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बुधवार, 11 जुलाई 2012

त्रिपदियाँ /तसलीस : सूरज संजीव 'सलिल'

त्रिपदियाँ /तसलीस :
सूरज

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संजीव 'सलिल'



बिना नागा निकलता है सूरज।
कभी आलस नहीं करते देखा
तभी पाता सफलता है सूरज।
 

सुबह खिड़की से झाँकता सूरज।
कह रहा तम को जीत लूँगा मैं
कम नहीं खुद को आँकता सूरज।
 

भोर पूरब में सुहाता सूरज।
दोपहर देखना भी मुश्किल हो
शाम पश्चिम को सजाता सूरज।
 

जाल किरणों का बिछाता सूरज।
कोई अपना न पराया कोई
सभी सोयों को जगाता सूरज।
 

उजाला सबको दे रहा सूरज।
अँधेरे को रहा भगा भू से
दुआएँ  सबकी ले रहा सूरज।



आँख रजनी से चुराता सूरज।
बाँह में एक चाह में दूजी 
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज।





काम निष्काम ही करता सूरज।
नाम के लिये न मरता सूरज
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज।




 

शनिवार, 2 जून 2012

दोहा गीत: धरती भट्टी सम तपी... --संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
धरती भट्टी सम तपी...
संजीव 'सलिल'
*

***
धरती भट्टी सम तपी,
सूरज तप्त अलाव.
धूप लपट लू से हुआ,
स्वजनों सदृश जुड़ाव...


बेटी सर्दी के करे,
मौसम पीले हाथ.
गर्मी के दिन आये हैं,
ले बाराती साथ..

बाबुल बरगद ने दिया,
पत्ते लुटा दहेज.
पवन उड़ाकर ले गया,
रखने विहँस सहेज..

धार पसीने की नदी,
छाँव बन गयी नाव.
बाँह थाम कर आस की,
श्वास पा रही ठाँव...
***

छोटी साली सी सरल,
मीठी लस्सी मीत.
सरहज ठंडाई चहक,
गाये गारी गीत..

घरवारी शरबत सरस,
दे सुख कर संतोष.
चटनी भौजी पन्हा पर,
करती नकली रोष..

प्याज दूर विपदा करे,
ज्यों माँ दूर अभाव.
गमछा अग्रज हाथ रख
सिर पर करे बचाव...
***

देवर मट्ठा हँस रहा,
नन्द महेरी झूम.
झूला झूले पेंग भर
अमराई में लूम..

तोता-मैना गा रहे,
होरी, राई, कबीर.
ऊषा-संध्या ने माला,
नभ के गाल अबीर..

थकन-तपन के चढ़ गाये-
आसमान पर भाव.
बेकाबू होकर बजट
देता अनगिन घाव...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in






रविवार, 7 अगस्त 2011

नवगीत: सड़क पर.... -- संजीव 'सलिल'


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सड़क पर
मछलियों ने नारा लगाया:
'अबला नहीं, हम हैं
सबला दुधारी'.
मगर काँप-भागा,
तो घड़ियाल रोया.
कहा केंकड़े ने-
मेरा भाग्य सोया.
बगुले ने आँखों से
झरना बहाया...
*
सड़क पर
तितलियों ने डेरा जमाया.
ज़माने समझना
न हमको बिचारी.
भ्रमर रास भूला
क्षमा माँगता है.
कलियों से काँटा
डरा-काँपता है.
तूफां ने डरकर
है मस्तक नवाया...
*
सड़क पर
बिजलियों ने गुस्सा दिखाया.
'उतारो, बढ़ी कीमतें
आज भारी.
ममता न माया,
समता न साया.
हुआ अपना सपना
अधूरा-पराया.
अरे! चाँदनी में है
सूरज नहाया...
*
सड़क पर
बदलियों ने घेरा बनाया.
न आँसू बहा चीर
अपना भीगा री!
न रहते हमेशा,
सुखों को न वरना.
बिना मोल मिलती
सलाहें न धरना.
'सलिल' मिट गया दुःख
जिसे सह भुलाया...
****************

नवगीत: सड़क पर.... -- 

संजीव 'सलिल'

*                             

सोमवार, 18 जुलाई 2011

कविता : -- संजीव 'सलिल'

कविता
संजीव 'सलिल'
*
युग को सच्चाई का दर्पण, हर युग में दिखाती चले कविता.
दिल की दुनिया में पलती रहे, नव युग को बनाती पले कविता..
सूरज की किरणों संग जागे, शशि-किरणों संग ढले कविता.
योगी, सौतन, बलिदानी में, बन मन की ज्वाल जले कविता.
*

रविवार, 9 जनवरी 2011

तसलीस (उर्दू त्रिपदी) सूरज आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

तसलीस (उर्दू त्रिपदी)                                                                                     

सूरज 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बिना नागा निकलता है सूरज,
कभी आलस नहीं करते देखा.
तभी पाता सफलता है सूरज..
*
सुबह खिड़की से झाँकता सूरज,
कह रहा जग को जीत लूँगा मैं.
कम नहीं खुद को आंकता सूरज..
*
उजाला सबको दे रहा सूरज,
कोई अपना न पराया कोई.
दुआएं सबकी ले रहा सूरज..
*
आँख रजनी से चुराता सूरज,
बाँह में एक, चाह में दूजी.
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज..
*
जाल किरणों का बिछाता सूरज,
कोई चाचा न भतीजा कोई.
सभी सोयों को जगाता सूरज..
*
भोर पूरब में सुहाता सूरज,
दोपहर-देखना भी मुश्किल हो.
शाम पश्चिम को सजाता सूरज..
*
काम निष्काम ही करता सूरज,
मंजिलें नित नयी वरता सूरज.
खुद पे खुद ही नहीं मरता सूरज..
 *
अपने पैरों पे ही बढ़ता सूरज,
डूबने हेतु क्यों चढ़ता सूरज?
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज..
*
लाख़ रोको नहीं रुकता सूरज,
मुश्किलों में नहीं झुकता सूरज.
मेहनती है नहीं चुकता सूरज..
*****

बुधवार, 3 नवंबर 2010

नवगीत: हिल-मिल दीपावली मना रे! -संजीव 'सलिल'

नवगीत:                                                                               
हिल-मिल
दीपावली मना रे!

संजीव 'सलिल'
*
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
चक्र समय का
सतत चल रहा.
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित.
नित नव
आशा-दीप जला रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*
तन दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे!
श्वासा की
चिंगारी लेकर.
आशा-जीवन-
ज्योति जला रे!
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर.
'सलिल' मुक्त हो
नेह लुटा रे!
हिल-मिल
दीपावली मना रे!...
*

बुधवार, 11 अगस्त 2010

दोहा सलिला : संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला :

संजीव 'सलिल'
*
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*
सूर्य कृष्ण दो गोपियाँ, ऊषा-संध्या नाम.
एक कराती काम औ', दूजी दे आराम.

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छाया-पीछे दौड़ता, सूरज सके न थाम.
यह आया तो वह गयी, हुआ विधाता वाम.

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मन सूरज का मोहता, है वसुधा का रूप.
याचक बनकर घूमता, नित त्रिभुवन का भूप..

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आता खाली हाथ है, जाता खाली हाथ.
दिन भर बाँटे उजाला, पर न झुकाए माथ..

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देख मनुज की हरकतें, सूरज करता क्रोध.
कब त्यागेगा स्वार्थ यह?, कब जागेगा बोध..

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निलज मनुज को देखकर, करे धुंध की आड़.
बनी रहे मर्याद की, कभी न टूटे बाड़..

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पाप मनुज के बढ़ाते, जब धरती का ताप.
रवि बरसाता अश्रु तब, वर्षा कहते आप..

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सूर्य घूमता केंद्र पर, होता निकट न दूर.
चंचल धरती नाचती, ज्यों सुर-पुर में हूर..

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दाह-ताप दे पाप औ', अकर्मण्यता शीत.
दुःख हरकर सुख दे 'सलिल', 'विधि-हरि-हर' से प्रीत..

*************
विधि-हरि-हर = ब्रम्हा-विष्णु-महेश.
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 29 जून 2010

गीत: आँख का पानी ---संजीव 'सलिल'

नवगीत:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
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*
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
सुबह सूरज उगे या संझा ढले.
नहीं पल भर भी कभी निज कर मले.
कहे नानी नित कहानी सुन-गुनो-
श्रम-रहित सपना महज खुद को छले.
जल बचा पौधे लगा
भू को करो धानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
भुलाकर मतभेद सबसे मिल गले.
हो नहीं मन-भेद अपनापन पले.
सभी अपने किसे कहता गैर तू-
तभी तो कुल-दीप के हाथों जले.
ढाई आखर सुन-सुनाने
कहे तू बानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
कबीरा का ठाठ राजा को खले.
कोई बंधन नहीं मन-मर्जी चले.
ठेठ दिल को छुए साखी क्यों भला?
स्वार्थ सब सर्वार्थ-भट्टी में जले.
जोड़ मरती रिक्त हाथों
जिंदगानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*