कुल पेज दृश्य

हिंदी दिवस लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
हिंदी दिवस लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 14 सितंबर 2025

सितंबर १४, हिंदी दिवस, सॉनेट, भारत, कुण्डलिया, राजस्थानी मुक्तिका, मुक्तक


सलिल सृजन सितंबर १४
*
सॉनेट
भारत में लेकर इकतारा,
यायावरी साधु करते हैं,
अलखनिरंजन कर जयकारा,
नगर गाँव घर घर फिरते हैं।
प्रेमगीत वे प्रभु के गाते,
करते मंगलभाव व्यक्त वे,
जन-मन में शुभ भाव जगाते
समरसता के दूत शक्त वे।
इटली में प्रेमी यायावर,
प्रेम गीत गा रहे घूमते,
प्रेम गीत सॉनेट सुनाकर,
वाद्य बजा लब रहे चूमते।
साथ समय के भारत आया।
सॉनेट ने नवजीवन पाया।।
१४.९.२०२३
•••
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
दोहा
हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।
मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।
*
विश्व में सर्वाधिक बोले जानेवाली भाषा हिंदी- डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल
*
विश्व में सर्वाधिक बोले जानेवाली भाषा निर्विवाद रूप से हिंदी है। आज हिंदी दिवस पर सभी हिंदीभाषियों का कर्तव्य है कि
१. वे अपना अधिकतम कार्य (सोचना, बोलना, लिखना, पढ़ना आदि) हिंदी में करें।
२. यथा संभव हिंदी में बातचीत करें।
३. अपना हस्ताक्षर हिंदी में करें।
४. बैंक तथा अन्य सरकारी कार्यालयों/विभागों से हिंदी में पत्राचार करें तथा उन्हें दस्तावेज (बैंक लेखा पुस्तिका आदि) हिंदी में देने हेतु अनुरोध करें।
५. अपनी नाम पट्टिका, परिचय पत्रक (विजिटिंग कार्ड) आदि पर हिंदी ही रखें।
६. अभियंता परियोजना संबंधी प्राक्कलन, प्रतिवेदन, मूल्यांकन, देयक, आदि हिंदी में ही बनायें। अधिवक्ता वाद-परिवाद, बहस तथा अन्य न्यायालयीन लिखा-पढ़ी हिंदी में करें। चिकित्सक मरीज से बातचीत करने, औषधि पर्ची तथा रोग का इतिहास आदि लिखने में हिंदी को वरीयता दें। शिक्षक शिक्षण कार्य में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें।
७. आंग्ल/अहिन्दी भाषी विद्यालयों में शिक्षणेतर कार्य (प्रार्थना, शुभकामना आदान-प्रदान, अभिवादन आदि) हिंदी में हो।
८. सभी कार्यों में हिंदी अंकों, प्रतीकाक्षरों आदि का प्रयोग करें। बच्चों को हिंदी संख्याओं का ज्ञान अवश्य दें।
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल (महानिदेशक, वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान, मनोजय भवन, ११५, विष्णुलोक कॉलोनी, तपोवन रोड, देहरादून २४८००८ उत्तराखंड, भारत, चलभाष ९९०००६८७२२, ईमेल: dr.nautiyaljp@gmail.com) ने अपनी शोध में यह सिद्ध किया है कि विश्व में हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
विश्व में भाषाओं की रैंकिंग प्रक्रिया :
विश्व में भाषाओं कि रैंकिंग गैर सरकारी संस्था “एथ्नोलोग” (मुख्यालय अमेरिका) नामक संस्था करती है। यह संस्था, विश्व की भाषाओं के आँकड़े (डेटाबेस) अपने प्रतिनिधियों/प्रतिनिधि संस्थाओं से एकत्र कर; जारी करती है । जिस भाषा के बोलनेवाले संसार में सबसे अधिक होते हैं वह भाषा पहले नंबर पर आती है। भाषा के जानकारों की संख्या को स्थूल रूप में दो वर्गों में रखा जाता है; इन्हें एल-1 और एल-2 कहा जाता है । एल-1 अर्थात वे लोग जिनकी यह मातृभाषा हो अथवा जिन्हें इस भाषा पर दक्षता हासिल हो। एल-2 अर्थात वे लोग जिनकी वह भाषा अर्जित भाषा हो। उदाहरण के लिए हिन्दी के लिए एल-1 के अंतर्गत हिन्दी भाषी प्रदेशों की जनसंख्या और जिन्हें हिन्दी में दक्षता प्राप्त हो उनकी गणना होगी तथा एल-2 के अंतर्गत जो लोग सामन्य (कामचलाऊ) हिन्दी जानते हैं गिने जाएँगे।
हिन्दी विश्व में प्रथम कैसे?
डॉ. नौटियाल द्वारा की गयी शोध के अनुसार हिन्दी का विश्व में पहला स्थान है लेकिन एथ्नोलोग ने अपनी वर्ष २०२१ की रिपोर्ट में अँग्रेजीभाषी 1348 मिलियन (१ अरब ३४ करोड़ ८), मंदारिनभाषी ११२० मिलियन (१अरब १२ करोड़) तथा हिन्दी भाषी ६०० मिलियन (६० करोड़) दर्शाए हैं। वस्तुत: विश्व में हिन्दीभाषी १३५६ मिलियन (१ अरब ३५ करोड़ ६० लाख) हैं। हिन्दीभाषी अँग्रेजीभाषियों से १ करोड़ ५२ लाख अधिक हैं। अतः, हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा, विश्व भाषाओं की रैंकिंग में पहले स्थान पर है।
हिन्दी को तीसरे स्थान पर क्यों दर्शाया जाता है? :
हिन्दी को तीसरे स्थान पर दर्शाये जाने के दो कारण हैं-
१. एथ्नोलोग एक दशक पुरानी जनगणना के सरकारी आंकड़े के आधार पर हिंदीभाषियों की गणना करता है। भारत सरकार ने इस पर आपत्ति नहीं की; न ही एथ्नोलोग के गलत आंकड़े में संशोधन करने में रूचि ली। अन्य भाषा-भाषियों के नवीनतम आंकड़ों के साथ हिंदी भाषा-भाषियों के ११ साल पुराने आँकड़े के आधार पर हिंदी को तीसरी सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा कह दिया गया।
२. अन्य देशों में भाषा-भाषियों की गणना करते समय उस भाषा का अक्षर ज्ञान मात्र होने पर उसे भाषाभाषी गिन लिया जाता है।भारत में हिन्दी के लिए अलग मापदंड बनाकर जिनकी मातृभाषा हिंदी है सिर्फ उन्हें ही हिंदी भाषा-भाषी गिना जाता है। यह भारत और हिंदी की गरिमा घटाने की सोची समझी-चाल है। इसे इस प्रकार समझें-
भारत में अँग्रेजी जाननेवाले सिर्फ ६ % (८ करोड़ ४० लाख) हैं, इसे १०% (१४ करोड़) और कई जगह २०% प्रतिशत (२८ करोड़) दिखा दिया जाता है। भारत में प्रशासन की मानसिकता अंगेरजीभाषियों की संख्या अधिकतम दिखाकर खुद को उन्नत समझने की है।
चीन में ७० से अधिक बोलियाँ है। ये एक दूसरे से बिलकुल नहीं मिलती हैं अर्थात ये आपस में बोधगम्य नहीं हैं। मंदारिनभाषियों में इन बोलियों को बोलनेवालों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर जोड़कर १ अरब १२ करोड़ बताकर, इसे दूसरे नंबर पर दिखाया गया है।
भारत में हिंदी मातृभाषावाले ११ राज्यों (राजभाषा नियम के अनुसार 'क' क्षेत्र) की जनसंख्या ६५ करोड़ ५८ लाख है, एथ्नोलोग हिन्दीभाषियों की संख्या केवल ६० करोड़ दर्शाता है ।
कुछ अन्य राज्यों में जिनकी भाषा हिंदी से मिलती-जुलती है और वहाँ के निवासी हिंदी समझते हैं ('ख' क्षेत्र) की कुल जनसंख्या है २२ करोड़ ४९ लाख। इनमें ९०% प्रतिशत जनता (२० करोड़ २४ लाख) हिंदी जानती है। तीसरा 'ग' क्षेत्र है, हिंदीतर भाषी क्षेत्र जहाँ का प्रचलन कम है लेकिन हिंदी जाननेवाले बड़ी संख्या में हैं। इन राज्यों की कुल जनसंख्या है ४९ करोड़ ९८ लाख जिनमें हिंदी के जानकार हैं २९ करोड़ ७८ लाख। इन तीनों क्षेत्रों को जोड़कर भारत में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है: क क्षेत्र में ६५ करोड़ ५८ लाख + ख क्षेत्र २० करोड़ २४ लाख + ग क्षेत्र २९ करोड़ ७८ लाख = १ अरब १६ करोड़।
विश्व में ग हिंदीभाषी- प्रत्येक उर्दूभाषी हिन्दी जानता है। एथ्नोलोग के अनुसार विश्व में उर्दूभाषी १७ करोड़ हैं। एथ्नोलोग के अनुसार विश्व के अन्य देशों में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है ४२ लाख। (डॉ. नौटियाल के शोध के अनुसार यह संख्या २ करोड़ है)। भारत में जो अवैध आप्रवासी हिंदी बोलते हैं उनकी संख्या है १करोड़ ६०लाख । इस प्रकार विश्व में हिन्दी भाषा के जानकार हैं : १ अरब ३३ करोड़ (भारत में) + ४२ लाख (अन्य देशों में) + १ करोड़ ६० लाख (अवैध शरणार्थी) = १ अरब ३५ करोड़ से अधिक। यहाँ भी हिंदीभाषियों की संखया कम से कम गिनी गयी है ताकि विवाद न हो ।जिस सिद्धान्त से अँग्रेजी और मंदारिन के आँकड़े लिए गए हैं यदि वही तरीका हिंदी के लिए लें तो विश्व में हिंदीभाषियों की संख्या १ अरब ४५ करोड़ होगी।
क्रम भाषा विश्व में बोलनेवालों की संख्या विश्व में स्थान /रैंकिंग
१. हिंदी १ अरब ३५ करोड़ (१३५० मिलियन ) प्रथम
२. अँग्रेजी १ अरब २६ करोड़ (१२६८ मिलियन ) द्वितीय
३. मंदारिन १ अरब १२ करोड़ (११६८ मिलियन ) तृतीय
रैंकिंग की वर्तमान स्थिति :
डॉ. नौटियाल ने अपनी शोध एथ्नोलोग को भेजी कि वे हिंदी को प्रथम स्थान पर दिखाएँ। एथ्नोलोग ने सुझाव दिया कि हिंदी में उर्दू भाषा को विलीन करने के लिए आइ. एस. ओ. में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसलिए लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस से संपर्क कर आगे की कार्रवाई की जाए। डॉ. नौटियाल ने एथ्नोलोग को उत्तर भेजा कि उर्दू भाषा का अस्तित्व मिटाने कि आवश्यकता नहीं है, सिर्फ उर्दू जाननेवालों कि गणना हिंदी जाननेवालों मे भी की जानी है, जैसे अन्य भाषाओं में किया जाता है। यह तर्क संगत है तथा एथ्नोलोग के मानदंडों के अनुरूप भी है। यह मामला संपादक मण्डल के पास विचारार्थ है । शीघ्र ही वे अपने डाटा बेस में सुधार करके हिंदी को प्रथम स्थान पर दर्शाने की प्रक्रिया आरंभ करेंगे।
कानूनी स्थिति :
हिंदी आज कि तारीख में तथ्यतः (D Facto) विश्व में पहले स्थान पर है व एथ्नोलोग से रैंकिंग बदलने के बाद यह विधितः (D Jure) भी प्रथम स्थान पर होगी। यह मामला कानूनी विशेषज्ञ के पास विधिक राय के लिए भी भेजा गया था। कानूनी विशेषज्ञ ने भी कानूनी रूप से यह पुष्टि की है कि हिंदी का विश्व में पहला स्थान है ।
प्रमाणीकरण :
यह शोध प्रमाणीकरण प्रक्रिया के २० चरण सफलतापूर्वक पूर्ण कर चुकी है, पूरी तरह प्रामाणिक है। राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने इस शोध को “फ़ैक्ट चेक” हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा को भेजा। संस्थान ने इस शोध के तथ्यों की जाँच के लिए विधिवत विशेषज्ञ नियुक्त किया जिसने इस रिपोर्ट को प्रामाणिक मानते हुए इसकी प्रबल रूप में संपुष्टि की है तथा अपनी विस्तृत सकारात्मक रिपोर्ट दी है। भारत सहित विश्व के शीर्ष १७२ भाषाविदों, विशेषज्ञों व विद्वानों ने इस रिपोर्ट की प्रामाणिकता की पुष्टि की है। संसदीय राजभाषा समिति के माननीय सदस्य राजभाषा निरीक्षणों के दौरान इस शोध की सगर्व चर्चा करते हैं। इस शोध की प्रामाणिकता को देखते हुए वित्त मंत्रालय , वित्तीय सेवाएँ विभाग, भारत सरकार ने बैंकों, वित्तीय संस्थाओं एवं बीमा कंपनियों द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में इसको प्रशिक्षण में अनिवार्य कर दिया है साथ ही उक्त सगठनों द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं में भी इस शोध को प्रकाशित करने के सरकारी आदेश जारी किए हैं। मूल शोध रिपोर्ट, शोध के प्रमाणीकरण संबंधी दस्तावेज़ या इनके प्रमाण डॉ. नौटियाल से प्राप्त किए जा सकते हैं। सुधी पाठकों के सुझावों का स्वागत है ।
***
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल का अति सूक्ष्म परिचय
जन् ३ मार्च १९५६, देहरादून । शिक्षा- एम.ए. (हिंदी), एम.ए. (अँग्रेजी), पी-एच.डी., डी.लिट, एम.बी.ए., एल-एल.बी. सहित ८१ डिग्री/डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स। से.नि. उपमहाप्रबंधक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया। 'विश्व का सर्वाधिक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति' होने का गौरव प्राप्त। आपका बायोडाटा (Resume) विश्व का सबसे वृहद (७ खंड, ४२०० पृष्ठ) एवं अद्वितीय है। इसमें डॉ. नौटियाल की ५०३० उपलब्धियाँ दर्ज हैं। लेखन- ८१ पुस्तकों के लेखन में योगदान, अधिकांश विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक व संदर्भ पुस्तकें। १८०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। सम्मान- ११२ अवॉर्ड, सम्मान, और पुरस्कार, २२५ प्रशंसा पत्र। राष्ट्र की १४० शीर्ष समितियों में प्रतिनिधित्व। १६५ शोध कार्य। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में ६८६ व्याख्यान। १५० प्रकार के बौद्धिक कार्यों में योगदान। ७३ प्रकार के व्यवसायों/ पदों पर कार्य करने का अनुभव। ९११ से अधिक वेबसाइटों में विवरण उपलब्ध। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी स्थान । हिंदी विकिपीडिया,अंग्रेजी विकिटिया जैसे अन्य पोर्टलों पर विवरण उपलब्ध हैं।
***
हिंदी - कुण्डलिया
हिंदी की जय बोलिए, उर्दू से कर प्रीत
अंग्रेजी को जानिए, दिव्य संस्कृत रीत
दिव्य संस्कृत रीत, तमिल-असमी रस घोलें
गुजराती डोगरी, मराठी कन्नड़ बोलें
बृज मलयालम गले मिलें गारो से निर्भय
बोलें तज मतभेद, आज से हिंदी की जय
*
हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा, बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूँज उठे, फिर हिंदी की जय..
*
हिंदी की जय बोलिए, तज विरोध-विद्वेष
विश्व नीड़ लें मान तो, अंतर रहे न शेष
अंतर रहे न शेष, स्वच्छ अंतर्मन रखिए
जगवाणी हिंदी अपनाकर, नव सुख गहिए
धरती माता के माथे पर, शोभित बिंदी
मूक हुए 'संजीव', बोल-अपनाकर हिंदी
***
परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार
ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार
ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है
व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है
आता है हर जीव, जगत में समय बिताने
जाता अपने आप, कहा जब परमपिता ने
*
निर्झर - नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल,हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
***
राजस्थानी मुक्तिका
*
नेह नर्मदा तैर भायला
बह जावैगौ बैर भायला
गेलो आपूं आप मलैगौ
मंज़िल की सुन टेर भायला
मुश्किल है हरदा सूं खड़बो
तू आवैगो फेर भायला
घणू कठण है कविता करबो
आकासां की सैर भायला
स्कूल गइल पै यार 'सलिल' तू
चाल मेलतो पैर भायला
***
भाषा विविध: दोहा
संस्कृत दोहा: शास्त्री नित्य गोपाल कटारे
वृक्ष-कर्तनं करिष्यति, भूत्वांधस्तु भवान्। / पदे स्वकीये कुठारं, रक्षकस्तु भगवान्।।
मैथली दोहा: ब्रम्हदेव शास्त्री
की हो रहल समाज में?, की करैत समुदाय? / किछु न करैत समाज अछि, अपनहिं सैं भरिपाय।।
अवधी दोहा: डॉ. गणेशदत्त सारस्वत
राम रंग महँ जो रँगे, तिन्हहिं न औरु सुहात। / दुनिया महँ तिनकी रहनि, जिमी पुरइन के पात।।
बृज दोहा: महाकवि बिहारी
जु ज्यों उझकी झंपति वदन, झुकति विहँसि सतरात। / तुल्यो गुलाल झुठी-मुठी, झझकावत पिय जात।।
कवि वृंद:
भले-बुरे सब एक सौं, जौ लौं बोलत नांहिं। / जान पडत है काग-पिक, ऋतु वसंत के मांहि।।
बुंदेली दोहा: रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु'
कीसें कै डारें विथा, को है अपनी मीत? इतै सबइ हैं स्वारथी, स्वारथ करतइ प्रीत।।
पं. रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर': नौनी बुंदेली लगत, सुनकें मौं मिठियात। बोलत में गुर सी लगत, फर-फर बोलत जात।।
बघेली दोहा: गंगा कुमार 'विकल'
मूडे माँ कलशा धरे, चुअत प्यार की बूँद। / अँगिया इमरत झर रओ, लीनिस दीदा मूँद।।
पंजाबी दोहा: निर्मल जी
हर टीटली नूं सदा तो, उस रुत दी पहचाण। / जिस रुत महकां बाग़ विच, आके रंग बिछाण।।
-डॉ. हरनेक सिंह 'कोमल'
हलां बरगा ना रिहा, लोकां दा किरदार।/ मतलब दी है दोस्ती, मतलब दे ने यार।।
गुरुमुखी: गुरु नानक
पहले मरण कुबूल कर, जीवन दी छंड आस। / हो सबनां दी रेनकां, आओ हमरे पास।।
भोजपुरी दोहा: संजीव 'सलिल'-
चिउड़ा-लिट्ठी ना रुचे, बिरयानी की चाह।/ नवहा मलिकाइन चली, घर फूँके की राह।।
मालवी दोहा: संजीव 'सलिल'-
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम। /जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम।।
निमाड़ी दोहा: संजीव 'सलिल'-
रयणो खाणों नाचणो, हँसणो वार-तिवार। / गीत निमाड़ी गावणो, चूड़ी री झंकार।।
छत्तीसगढ़ी दोहा: संजीव 'सलिल'-
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस । / मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस ।।
राजस्थानी दोहा:
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। /ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
अंगिका दोहा: सुधीर कुमार
ऐलै सावन हपसलो', लेनें नया सनेस । / आबो' जल्दी बालमां, छोड़ी के परदेश।।
बज्जिका दोहा: सुधीर गंडोत्रा
चाहू जीवन में रही, अपने सदा अटूट। / भुलिओ के न परे दू, अपना घर में फूट।।
हरयाणवी दोहा: श्याम सखा 'श्याम'
मनै बावली मनचली, कहवैं सारे लोग। / प्रेम-प्रीत का लग गया, जिब तै मन म्हं रोग।।
मगही दोहा :
रउआ नामी-गिरामी, मिलल-जुलल घर फोर। / खम्हा-खुट्टा लै चली,
राजस्थानी दोहा:
पुरस बिचारा क्या करै, जो घर नार कुनार। / ओ सींवै दो आंगळा, वा फाडै गज च्यार।।
कन्नौजी दोहा:
ननदी भैया तुम्हारे, सइ उफनाने ताल। / बिन साजन छाजन छवइ, आगे कउन हवाल।।
सिंधी दोहा: चंद्रसिंह बिरकाली
ग्रीखम-रुत दाझी धरा कळप रही दिन रात। / मेह मिलावण बादळी बरस बरस बरसात ।।
दग्ध धरा ऋतु ग्रीष्म से, कल्प रही रही दिन-रात। / मिलन मेह से करा दे, बरस-बरस बरसात।।
गढ़वाली दोहा: कृष्ण कुमार ममगांई
धार अड़ाली धार माँ, गादम जैली त गाड़। / जख जैली तस्ख भुगत ली, किट ईजा तू बाठ।।
सराइकी दोहा: संजीव 'सलिल'
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार। / लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
मराठी दोहा: वा. न. सरदेसाई
माती धरते तापता, पर्जन्यची आस। / फुकट न तृष्णा भागवी, देई गंध जगास।।
गुजराती दोहा: श्रीमद योगिंदु देव
अप्पा अप्पई जो मुणइ जो परभाउ चएइ। / सो पावइ सिवपुरि-गमणु जिणवरु एम भणेइ।।
दोहा दिव्य दिनेश से साभार
*
कार्यशाला
दो कवि एक कुण्डलिया
*
आओ! सब मिलकर रचें, ऐसा सुंदर चित्र।
हिंदी पर अभिमान हो, स्वाभिमान हो मित्र।। -विशम्भर शुक्ल
स्वाभिमान हो मित्र, न टकरायें आपस में।
फूट पड़े तो शत्रु, जयी हो रहे न बस में।।
विश्वंभर हों सदय, काल को जूझ हराओ।
मोदक खाकर सलिल, गजानन के गुण गाओ।। -संजीव 'सलिल'
****
दोहा
हर पल हिंदी को जिएँ, दिवस न केवल एक।
मानस मैया मानकर, पूजें सहित विवेक।।
१४-९-२०१८
***
हाइकु गीत
*
बोल रे हिंदी
कान में अमरित
घोल रे हिंदी
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
***
गीत
*
देश-हितों हित
जो जीते हैं
उनका हर दिन अच्छा दिन है।
वही बुरा दिन
जिसे बिताया
हिंद और हिंदी के बिन है।
*
अपने मन में
झाँक देख लें
क्या औरों के लिए किया है?
या पशु, सुर,
असुरों सा जीवन
केवल निज के हेतु जिया है?
क्षुधा-तृषा की
तृप्त किसी की,
या अपना ही पेट भरा है?
औरों का सुख छीन
बना जो धनी
कहूँ सच?, वह निर्धन है।
*
जो उत्पादक
या निर्माता
वही देश का भाग्य-विधाता,
बाँट, भोग या
लूट रहा जो
वही सकल संकट का दाता।
आवश्यकता
से ज्यादा हम
लुटा सकें, तो स्वर्ग रचेंगे
जोड़-छोड़ कर
मर जाता जो
सज्जन दिखे मगर दुर्जन है।
*
बल में नहीं
मोह-ममता में
जन्मे-विकसे जीवन-आशा।
निबल-नासमझ
करता-रहता
अपने बल का व्यर्थ तमाशा।
पागल सांड
अगर सत्ता तो
जन-गण सबक सिखा देता है
नहीं सभ्यता
राजाओं की,
आम जनों की कथा-भजन है
***
सलिल-लहर से रश्मि मिले तो, झिलमिल हो जीवन नदिया
रश्मि न हो तम छाये दस-दिश, बंजर हो जग की बगिया
रश्मि सूर्य को पूज्य बनाती, शशि को देती रूप छटा-
रश्मि ज्ञान की मिल जाए तो जीवात्मा होती अभया
*
हिंदी दिवस २०१६
***
गीत
*
छंद बहोत भरमाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
वरण-मातरा-गिनती बिसरी
गण का? समझ न आएँ
राम जी जान बचाएँ
*
दोहा, मुकतक, आल्हा, कजरी,
बम्बुलिया चकराएँ
राम जी जान बचाएँ
*
कुंडलिया, नवगीत, कुंडली,
जी भर मोए छकाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
मूँड़ पिरा रओ, नींद घेर रई
रहम न तनक दिखाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
कर कागज़ कारे हम हारे
नैना नीर बहाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
ग़ज़ल, हाइकू, शे'र डराएँ
गीदड़-गधा बनाएँ
राम जी जान बचाएँ
*
ऊषा, संध्या, निशा न जानी
सूरज-चाँद चिढ़ाएँ
राम जी जान बचाएँ
१४-९-२०१६
***
कविता का अनुकथन :
हिंदी के किसी प्रसिद्ध कवि की कविता का चयन कर उसके कथ्य को किसी अन्य कवि की शैली में लिखिए। अपनी रचना भी प्रस्तुत कर सकते हैं। शालीनता और मौलिकता आवश्यक है।
रचनाकार: संजीव
*
शैली : बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
राधावत, राधसम हो जा, रे मेरे मन,
पेंग-पेंग पायेगा , राधा से जुड़ता तन
शुभदा का दर्शन कर, जग की सुध दे बिसार
हुलस-पुलक सिहरे मन, राधा को ले निहार
नयनों में नयन देखे मन सितार बज
अग-जग की परवा तज कर, जमुना जल मज्जन
राधावत, राधसम हो जा, रे मेरे मन
-------------------------------------------------------------
मूल पंक्तियाँ:
अंतर्मुख, अंतर्मुख हो जा, रे मेरे मन,
उझक-उझक देखेगा तू किस-किसके लांछन?
कर निज दर्शन, मानव की प्रवृत्ति को निहार
लख इस नभचारी का यह पंकिल जल विहार
तू लख इस नैष्ठि का यह व्यभिचारी विचार,
यह सब लख निज में तू, तब करना मूल्यांकन
अंतर्मुख, अंतर्मुख हो जा, रे मेरे मन.
हम विषपायी जनम के, पृष्ठ १९
=============================
शैली : वीरेंद्र मिश्र
जमुन तट रसवंत मेला,
भूल कर जग का झमेला,
मिल गया मन-मीत, सावन में विहँस मन का।
मन लुभाता संग कैसे,
श्वास बजती चंग जैसे,
हुआ सुरभित कदंबित हर पात मधुवन का।
प्राण कहता है सिहर ले,
देह कहती है बिखर ले,
जग कहे मत भूल तू संग्राम जीवन का।
मन अजाने बोलता है,
रास में रस घोलता है,
चाँदनी के नाम का जप चाँद चुप मनका।
-------------------------------------------------
मूल रचना-
यह मधुर मधुवन्त वेला,
मन नहीं है अब अकेला,
स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका।
साँझ रंगारंग है ये,
मुस्कुराता अंग है ये,
बिन बुलाये आ गया मेहमान यौवन का।
प्यार कहता है डगर में,
बाह नहीं जाना लहर में,
रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का।
घट छलककर डोलता है,
प्यास के पट खोलता है,
टूट कर बन जाय निर्झर, प्राण पाहन का।
अविरल मंथन, सितंबर २०००, पृष्ठ ४४
==========================
शैली : डॉ. शरद सिंह
आ झूले पर संग झूलकर, धरा-गगन को एक करे
जमुना जल में बिंब देखकर, जीवन में आनंद भरें
ब्रिज करील वन में गुंजित है, कुहू कुहू कू कोयल की
जैसे रायप्रवीण सुनाने, कजरी मीठी तान भरे
रंग कन्हैया ने पाया है, अंतरिक्ष से-अंबर से
ऊषा-संध्या मौक़ा खोजें, लाल-गुलाबी रंग भरे
बाँहों में बाँहें डालो प्रिय!, मुस्का दो फिर हौले से
कब तक छिपकर मिला करें, हम इस दुनिया से डरे-डरे
चलो कोर्ट मेरिज कर लें या चल मंदिर में माँग भरूँ
बादल की बाँहों में बिजली, देख-देख दिल जला करे
हममें अपनापन इतना है, हैं अभिन्न इक-दूजे से
दूरी तनिक न शेष रहे अब, मिल अद्वैत का पंथ वरे
-----------------------------------------------------------
मूल रचना-
रात चाँद की गठरी ढोकर, पूरब-पश्चिम एक करे
नींद स्वप्न के पोखर में से, अँजुरी-अँजुरी स्वप्न भरे
घर के आँगन में फ़ैली है, आम-नीम की परछाईं
जैसे आँगन में बिखरे हों, काले-काले पात झरे
उजले रंग की चादर ओढ़े, नदिया सोई है गुपचुप
शीतल लहरें सोच रही हैं, कल क्या होगा कौन डरे?
कोई जब सोते-सोते में, मुस्का दे यूँ हौले से
समझो उसने देख लिये हैं काले आखर हरे-हरे
बड़ा बृहस्पति तारा चमके, जब मुँडेर के कोने पर
ऐसा लगता है छप्पर ही, खड़ा हुआ है दीप धरे
यूँ तो अपनापन सिमटा है, मंद हवा के झोंकें में
फिर भी कोई अपना आये, कहता है मन राम करे!
१४-९-२०१५

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

हिंदी दिवस,

आलेख:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में
*
राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:
किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर राष्ट्रीय पक्षी है. राज भाषा में सकल रज-काज किया जाना राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है. दुर्भाग्य से भारत से अंग्रेजी राज्य समाप्त होने के बाद भी अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व समाप्त न हो सका. दलीय चुनावों पर आधारित राजनीति ने भाषाई विवादों को बढ़ावा दिया और अंग्रेजी को सीमित समय के लिये शिक्षा माध्यम के रूप में स्वीकारा गया. यह अवधि कभी समाप्त न हो सकी.
हिंदी का महत्त्व:
आज भारत-भाषा हिन्दी भविष्य में विश्व-वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है. विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा एकाधिक अवसरों पर अमरीकियों को हिंदी सीखने के लिये सचेत करते हुए कह चुके हैं कि हिंदी सीखे बिना भविष्य में काम नहीं चलेगा. यह सलाह अकारण नहीं है. भारत को उभरती हुई विश्व-शक्ति के रूप में सकल विश्व में जाना जा रहा है. संस्कृत तथा उस पर आधारित हिंदी को ध्वनि-विज्ञान और दूर संचारी तरंगों के माध्यम से अंतरिक्ष में अन्य सभ्यताओं को सन्देश भेजे जाने की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है.
भारत में हिंदी सर्वाधिक उपयुक्त भाषा:
भारत में भले ही अंग्रेजी बोलना सम्मान की बात हो पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेजी का इतना महत्त्व नहीं है. हिंदी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेजी माध्यम का चयन किया जाना है. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु सर्वाधिक आसानी से अपनी मात्र-भाषा को ग्रहण करता है. अंग्रेजी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है. अतः भारत में बच्चों की शिक्षा का सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हिंदी ही है.
प्रत्येक भाषा के विकास के कई सोपान होते हैं. कोई भाषा शैशवावस्था से शनैः- शनैः विकसित होती हुई, हर पल प्रौढता और परिपक्वता की ओर अग्रसर होती है. पूर्ण विकसित और परिपक्व भाषा की जीवन्तता और प्राणवत्ता उसके दैनंदिन व्यवहार या प्रयोग पर निर्भर होती है. भाषा की व्यवहारिकता का मानदण्ड जनता होती है क्योंकि आम जन ही किसी भाषा का प्रयोग करते हैं. जो भाषा लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में समा जाती है, वह चिरायु हो जाती है. जिस भाषा में समयानुसार अपने को ढालने, विचारों व भावों को सरलता और सहजता से अभिव्यक्त करने, आम लोगों की भावनाओं तथा ज्ञान-विज्ञानं की समस्त शाखाओं व विभागों की विषय वस्तु को अभिव्यक्त करने की क्षमता होती है, वह जन-व्यवहार का अभिन्न अंग बन जाती है. इस दृष्टि से हिन्दी सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में सदा से छाई रही है.
आज से ६४ वर्ष पूर्व, १४ सितम्बर, सन् १९४७ को जब हमारे तत्कालीन नेताओं, बुध्दिजीवियों ने जब बहुत सोच-विचार के बाद सबकी सहमति से हिन्दी को आज़ाद हिन्दुस्तान की राजकाज और राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया तो उस निर्णय के ठोस आधार थे –
१) हिंदी भारत के बहुसंख्यक वर्ग की भाषा है, जो विन्ध्याचल के उत्तर में बसे सात राज्यों में बोली जाती है
२) अन्य प्रान्तों की भाषाओं और हिन्दी के शब्द भण्डार में इतनी अधिक समानता है कि वह सरलता से सीखी जा सकती है,
३) वह विज्ञान और तकनीकी जगत की भी एक सशक्त और समर्थ भाषा बनने की क्षमता रखती है, (आज तकनीकि सूचना व संचार तंत्र की समर्थ भाषा है)
४) यह अन्य भाषाओं की अपेक्षा सर्वाधिक व्यवहार में प्रयुक्त होने के कारण जीवंत भाषा है,
५) व्याकरण भी जटिल नहीं है,
६) लिपि भी सुगम व वैज्ञानिक है,
७) लिपि मुद्रण सुलभ है,
८) सबसे महत्वपूर्ण बात - भारतीय संस्कृति, विचारों और भावनाओं की संवाहक है.
हिंदी भाषा उपेक्षित होने का कारण:
भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति में शिशु को पूर्व प्राथमिक से ही अंग्रेजी के शिशु गीत रटाये जाते हैं. वह बिना अर्थ जाने अतिथियों को सुना दे तो माँ-बाप का मस्तक गर्व से ऊँचा हो जाता है. हिन्दी की कविता केवल २ दिन १५ अगस्त और २६ जनवरी पर पढ़ी जाती है, बाद में हिन्दी बोलना कोई नहीं चाहता. अंग्रेजी भाषी विद्यालयों में तो हिन्दी बोलने पर 'मैं गधा हूँ' की तख्ती लगाना पड़ती है. अतः बच्चों को समझने के स्थान पर रटना होता है जो अवैज्ञानिक है. ऐसे अधिकांश बच्चे उच्च शिक्षा में माध्यम बदलते हैं तथा भाषिक कमजोरी के कारण खुद को समुचित तरीके अभिव्यक्त नहीं कर पाते और पिछड़ जाते हैं. इस मानसिकता में शिक्षित बच्चा माध्यमिक और उच्च्तर माध्यमिक में मजबूरी में हिन्दी यत्किंचित पढ़ता है... फिर विषयों का चुनाव कर लेने पर व्यावसायिक शिक्षा का दबाव हिन्दी छुटा ही देता है.
हिंदी की सामर्थ्य:
हिन्दी की शब्द सामर्थ्य पर प्रायः अकारण तथा जानकारी के अभाव में प्रश्न चिन्ह लगाये जाते हैं. वैज्ञानिक विषयों, प्रक्रियाओं, नियमों तथा घटनाओं की अभिव्यक्ति हिंदी में करना कठिन माना जाता है किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है. हिंदी की शब्द सम्पदा अपार है. हिंदी सदानीरा सलिला की तरह सतत प्रवाहिनी है. उसमें से लगातार कुछ शब्द काल-बाह्य होकर बाहर हो जाते हैं तो अनेक शब्द उसमें प्रविष्ट भी होते हैं. हिंदी के अनेक रूप देश में आंचलिक/स्थानीय भाषाओँ और बोलिओं के रूप में प्रचलित हैं. इस कारण भाषिक नियमों, क्रिया-कारक के रूपों, कहीं-कहीं शब्दों के अर्थों में अंतर स्वाभाविक है किन्तु हिन्दी को वैज्ञानिक विषयों की अभिव्यक्ति में सक्षम विश्व भाषा बनने के लिये इस अंतर को पाटकर क्रमशः मानक रूप लेना होगा. अनेक क्षेत्रों में हिन्दी की मानक शब्दावली है, जहाँ नहीं है वहाँ क्रमशः आकार ले रही है.
सामान्य तथा तकनीकी भाषा:
जन सामान्य भाषा के जिस देशज रूप का प्रयोग करता है वह कही गयी बात का आशय संप्रेषित करता है किन्तु वह पूरी तरह शुद्ध नहीं होता. ज्ञान-विज्ञान में भाषा का उपयोग तभी संभव है जब शब्द से एक सुनिश्चित अर्थ की प्रतीति हो. इस दिशा में हिंदी का प्रयोग न होने को दो कारण इच्छाशक्ति की कमी तथा भाषिक एवं शाब्दिक नियमों और उनके अर्थ की स्पष्टता न होना है. आज तकनीकि विकास के युग में, कुछ भी दायरों में नहीं बंधा हुआ है. जो भी जानदार है, शानदार है, अनूठापन लिये है, जिसमें जनसमाज को अपनी ओर खींचने का दम है वह सहज ही और शीघ्र ही भूमंडलीकृत और वैश्विक हो जाता है. इस प्रक्रिया के तहत आज हिन्दी वैश्विक भाषा है. कोई भी सक्रिय भाषा, रचनात्मक प्रक्रिया – चाहे वह लेखन हो, चित्रकला हो,संगीत हो, नृत्यकला हो या चित्रपट हो – सभी युग-परिवेश से प्रभावित होते हैं. भूमंडलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें दुनिया तेज़ी से सिमटती जा रही है. विश्व के देश परस्पर निकट आते जा रहे हैं. इसलिए ही आज दुनिया को ‘विश्वग्राम’ कहा जा रहा है. इस सबके पीछे ‘सूचना और संचार’ क्रान्ति की शक्ति है, जिसमें ‘इंटरनेट’ की भूमिका बड़ी अहम है. इसमे कोई दो राय नहीं कि इस जगत में हिन्दी अपना सिक्का जमा चुकी है.
हिंदी संबंधी मूल अवधारणाएं:
इस विमर्श का श्री गणेश करते हुए हम कुछ मूल बातों भाषा, लिपि, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, लिपि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन, शब्द-भेद, बिम्ब, प्रतीक, मुहावरे जैसी मूल अवधारणाओं को जानें.
भाषा(लैंग्वेज) :
अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है. भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ. ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ. आदि मानव को प्राकृतिक घटनाओं (वर्षा, तूफ़ान, जल या वायु का प्रवाह), पशु-पक्षियों की बोली आदि को सुनकर हर्ष, भय, शांति आदि की अनुभूति हुई. इन ध्वनियों की नकलकर उसने बोलना, एक-दूसरे को पुकारना, भगाना, स्नेह-क्रोध आदि की अभिव्यक्ति करना सदियों में सीखा.
लिपि (स्क्रिप्ट):
कहे हुए को अंकित कर स्मरण रखने अथवा अनुपस्थित साथी को बताने के लिये हर ध्वनि हेतु अलग-अलग संकेत निश्चित कर अंकित करने की कला सीखकर मनुष्य शेष सभी जीवों से अधिक उन्नत हो सका. इन संकेतों की संख्या बढ़ने व व्यवस्थित रूप ग्रहण करने ने लिपि को जन्म दिया. एक ही अनुभूति के लिये अलग- अलग मानव समूहों में अलग-अलग ध्वनि तथा संकेत बनने तथा आपस में संपर्क न होने से विविध भाषाओँ और लिपियों का जन्म हुआ.
चित्रगुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप.
भाषा-सलिला निरंतर, करे अनाहद जाप.
भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार ग्रहण कर पाते हैं. यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक), तूलिका के माध्यम से अंकित, लेखनी के द्वारा लिखित तथा आजकल टंकण यंत्र या संगणक द्वारा टंकित होता है. हिंदी लेखन हेतु प्रयुक्त देवनागरी लिपि में संयुक्त अक्षरों व मात्राओं का संतुलित प्रयोग कर कम से कम स्थान में अंकित किया जा सकता है जबकि मात्रा न होने पर रोमन लिपि में वही शब्द लिखते समय मात्रा के स्थान पर वर्ण का प्रयोग करने पर अधिक स्थान, समय व श्रम लगता है. अरबी मूल की लिपियों में अनेक ध्वनियों के लेकहं हेतु अक्षर नहीं हैं.
निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द
भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द.
व्याकरण (ग्रामर ):
व्याकरण (वि+आ+करण) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है. भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि , शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेषण को जानना आवश्यक है.
वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार.
तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार.
वर्ण / अक्षर(वर्ड) :
हिंदी में वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं. स्वरों तथा व्यंजनों का निर्धारण ध्वनि विज्ञान के अनुकूल उनके उच्चारण के स्थान से किया जाना हिंदी का वैशिष्ट्य है जो अन्य भाषाओँ में नहीं है.
अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण.
स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण.
स्वर ( वोवेल्स ) :
स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है जिसका अधिक क्षरण, विभाजन या ह्रास नहीं हो सकता. स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती. यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:, ऋ.
स्वर के दो प्रकार:
१. हृस्व : लघु या छोटा ( अ, इ, उ, ऋ, ऌ ) तथा
२. दीर्घ : गुरु या बड़ा ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं.
अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान
मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान.
व्यंजन (कांसोनेंट्स) :
व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते. व्यंजनों के चार प्रकार हैं.
१. स्पर्श व्यंजन (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म).
२. अन्तस्थ व्यंजन (य वर्ग - य, र, ल, व्, श).
३. ऊष्म व्यंजन ( श, ष, स ह) तथा
४. संयुक्त व्यंजन ( क्ष, त्र, ज्ञ) हैं.
अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं.
भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव.
कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव.
शब्द :
अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ.
मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ.
अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है. शब्द भाषा का मूल तत्व है. जिस भाषा में जितने अधिक शब्द हों वह उतनी ही अधिक समृद्ध कहलाती है तथा वह मानवीय अनुभूतियों और ज्ञान-विज्ञानं के तथ्यों का वर्णन इस तरह करने में समर्थ होती है कि कहने-लिखनेवाले की बात का बिलकुल वही अर्थ सुनने-पढ़नेवाला ग्रहण करे. ऐसा न हो तो अर्थ का अनर्थ होने की पूरी-पूरी संभावना है. किसी भाषा में शब्दों का भण्डारण कई तरीकों से होता है.
१. मूल शब्द:
भाषा के लगातार प्रयोग में आने से समय के विकसित होते गए ऐसे शब्दों का निर्माण जन जीवन, लोक संस्कृति, परिस्थितियों, परिवेश और प्रकृति के अनुसार होता है. विश्व के विविध अंचलों में उपलब्ध भौगोलिक परिस्थितियों, जीवन शैलियों, खान-पान की विविधताओं, लोकाचारों,धर्मों तथा विज्ञानं के विकास के साथ अपने आप होता जाता है.
२. विकसित शब्द:
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. लगातार बदलती परिस्थितियों, परिवेश, सामाजिक वातावरण, वैज्ञानिक प्रगति आदि के कारण जन सामान्य अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिये नये-नये शब्दों का प्रयोग करता है. इस तरह विकसित शब्द भाषा को संपन्न बनाते हैं. व्यापार-व्यवसाय में उपभोक्ता के साथ धोखा होने पर उन्हें विधि सम्मत संरक्षण देने के लिये कानून बना तो अनेक नये शब्द सामने आये.संगणक के अविष्कार के बाद संबंधित तकनालाजी को अभिव्यक्त करने के नये शब्द बनाये गये.
३. आयातित शब्द:
किन्हीं भौगोलिक, राजनैतिक या सामाजिक कारणों से जब किसी एक भाषा बोलनेवाले समुदाय को अन्य भाषा बोलने वाले समुदाय से घुलना-मिलना पड़ता है तो एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द भी मिलते जाते हैं. ऐसी स्थिति में कुछ शब्द आपने मूल रूप में प्रचलित रहे आते हैं तथा मूल भाषा में अन्य भाषा के शब्द यथावत (जैसे के तैसे) अपना लिये जाते हैं. हिन्दी ने पूर्व प्रचलित भाषाओँ संस्कृत, अपभ्रंश, पाली, प्राकृत तथा नया भाषाओं-बोलिओं से बहुत से शब्द ग्रहण किये हैं. भारत पर यवनों के हमलों के समय फारस तथा अरब से आये सिपाहियों तथा भारतीय जन समुदायों के बीच शब्दों के आदान-प्रदान से उर्दू का जन्म हुआ. आज हम इन शब्दों को हिन्दी का ही मानते हैं, वे किस भाषा से आये नहीं जानते.
हिन्दी में आयातित शब्दों का उपयोग ४ तरह से हुआ है.
१.यथावत:
मूल भाषा में प्रयुक्त शब्द के उच्चारण को जैसे का तैसा उसी अर्थ में देवनागरी लिपि में लिखा जाए ताकि पढ़ते/बोले जाते समय हिन्दी भाषी तथा अन्य भाषा भाषी उस शब्द को समान अर्थ में समझ सकें. जैसे अंग्रेजी का शब्द स्टेशन, यहाँ अंगरेजी में स्टेशन (station) लिखते समय उपयोग हुए अंगरेजी अक्षरों को पूरी तरह भुला दिया गया है.
२.परिवर्तित:
मूल शब्द के उच्चारण में प्रयुक्त ध्वनि हिन्दी में न हो अथवा अत्यंत क्लिष्ट या सुविधाजनक हो तो उसे हिन्दी की प्रकृति के अनुसार परिवर्तित कर लिया जाए. जैसे अंगरेजी के शब्द हॉस्पिटल को सुविधानुसार बदलकर अस्पताल कर लिया गया है. .
३. पर्यायवाची:
जिन शब्दों के अर्थ को व्यक्त करने के लिये हिंदी में हिन्दी में समुचित पर्यायवाची शब्द हैं या बनाये जा सकते हैं वहाँ ऐसे नये शब्द ही लिये जाएँ. जैसे: बस स्टैंड के स्थान पर बस अड्डा, रोड के स्थान पर सड़क या मार्ग. यह भी कि जिन शब्दों को गलत अर्थों में प्रयोग किया जा रहा है उनके सही अर्थ स्पष्ट कर सम्मिलित किये जाएँ ताकि भ्रम का निवारण हो. जैसे: प्लान्टेशन के लिये वृक्षारोपण के स्थान पर पौधारोपण, ट्रेन के लिये रेलगाड़ी, रेल के लिये पटरी.
४. नये शब्द:
ज्ञान-विज्ञान की प्रगति, अन्य भाषा-भाषियों से मेल-जोल, परिस्थितियों में बदलाव आदि के कारण हिन्दी में कुछ सर्वथा नये शब्दों का प्रयोग होना अनिवार्य है. इन्हें बिना हिचक अपनाया जाना चाहिए. जैसे सैटेलाईट, मिसाइल, सीमेंट आदि.
हिन्दी के समक्ष सबसे बड़ी समस्या विश्व की अन्य भाषाओँ के साहित्य को आत्मसात कर हिन्दी में अभिव्यक्त करने की तथा ज्ञान-विज्ञान की हर शाखा की विषय-वस्तु को हिन्दी में अभिव्यक्त करने की है. हिन्दी के शब्द कोष का पुनर्निर्माण परमावश्यक है. इसमें पारंपरिक शब्दों के साथ विविध बोलियों, भारतीय भाषाओँ, विदेशी भाषाओँ, विविध विषयों और विज्ञान की शाखाओं के परिभाषिक शब्दों को जोड़ा जाना जरूरी है.
अंग्रेजी के नये शब्दकोशों में हिन्दी के हजारों शब्द समाहित किये गये हैं किन्तु कई जगह उनके अर्थ/भावार्थ गलत हैं... हिन्दी में अन्यत्र से शब्द ग्रहण करते समय शब्द का लिंग, वचन, क्रियारूप, अर्थ, भावार्थ तथा प्रयोग शब्द कोष में हो तो उपयोगिता में वृद्धि होगी. यह महान कार्य सैंकड़ों हिन्दी प्रेमियों को मिलकर करना होगा. विविध विषयों के निष्णात जन अपने विषयों के शब्द-अर्थ दें जिन्हें हिन्दी शब्द कोष में जोड़ा जा सके.
शब्दों के विशिष्ट अर्थ:
तकनीकी विषयों व गतिविधियों को हिंदी भाषा के माध्यम से संचालित करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उनकी पहुँच असंख्य लोगों तक हो सकेगी. हिंदी में तकनीकी क्षेत्र में शब्दों के विशिष अर्थ सुनिश्चित किये जने की महती आवश्यकता है. उदाहरण के लिये अंग्रेजी के दो शब्दों 'शेप' और 'साइज़' का अर्थ हिंदी में सामन्यतः 'आकार' किया जाता है किन्तु विज्ञान में दोनों मूल शब्द अलग-अलग अर्थों में प्रयोग होते हैं. 'शेप' से आकृति और साइज़ से बड़े-छोटे होने का बोध होता है. हिंदी शब्दकोष में आकार और आकृति समानार्थी हैं. अतः साइज़ के लिये एक विशेष शब्द 'परिमाप' निर्धारित किया गया.
निर्माण सामग्री के छन्नी परीक्षण में अंग्रेजी में 'रिटेंड ऑन सीव' तथा 'पास्ड फ्रॉम सीव' का प्रयोग होता है. हिंदी में इस क्रिया से जुड़ा शब्द 'छानन' उपयोगी पदार्थ के लिये है. अतः उक्त दोनों शब्दों के लिये उपयुक्त शब्द खोजे जाने चाहिए. रसायन शास्त्र में प्रयुक्त 'कंसंट्रेटेड' के लिये हिंदी में गाढ़ा, सान्द्र, तेज, तीव्र आदि तथा 'डाईल्यूट' के लिये तनु, पतला, मंद, हल्का, मृदु आदि शब्दों का प्रयोग विविध लेखकों द्वारा किया जाना भ्रमित करता है.
'इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स' का दायित्व:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्र भाषा में सम्पादित करने के साथ-साथ अर्थ विशेष में प्रयोग किये जानेवाले शब्दों के लिये विशेष पर्याय निर्धारित करने का कार्य उस तकनीक की प्रतिनिधि संस्था को करना चाहिए. अभियांत्रिकी के क्षेत्र में निस्संदेह 'इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स' अग्रणी संस्था है. इसलिए अभियांत्रकी शब्द कोष तैयार करने का दायित्व इसी का है. सरकार द्वारा शब्द कोष बनाये जाने की प्रक्रिया का हश्र किताबी तथा अव्यवहारिक शब्दों की भरमार के रूप में होता है. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये साहित्यिक समझ, रूचि, ज्ञान और समर्पण के धनी अभियंताओं को विविध शाखाओं / क्षेत्रों से चुना जाये तथा पत्रिका के हर अंक में तकनीकी पारिभाषिक शब्दावली और शब्द कोष प्रकाशित किया जाना अनिवार्य है. पत्रिका के हर अंक में तकनीकी विषयों पर हिंदी में लेखन की प्रतियोगिता भी होना चाहिए. विविध अभियांत्रिकी शाखाओं के शब्दकोशों तथा हिंदी पुस्तकों का प्रकाशन करने की दिशा में भी 'इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स' को आगे आना होगा.
अभियंताओं का दायित्व:
हम अभियंताओं को हिन्दी का प्रामाणिक शब्द कोष, व्याकरण तथा पिंगल की पुस्तकें अपने साथ रखकर जब जैसे समय मिले पढ़ने की आदत डालनी होगी. हिन्दी की शुद्धता से आशय उर्दू, अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा/बोली के शब्दों का बहिष्कार नहीं अपितु हिंदी भाषा के संस्कार, प्रवृत्ति, रवानगी, प्रवाह तथा अर्थवत्ता को बनाये रखना है चूँकि इनके बिना कोई भाषा जीवंत नहीं होती.
भारतीय अंतरजाल उपभोक्ताओं के हाल ही में हुए गए एक सर्वे के अनुसार ४५% लोग हिन्दी वेबसाईट देखते हैं, २५% अन्य भारतीय भाषाओं में वैब सामग्री पढना पसंद करते हैं और मात्र ३०% अंगरेजी की वेबसाईट देखते हैं. यह तथ्य उन लोगों की आँख खोलने के लिए पर्याप्त है जो वर्ल्ड वाइड वेब / डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू को राजसी अंगरेजी का पर्यायवाची माने बैठे हैं. गूगल के प्रमुख कार्यकारी एरिक श्मिडट के अनुसार अब से ५-६ वर्ष के अंदर भारत विश्व का सबसे बड़ा आई. टी. बाज़ार होगा, न कि चीन. यही कारण है कि हिन्दी आज विश्व की तीन प्रथम भाषाओं में से- तीसरे से दूसरे स्थान पर आ गयी है. गूगल ने सर्च इंजिन के लिए हिंदी इंटरफेस जारी किया है. माइक्रो सोफ्ट ने भी हिन्दी और अन्य प्रांतीय भाषाओं की महत्ता को स्वीकारा है. विकीपीडिया के अनुसार चीनी विकीपीडिया यदि २.५० करोड परिणाम देता है तो हिन्दी विकिपीडिया ६ करोड परिणाम देता है.
अतः हिंदी की सामर्थ्य उसे विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करा रही है. प्रश्न यह है की हम एक भारतीय, एक हिंदीभाषी और एक अभियंता के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कितना, कैसे और कब करते हैं.
***
हिंदी दिवस पर विशेष गीत:
सारा का सारा हिंदी है
*
जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.
लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,
ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.
लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.
प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.
स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.
बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.
पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.
गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.
अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.
ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.
कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.
झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.
कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.
गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.
रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.
आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.
शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.
तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.
रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.
हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....
***
दोहा सलिला:
हिंदी वंदना
*
हिंदी भारत भूमि की आशाओं का द्वार.
कभी पुष्प का हार है, कभी प्रचंड प्रहार..
*
हिन्दीभाषी पालते, भारत माँ से प्रीत.
गले मौसियों से मिलें, गायें माँ के गीत..
*
हृदय संस्कृत- रुधिर है, हिंदी- उर्दू भाल.
हाथ मराठी-बांग्ला, कन्नड़ आधार रसाल..
*
कश्मीरी है नासिका, तमिल-तेलुगु कान.
असमी-गुजराती भुजा, उडिया भौंह-कमान..
*
सिंधी-पंजाबी नयन, मलयालम है कंठ.
भोजपुरी-अवधी जिव्हा, बृज रसधार अकुंठ..
*
सरस बुंदेली-मालवी, हल्बी-मगधी मीत.
ठुमक बघेली-मैथली, नाच निभातीं प्रीत..
*
मेवाड़ी है वीरता, हाडौती असि-धार,
'सलिल'अंगिका-बज्जिका, प्रेम सहित उच्चार ..
*
बोल डोंगरी-कोंकड़ी, छत्तिसगढ़िया नित्य.
बुला रही हरियाणवी, ले-दे नेह अनित्य..
*
शेखावाटी-निमाड़ी, गोंडी-कैथी सीख.
पाली, प्राकृत, रेख्ता, से भी परिचित दीख..
*
डिंगल अरु अपभ्रंश की, मिली विरासत दिव्य.
भारत का भाषा भावन, सकल सृष्टि में भव्य..
*
हिंदी हर दिल में बसी, है हर दिल की शान.
सबको देती स्नेह यह, सबसे पाती मान..
***
नवगीत:
हिंदी की जय हो...
*
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
***
नवगीत:
अपना हर पल है हिन्दीमय....
*
अपना हर पल है हिन्दीमय
एक दिवस क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें नित्य अंग्रेजी
जो वे एक दिवस जय गाएँ...
*
निज भाषा को कहते पिछडी.
पर भाषा उन्नत बतलाते.
घरवाली से आँख फेरकर
देख पडोसन को ललचाते.
ऐसों की जमात में बोलो,
हम कैसे शामिल हो जाएँ?...
*
हिंदी है दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक की भाषा.
जिसकी ऐसी गलत सोच है,
उससे क्या पालें हम आशा?
इन जयचंदों की खातिर
हिंदीसुत पृथ्वीराज बन जाएँ...
*
ध्वनिविज्ञान-नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में माने जाते.
कुछ लिख, कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि, उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में साम्य बताएँ...
*
अलंकार, रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी भाषा में मिलते,
दावे करलें चाहे झूठे.
देश-विदेशों में हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाएँ...
*
अन्तरिक्ष में संप्रेषण की
भाषा हिंदी सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन में
हिंदी है सर्वाधिक सक्षम.
हिंदी भावी जग-वाणी है
निज आत्मा में 'सलिल' बसाएँ...
१२-९-२०१६
***
नवगीत:
*
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
शानदार सम्मेलन होता
किन्तु न इसमें जान है.
बुंदेली को जगह नहीं है
न ही मालवी-मान है.
रुद्ध प्रवेश निमाड़ी का है
छत्तीसगढ़ी न श्लाघ्य है
बृज, अवधी, मैथिली न पूछो
हल्बी का न निशान है.
भोजपुरी को भूल
नहीं क्या
घिरते हैं हम भूल में?
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
महीयसी को बिठलाया है
प्रेस गैलरी द्वार पर.
भारतेंदु क्या छोड़ गये हैं
सम्मेलन ही हारकर?
मातृशक्ति की अनदेखी
क्यों संतानें ही करती हैं?
घाघ-भड्डरी को बिसराया
देशजता से रार कर?
बिंधी हुई है
हिंदी कलिका
अंग्रेजी के शूल में
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
रास, राई, बंबुलिया रोये
जगनिक-आल्हा यहाँ नहीं.
भगतें, जस, कजरी गायब हैं
गीत बटोही मिला नहीं.
सुआ गीत, पंथी या फागें
बिन हिंदी है कहाँ कहो?
जड़ बिसराकर पत्ते गिनते
माटी का संग मिला नहीं।
ताल-मेल बिन
सपने सारे
मिल जाएंगे धूल में.
सिसक रही है
हिंदी मैया
कॉन्वेंट स्कूल में
*
(१०-९-१५ को विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल में उद्घाटन के पूर्व लिखा गया)
***
दोहा सलिला:
करना है साहित्य बिन, भाषा का व्यापार
भाषा का करती 'सलिल', सत्ता बंटाधार
*
मनमानी करते सदा, सत्ताधारी लोग
अब भाषा के भोग का, इन्हें लगा है रोग
*
करता है मन-प्राण जब, अर्पित रचनाकार
तब भाषा की मृदा से, रचना ले आकार
*
भाषा तन साहित्य की, आत्मा बिन निष्प्राण
शिवा रहित शिव शव सदृश, धनुष बिना ज्यों बाण
*
भाषा रथ को हाँकता, सत्ता सूत अजान
दिशा-दशा साहित्य दे, कैसे? दूर सुजान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
*
अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
*
पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
*
जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
*
रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
*
जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
*
तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
*
जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
१२-९-२०१५
*

बुधवार, 13 सितंबर 2017

kundaliya - hindi divas

 कुण्डलिया, कुंडली, कुण्डलिनी
*
'कुण्डलिनी चक्र' आधारभूत ऊर्जा को जागृत कर ऊर्ध्वमुखी करता है। कुण्डलिनी छंद एक कथ्य से प्रारंभ होकर सहायक तथ्य प्रस्तुत करते हुए उसे अंतिम रूप से स्थापित करता है।

नाग के बैठने की मुद्रा को कुंडली मारकर बैठना कहा जाता है। इसका भावार्थ जमकर या स्थिर होकर बैठना है। इस मुद्रा में सर्प का मुँह और पूँछ आस-पास होती है। इस गुण के आधार पर कुण्डलिनी छंद बना है जिसके आदि-अंत में एक समान शब्द या शब्द समूह होता है।

कुंडली की प्रथम दो पंक्तिया दोहा (१३-११, पदादि में जगण वर्जित, पदांत लघु गुरु) तथा शेष चार रोला छंद ( १३-११) में होती हैं। दोहा का अंतिम चरण रोला का प्रथम चरण होता है. हिंदी दिवस पर प्रस्तुत हैं कुंडलिया छंद-
*
हिंदी की जय बोलिए, उर्दू से कर प्रीत
अंग्रेजी को जानिए, दिव्य संस्कृत रीत
दिव्य संस्कृत रीत, तमिल-असमी रस घोलें
गुजराती डोगरी, मराठी कन्नड़ बोलें
बृज मलयालम गले मिलें गारो से निर्भय
बोलें तज मतभेद, आज से हिंदी की जय
*
हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा, बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूँज उठे, फिर हिंदी की जय..
*
हिंदी की जय बोलिए, तज विरोध-विद्वेष
विश्व नीड़ लें मान तो, अंतर रहे न शेष
अंतर रहे न शेष, स्वच्छ अंतर्मन रखिए
जगवाणी हिंदी अपनाकर, नव सुख गहिए
धरती माता के माथे पर, शोभित बिंदी
मूक हुए 'संजीव', बोल-अपनाकर हिंदी
***
परमपिता ने जो रचा, कहें नहीं बेकार
ज़र्रे-ज़र्रे में हुआ, ईश्वर ही साकार
ईश्वर ही साकार, मूलतः: निराकार है
व्यक्त हुआ अव्यक्त, दैव ही गुणागार है
आता है हर जीव, जगत में समय बिताने
जाता अपने आप, कहा जब परमपिता ने
*
निर्झर - नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल,हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
*

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

hindi diwas- geet-muktak

हाइकू गीत 
*
बोल रे हिंदी 
कान में अमरित 
घोल रे हिंदी 
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
गीत
*
देश-हितों हित
जो जीते हैं
उनका हर दिन अच्छा दिन है।
वही बुरा दिन
जिसे बिताया
हिंद और हिंदी के बिन है।
*
अपने मन में
झाँक देख लें
क्या औरों के लिए किया है?
या पशु, सुर,
असुरों सा जीवन
केवल निज के हेतु जिया है?
क्षुधा-तृषा की
तृप्त किसी की,
या अपना ही पेट भरा है?
औरों का सुख छीन
बना जो धनी
कहूँ सच?, वह निर्धन है।
*
जो उत्पादक
या निर्माता
वही देश का भाग्य-विधाता,
बाँट, भोग या
लूट रहा जो
वही सकल संकट का दाता।
आवश्यकता
से ज्यादा हम
लुटा सकें, तो स्वर्ग रचेंगे
जोड़-छोड़ कर
मर जाता जो
सज्जन दिखे मगर दुर्जन है।
*
बल में नहीं
मोह-ममता में
जन्मे-विकसे जीवन-आशा।
निबल-नासमझ
करता-रहता
अपने बल का व्यर्थ तमाशा।
पागल सांड
अगर सत्ता तो
जन-गण सबक सिखा देता है
नहीं सभ्यता
राजाओं की,
आम जनों की कथा-भजन है
***
हिंदी दिवस २०१६

बुधवार, 14 सितंबर 2016

हाइकू गीत
*
बोल रे हिंदी
कान में अमरित
घोल रे हिंदी
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
मुक्तक
हिंदी का उद्घोष छोड़, उपयोग सतत करना है
कदम-कदम चल लक्ष्य प्राप्ति तक संग-संग बढ़ना है
भेद-भाव की खाई पाट, सद्भाव जगाएँ मिलकर
गत-आगत को जोड़ सके जो वह पीढ़ी गढ़ना है
*
गीत
*
देश-हितों हित
जो जीते हैं
उनका हर दिन अच्छा दिन है।
वही बुरा दिन
जिसे बिताया
हिंद और हिंदी के बिन है।
*
अपने मन में
झाँक देख लें
क्या औरों के लिए किया है?
या पशु, सुर,
असुरों सा जीवन
केवल निज के हेतु जिया है?
क्षुधा-तृषा की
तृप्त किसी की,
या अपना ही पेट भरा है?
औरों का सुख छीन
बना जो धनी
कहूँ सच?, वह निर्धन है।
*
जो उत्पादक
या निर्माता
वही देश का भाग्य-विधाता,
बाँट, भोग या
लूट रहा जो
वही सकल संकट का दाता।
आवश्यकता
से ज्यादा हम
लुटा सकें, तो स्वर्ग रचेंगे
जोड़-छोड़ कर
मर जाता जो
सज्जन दिखे मगर दुर्जन है।
*
बल में नहीं
मोह-ममता में
जन्मे-विकसे जीवन-आशा।
निबल-नासमझ
करता-रहता
अपने बल का व्यर्थ तमाशा।
पागल सांड
अगर सत्ता तो
जन-गण सबक सिखा देता है
नहीं सभ्यता
राजाओं की,
आम जनों की कथा-भजन है
***
हिंदी दिवस २०१६