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शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

द्विपदियाँ

एक रचना:
पौधा पेड़ बनाओ
*
काटे वृक्ष, पहाडी खोदी, खो दी है हरियाली.
बदरी चली गयी बिन बरसे, जैसे गगरी खाली.
*
खा ली किसने रेत नदी की, लूटे नेह किनारे?
पूछ रही मन-शांति, रहूँ मैं किसके कहो सहारे?
*
किसने कितना दर्द सहा रे!, कौन बताए पीड़ा?
नेता के महलों में करता है, विकास क्यों क्रीड़ा?
*
कीड़ा छोड़ जड़ों को, नभ में बन पतंग उड़ने का.
नहीं बताता कट-फटकर, परिणाम मिले गिरने का.
*
नदियाँ गहरी करो, किनारे ऊँचे जरा उठाओ.
सघन पर्णवाले पौधे मिल, लगा तनिक हर्षाओ.
*
पौधा पेड़ बनाओ, पाओ पुण्य यज्ञ करने का.
वृक्ष काट क्यों निसंतान हो, कर्म नहीं मिटने का.
*
अगला जन्म बिगाड़ रहे क्यों, मिटा-मिटा हरियाली?
पाट रहा तालाब जो रहे , टेंट उसी की खाली. 
*
पशु-पक्षी प्यासे मारे जो, उनका छीन बसेरा.
अगले जनम रहे बेघर वह, मिले न उसको डेरा.
*
मेघ करो अनुकंपा हम पर, बरसाओ शीतल जल.
नेह नर्मदा रहे प्रवाहित, प्लावन करे न बेकल. 
*
६.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

सोमवार, 24 मई 2010

गीत: मिला न उनको पानी..... --संजीव 'सलिल'

गीत:
मिला न उनको पानी....
संजीव 'सलिल'
*














*
छलनेवाले, छले गए
कह-सुन नित नयी कहानी.
आग लगाते रहे, जले
जब- मिला न उनको पानी....
*
नफरत के खत लिखे अनगिनत
प्रेम संदेश न भेजा.
कली-कुसुम को कुचला लेकिन
काँटा-शूल सहेजा.

याद दिलाई औरों को, अब
याद आ रही नानी....
*
हरियाली के दर पर होती
रेगिस्तानी दस्तक.
खाक उठायें सिर वे जिनका 
सत्ता-प्रति नत मस्तक.

जान हथेली पर ले, भू को
पहना चूनर धानी....
*
अपनी फ़िक्र छोड़कर जो
करते हैं चिंता सबकी.
पाते कृपा वही ईश्वर, गुरु,
गोड़, नियति या रब की.
नहीं आँख में, तो काफी
मरने चुल्लू भर पानी....
*****

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com