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सोमवार, 2 मई 2011

चिट्ठाकारों का सम्मलेन दिल्ली में: रपट : अविनाश वाचस्पति. आभार नुक्कड़

चिट्ठाकारों का सम्मलेन दिल्ली में:
 रपट : अविनाश वाचस्पति.
आभार नुक्कड़

   हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में सिरमौर रवीन्‍द्र प्रभात और अविनाश वाचस्‍पति का सामूहिक श्रम। हिंदी भाषा जब चहुं ओर से तमाम थपेड़े खा रही हो, अपने ही घर में अपमानित हो रही हो और हिंदी में सृजन करने वाला अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा हो, ऐसे में इस प्रकार के कार्यक्रम की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। कल्‍पना स्‍वर्ग की तरंगों का अहसास कराती है, वहीं सृजन हमारे सामाजिक सरोकार को मजबूती देता है। आप सभी देश के विभिन्‍न हिस्‍सों से आए हैं और अभिव्‍यक्ति के नए माध्‍यम ब्‍लॉगिंग को नई तेज धार देने में जुटे हुए हैं। आप सभी का देवभूमि उत्‍तराखंड में स्‍वागत है। आप को मेरे सहयोग की जैसी भी आवश्‍यकता हो, हम सदैव तत्‍पर रहेंगे 
   
    देश की संस्‍कृति का केन्‍द्र है उत्‍तराखंड और मैं चाहूंगा कि आप सबके सहयोग से वह विश्‍व पटल पर हिन्‍दी का एक सशक्‍त केन्‍द्र भी हो जाए। शनिवार दिनांक ३० अप्रैल २०११ को हिंदी भवन दिल्‍ली में हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन परिकल्‍पना सम्‍मान समारोह को संबोधित करते हुए उपरोक्‍त विचार उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने व्‍यक्‍त किए। इस अवसर पर उन्‍होंने परिकल्‍पना डॉट कॉम की ओर से देश विदेश के इक्‍यावन चर्चित और श्रेष्‍ठ तथा नुक्‍कड़ डॉट कॉम की ओर से हिंदी ब्‍लॉगिंग में विशिष्‍टता हासिल करने वाले तेरह ब्‍लॉगरों को सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान किया।

    कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्‍न हुआ। पहले सत्र की अध्‍यक्षता हास्‍य व्‍यंग्‍य के सशक्‍त और लोकप्रिय हस्‍ताक्षर अशोक चक्रधर ने की। इस अवसर पर मुख्‍य अतिथि रहे वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. रामदरश मिश्र और विशिष्‍ट अतिथि रहे प्रभाकर श्रोत्रिय। साथ ही प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता और डायमंड बुक्‍स के संचालक नरेन्‍द्र कुमार वर्मा भी मंचासीन थे। दीप प्रज्‍वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ रमेश पोखरियाल निशंक ने किया। अविनाश वाचस्‍पति और रवीन्‍द्र प्रभात द्वारा संपादित हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की पहली मूल्‍यांकनपरक पुस्‍तक हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग : अभिव्‍यक्ति की नई क्रांति, रवीन्‍द्र प्रभात का नया उपन्‍यास ताकी बचा रहे लोकतत्र, निशंक जी की पुस्‍तक सफलता के अचूक मंत्र तथा रश्मिप्रभा द्वारा संपादित परिकल्‍पना की त्रैमासिक पत्रिका वटवृक्ष का लोकार्पण किया गया। इसके बाद चौंसठ हिंदी ब्‍लॉगरों का सारस्‍वत सम्‍मान हुआ।
 
   इस अवसर पर प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता ने कहा कि जीवन के उद्देश्‍य ऐसे हों जिनमें मानवीय सेवा निहित हो। मैं ब्‍लॉगिंग के बारे में बहुत ज्‍यादा तो नहीं जानता किंतु जहां तक मेरी जानकारी में है और मैंने महसूस किया है, उसके आधार पर यह दावे के साथ कह सकता हूं कि हिंदी ब्‍लॉगिंग में सामाजिक स्‍वर और सरोकार पूरी तरह दिखाई दे रहा है। कई ऐसे ब्‍लॉगर हैं जो सामाजिक जनचेतना को हिंदी ब्‍लॉगिंग से जोड़ने का महत्‍वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। यह दुनिया विचारों की दुनिया है, बस कोशिश यह करें कि हमारे विचार आम आदमी से जुड़कर आगे आएं।

    अशोक चक्रधर ने अपने चुटीले अंदाज में सर्वप्रथम हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन के साथ अपनी भावनात्‍मक सहभागिता की बात की और स्‍वयं एक ब्‍लॉगर होने के नाते आयोजकत्रय गिरिराजशरण अग्रवाल, रवीन्‍द्र प्रभात और अविनाश वाचस्‍पति की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्‍होंने बताया कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग ने सचमुच समाज में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया है क्‍योंकि पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में साहित्‍य और संस्‍कृति के पेज संकुचित होते जा रहे हैं और उनकी अभिव्‍यक्ति को धार दे रही है हिन्‍दी ब्‍लॅगिंग। ऐसे कार्यक्रमों से निश्चित रूप से हिंदी का विकास होगा और हिन्‍दी अंतरराष्‍ट्रीय फलक पर अग्रणी भाषा के रूप में प्रतिस्‍थापित होगी।
 
हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय ने अभिव्यक्ति के इस नए माध्यम को लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति से जोड़कर देखा और कहा कि हिंदी ब्लॉगिंग का तेजी से विकास हो रहा है, तमाम साधन और सूचना की न्यूनता के वाबजूद यह माध्यम प्रगति पथ पर तीब्र गति से अग्रसर है, तकनीक और विचारों का यह साझा मंच कुछ बेहतर करने हेतु प्रतिबद्ध दिखाई दे रहा है । यह कम संतोष की बात नहीं है

   वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने साहित्‍य के अपने लंबे अनुभवों को बांटा, वहीं अभिव्‍यक्ति के इस नए माध्‍यम के भविष्‍य को लेकर पूरी तरह आशान्वित दिखे। उन्होंने कहा कि जब मैंने साहित्य सृजन करना शुरू किया था तो मैं यह महसूस करता था कि कलम सोचती है और आज़ हिन्दी ब्लॉगिंग के इस महत्वपूर्ण दौर मे यह कहने पर विवश हो गया हूँ कि उंगलिया भी सोचती हैं। बहुत अच्छा लगता है जब आज की पीढ़ी को नूतनता के साथ आगे बढ़ते देखता हूँ । आयोजको को इस नयी पहल के लिए मेरी असीम शुभकामनाएं

   दूसरे सत्र में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों ने कालजयी साहित्यकार रविन्द्र नाथ टैगोर की बंगला नाटिका लावणी का हिंदी रूपांतरण प्रस्तुत कर सभागार में उपस्थित दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया । इस अवसर पर हिंदी साहित्य निकेतन की ५० वर्षों की यात्रा को आयामित कराती पावर पोईन्ट प्रस्तुति भी हुई कार्यक्रम का संचालन रवीन्द्र प्रभात और गीतिका गोयल ने किया

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बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

ब्लॉगिंग की आचार संहिता : कुछ सवाल

ब्लॉगिंग की आचार संहिता : कुछ सवाल 


मुझे ब्लॉगरों का एक साथ बैठना ...चाहे फ़िर आप कोई मीट का नाम दे या साग भात का ..चाहे बैठकी हो ..या मिलन ..मगर जब आभासी दुनिया के लोग आपस में एक दूसरे के आमने सामने बैठ कर रूबरू होते हैं ...तो हरेक के न सिर्फ़ मन में बल्कि ....आत्मा के भीतर एक अनोखी ही चमक देखने को मिलती है ..मुझे यकीन है कि ..ऐसी हर उस ब्लॉगर ने महसूस किया होगा ..जो कभी न कभी इनका हिस्सा बना है ..। और वही क्यों ..जब उन बैठकों की रिपोर्टें ..उनकी तस्वीरें ..पोस्ट के माध्यम से अंतर्जाल पर आती हैं ..तो चाहे कोई लाख इस बात को झुठलाए ..और लाख तर्क कुतर्कों से इसकी मीनमेख निकाले ..मगर लोकप्रियता ही बता देती है कि ..ये खूब पसंद की जाती हैं । हाल ही में वर्धा में एक वृहत सम्मेलन का आयोजन किया था ..जहां तक मुझे याद है कि ..ये ऐसा दूसरा सम्मेलन था जिसमें ..आयोजन कर्ता की भूमिका में सरकार भी कहीं न कहीं जुडी थी .....जाहिर है कि इसकी रूपरेखा तैयार करने वाले और संचालन करने वाले मित्र तो इसके लिए बधाई के पात्र हैं ही ..क्योंकि यदि सरकारी राशि का कुछ प्रतिशत यदि ब्लॉगर हित में लगवाया जा सका है तो ये कोई कम बडी उपलब्धि नहीं कही जा सकती .....हां इसका प्रभाव और परिणाम कितना सकारात्मक निकला या निकलेगा ..अभी इस पर कुछ भी कहना तो जल्दबजी ही होगी....ऐसा ही एक सम्मेलन पिछले वर्ष ...इलाहाबाद में भी हुआ था । इस बार इसका विषय रखा गया था "ब्लॉगिंग में आचार संहिता की आवशयकता।
         हालांकि इसमें बहुत बडी संख्या में कई वरिष्ठ साथी ब्लॉगर शरीक हुए थे, मगर अभी तक आई रिपोर्टों में विस्तार से जानने को नहीं मिल पाया है कि, सम्मेलन में इस विषय पर क्या क्या बहस हुई और किसने क्या क्या विचार व्यक्त किए ....और यदि कोई निष्कर्ष निकला तो वो क्या रहा । मगर इन सबके बीच ही ..अंतर्जाल पर लिख पढ रहे अन्य हिंदी ब्लॉगर साथी ऊपर लिखित विषय को बहस का आधार बना कर अपने विचार रखने लगे थे और शायद अभी तो आगे भी बहुत कुछ पढने लिखने को मिलेगा । वैसे ये विषय ऐसा है कि जिस पर मेरे विचार से हरेक ब्लॉगर को खुल कर राय जरूर व्यक्त करना चाहिए । आखिर यही छोटे छोटे प्रयास कल के लिए ब्लॉगिंग की दिशा तय करने वाले कदम साबित होंगे ।
         इस मुद्दे पर सोचने बैठा तो सबसे पहले जो बात मेरे जेहन में आई ..वो ये कि आखिर ..आज ऐसी आवश्यकता ही क्यों पडी कि सिर्फ़ पांच सालों की यात्रा के बाद ही ब्लॉगिंग को , वो भी सिर्फ़ हिंदी ब्लॉगिंग को , क्योंकि मुझे ये ज्ञात नहीं है कि अन्य भाषाओं में किसी आचार संहिता की कोई जरूरत पडी है , या कोई है भी , जबकि संख्या में वे इतने आगे हैं कि अभी तुलना करना ही बेमानी होगा ..हां तर्क देने वाले ये तर्क जरूर देंगे कि ...हिंदी ब्लॉगिंग का भी निरंतर विस्तार हो रहा है और कल को ये संख्या निश्चित रूप से बहुत बडी संख्या होगी ..मगर क्या तब तक अन्य भाषी ब्लॉग्स रुके रहेंगे वे भी तो निरंतर बढ रहे हैं न । यहां एक कौतुहल मन में जाग उठा है कि ....तो फ़िर यदि उन्हें इन विषयों पर बात करने की जरूरत नहीं महसूस नहीं होती तो आखिर वे कौन सी बात करते हैं अपने ब्लॉगर बैठकों में ..ये तो वही बता सकते हैं जो कभी इनमें शामिल हुए हों । तो प्रश्न ये कि , आखिर इतनी जल्दी हिंदी ब्लॉगिंग को आचार संहिता की जरूरत क्यों महसूस होने लगी ...जवाब सीधे सीधे आए तो आएगा ..कोई जरूरत नहीं है..। मगर ठहरिए ..मामला उतना भी आसान नहीं है जितना दिखता है । मुझे स्मरण है कि जब २००७ में मैंने ब्लॉगजगत में पदार्पण किया था ..तो कम से चार या पांच एग्रीगेटर्स अपनी सेवाएं दे रहे थे ..। और बाद में ये जान पाया कि , उन सबके बंद होने के पीछे ..कहीं न कहीं , या कहूं कि लगभग पूरा का पूरा हाथ....जी हां आप ठीक समझे ..खुद हिंदी ब्लॉगर्स का ही था ।हाल ही में बंद हुई ब्लॉगवाणी के बंद होने से पहले की स्थितियों से कौन वाकिफ़ नहीं है ?? हालांकि इसका एक और कारण शायद ये भी रहा कि इन सभी संकलकों से जुडे लोग या तो खुद भी ब्लॉगर थे या फ़िर उनसे जुडे हुए अवश्य थे ...दूसरी और अहम बात ये कि ..मुफ़्त ही सेवाएं दे रहे थे ...। इसका परिणाम ये हुआ कि ..अपनी आदत के मुताबिक ..हिंदी ब्लॉगर ने इन संकलकों को भी ..देश की सडक समझ कर ....सुलभ शौचालय की भुगतान कर ..विसर्जन करने वाली सेवा करने से ..आसान पाया और खूब किया भी ..पसंद नापसंद ...हॉट ..आदि जैसे सेवाओं के उपयोग और दुरूपयोग से ..और ये नहीं कह रहा कि ..मैं भी और आप भी ..यानि हम सब ही इसमें परोक्ष प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे ।
         इन सबके बावजूद ..ब्लॉगिंग में किसी तरह की कोई आचार संहिता का बनना ....और उससे भी बढकर पालन किया जाना ..फ़िलहाल तो बचकाना सा ही लगता है । इसके बहुत से वाजिब तर्क दिए जा सकते हैं ।उदाहरण के लिए , अभी हुए वर्धा सम्मेलन को ही लें .....सबसे पहले तो यही प्रश्न सामने आएगा कि ...क्या आज मौजूद हिंदी के हर चिट्ठाकार ने ऐसी कोई सहमति दी है ......कि इस सम्मेलन में उपस्थित विद्वान साथियों द्वारा जिस भी आचार संहिता का निर्माण किया जाएगा उसका वे भी पालन करेंगे ...हर चिट्ठाकार न सही ..एक बहुत बडी संख्या ही सही .....अरे सबको छोडिए ..चिट्ठाजगत में अधिकृत पंद्रह बीस हज़ार में से नियमित लिखने पढने वाले पांच सौ या एक हज़ार चिट्ठाकारों ने भी ....और दूसरी बात ये कि ....यदि वहां ऐसी किसी आचार संहिता का निर्माण हो भी जाता ..या कि ऐसे किसी सम्मेलन में कर भी दिया जाए ..तो उस सम्मेलन में ..उपस्थित हर ब्लॉगर क्या उस आचार संहिता को माने जाने का शपथ पत्र दाखिल कर लेगा अपने आप से .....नहीं कदापि नहीं ..मेरा अनुभव तो इस मामले में कुछ अलग ही रहा है ...मैंने तो साथी मित्रों को ..बिना किसी मुद्दे मकसद और एजेंडे के बुलाया था ....और कुछ दोस्तों को उसमें से भी कोई बू दिखाई दे गई .....खैर । हां यदि ऐसी कोई आचार संहिता .....भारतीय सरकार बनाती है ..कल को गूगल या वर्डप्रैस बनाते हैं ..तो उसे मानना हर ब्लॉगर की मजबूरी होगी और तभी इसका अनुपालन हो सकेगा ।
         अब बची बात ये कि यदि आचार संहिता न बन पाती है , नहीं लागू हो पाती है तो फ़िर क्या आज की जो स्थिति है वो कल को और भी बदतर नहीं होगी न ..तो होने दीजीए न ....। मैं पहले से ही कहता रहा हूं कि ,ब्लॉगिंग का एक ही चरित्र है ..वो है उसका निरंकुश चरित्र .....बेबाक , बेखौफ़ ,...बेरोकटोक के ...और खालिस बिंदास ....। एक व्यक्ति अपने ब्लॉग पर रोज एक खूबसूरत चित्र लगाता है प्रकृति का ..उसे क्या लेना देना आपकी हमारी इस आचार संहिता से ...एक ब्लॉगर ....रोज अपनी डायरी का एक पन्ना चिपका देता है ब्लॉग पोस्ट बना कर .....तो उसकी निजि डायरी में आपकी आचार संहिता को वो क्यों घुसेड दे ....। इसको भी जाने दीजीए ..वो जो सिर्फ़ पाठक हैं....जो सिर्फ़ पठन रस लेने के ही ब्लॉग दर ब्लॉग घूमते हैं ..उनपर आप कौन सी आचार संहिता लागू करेंगे ?? और सबसे अहम बात कि ..आखिर वे हैं कौन ..जो ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं ..क्या कभी स्कॉटलैंड के किसी ब्लॉगर ने की ऐसी कोई टिप्पणी जिससे विवाद उठा ...तो ऑस्ट्रेलिया वाले किसी ब्लॉगर ने अपने चिट्ठे को चर्चा में जगह न मिल पाने की शिकायत की हो ...नहीं न ...और तो और ये बात भी सब भलीभांति जानते हैं कि ....अनाम , बेनाम , गुमनाम और नकली प्रोफ़ाईल धारी ब्लॉगर्स भी हमारे आपके बीच से ही है .....तो आप उन दिखने लिखने वाले ब्लॉगर्स पर तो आचार संहिता लागू कर सकते हैं ....मगर उनके भीतर बैठे ....उन अनाम सुनाम ब्लॉगर पर नहीं । फ़िर एक सबसे जरूरी बात ,,,,,आखिर कुछ सोच कर ही मोडरेशन वाला विकल्प , सार्वजनिक और निजि का विकल्प , अनाम को बाधित किए जाने का विकल्प ही सही मायने में ..आचार संहिता की नौबत तक न पहुंचने देने के हथियार तो हैं ही न ???
 
         मुझे इस बात से कोई परहेज़ नहीं है कि इस मुद्दे को उठाया गया है ,लेकिन मेरी समझ से इससे बेहतर भी हैं कई उपाय जो किए जाएं तो ज्यादा सार्थक हो सकते हैं । चाहे एक मिनट के लिए आचार संहिता न भी बना पाएं , न लागू कर पाएं , मगर उन पर विचार तो किया ही जा सकता है , क्योंकि कल को जब ..मीडिया के दबाव में ( मुझे अब ये पूरी उम्मीद है कि यदि कल को हिंदी ब्लॉगर्स के प्रति भारत सरकार का नज़रिया और नीति , जो कि अभी है ही नहीं , बदलती है तो वो हिंदी मीडिया की पहल पर ही होगा । आज हिंदी ब्लॉगिंग उनके लिए ही सबसे बडी चुनौती के रूप में निकली है , तो उस समय सरकार के सामने उस संहिता के उपबंधों को रखा जाए । एक काम और हो सकता है , जिसके लिए किसी आचार संहिता दंड संहिता की जरूरत नहीं है । उन बातों को जो कि सकारात्मक हैं ..जो कि सही हैं ...उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया जाए ..कम से कम उतना तो जरूर ही कि ..उसे किसी कदम पर लडखडाहट न ..और ऐसा ही तब हो जब कुछ गलत हो रहा हो ...मगर यहां कुछ लोगों को ये शिकायत रहती है कि..जब मेरे साथ फ़लाना हुआ तब तो कोई नहीं बोला ..जब ऐसा हुआ तब तो नहीं कहा किसी ने कुछ ..तो उन मित्रों से कहना चाहूंगा कि ऐसी स्थिति में ..सिर्फ़ दो बातें हो सकती हैं ...पहली ये कि या तो उनको सही पाकर लोग खुद बखुद उनके साथ जुडते चले जाएं ..या नहीं तो वे खुद ये प्रयास करें कि उनकी लडाई को उनके नज़रिए को ...उनके साथी ब्लॉगर्स भी उसी नज़रिए से देखें जिससे वे देख रहे हैं । अब यहां कुछ सवाल ऐसे उठ सकते हैं कि फ़िर तो इसके लिए आपका एक ग्रुप होना चाहिए ..या गुट बनाना चाहिए ....तो इसमें अस्वाभाविक कौन सी बात है ?? चलिए एक उदाहरण लेते हैं ..आज जितने भी पंजीकृत ब्लॉगर्स हैं ......उनमें से जो नियमित हैं सिर्फ़ वही एक दूसरे की पोस्ट को पढ लिख रहे हैं ..ये पांच सौ हों य छ: सौ ..तो बांकी बचे हुए हजारों अनियमित ब्लॉगर्स के लिए ..तो ये पांच छ: सौ वाला नियमित समूह ...एक ग्रुप ही बन गया न । और ये नहीं भूलना चाहिए कि परिवार में रहने वाले भाईयों में भी उन्हीं में पटती है जो एक जैसी विचारधारा वाले हों ...,,,,,और विपरीत विचारधारा वालों के सामने रहती पाई जाती है । नहीं नहीं होगा क्या ..क्या होगा आखिर ?? क्या ब्लॉग पर होने वाली बहस का परिणाम ...गुजरात के गोधरा से , १९८४ के सिक्ख दंगों से , जम्मू में रोज मारे जा रहे लोगों से अधिक भयंकर होगा ....नहीं न । तो फ़िर चलने दीजीए इसे निर्बाध और अनवरत ।

             जनाब तभी तो कहता हूं कि ब्लॉग जगत को पहले ठीक से जवां तो होने दीजीए ..अभी तो इतना लडकपन है कि किसी ब्लॉगर के साथ हुई दुरघटना को भी लोग सहनुभूति से नहीं शक की नज़र से देखते हैं ...क्यों है न ..पता नहीं कितना और क्या क्या लिख गया .....मगर माफ़ करिएगा हुजूर ...मैंने पहले ही कह रखा है ..कुछ भी कभी भी कहूंगा ,,,,सो कह दिया ...
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शनिवार, 15 मई 2010

विशेष लेख: हिंदी की प्रासंगिकता और चिट्ठाकार -संजीव वर्मा 'सलिल

विशेषलेख:                                           
                        हिंदी की प्रासंगिकता और चिट्ठाकार  


संजीव वर्मा 'सलिल'

हिंदी जनवाणी तो हमेशा से है...समय इसे जगवाणी बनाता जा रहा है. जैसे-जिसे भारतीय विश्व में फ़ैल रहे हैं वे अधकचरी ही सही हिन्दी भी ले जा रहे हैं. हिंदी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, उर्दू , अन्य देशज भाषाओँ या अंगरेजी शब्दों के सम्मिश्रण से घबराने के स्थान पर उन्हें आत्मसात करना होगा ताकि हिंदी हर भाव और अर्थ को अभिव्यक्त कर सके. 'हॉस्पिटल' को 'अस्पताल' बनाकर आत्मसात करने से भाषा असमृद्ध होती है किन्तु 'फ्रीडम' को 'फ्रीडमता' बनाने से नहीं. दीनिक जीवन में  व्याकरण सम्मत भाषा हमेशा प्रयोग में नहीं ली जा सकती पर वह अशीत्या, शोध या गंभीर अभिव्यक्ति हेतु अनुपयुक्त होती है. हमें भाषा के प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च तथा  शोधपरक रूपों में भेद को समझना तथा स्वीकारना होगा. तत्सम तथा तद्भव शब्द हिंदी की जान हैं किन्तु इनका अनुपात तो प्रयोग करनेवाले की समझ पर ही निर्भर है.
हिंदी में शब्दों की कमी को दूर करने की ओर भी लगातार काम करना होगा. इस सिलसिले में सबसे अधिक प्रभावी भूमिका चिट्ठाकार निभा सकते हैं. वे विविध प्रदेशों, क्षेत्रों, व्यवसायों, रुचियों, शिक्षा, विषयों, विचारधाराओं, धर्मों तथा सर्जनात्मक प्रतिभा से संपन्न ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रायः बिना किसी राग-द्वेष या स्वार्थ के सामाजिक साहचर्य के प्रति असमर्पित हैं. उनमें से हर एक को अलग-अलग शब्द भंडार की आवश्यकता है. कभी शब्द मिलते हैं कभी नहीं. यदि वे न मिलनेवाले शब्द को अन्य चिट्ठाकारों से पूछें तो अन्य अंचलों या बोलियों के शब्द भंडार में से अनेक शब्द मिल सकेंगे. जो न मिलें उनके लिये शब्द गढ़ने का काम भी चिट्ठा कर सकता है. इससे हिंदी का सतत विकास होगा. सिविल इन्जीनियरिंग को हिंदी में नागरिकी अभियंत्रण या स्थापत्य यांत्रिकी किअटने कहना चाहेंगे? इसके लिये अन्य उपयुक्त शब्द क्या हो? 'सिविल' की हिंदी में न तो स्वीकार्यता है न सार्थकता...फिर क्या करें? सॉइल, सिल्ट, सैंड, के लिये मिट्टी/मृदा, धूल तथा रेत का प्रयोग मैं करता हूँ पर उसे लोग ग्रहण नहीं कर पाते. 

सामान्यतः धूल-मिट्टी को एक मान लिया जाता है. रोक , स्टोन, बोल्डर, पैबल्स, एग्रीगेट को हिंदी में क्या कहें?  मैं इन्हें चट्टान, पत्थर, बोल्डर, रोड़ा, तथा गिट्टी लिखता हूँ . बोल्डर के लिये कोई शब्द नहीं है? रेत के परीक्षण में  'मटेरिअल रिटेंड ऑन सीव' तथा 'मटेरिअल पास्ड फ्रॉम सीव' को हिंदी में क्या कहें? मुझे एक शब्द याद आया 'छानन' यह किसी शब्द कोष में नहीं मिला. छानन का अर्थ किसी ने छन्नी से निकला पदार्थ बताया, किसी ने छन्नी पर रुका पदार्थ तथा कुछ ने इसे छानने पर मिला उपयोगी या निरुपयोगी पदार्थ कहा.

काम करते समय आपके हाथ में न तो शब्द कोष होता है, न समय. सामान्यतः लोग गलत-सलत अंगरेजी लिखकर काम चला रहे हैं. लोक निर्माण विभाग की दर अनुसूची आज भी सिर्फ अंगरेजी मैं है. निविदा हिन्दी में है किन्तु उस हिन्दी को कोई नहीं समझ पाता, अंगरेजी अंश पढ़कर ही काम करना होता है. किताबी या संस्कृतनिष्ठ अनुवाद अधिक घातक है जो अर्थ का अनर्थ कर देता है. न्यायलय में मानक भी अंगरेजी पाठ को ही माना जाता है. हर विषय और विधा में यह उलझन है. मैं मानता हूँ कि इसका सामना करना ही एकमात्र रास्ता है किन्तु चिट्ठाजगत में एक मंच ऐसा ही कि ऐसे प्रश्न उठाकर समाधान पाया जा सके तो...? सोचें...

                             भाषा और साहित्य से सरकार जितना दूर हो बेहतर... जनतंत्र में जन, लोकतंत्र में लोक, प्रजातंत्र में प्रजा हर विषय में सरकार का रोना क्यों रोती है? सरकार का हाथ होगा तो चंद अंगरेजीदां अफसर वातानुकूलित कमरों में बैठकर ऐसे हवाई शब्द गढ़ेगे जिन्हें जनगण जान या समझ ही नहीं सकेगा. राजनीति विज्ञान में 'लेसीज फेयर' का सिद्धांत है आशय वह सरकार सबसे अधिक अच्छी है जो सबसे कम शासन करती है. भाषा और साहित्य के सन्दर्भ में यही होना चाहिए. लोकशक्ति बिना किसी भय और स्वार्थ के भाषा का विकास देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप करती है. कबीर, तुलसी सरकार नहीं जन से जुड़े और जन में मान्य थे. भाषा का जितना विस्तार इन दिनों ने किया अन्यों ने नहीं. शब्दों को वापरना, गढ़ना, अप्रचलित अर्थ में प्रयोग करना और एक ही शब्द को अलग-अलग प्रसंगों में अलग-अलग अर्थ देने में इनका सानी नहीं. 

                                                      
चिट्ठा जगत ही हिंदी को विश्व भाषा बना सकता है? अगले पाँच सालों के अन्दर विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में हिंदी के चिट्ठे अधिक होंगे. के उनकी सामग्री भी अन्य भाषाओँ के चिट्ठों की सामग्री से अधिक प्रासंगिक, उपयोगी व् प्रमाणिक होगी? इस प्रश्न का उत्तर यदि 'हाँ' है तो सरकारी मदद या अड़चन से अप्रभावित हिन्दी सर्व स्वीकार्य होगी, इस प्रश्न का उत्तर यदि 'नहीं" है तो हिंदी को 'हां' के लिये जूझना होगा...अन्य विकल्प नहीं है. शायद अकम ही लोग यह जानते हैं कि विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल और आकाशगंगा के परे संभावित सभ्यताओं से संपर्क के लिये विश्व की सभी भाषाओँ का ध्वनि और लिपि को लेकर वैज्ञानिक परीक्षण कर संस्कृत तथा हिन्दी को सर्वाधिक उपयुक्त पाया है तथा इनदोनों और कुछ अन्य भाषाओँ में अंतरिक्ष में संकेत प्रसारित किए जा रहे हैं ताकि अन्य सभ्यताएँ धरती से संपर्क कर सकें. अमरीकी राष्ट्रपति अमरीकनों को बार-बार हिन्दी सीखने के लिये चेता रहे हैं किन्तु कभी अंग्रेजों के गुलाम भारतीयों में अभी भी अपने आकाओं की भाषा सीखकर शेष देशवासियों पर प्रभुत्व ज़माने की भावना है. यही हिन्दी के लिये हानिप्रद है.


भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है तो भारतीयों की भाषा सीखना विदेशियों की विवशता है. विदेशों में लगातार हिन्दी शिक्षण और शोध का कार्य बढ़ रहा है. हर वर्ष कई विद्यालयों और कुछ विश्व विद्यालयों में हिंदी विभाग खुल रहे हैं. हिन्दी निरंतर विकसित हो रहे है जबकि उर्दू समेत अन्य अनेक भाषाएँ और बोलियाँ मरने की कगार पर हैं. इस सत्य को पचा न पानेवाले अपनी मातृभाषा हिन्दी के स्थान पर राजस्थानी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, निमाड़ी, बुन्देली या बघेली लिखाकर अपनी बोली को राष्ट्र भाषा या विश्व भाषा तो नहीं बना सकते पर हिंदी भाषियों की संख्या कुछ कम जरूर दर्ज करा सकते हैं. इससे भी हिन्दी का कुछ बनना-बिगड़ना नहीं है. आगत की आहत को पहचाननेवाला सहज ही समझ सकता है कि हिंदी ही भावी विश्व भाषा है. आज की आवश्यकता हिंदी को इस भूमिका के लिये तैयार करने के लिये शब्द निर्माण, शब्द ग्रहण, शब्द अर्थ का निर्धारण, अनुवाद कार्य तथा मौलिक सृजन करते रहना है जिसे विश्व विद्यालयों की तुलना में अधिक प्रभावी तरीके से चिट्ठाकर कर रहे हैं.

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम/ सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

सोमवार, 15 मार्च 2010

दोहे: जबलपुर में चिटठा चर्चा पर - 'सलिल'

जबलपुर में चिटठा चर्चा पर दोहे:

चिट्ठाकारों को 'सलिल', दे दोहा उपहार.
मना रहा- बदलाव का, हो चिटठा औज़ार..

नेह नरमदा से मिली, विहँस गोमती आज.
संस्कारधानी अवध, आया- हो शुभ काज..
 

'डूबे जी' को निकाले, जो वह करे 'बवाल'.
किस लय में 'किसलय' रहे, पूछे कौन सवाल?.
 

चिट्ठाकारों के मिले, दिल के संग-संग हाथ.
अंतर में अंतर न हो, सदय रहें जगनाथ..

 

उड़ न तश्तरी से कहा, मैंने खाकर भंग.
'उड़नतश्तरी' उड़ रही', कह- वह करती जंग..

गिरि-गिरिजा दोनों नहीं, लेकिन सुलभ 'गिरीश'.
'सलिल' धन्य सत्संग पा, हैं कृपालु जगदीश..

अपनी इतनी ही अरज, रखे कुशल-'महफूज़'.
दोस्त छुरी के सामने, 'सलिल' न हो खरबूज..

 
बिना पंख बरसात बिन, करता मुग्ध 'मयूर'.
गप्प नहीं यह सच्च है, चिटठाकार हुज़ूर!..
 
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