जब आप सरकार बनाने की प्रक्रिया के तहत अपने जनप्रतिनिधि के पक्ष में मत डालते हैं तब निष्ठा और समर्पण के साथ ही अपना मंतव्य प्रकट कर रहे होते हैं। इसी श्रंखला में वैदिक वाङमय में भी वघत जैसा शब्द मिलता है जिसका मतलब होता है किसी मन्तव्य की आकाक्षा में खुद को समर्पित करनेवाला। लैटिन के वोटम से ही बने डिवोटी devotee शब्द पर ध्यान दें। इसमें वहीं भाव है जो वैदिक शब्द वघत में आ रहा है अर्थात समर्पित, निष्ठावान आदि। डिवोशन इसी सिलसिले की कड़ी है। ये तमाम शब्द प्राचीन समाज की धार्मिक आचार संहिताओं से निकले हैं और अपनी आकांक्षाओं, इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर के प्रति समर्पण व निष्ठा की ओर संकेत करते हैं। यह शब्दावली प्राचीनकाल के धर्मों, पंथों के प्रति उसके अनुयायियों के समर्पण व त्याग की अभिव्यक्ति के लिए थी। आधुनिक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के संदर्भ में देखे तो ये बातें सीधे सीधे पार्टी या दल ... प्रत्याशियों के चरित्र को देख कर वोटर से समर्पण की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो वोटिंग का मूलभूत उद्धेश्य है।... विशेष से जुड़ रही हैं क्योंकि अधिकांश प्रत्याशियों की छवि या तो ठीक नहीं होती या आम लोग उससे सीधे सीधे परिचित नहीं होते। प्रत्याशियों के चरित्र को देख कर वोटर से समर्पण की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो वोटिंग का मूलभूत उद्धेश्य है। शायद राजनीतिक दलों को इन शब्दों के शास्त्रीय अर्थ पहले से पता होंगे इसीलिए वे हमेशा वोटर से निष्ठा की उम्मीद करते हैं।
संस्कृत-हिन्दी के मत शब्द का मतलब होता है सोचा हुआ, सुचिंतित, समझा हुआ, अभिप्रेत, अनुमोदित, इच्छित, राय, विचार, सम्मति, सलाह आदि। यह संस्कृत धातु मन् से निकला है जिसका अर्थ होता है जिसमें चिन्तन, विचार, समझ, कामना, अभिलाषा जैसे भाव हैं। आदि। वोटिंग के लिए मतदान शब्द इससे ही बनाया गया है। प्राचीन भारत में भी गणराज्य थे। वोटिंग से मिलती जुलती प्रणाली तब भी थी अलबत्ता शासन व्यवस्था के लिए वोटिंग नहीं होती थी बल्कि किन्ही मुद्दों पर निर्णय के लिए मतगणना होती थी। मतपत्र के स्थान पर तब शलाकाएं अर्थात लोहे की छोटी छड़ियां होती थीं। गण की विद्वत मंडली जिसे हम कैबिनेट कह सकते हैं, मुद्दे के पक्ष, विपक्ष के लिए दो अलग अलग शलाकाएं सभा में पदर्शित करती थीं। उनकी गणना की जाती थी। जिस रंग की शलाकाओं की संख्य़ा अधिक होती वही फैसले का आधार होता। मतपत्र, मतदान, मतदानकेंद्र, मतगणना, मताधिकार, सहमत, असहमत जैसे शब्द इसी मूल से बने हैं। बुद्धि-विवेक के लिए मति शब्द भी इसी श्रंखला की कड़ी है जिसका अभिप्राय समझ, ज्ञान, जानकारी,। मत अर्थात राय में सोच-विचार, चिन्तन-मनन का भाव समाया हुआ है। मगर यह चिन्तन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हर चरण से तिरोहित हो चुका है। पार्टियों में आंतरिक स्तर पर प्रत्याशियों के चयन में चिन्तन का आधार जीत-हार होता है, न कि प्रत्याशी की छवि, विकास के जनकल्याण के लिए संघर्ष करने का माद्दा।
गुरुवार, 16 अप्रैल 2009
आज की बात आज ही: 'सलिल'
ऐ मनुज!
बोलती है नज़र तेरी, क्या रहा पीछे कहाँ?
देखती है जुबान लेकिन, क्या 'सलिल' खोया कहाँ? 
कोई कुछ उत्तर न देता, चुप्पियाँ खामोश हैं।
होश की बातें करें क्या, होश ख़ुद मदहोश हैं।
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सत्य यही है हम दब्बू हैं...
अपना सही नहीं कह पाते।
साथ दूसरों के बह जाते।
अन्यायों को हंस सह जाते।
और समझते हम खब्बू हैं...
निज हित की अनदेखी करते।
गैरों के वादों पर मरते।
बेटे बनते बाप हमारे-
व्यर्थ समझते हम अब्बू हैं...
सरहद भूल सियासत करते।
पुरा-पड़ोसी फसलें चरते। 
हुए देश-हित 'सलिल' उपेक्षित-
समझ न पाए सच कब्बू हैं...
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लोकतंत्र का यही तकाज़ा
चलो करें मतदान।
मत देना मत भूलना
यह मजहब, यह धर्म।
जो तुझको अच्छा लगे
तू बढ़ उसके साथ।
जो कम अच्छा या बुरा
मत दे उसको रोक।
दल को मत चुनना
चुनें अब हम अच्छे लोग।
सच्चे-अच्छे को चुनो
जो दे देश संवार।
नहीं दलों की, देश
अब तो हो सरकार।
वादे-आश्वासन भुला, भुला पुराने बैर।
उसको चुन जो देश की, कर पायेगा खैर।
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