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बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

अक्तूबर १५, ग़ज़ल, बाल, दोहा, प्रभाती, फिटकरी, आंकिक उपमान, नेपाली, नदी, देवनागरी

सलिल सृजन अक्तूबर १५
विश्व वाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
पर्यटन प्रकोष्ठ
 गत २ मई २०२५ से ८ मई २०२५ तक मारीशस तथा २६अगस्त २०२५ से ३१ अगस्त २०२५ तक श्री लंका की सफल यात्राओं के पश्चात अब दुबई (२५ दिसंबर २०२५ से ३१ दिसंबर २०२५) तथा उत्तराखंड (१० फरवरी २०२५ से १६ फरवरी २०२५) यात्राएँ प्रस्तावित हैं। 
जो साथी इन स्थानों की यात्रा निर्धारित तारीखों में करने के इच्छुक हैं वे अपना नाम, शहर तथा वाट्स एप क्रमांक अंकित करें।

अ. दुबई यात्रा (२५ दिसंबर २०२५ से ३१ दिसंबर २०२५) 
व्यय अनुमान प्रति व्यक्ति- १.१ लाख रु. 
१. संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर ९४२५१८३२४४
२. दुर्गेश ब्योहार 'दर्शन' जबलपुर ८८३९२०६३९१
३. 
४. 
५.

आ. उत्तराखंड यात्रा (१० फरवरी २०२६ से १६ फरवरी २०२६)
व्यय अनुमान प्रति व्यक्ति- ३० हजार रु.
१. संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर ९४२५१८३२४४
२. चंद्र शेखर लोहुमी पुणे ९५६१२११९९०
३. 
४.
५.
६. 
००० 
एक रचना: नेपाली अनुवाद :
संजीव वर्मा 'सलिल' विधि गुरुङ्ग
* *
ओ मेरी नेपाली सखी! हे मेरो नेपाली संगी!
एक सच जान लो एउटा सत्य थाहा पाऊ
समय के साथ आती-जाती है समय संग आउञ्छ जान्छ
धूप और छाँव छाया र घाम
लेकिन हम नहीं छोड़ते हैं तर हामी छोर्दैनौ है
अपना घर या गाँव। आफ्नो घर र गाम
परिस्थितियाँ बदलती हैं, परिस्थिति बद्लि रहन्छ
दूरियाँ घटती-बढ़ती हैं दुरी घटी-बढ़ी रहन्छ
लेकिन दोस्त नहीं बदलते तर मित्रता बदलिन्दैन
दिलों के रिश्ते नहीं टूटते। मनको नाता तुतिन्दैन
मुँह फुलाकर रूठ जाने से मुख फुलाएर रिसाउने बितिकै
सदियों की सभ्यताएँ सदियौंको सभ्यता
समेत नहीं होतीं। बिलिन हुँदैन।
हम-तुम एक थे, हामी तिमि एक थियौं ,
एक हैं, एक रहेंगे। एक छौं एक रही रहनेछौ
अपना सुख-दुःख आफ्नो सुख-दुःख,
अपना चलना-गिरना हिंद्नु- लड्नु
संग-संग उठना-बढ़ना संग - संग उठ्नु - अघि बढनु
कल भी था, हिजो पनि थियौं,
कल भी रहेगा। आज पनि छौं भोलिनी रहनेछौं
आज की तल्खी आजको कट्तुता
मन की कड़वाहट मनको कड़वाहट
बिन पानी के बदल की तरह पानी बिनको बादल सरी
न कल थी, न हिजो थियो
न कल रहेगी। न भोली रहन्छ
नेपाल भारत के ह्रदय में नेपाल भारतको मनमा
भारत नेपाल के मन में भारत नेपालको मनमा
था, है और रहेगा। सदा रहन्छ।
इतिहास हमारी मित्रता की इतिहांस ले हाम्रो मित्रता को
कहानियाँ कहता रहा है, कथा सुनाउंछ
कहता रहेगा। सुनाई रहनेछ
आओ, हाथ में लेकर हाथ आऊ, हाथ मा लिएर हाथ
कदम बढ़ाएँ एक साथ पाइला चालऊं एक साथ
न झुकाया है, न झुकाएँ न निहुराएको थियौं, शिर न झुकाउने छौं
हमेशा ऊँचा रखें अपना माथ। हमेसा उच्च थियो शिर उच्चनै राख्ने छौं
नेता आयेंगे-जायेंगे नेता आउँछ - जान्छ
संविधान बनेंगे-बदलेंगे संबिधान बन्छ बद्लिन्छ
लेकिन हम-तुम तर तिमि-हामी,
कोटि-कोटि जनगण करोडौं जनता
न बिछुड़ेंगे, न लड़ेंगे न छुट छौं, न लड्छौं
दूध और पानी की तरह दूध र पानी जस्तै
शिव और भवानी की तरह शिव र पार्वती जस्तै
जन्म-जन्म साथ थे, जुनी जुनी साथ थियौं
हैं और रहेंगे छौं र रही रहन्छौं
ओ मेरी नेपाली सखी! हे मेरो नेपाली संगी!
*** ***

हिंदी ग़ज़ल
वज़्न: २२ २२ २२ २
अरकान- फेलुन फेलुन फेलुन फा।
बह्र- बहरे मीर (लघु)
० 
पर्वत सागर खाई दे।
गगन पिता भू माई दे।।
.
हँसी उड़ा लूँ खुद की खुद।
तू न मुझे रुसवाई दे।। 
कर लूँ साँसें बाराती।
नव आशा शहनाई दे।। 
.
दिन दोहा होकर झूमे।
रात मुझे चौपाई दे।। 
.
जीते जी जो जान ले ले।
ऐसी मत मँहगाई दे।। 
.
रुपयों ने सुख-चैन हरा
धेला-आना-पाई दे।।
.
मुक्ति दिला दे 'ब्रो-सिस' से।
घर-घर जीजी-भाई दे।।
.
पर सुख की प्रभु चाह न हो
चाहे पीर पराई दे।।
.
जन्म मिला संजीव बनूँ
थोड़ी तो बीनाई दे।।
०००
ब्रो-सिस = ब्रदर-सिस्टर
बीनाई= सत्य देखने की क्षमता
१५-१०-२०२५ 
***
बाल रचना
बोलो कम तुम ज्यादा पढ़ना
एक-एक कर सीढ़ी चढ़ना
अपने सपने यदि सच करना
कंकर से तुम शंकर गढ़ना
पीछे रहो न धक्का देना
चलना तेज निरंतर बढ़ना
है आसान बैठना घर में
मुश्किल होता बाहर कढ़ना
कोशिश-फ्रेम बना ले पहले
चित्र सफलता का तब मढ़ना
***
एक रचना 
सृष्टि, तप और मुक्ति 
० 
सृष्टि रची क्यों प्रभु ने कौन बताएगा? 
तप में बाधक या साधक समझाएगा?
लक्ष्य मुक्ति या पुनर्जन्म है कौन कहे-
मिले कर्म-परिणाम, नहीं बच पाएगा।। 
*
बाधा होता अगर विश्व यह
क्यों रचता इसको करतार?
साधन है यह साध्य नहीं है
समझ सहायक है संसार।
मन से मन की बात करो रे!
मत औरों को दो उपदेश।
मन ही पालन करे हुक्म का
मन ही दे मन को आदेश।
देख बाहरी दुनिया मन ने
चैन न पाया मूँदे नैन।
देखूँ तनिक भीतरी दुनिया
उजियाली हो मन में रैन।
अपने में डूबूँ, अपने से
आप करूँ साक्षात् तनिक।
आप प्रश्न कर उत्तर खोजूँ
सुनूँ आप की बात तनिक।
कर मस्तक में ऊर्जा केंद्रित
मन में झिलमिल दिखे प्रकाश।
ग्रह नक्षत्र सूर्य शशि भू सह
दिखे सिंधु, सारा आकाश।
हेरे मन को मन ही मन, मन
टेरे मन को मन ही मन।
शांति असीम मिले अंतर को
परम शांत हो निज चेतन।
तप तब ही जब देह-जगत हो
बिन काया-माया तप नाहिं।
छाया ईश्वर की पाना तो
रम कर, मत रम तू जग माहिं।
१५-१०-२०२२
***
कार्य शाला - छंद दोहा
प्रकार: अर्धसम मात्रिक छंद
विधान २ पद, २ विषम चरण, २ सम चरण, १३-११ पर यति, पदादि में एज शब्द में जगण निषेध, पदांत गुरु-लघु
*
दोहा में 'दो' मूल है, द्विपदी दो पग जान।
दो-दो हैं सम-विषम पद, कहता चरण जहान।।
*
गौ भाषा को दोहता, दोहा गहता अर्थ।
गागर में सागर भरे, दोहाकार समर्थ।।
*
विषम चरण दो आदि में, पहला-तीजा देख।
दूजा-चौथा सम चरण, दो इनको अवरेख।।
*
दो अक्षर गुरु-लघु रहें, पंक्ति-अंत उच्चार।
दो शब्दों में जगन का, है प्रयोग स्वीकार।।
*
मानव की करतूत लख, भुवन भास्कर लाल।
पर्यावरण बिगाड़कर, आप बुलाता काल।।
*
प्रकृति अपर्णा हो रही, ठूँठ रहे कुछ शेष।
शीघ्र समय वह आ रहा, मानव हो निश्शेष।।
*
नीर् वायु कर प्रदूषित, मचा रहा नर शोर।
प्रकृति-पुत्र होकर करे, नाश प्रकृति का घोर।।
*
हत्या करता वनों की, रौंदे खोद पहाड़।
क्रुद्ध प्रकृति आकाश भी, विपदा रही दहाड़।।
*
माटी मिट है कीच अब, बनी न तेरी कब्र।
चेताता है लाल रवि, सुधर तनिक कर सब्र।।
१५-१०-२०२१
***
प्रभाती
*
टेरे गौरैया जग जा रे!
मूँद न नैना, जाग शारदा
भुवन भास्कर लेत बलैंया
झट से मोरी कैंया आ रे!
ऊषा गुइयाँ रूठ न जाए
मैना गाकर तोय मनाए
ओढ़ रजैया मत सो जा रे!
टिट-टिट करे गिलहरी प्यारी
धौरी बछिया गैया न्यारी
भूखा चारा तो दे आ रे!
पायल बाजे बेद-रिचा सी
चूड़ी खनके बने छंद भी
मूँ धो सपर भजन तो गा रे!
बिटिया रानी! बन जा अम्मा
उठ गुड़िया का ले ले चुम्मा
रुला न आते लपक उठा रे!
अच्छर गिनती सखा-सहेली
महक मोगरा चहक चमेली
श्यामल काजल नजर उतारे
सुर-सरगम सँग खेल-खेल ले
कठिनाई कह सरल झेल ले
बाल भारती पढ़ बढ़ जा रे!
१५-१०-२०१९
***
घरेलू नुस्खे / आयुर्वेद
फिटकरी के उपयोग:
१. पिसी फिटकरी चौथाई चम्मच, एक कप कच्चे दूध में डाल,लस्सी बनाकर दो-दो घंटे बाद पिलाने से गर्भपात रुकता है
२. श्वेत प्रदर एवं रक्त प्रदर दोनों में चौथाई चम्मच पिसी फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फाँकें।
३.खूनी बवासीर होने पर फिटकरी को पानी में घोलकर गुदा में पिचकारी दें। साफ कपड़ा फिटकरी के पानी में भिगोकर गुदा-द्वार पर रखें ।
४. सुजाक (पेशाब करते समय जलन) हो तो ६ ग्राम पिसी हुई फिटकरी एक गिलास पानी में घोलकर कुछ दिन पिएँ।
५. सर्दियों में पानी में ज्यादा काम करने से अँगुलियों में सूजन या खाज होने पर पानी में फिटकरी उबालकर उससे धोएँ।
६. ज्यादा सुरापान के बाद ६ग्राम फिटकरी पानी में घोलकर पीने से नशा कम होता है।
७. गले में दर्द होने पर गर्म पानी में फिटकरी और नमक डालकर गरारे करने से टॉन्सिल ठीक होते हैं। मुँह, गला और दाँत भी साफ होते हैं।
८. बार-बार बुखार आने एक ग्राम फिटकरी में दो ग्राम चीनी को मिलाकर २-२ घंटे के अंतर से से दो बार दें।
९. दाँत दर्द हो तो फिटकरी को रूई में रखकर छेद में दबा दें और लार टपकाएँ। दाँत दर्द ठीक हो जाएगा।
१०. फिटकरी को पानी में घोलकर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
११. कान में चींटी चली जाए तो फिटकरी को पानी में घोलकर कान में डालें। चींटी बाहर निकल आएगी।
१२. आधा गिलास पानी में ६ ग्राम फिटकरी घोलकर कुछ दिन पिलाने से हैजे में लाभ होता है।
१३. आंतरिक चोट लगने पर ४ ग्राम फिटकरी पीसकर आधा किलो गाय के दूध में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
१४. हाथ-पाँव में पसीना आता हो तो फिटकरी को पानी में घोलकर इससे हाथ-पाँव धोएँ।
१५. फिटकरी के पानी से सिर धोने से जुएँ नष्ट हो जाती हैं।
१६. चार्म रोग से प्रभावित भाग को फिटकरी के पानी से दिन में ३-४ बार धो लें। सभी प्रकार के चर्मरोग मिट जाते हैं।
१७. आधा ग्राम पिसी हुई फिटकरी शहद में मिलाकर चाटने से दमा और खाँसी में आराम मिलता है।
१८. गाय के दूध में थोड़ी-सी फिटकरी घोलकर ३-४-बूँद नाक में डालने से नाक में खून आना बंद हो जाता है।
१९. फिटकरी के चूर्ण में शहद मिलाकर उसमें रूई लपेटकर कान में रखने से कान का घाव भर जाता है।
२०. पिसी हुई फिटकरी पानी में घोलकर दिन में २ बार कुल्ला करने से पायरिया रोग ठीक होता है।
२१. नजला-जुकाम होने पर फिटकरी को गर्म तवे पर फुलाकर महीन पीस लें,एक चुटकी गुनगुने पानी के साथ दिन में तीन बार लें।
२२. अनचाहे बाल हटाने के लिए फिटकरी को पानी के साथ जहाँ से बाल हटाना हैं, वहाँ सप्ताह में दो दिन लगाकर आधे घंटे बाद पानी से धोलें। उसके बाद वेक्स द्वारा बालों को हटा दें। कुछ समय बाद बाल आने बंद हो जाएँगे।
***
कार्य शाला- छंद दोहा
प्रकार: अर्धसम मात्रिक छंद
विधान २ पद, २ विषम चरण, २ सम चरण, १३-११ पर यति, पदादि में एज शब्द में जगण निषेध, पदांत गुरु-लघु
*
मानव की करतूत लख, भुवन भास्कर लाल.
पर्यावरण बिगाड़कर, आप बुलाता काल.
*
प्रकृति अपर्णा हो रही, ठूँठ रहे कुछ शेष
शीघ्र समय वह आ रहा, मानव हो निश्शेष
*
नीर् वायु कर प्रदूषित, मचा रहा नर शोर
प्रकृति-पुत्र होकर करे, नाश प्रकृति का घोर.
*
हत्या करता वनों की, रौंदे खोद पहाड़.
क्रुद्ध प्रकृति आकाश भी, विपदा रही दहाड़
*
माटी मिट है कीच अब, बनी न तेरी कब्र.
चेताता है लाल रवि, सुधर तनिक कर सब्र.
***
मुक्तिका
*
२६ मात्रिक राशि-रत्न छंद
विधान- यति १२-१४, पदांत IS
*
पंक जब दे छोड़ तब, पंकज लुटा परिमल सके
रहे लिपटा पंक में, जो वह न पूजित हो सखे!
सिर्फ कमियाँ खोजना, औरों की खुद को श्रेष्ठ कह
आत्म-अवलोकन करे, तो कमी खुद में भी दिखे
और की खूबी नहीं, होती सहन जिस दृष्टि को
मोतिया बन खामियाँ, देखीं वहीं हमने पले
क्लिष्टता आराध्य कह, जो प्रेत हैं कठिनाई के
डर उन्हीं से छंद तज, युव राह ग़ज़लों की चुने
सराहे तुलसी गए, जब जायसी से अधिक तो
विवश खेमेबाज मिल, मानस रखें नीचे लजे
मुक्तिका हिंदी गजल, पर गीतिका जो कह रहे
तेवरी उपहास कर, उनका सतत गुपचुप हँसे
[टिप्पणी- नवाविष्कृत छंद, राशि १२, रत्न १४]
***
छंद शास्त्र में आंकिक उपमान:
*
छंद शास्त्र में मात्राओं या वर्णों संकेत करते समय ग्रन्थों में आंकिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। ऐसे कुछ शब्द नीचे सूचीबद्ध किये गये हैं। इनके अतिरिक्त आपकी जानकारी में अन्य शब्द हों तो कृपया, बताइये।
क्या नवगीतों में इन आंकिक प्रतिमानों का उपयोग इन अर्थों में किया जाना उचित होगा?
*
एक - ॐ, परब्रम्ह 'एकोsहं द्वितीयोनास्ति', क्षिति, चंद्र, भूमि, नाथ, पति, गुरु।
पहला - वेद ऋग्वेद, युग सतयुग, देव ब्रम्हा, वर्ण ब्राम्हण, आश्रम: ब्रम्हचर्य, पुरुषार्थ अर्थ,
इक्का, एकाक्षी काना, एकांगी इकतरफा, अद्वैत, एकत्व,
दो - देव: अश्विनी-कुमार। पक्ष: कृष्ण-शुक्ल। युग्म/युगल: प्रकृति-पुरुष, नर-नारी, जड़-चेतन। विद्या: परा-अपरा। इन्द्रियाँ: नयन/आँख, कर्ण/कान, कर/हाथ, पग/पैर। लिंग: स्त्रीलिंग, पुल्लिंग।
दूसरा- वेद: सामवेद, युग त्रेता, देव: विष्णु, वर्ण: क्षत्रिय, आश्रम: गृहस्थ, पुरुषार्थ: धर्म,
महर्षि: द्वैपायन/व्यास। द्वैत विभाजन,
तीन/त्रि - देव / त्रिदेव/त्रिमूर्ति: ब्रम्हा-विष्णु-महेश। ऋण: देव ऋण, पितृ-मातृ ऋण, ऋषि ऋण। अग्नि: पापाग्नि, जठराग्नि, कालाग्नि। काल: वर्तमान, भूत, भविष्य। गुण: ?। दोष: वात, पित्त, कफ (आयुर्वेद)। लोक: स्वर्ग, भू, पाताल / स्वर्ग भूलोक, नर्क। त्रिवेणी / त्रिधारा: सरस्वती, गंगा, यमुना। ताप: दैहिक, दैविक, भौतिक। राम: श्री राम, बलराम, परशुराम। ऋतु: पावस/वर्षा शीत/ठंड ग्रीष्म/गर्मी।मामा:कंस, शकुनि, माहुल।
तीसरा- वेद: यजुर्वेद, युग द्वापर, देव: महेश, वर्ण: वैश्य, आश्रम: वानप्रस्थ, पुरुषार्थ: काम,
त्रिकोण, त्रिनेत्र = शिव, त्रिदल बेल पत्र, त्रिशूल, त्रिभुवन, तीज, तिराहा, त्रिमुख ब्रम्हा। त्रिभुज / त्रिकोण तीन रेखाओं से घिरा क्षेत्र।
चार - युग: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग। धाम: द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम धाम। पीठ: शारदा पीठ द्वारिका, ज्योतिष पीठ जोशीमठ बद्रीधाम, गोवर्धन पीठ जगन्नाथपुरी, श्रृंगेरी पीठ। वेद: ऋग्वेद, अथर्वेद, यजुर्वेद, सामवेद।आश्रम: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास। अंतःकरण: मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार। वर्ण: ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र। पुरुषार्थ: अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष। दिशा: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण। फल: । अवस्था: शैशव/बचपन, कैशोर्य/तारुण्य, प्रौढ़ता, वार्धक्य।धाम: बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, द्वारिका। विकार/रिपु: काम, क्रोध, मद, लोभ।
अर्णव, अंबुधि, श्रुति,
चौथा - वेद: अथर्वर्वेद, युग कलियुग, वर्ण: शूद्र, आश्रम: सन्यास, पुरुषार्थ: मोक्ष,
चौराहा, चौगान, चौबारा, चबूतरा, चौपाल, चौथ, चतुरानन गणेश, चतुर्भुज विष्णु, चार भुजाओं से घिरा क्षेत्र।, चतुष्पद चार पंक्ति की काव्य रचना, चार पैरोंवाले पशु।, चौका रसोईघर, क्रिकेट के खेल में जमीन छूकर सीमाँ रेखा पार गेंद जाना, चार रन।
पाँच/पंच - गव्य: गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर। देव: गणेश, विष्णु, शिव, देवी, सूर्य। तत्त्व: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश। अमृत: दुग्ध, दही, घृत, मधु, नर्मदा/गंगा जल। अंग/पंचांग: । पंचनद: । ज्ञानेन्द्रियाँ: आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा। कर्मेन्द्रियाँ: हाथ, पैर,आँख, कान, नाक। कन्या: ।, प्राण ।, शर: ।, प्राण: ।, भूत: ।, यक्ष: ।,
इशु: । पवन: । पांडव पाण्डु के ५ पुत्र युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल सहदेव। शर/बाण: । पंचम वेद: आयुर्वेद।
पंजा, पंच, पंचायत, पंचमी, पंचक, पंचम: पांचवा सुर, पंजाब/पंचनद: पाँच नदियों का क्षेत्र, पंचानन = शिव, पंचभुज पाँच भुजाओं से घिरा क्षेत्र,
छह/षट - दर्शन: वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मीसांसा, दक्षिण मीसांसा। अंग: ।, अरि: ।, कर्म/कर्तव्य: ।, चक्र: ।, तंत्र: ।, रस: ।, शास्त्र: ।, राग:।, ऋतु: वर्षा, शीत, ग्रीष्म, हेमंत, वसंत, शिशिर।, वेदांग: ।, इति:।, अलिपद: ।
षडानन कार्तिकेय, षट्कोण छह भुजाओं से घिरा क्षेत्र,
सात/सप्त - ऋषि - विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ एवं कश्यप। पुरी- अयोध्या, मथुरा, मायापुरी हरिद्वार, काशी वाराणसी , कांची (शिन कांची - विष्णु कांची), अवंतिका उज्जैन और द्वारिका। पर्वत: ।, अंध: ।, लोक: ।, धातु: ।, सागर: ।, स्वर: सा रे गा मा पा धा नी।, रंग: सफ़ेद, हरा, नीला, पीला, लाल, काला।, द्वीप: ।, नग/रत्न: हीरा, मोती, पन्ना, पुखराज, माणिक, गोमेद, मूँगा।, अश्व: ऐरावत,
सप्त जिव्ह अग्नि,
सप्ताह = सात दिन, सप्तमी सातवीं तिथि, सप्तपदी सात फेरे,
आठ/अष्ट - वसु- धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष। योग- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। लक्ष्मी - आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य , भोग एवं योग लक्ष्मी ! सिद्धियाँ: ।, गज/नाग: । दिशा: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य।, याम: ।,
अष्टमी आठवीं तिथि, अष्टक आठ ग्रहों का योग, अष्टांग: ।,
अठमासा आठ माह में उत्पन्न शिशु,
नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री। गृह: सूर्य/रवि , चन्द्र/सोम, गुरु/बृहस्पति, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु।, कुंद: ।, गौ: ।, नन्द: ।, निधि: ।, विविर: ।, भक्ति: ।, नग: ।, मास: ।, रत्न ।, रंग ।, द्रव्य ।,
नौगजा नौ गज का वस्त्र/साड़ी।, नौरात्रि शक्ति ९ दिवसीय पर्व।, नौलखा नौ लाख का (हार)।,
नवमी ९ वीं तिथि।,
दस - दिशाएं: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, पृथ्वी, आकाश।, इन्द्रियाँ: ५ ज्ञानेन्द्रियाँ, ५ कर्मेन्द्रियाँ।, अवतार - मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, श्री राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दशमुख/दशानन/दशकंधर/दशबाहु रावण।, दष्ठौन शिशु जन्म के दसवें दिन का उत्सव।, दशमी १० वीं तिथि।, दीप: ।, दोष: ।, दिगपाल: ।
ग्यारह रुद्र- हर, बहुरुप, त्र्यंबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभु, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा और कपाली।
एकादशी ११ वीं तिथि,
बारह - आदित्य: धाता, मित, आर्यमा, शक्र, वरुण, अँश, भाग, विवस्वान, पूष, सविता, तवास्था और विष्णु।, ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ राजकोट, मल्लिकार्जुन, महाकाल उज्जैन, ॐकारेश्वर खंडवा, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ वाराणसी, त्र्यंबकेश्वर नासिक, केदारनाथ, घृष्णेश्वर, भीमाशंकर, नागेश्वर। मास: चैत्र/चैत, वैशाख/बैसाख, ज्येष्ठ/जेठ, आषाढ/असाढ़ श्रावण/सावन, भाद्रपद/भादो, अश्विन/क्वांर, कार्तिक/कातिक, अग्रहायण/अगहन, पौष/पूस, मार्गशीर्ष/माघ, फाल्गुन/फागुन। राशि: मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, कन्यामेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या।, आभूषण: बेंदा, वेणी, नथ,लौंग, कुण्डल, हार, भुजबंद, कंगन, अँगूठी, करधन, अर्ध करधन, पायल. बिछिया।,
द्वादशी १२ वीं तिथि।, बारादरी ।, बारह आने।
तेरह - भागवत: ।, नदी: ।,विश्व ।
त्रयोदशी १३ वीं तिथि ।
चौदह - इंद्र: ।, भुवन: ।, यम: ।, लोक: ।, मनु: ।, विद्या ।, रत्न: ।
घतुर्दशी १४ वीं तिथि।
पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा/परमा, द्वितीय/दूज, तृतीय/तीज, चतुर्थी/चौथ, पंचमी, षष्ठी/छठ, सप्तमी/सातें, अष्टमी/आठें, नवमी/नौमी, दशमी, एकादशी/ग्यारस, द्वादशी/बारस, त्रयोदशी/तेरस, चतुर्दशी/चौदस, पूर्णिमा/पूनो, अमावस्या/अमावस।
सोलह - षोडश मातृका: गौरी, पद्मा, शची, मेधा, सावित्री, विजय, जाया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, शांति, पुष्टि, धृति, तुष्टि, मातर, आत्म देवता। ब्रम्ह की सोलह कला: प्राण, श्रद्धा, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, इन्द्रिय, मन अन्न, वीर्य, तप, मंत्र, कर्म, लोक, नाम।, चन्द्र कलाएं: अमृता, मंदा, पूषा, तुष्टि, पुष्टि, रति, धृति, ससिचिनी, चन्द्रिका, कांता, ज्योत्सना, श्री, प्रीती, अंगदा, पूर्ण, पूर्णामृता। १६ कलाओंवाले पुरुष के १६ गुण सुश्रुत शारीरिक से: सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्राण, अपान, उन्मेष, निमेष, बुद्धि, मन, संकल्प, विचारणा, स्मृति, विज्ञान, अध्यवसाय, विषय की उपलब्धि। विकारी तत्व: ५ ज्ञानेंद्रिय, ५ कर्मेंद्रिय तथा मन। संस्कार: गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, कर्णवेध, विद्यारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशांत, समावर्तन, विवाह, अंत्येष्टि। श्रृंगार: ।
षोडशी सोलह वर्ष की, सोलह आने पूरी तरह, शत-प्रतिशत।, अष्टि: ।,
सत्रह -
अठारह -
उन्नीस -
बीस - कौड़ी, नख, बिसात, कृति ।
चौबीस स्मृतियाँ - मनु, विष्णु, अत्रि, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगिरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ।
पच्चीस - रजत, प्रकृति ।
पचीसी = २५, गदहा पचीसी, वैताल पचीसी।
छब्बीस - राशि-रत्न (१४-१२ =२६)
तीस - मास,
तीसी तीस पंक्तियों की काव्य रचना,
बत्तीस - बत्तीसी = ३२ दाँत ।,
तैंतीस - सुर: ।,
छत्तीस - छत्तीसा ३६ गुणों से युक्त, नाई।
चालीस - चालीसा ४० पंक्तियों की काव्य रचना।
पचास - स्वर्णिम, हिरण्यमय, अर्ध शती।
साठ - षष्ठी।
सत्तर -
पचहत्तर -
सौ -
एक सौ आठ - मंत्र जाप
सात सौ - सतसई।,
सहस्त्र -
सहस्राक्ष इंद्र।,
एक लाख - लक्ष।,
करोड़ - कोटि।,
दस करोड़ - दश कोटि, अर्बुद।,
अरब - महार्बुद, महांबुज, अब्ज।,
ख़रब - खर्व ।,
दस ख़रब - निखर्व, न्यर्बुद ।,
*
३३ कोटि देवता
*
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है, कोटि = प्रकार, एक अर्थ करोड़ भी होता। हिन्दू धर्म की खिल्ली उड़ने के लिये अन्य धर्मावलम्बियों ने यह अफवाह उडा दी कि हिन्दुओं के ३३ करोड़ देवी-देवता हैं। वास्तव में सनातन धर्म में ३३ प्रकार के देवी-देवता हैं:
० १ - १२ : बारह आदित्य- धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवस्वान, पूष, सविता, तवास्था और विष्णु।
१३ - २० : आठ वसु- धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
२१ - ३१ : ग्यारह रुद्र- हर, बहुरुप, त्र्यंबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभु, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा और कपाली।
३२ - ३३: दो देव- अश्विनी और कुमार।
१५-१०-१०१८
***
दोहा
नेह-नर्मदा नहाकर, मन-मयूर के नाम
तन्मय तन ने लिख दिया, चिन्मय चित बेदाम
***
एक रचना: नेपाली अनुवाद :
संजीव वर्मा 'सलिल' विधि गुरुङ्ग
* *
ओ मेरी नेपाली सखी! हे मेरो नेपाली संगी!
एक सच जान लो एउटा सत्य थाहा पाऊ
समय के साथ आती-जाती है समय संग आउञ्छ जान्छ
धूप और छाँव छाया र घाम
लेकिन हम नहीं छोड़ते हैं तर हामी छोर्दैनौ है
अपना घर या गाँव। आफ्नो घर र गाम
परिस्थितियाँ बदलती हैं, परिस्थिति बद्लि रहन्छ
दूरियाँ घटती-बढ़ती हैं दुरी घटी-बढ़ी रहन्छ
लेकिन दोस्त नहीं बदलते तर मित्रता बदलिन्दैन
दिलों के रिश्ते नहीं टूटते। मनको नाता तुतिन्दैन
मुँह फुलाकर रूठ जाने से मुख फुलाएर रिसाउने बितिकै
सदियों की सभ्यताएँ सदियौंको सभ्यता
समेत नहीं होतीं। बिलिन हुँदैन।
हम-तुम एक थे, हामी तिमि एक थियौं ,
एक हैं, एक रहेंगे। एक छौं एक रही रहनेछौ
अपना सुख-दुःख आफ्नो सुख-दुःख,
अपना चलना-गिरना हिंद्नु- लड्नु
संग-संग उठना-बढ़ना संग - संग उठ्नु - अघि बढनु
कल भी था, हिजो पनि थियौं,
कल भी रहेगा। आज पनि छौं भोलिनी रहनेछौं
आज की तल्खी आजको कट्तुता
मन की कड़वाहट मनको कड़वाहट
बिन पानी के बदल की तरह पानी बिनको बादल सरी
न कल थी, न हिजो थियो
न कल रहेगी। न भोली रहन्छ
नेपाल भारत के ह्रदय में नेपाल भारतको मनमा
भारत नेपाल के मन में भारत नेपालको मनमा
था, है और रहेगा। सदा रहन्छ।
इतिहास हमारी मित्रता की इतिहांस ले हाम्रो मित्रता को
कहानियाँ कहता रहा है, कथा सुनाउंछ
कहता रहेगा। सुनाई रहनेछ
आओ, हाथ में लेकर हाथ आऊ, हाथ मा लिएर हाथ
कदम बढ़ाएँ एक साथ पाइला चालऊं एक साथ
न झुकाया है, न झुकाएँ न निहुराएको थियौं, शिर न झुकाउने छौं
हमेशा ऊँचा रखें अपना माथ। हमेसा उच्च थियो शिर उच्चनै राख्ने छौं
नेता आयेंगे-जायेंगे नेता आउँछ - जान्छ
संविधान बनेंगे-बदलेंगे संबिधान बन्छ बद्लिन्छ
लेकिन हम-तुम तर तिमि-हामी,
कोटि-कोटि जनगण करोडौं जनता
न बिछुड़ेंगे, न लड़ेंगे न छुट छौं, न लड्छौं
दूध और पानी की तरह दूध र पानी जस्तै
शिव और भवानी की तरह शिव र पार्वती जस्तै
जन्म-जन्म साथ थे, जुनी जुनी साथ थियौं
हैं और रहेंगे छौं र रही रहन्छौं
ओ मेरी नेपाली सखी! हे मेरो नेपाली संगी!
*** ***
महाकवि सूरदास का एक दुर्लभ पद-
...................................................
महराज भवानी, ब्रह्म्भुवन की रानी।
आगे शंकर तांडव करत हैं, भाव करत शूलपानी।।
सुर-नर-गन्धर्व की भीड़ भई है, आगे खड़ा दंडपानी।
‘सूरदास’ प्रभु पल-पल निरखत, भक्तवत्सल जगदानी।।
(नोट- इस पद को पं० भीमसेन जोशी ने गाया है, जिसको ‘म्यूजिक टुडे’ ने अपनी ‘भक्तिमाला’ सीरीज में रिकॉर्ड कर कैसेट संख्या डी-92005 में प्रस्तुत किया है.)
***
नव गीत:
*
नदी वही है
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
*
खिलता हुआ पलाश सुलगता
वॅलिंटाइन पर्व याद कर
हवा बसंती, फ़िज़ां नशीली
बहक रही है लिपट-चिपटकर
घूँघट-बेंदा, पायल-झुमका
झिझक-झेंपती लाज कहाँ है?
सर की, दर की
फ़िक्र जिसे थी, बाट नहीं है
नदी वही है
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
*
पनघट, नुक्क्ड़, चौपालों से
अपनापन हो गया पराया
खलिहानों ने अमराई को-
लूट-रौंदकर दिल बहलाया
नौ दिन-रात पूज नौ देवी
खुद, जग को छले भक्त ही
बदी बढ़ी पर
हुई न अब तक खाट खड़ी है
नदी वही है
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
*
पूरा-पुरातन दिव्य सभ्यता
अब केवल बाजार हो गयी
रिश्ते-नाते, ममता-लोरी
राखी, बिंदिया भार हो गयी
जंगल, पर्वत, रेत, शिलाएँ
बेचीं, अब आत्मा की बारी
संसाधन हैं
तबियत मगर उचाट हुई है
नदी वही है
लेकिन वह घर-घाट नहीं है
१४- १०-२०१५
***
विमर्श
देवनागरी लिपि में लिखने वालों के लिए कुछ उपयोगी बाते...
हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं...।
कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...।
जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं... जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...।
इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...। इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...। 'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है... मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...।
क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...?
( 'मिलाई' ग़लत है...।)
आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...।
( 'जताई' ग़लत है...।)
उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...। ('पाई' ग़लत है...।)
अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...।
बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाये...। ( 'बनाए' नहीं...। )
लोगों ने नेताओं के सामने अपने-अपने दुखड़े गाये...। ( 'गाए' नहीं...। )
दीवाली के दिन लखनऊ में लोगों ने अपने-अपने घर सजाये...। ( 'सजाए' नहीं...। )
तो फिर प्रश्न उठता है कि 'ए' का प्रयोग कहाँ होगा..? 'ए' वहाँ आएगा जहाँ अनुरोध या रिक्वेस्ट की बात होगी...।
अब आप काम देखिए, मैं चलता हूँ...। ( 'देखिये' नहीं...। )
आप लोग अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में सोचिए...। ( 'सोचिये' नहीं...। )
नवेद! ऐसा विचार मन में न लाइए...। ( 'लाइये' ग़लत है...। )
अब आख़िर (अन्त) में 'यें' और 'एँ' की बात... यहाँ भी अनुरोध का नियम ही लागू होगा... रिक्वेस्ट की जाएगी तो 'एँ' लगेगा , 'यें' नहीं...।
आप लोग कृपया यहाँ आएँ...। ( 'आयें' नहीं...। )
जी बताएँ , मैं आपके लिए क्या करूँ ? ( 'बतायें' नहीं...। )
मम्मी , आप डैडी को समझाएँ...। ( 'समझायें' नहीं...। )
अन्त में सही-ग़लत का एक लिटमस टेस्ट... एकदम आसान सा... जहाँ आपने 'एँ' या 'ए' लगाया है , वहाँ 'या' लगाकर देखें...। क्या कोई शब्द बनता है ? यदि नहीं , तो आप ग़लत लिख रहे हैं...।
आजकल लोग 'शुभकामनायें' लिखते हैं... इसे 'शुभकामनाया' कर दीजिए...। 'शुभकामनाया' तो कुछ होता नहीं , इसलिए 'शुभकामनायें' भी नहीं होगा...।
'दुआयें' भी इसलिए ग़लत हैं और 'सदायें' भी... 'देखिये' , 'बोलिये' , 'सोचिये' इसीलिए ग़लत हैं क्योंकि 'देखिया' , 'बोलिया' , 'सोचिया' कुछ नहीं होते...।
रचयिता...अज्ञात...
डॉ Anita Singh की वाल से साभार ।
Sanjiv Verma 'salil' आपके अनुसार तो 'भला हुआ' में 'हुआ' क्रिया होने के कारण स्त्रीलिंग 'हुयी' होगा जो गलत है। मूल बात यह है की 'आ' का 'स्त्रीलिंग 'ई' होगा और 'या' का 'यी' बहुवचन में क्रमश: 'ए' और 'ये' होगा। अपवाद भी हैं। जैसे' तू आ' यह स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में समान रहेगा और बहुवचन में 'तुम सब आओ' होगा। हुआ, हुई, हुए, गया, गयी, गये सही रूप हैं।
***
Book Review
Showers to the Bowers : Poetry full of emotions
(Particulars of the book _ Showers to Bowers, poetry collection, N. Marthymayam 'Osho', pages 72, Price Rs 100, Multycolour Paperback covr, Amrit Prakashan Gwalior )
Poetry is the expression of inner most feelings of the poet. Every human being has emotions but the sestivity, depth and realization of a poet differs from others. that's why every one can'nt be a poet. Shri N. Marthimayam Osho is a mechanical engineer by profession but by heart he has a different metal in him. He finds the material world very attractive, beautiful and full of joy inspite of it's darkness and peshability. He has full faith in Almighty.
The poems published in this collection are ful of gratitudes and love, love to every one and all of us. In a poem titled 'Lending Labour' Osho says- ' Love is life's spirit / love is lamp which lit / Our onus pale room / Born all resplendor light / under grace, underpeace / It's time for Divine's room / who weave our soul bright. / Admire our Aur, Wafting breez.'
'Lord of love, / I love thy world / pure to cure, no sword / can scan of slain the word / The full of fragrance. I feel / so charming the wing along the wind/ carry my heart, wchih meet falt and blend' the poem ' We are one' expresses the the poet's viewpoint in the above quoted lines.
According to famous English poet Shelly ' Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.' Osho's poetry is full of sweetness. He feels that to forgive & forget is the best policy in life. He is a worshiper of piece. In poem 'Purity to unity' the poet say's- 'Poems thine eternal verse / To serve and save the mind / Bringing new twilight to find / Pray for the soul's peace to acquire.'
Osho prays to God 'Light my life,/ Light my thought,/ WhichI sought.' 'Infinite light' is the prayer of each and every wise human being. The speciality of Osho's poetry is the flow of emotions, Words form a wave of feelings. Reader not only read it but becomes indifferent part of the poem. That's why Osho's feeliongs becomes the feelings of his reader.
Bliss Buddha, The Truth, High as heaven, Ode to nature, Journey to Gnesis, Flowing singing music, Ending ebbing etc. are the few of the remarkable poems included in this collection. Osho is fond of using proper words at proper place. He is more effective in shorter poems as they contain ocean of thoughts in drop of words. The eternal values of Indian philosophy are the inner most instict and spirit of Osho's poetry. The karmyoga of Geeta, Vasudhaiv kutumbakam, sarve bhavantu sukhinah, etc. can be easily seen at various places. The poet says- 'Beings are the owner of their action, heirs of their action" and 'O' eternal love to devine / Becomes the remedy.'
In brief the poems of this collection are apable of touching heart and take the reader in a delighted world of kindness and broadness. The poet prefers spirituality over materialism.
....
दोहा सलिला
भक्ति शक्ति की कीजिये, मिले सफलता नित्य.
स्नेह-साधना ही 'सलिल', है जीवन का सत्य..
आना-जाना नियति है, धर्म-कर्म पुरुषार्थ.
फल की चिंता छोड़कर, करता चल परमार्थ..
मन का संशय दनुज है, कर दे इसका अंत.
हरकर जन के कष्ट सब, हो जा नर तू संत..
शर निष्ठां का लीजिये, कोशिश बने कमान.
जन-हित का ले लक्ष्य तू, फिर कर शर-संधान..
राम वही आराम हो. जिसको सदा हराम.
जो निज-चिंता भूलकर सबके सधे काम..
दशकन्धर दस वृत्तियाँ, दशरथ इन्द्रिय जान.
दो कर तन-मन साधते, मौन लक्ष्य अनुमान..
सीता है आस्था 'सलिल', अडिग-अटल संकल्प.
पल भर भी मन में नहीं, जिसके कोई विकल्प..
हर अभाव भरता भरत, रहकर रीते हाथ.
विधि-हरि-हर तब राम बन, रखते सर पर हाथ..
कैकेयी के त्याग को, जो लेता है जान.
परम सत्य उससे नहीं, रह पता अनजान..
हनुमत निज मत भूलकर, करते दृढ विश्वास.
इसीलिये संशय नहीं, आता उनके पास..
रावण बाहर है नहीं, मन में रावण मार. स्वार्थ- बैर,
मद-क्रोध को, बन लछमन संहार..
१५-१०-२०१०
***

रविवार, 7 सितंबर 2025

हिंदी, सिंहली, भाषा सेतु, भारत, श्रीलंका, देवनागरी

हिंदी और सिंहली : एक अध्ययन   

                    हिंदी और सिंहली, दोनों ही भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं। श्रीलंका की मुख्य भाषा सिंहली, इंडो-आर्यन भाषा परिवार का अंग है।  सिंहली भाषा सीलोन (श्रीलंका) में राजा अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ अस्तित्व में आई। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में  भारतीय बौद्ध धर्म प्रचारक पाली/संस्कृत बोलते थे। उनके प्रारंभिक उपदेशों में पाली, संस्कृत, तमिल तथा अन्य स्थानीय बोलियों का मिश्रण होता था।  क्रमश: उन्होंने सिंहली को एक नई भाषा बना दिया। सिंहली व्याकरण, वर्णमाला और ध्वन्यात्मक संरचना तमिल से समानता रखती है। संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण सिंहली भाषा में बा, गा और फा को छोड़कर दोनों भाषाओं में अक्षरों की संख्या लगभग समान है। 

                    हिंदी भारत की एक प्रमुख भाषा है। दोनों भाषाओं की व्याकरणिक संरचना में  संस्कृत और पाली के प्रभाव के कारण कुछ समानताएँ हैं। हिंदी में पाली, संस्कृत, अरबी और उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि की स्थानीय बोलियों का प्रभाव  है। इसका कारण भाषिक क्षेत्रों में वैवाहिक संबंध, श्रमिक आप्रवासी तथा व्यापार-वाणिज्य है। हिंदी और सिंहली में कई ऐसे शब्द समान हैं जिनकी जड़ें संस्कृत और पाली में हैं। 

शब्द-भंडार:
                    सिंहली भाषा में पार्किएर्ट+ तमिल+ बाली+ मिस्री भाषाओं के शब्द अधिक हैं। हिंदी भाषा में अपभ्रंश, संस्कृत, उर्दू , पुर्तगाली, जापानी, अंग्रेजी आदि सहित विश्व की अनेक भाषाओं के शब्द हैं। दोनों भाषाओं में विज्ञान संबंधी विषयों के अध्ययन के लिए अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग क्रमश: बढ़ता जा रहा है। हिंदी-सिंहली तथासिंहली-हिंदी में जीवन के विविध आयामों से संबंधित साहित्य का अनुवाद कार्य किया जाए तो न केवल दो भाषाओं अपितु दो देशों के मध्य संबंध सुदृढ़ होंगे जिससे दोनों देशों में पर्यटन, शिक्षा, साहित्य तथा व्यापार-वाणिज्य को प्रातसहन मिलेगा और आर्थिक समृद्धि का पथ प्रशस्त होगा। 

समानताएँ:
                    हिंदी और सिंहली दोनों भाषाएँ इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से संबंधित हैं, जो उनकी संरचना और शब्दावली में कुछ समानताएँ लाती है। दोनों भाषाओं पर संस्कृत और पाली भाषाओं का प्रभाव है, जिससे व्याकरण और शब्दावली में कुछ समानताएँ और कुछ भिन्नताएँ होना स्वाभाविक है। .

द्वि रूपता:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में  साहित्यिक भाषा और सामान्य जन-जीवन या बाजार में बोली जाने वाली भाषा में अंतर होता है। हिंदी  में स्थानीय बोलिओं के प्रभाव इसकी बहुवर्णीय छटाओं (बुंदेली, बृज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मालवी, निमाड़ी, मारवाड़ी, मेवाड़ी आदि) को जन्म देता है।
बोलचाल की सिंहली साहित्यिक सिंहली से काफी अलग है।  

बोलचाल की सिंहली

मैंने किया = मामा / मांग कला।

हमने किया = अपी कला.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = उम्बा काला।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = उम्बाला कला।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओया कला।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओयाला / ओयागोलो काला।

उसने किया = ईया कला.

उसने किया = ईया कला.

उन्होंने किया = इयाला / एगोलो काला।

वर्तमान काल

मैं करता हूँ = मामा / मांग कारणवा।

हम करते हैं = अपि कारणवा।

आप (एकवचन) करते हैं = ओया / उम्बा करणवा।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओयाला / उम्बाला करनवा।

वह करता है = एया कारणवा।

वह करती है = एया कारणवा।

वे करते हैं = इयाला / एगोलो करणवा।

भविष्य काल

मैं करूँगा = मामा कारणवा।

मैं कल कार चलाऊंगा = मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करानावा।

ठीक है, मैं कल कार चलाऊंगा = हरि, मामा / मांग हेता कार एका ड्राइव करनांग।

हम करेंगे = अपि कारणवा।

हम कल कार को पेंट करेंगे = अपी हेता कार एका पेंट करनावा।

चलो कल कार को पेंट करते हैं = Api heta Car eka Paint karamu.

आप (एकवचन) करेंगे = ओया कराई।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओयाला / ओयागोलो कराई।

वह करेगा = ईया कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = इयाला / एगोलो कराई।

भूतकाल

साहित्यिक सिंहली 

मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = नुम्बा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = नम्बला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही। (संपादन सुझाएँ)

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु। (संपादन सुझाएँ)

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा। 

ध्वनि:
                    सिंहली में, कुछ ध्वनियाँ (महाप्राण व्यंजन) हिंदी से अलग हैं। हिंदी के महाप्राण व्यंजन वे हैं जिनके उच्चारण में मुख से अधिक वायु निकलती है जबकि अल्प प्राण व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुख से वायु प्रवाह कम होता है।  महाप्राण व्यंजन में सभी वर्ग (क, च, ट, त, प) का दूसरा और चौथा वर्ण तथा सभी ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह) शामिल हैं। इस प्रकार ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह और एक उच्छिप्त व्यंजन ढ़, हिंदी के १५ महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं। सिंहली भाषा (sinhala) में महाप्राण व्यंजन में ध्वन्यात्मक अंतर को दर्शाने के लिए ऐतिहासिक रूप से मौजूद महाप्राण ध्वनियों को वर्तनी में दिखाया जाता है। आधुनिक सिंहली ध्वनियों में महाप्राण और अल्पप्राण ध्वनियों के बीच वास्तविक अंतर नहीं है, क्योंकि सभी ध्वनियों को शुद्ध अक्षरों से दर्शाया जा सकता है। कुछ व्यंजन समूहों को सिंहली में अनुमति दी जाती है, जैसे कि संस्कृत से लिए गए "प्रश्नाय" (praśnaya) शब्द में, लेकिन यह जटिल व्यंजन समूह ऋण शब्दों में ही मिलते हैं। सिंहली भाषा में महाप्राण व्यंजन का विचार मुख्य रूप से ऐतिहासिक वर्तनी और ध्वन्यात्मकताओं के संदर्भ में है, जबकि हिंदी में यह उच्चारण-आधारित अवधारणा है जिसमें अधिक वायु-प्रवाह के साथ उच्चारित होने वाले व्यंजन शामिल हैं। तमिल आदि भाषाओं में महाप्राण व्यञ्जन होते ही नहीं और अंग्रेजी आदि ऐसी भी भाषाएँ  हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यञ्जन दोनों बोलनेवालों को एक जैसे प्रतीत होते हैं  

लिपि:
                    प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई देवनागरी और सिंहली लिपियाँ क्रमश: भारत और श्रीलंका में अलग-अलग भाषाओं के लेखन में प्रयुक्त होती तथा बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं। देवनागरी भारत की कई भाषाओं जैसे हिंदी, संस्कृत, मराठी और अनेक बोलियों) को लिखने में प्रयुक्त होती है, जबकि सिंहली श्रीलंका की आधिकारिक भाषा सिंहली को लिखने के काम आती है। दोनों लिपियाँ बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं और इनमें स्वर और व्यंजन होते हैं। भारत में किसी समय साक्षरता का पर्याय समझे जाने वाले कायस्थ समाज में प्रचलित कैथी आदि अन्य लिपियाँ समय के साथ काल के गाल में समा गईं जबकि मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में प्रचाली हुई फारसी और रोमन लिपियाँ क्रमश: उर्दू और अंग्रेजी लेखन में प्रयुक्त हो रही हैं।  

                    देवनागरी प्राचीन भारत में पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक विकसित और ७वीं शताब्दी ईस्वी तक नियमित उपयोग में रही। देवनागरी लिपि, जिसमें ५२ अक्षर (१४ स्वर और ३८ व्यंजन) हैं, दुनिया में चौथी सबसे व्यापक रूप से अपनाई जाने वाली लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग १२० से अधिक भाषाओं के लिए होता है। भारतीय ही नहीं विश्व की लगभग सभी भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में संभव नहीं है, जब तक कि उनका आइट्राँस या अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत लिप्यंतरण वर्णमाला में विशेष मानकीकरण न किया जाए भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग होते हुए भी उच्चारण व वर्णक्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि उर्दू को छोड़कर वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों का परस्पर लिप्यंतरण आसानी से संभव है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौंदर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

                    भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि है। लिपि की दृष्टि से "चित्रात्मक", "भावात्मक" और "भावचित्रात्मक" लिपियों के बाद "अक्षरात्मक" स्तर की लिपियों का विकास होना मान्य है।से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद वर्णात्मक (अल्फाबेटिक) प्रणाली का विकास हुआ। ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) लिपि सर्वकाधिक विकसित प्रणाली है। "देवनागरी" के वर्ण-अक्षर (सिलेबिल) स्वर भी हैं और व्यंजन भी।  "क", "ख" आदि सस्वर व्यंजन  केवल ध्वनियाँ नहींअपितु सस्वर अक्षर भी हैं। ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। भारत की "ब्राह्मी" या "भारती" वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का "पाणिनि" ने वर्णसमाम्नाय के १४ सूत्रों में जो स्वरूप परिचय दिया है, उसके विषय में "पतंजलि" (द्वितीय शताब्दी ई॰ पू॰) ने यह स्पष्ट कहा कि व्यंजनों में संनियोजित "अकार" स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है। वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। अत: देवनागरी लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं।

                    सिंहली भाषा श्रीलंका में सर्वाधिक नागरिकों द्वारा बोली जानेवाली भाषा है। सिंहल द्वीप की विशेषता है कि उसमें बसनेवाली जाति और उस जाति द्वारा व्यवहृत होने वाली भाषा दोनों "सिंहल" हैं। अनेक भारतीय भाषाओं की लिपियों की तरह सिंहल भाषा की लिपि भी ब्राह्मी लिपि का ही परिवर्तित विकसित रूप हैं। सिंहल भाषा के दो रूप शुद्ध सिंहल तथा मिश्रित सिंहल हैं। शुद्ध सिंहल में  ३२  अक्षर अ, आ, ऍ, ऐ, इ, ई, उ, ऊ, ऒ, ओ, ऎ, ए क, ग ज ट ड ण त द न प ब म य र ल व स ह क्ष तथा अं हैं। सिंहल के प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ सिदत्संगरा (Sidatsan̆garā (१३०० ए डी)) के अनुसार ऍ तथा ऐ - अ, तथा आ की ही मात्रा वृद्धि वाली मात्राएँ हैं। वर्तमान मिश्रित सिंहल ने अपनी वर्णमाला को न केवल पाली वर्णमाला के अक्षरों से समृद्ध कर लिया है, बल्कि संस्कृत वर्णमाला में भी जो और जितने अक्षर अधिक थे, उन सब को भी अपना लिया है। इस प्रकार वर्तमान मिश्रित सिंहल में अक्षरों की संख्या ५४ है। १८ अक्षर "स्वर" तथा शेष ३६ अक्षर  "व्यंजन" हैं। 

शब्द क्रम:
                    हिंदी और सिंहली दोनों में, शब्द क्रम कर्ता-कर्म-क्रिया या विषय-वस्तु-क्रिया (SOV सब्जेक्ट-ऑब्जेक्ट-वर्ब ) होता है, जो जापानी और कोरियाई जैसी कुछ अन्य एशियाई भाषाओं से साम्यता रखता है। 

वचन (संख्या भेद):
                    हिंदी, सिंहली और अंग्रेजी तीनों में  वचन दो (एकवचन और बहुवचन) होते हैं। संस्कृत में ३ वचन (एक वचन, द्वि वचन, तथा बहुवचन) होते हैं। 

काल:
                    हिंदी में ३ काल (वर्तमान, भूत और भविष्यत) होते हैं जबकि सिंहली में दो काल (वर्तमान तथा भूत) होते हैं। अंग्रेजी में ३ काल प्रेजेंट, पास्ट और फ्यूचर (Present-Past-Future)  होते हैं। 

लिंग:
                    हिंदी और शुद्ध सिंहल दोनों में दो लिंग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होते हैं। संकृत में ३ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसक लिंग हॉटे हैं जबकि अंग्रेजी में ४ लिंग स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, उभय लिंग और नपुंसक (फेमिनाइन, मैसक्यूलाइन, कॉमन और न्यूट्रल जेंडर) लिंग होते हैं। हिंदी का लिंगभेद समझना अहिंदीभाषियों के लिए कठिन है किंतु सिंहल भाषा इस दृष्टि से सरल है। वहाँ "अच्छा" शब्द के समानार्थी "होंद" शब्द का प्रयोग  "लड़का" तथा "लड़की" दोनों के लिए होता है।

पुरुष: 
                    हिंदी और सिंहल दोनों  में तीन पुरुष- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष तथा उत्तम पुरुष। तीनों पुरुषों में व्यवहृत होने वाले सर्वनामों के आठ कारक हैं, जिनकी अपनी-अपनी विभक्तियाँ हैं। "कर्म" के बाद प्राय: "करण" कारक की गिनती होती है, किंतु सिंहल के आठ कारकों में "कर्म" तथा "करण" के बीच में "कर्तृ" कारक है। "संबोधन" कारक नहीं होने से "कर्तृ" कारक के बावजूद ८ कारक हैं। 

क्रिया:

                    सिंहल व्याकरण अधिकांश बातों में संस्कृत तथा हिंदी के समान है किंतु उसमें संस्कृत की तरह न तो  "परस्मैपद" तथा "आत्मनेपद" हैं, न ही लट्, लोट् आदि दस लकार। सिंहल में क्रियाओं के आठ प्रकार कर्ता कारक क्रिया, कर्म कारक क्रिया, प्रयोज्य क्रिया, विधि क्रिया, आशीर्वाद क्रिया, असंभाव्य, पूर्व क्रिया तथा मिश्र क्रिया हैं। 

संधि:

                    शुद्ध सिंहल में संधियों के दस प्रकार हैं। आधुनिक सिंहल में संस्कृत शब्दों की संधि अथवा संधिच्छेद संस्कृत व्याकरणों के नियमों के अनुसार किया जाता है। "एकाक्षर" अथवा "अनेकाक्षरों" के समूह पदों को भी संस्कृत की ही तरह चार भागों में विभक्त किया जाता है - नामय, आख्यात, उपसर्ग तथा निपात। सिंहल में हिंदी की ही तरह दो वचन (एकवचन" तथा "बहुवचन") हैं, संस्कृत की तरह "द्विवचन" नहीं है। 

मुहावरे, लोकोक्तियाँ:

                    प्रत्येक भाषा के मुहावरे उसके अपने होते हैं। दूसरी भाषाओं में उनके ठीक-ठीक पर्याय खोजना व्यर्थ की कसरत है। अनुभव साम्य के कारण दो भिन्न जातियों द्वारा बोली जाने वाली दो भिन्न भाषाओं में एक जैसी मिलती-जुलती कहावतें उपलब्ध हो सकती हैं। सिंहल तथा हिंदी के कुछ मुहावरों तथा कहावतों में एकरूपता होते हुए भी अधिकतर भिन्नता है। 

सिंहली मुहावरे 

मुहावराहिंदी अनुवादअर्थ
इंगुरू दीला मिरिस गत्था वेज जैसे अदरक की जगह मिर्च लेना किसी बुरी चीज़ से छुटकारा पाने के बाद, उससे भी बुरी चीज़ मिलती है।
रावुलाई केंदई देकामा बेरागन्ना बाए कोई भी व्यक्ति अपनी मूछों पर दलिया लगे बिना इसे पी नहीं सकता।ऐसी स्थिति जहाँ दो विकल्प समान रूप से महत्वपूर्ण हों।
वेराडी गहाता केतुवे गलत पेड़ पर चोंच मार दी।कठिन कार्य करने के प्रयास में मुसीबत में पड़ जाना।
हिसाराधेता कोट्टे मारु काला वेगी सिर दर्द से छुटकारा पाने के लिए तकिया बदलना।किसी समस्या का वास्तविक कारण ढूंढकर उसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिए।
गंगाता केपु इनि वेज जैसे बाड़ के खंभे काटकर उन्हें नदी में फेंक देना।ऐसे व्यर्थ कार्यों करना जिनसे कोई लाभ या प्रतिफल नहीं मिला है।
जिया लूला महा एका लू जो मछली आपके हाथ से बच निकली है वह सबसे बड़ी है।एक बड़े अवसर के नुकसान का वर्णन करता है।
गहाता पोत्था वेगी एक दूसरे के उतने ही करीब जितने पेड़ की छाल तने के करीब होती है।वास्तव में करीबी दोस्तों/लोगों का वर्णन करता है।
मिति थेनिन वाथुरा बहिनावा पानी सबसे निचले बिंदु से नीचे की ओर बहता है।जब गरीब और निर्दोष लोगों के साथ दूसरों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता है।
अनुंगे मगुल दाता थमांगे अडारे पेनवन्ना वेगी जैसे वह व्यक्ति जो किसी दूसरे की शादी में अपना आतिथ्य दिखाता है।जब कोई व्यक्ति किसी विशेष अनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाता है, और उसका श्रेय लेने का प्रयास करता है।
कटुगाले पिपुनु माला वेगी उस फूल की तरह जो झाड़ियों के बीच खिलता है।आमतौर पर यह उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जो भ्रष्ट और अनैतिक लोगों से घिरे होने पर भी धर्मी बना रहता है।
एंजेय इंदन काना कनवालु सींग पर बैठकर कान से भोजन लेना।साथ रहते हुए भी चोट पहुँचाना या फायदा उठाना।
मिते उन कुरुल्ला अरला गाहे उन कुरुल्ला अल्लीमाता गिया वेगी हाथ में लिए पक्षी को छोड़कर पेड़ पर चढ़े हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश करना।हाथ में एक पक्षी जंगल में दो पक्षियों से बेहतर है।
ओरुवा पेरलुना पिटा होंडाई कीवा वेगी जैसे यह कहना कि नाव पलटने पर नीचे का हिस्सा बेहतर होता है।जब कोई व्यक्ति बुरी परिस्थिति में भी उजला पक्ष देखने का प्रयास करता है।
एंजें अतायक गन्नावा वेगी जैसे किसी के शरीर से हड्डी मांगना।जब कोई व्यक्ति किसी का उपकार करने में बहुत अनिच्छुक हो।
अल्लापु अट्ठथ न, पया गहापु अथथथ न हाथ में पकड़ी शाखा तथा जिस शाखा पर पैर टिके हों, दोनों को खोना।जब कोई व्यक्ति अधिक पाने की कोशिश करता है और अंत में वह सब खो देता है जो उसके पास पहले से था।
आनंदी हाथ देनागे केंदा हलिया वागेई सात अण्डीयों के कुन्जी (दलिया) के बर्तन की तरह।हर व्यक्ति योगदान देने की बात कहे लेकिन वास्तव में कोई भी योगदान न करे। 
बलालुन लावा कोस अता बावा वेगी बिल्लियों से भुने हुए जैक बीजों को आग से बाहर निकालने को कहना।जब किसी व्यक्ति का उपयोग किसी अन्य के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
यकाता बया नाम सोहोने गेवल हदन्ने हेहे जो लोग शैतान से डरते हैं वे कब्रिस्तान पर घर नहीं बनाएंगे।यदि आप किसी चीज़ से डरते हैं, तो आप जानबूझकर खुद को उसके दायरे में नहीं रखेंगे।

सिंहली कहावतें

कहावतअंग्रेजी अनुवादअर्थ
पिरुनु काले दिया नोसेले पानी भरा बर्तन हिलाने पर आवाज नहीं करता।जिन्हें कम जानकारी है वे बहुत अधिक बोलते हैं, जबकि जिन्हें अच्छी जानकारी है वे चुप रहते हैं।
उगुराता होरा बेहेथ गन्ना बा गले को बताए बिना दवा नहीं निगल सकते।आप अपने आप से सच्चाई नहीं छिपा सकते।
उदा पन्नोथ बीमा वटेलु उत्थान के बाद पतन अवश्यंभावी है।जो चीज ऊपर उठी है , उसे अंततः नीचे गिरना ही होगा।
उनाहापुलुवेगे पतिया उता मानिकक लू लोरिस का बच्चा उसके लिए एक रत्न है एक व्यक्ति के लिए बेकार चीज़ दूसरे के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती है।
अथथिन अट्ठथा पनीना कुरुल्ला थीमी नासी जो पक्षी वर्षा से बचने हेतु एक डालसे दूसरी डाल पर कूदता है, ठंड से मर जाता है।पक्ष बदलना या लगातार किसी समस्या से भागना आपको दीर्घकाल में नुकसान पहुँचाएगा।
अंदायाता मोना पाहन एलियादा अंधे आदमी के लिए दीपक किस काम का?लोगों को ऐसी चीजें न दें जिनका वे उपयोग न कर सकें।
हदीसियता कोरोस कटेथ अथलंता बारिलु जल्दबाजी में कोई व्यक्ति अपना हाथ मिट्टी के बर्तन में भी नहीं डाल सकता।जल्दबाजी और जल्दबाजी में काम करने से आप साधारण चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं।
काना कोकागे सुदा पेनेने इगिलुनामालु सारस की सफेदी केवल तभी दिखाई देती है जब वह उड़ता है।लोगों को किसी चीज़ का मूल्य तभी पता चलता है जब वह चली जाती है।
गिनिपेनेलेन बटाकापू मिनिहा कानामादिरी एलियाथ बययी लूजो व्यक्ति आग की लपटों से मारा गया हो, वह जुगनू की रोशनी से भी डरता है।जब कोई व्यक्ति किसी दर्दनाक अनुभव से गुजरता है, तो वह हर उस चीज से बचने की कोशिश करता है जो उस अनुभव से थोड़ी भी मिलती-जुलती हो।
जिया हकुराता नादान्ने, थियेना हकुरा राकागन्ने खोए हुए गुड़ के टुकड़े पर शोक किए बिना बचे हुए गुड़ के टुकड़े को बचाकर रखना ।किसी भी नुकसान की स्थिति में आगे बढ़ना सीखना चाहिए।
राए वेतुनु वलेह दवल वतेन्ने नै जो आदमी रात को गड्ढे में गिर गया, वह दिन के उजाले में फिर उसमें नहीं गिरता।लोगों को अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।
पाला अथि गहे कोई साथथ वाहनवालु एक फलदार वृक्ष हर प्रकार के जीव को आकर्षित करता है।सफलता और धन कई लोगों को आकर्षित करते हैं।
थलेना याकदे दुतुवामा अचारिया उडा पाना पाना थलानावालु लोहार को लचीला लोहा मिल जाए तो वह अपना हथौड़ा नीचे लाने के लिए खुशी से उछल पड़ता है।जितना अधिक कोई झुकता है, उतना ही अधिक उसे पीटा जाता है।

कुछ प्रमुख सिंहल शब्द और उनके हिंदी पर्यायवाची  

गिया -- गया
यायी -- जायेगा
अवे -- आया
मम -- मैं
ओहु -- वह
अय -- वह
ओय -- तुम
 -- यह
ओयाघे -- तुम्हारा धन्यवाद
सुदु -- सफेद
सीनि -- चीनी
हिना वेनवा -- हँसना
हितनवा -- सोचना
सीय -- सौ
सिंहय -- शेर
सेप -- स्वास्थ्य
सेकय -- संदेह
सम -- समान
सपत्तुव -- जूता
सत्यय -- सत्य
सतिय -- सप्ताह
मून्न -- चेहरा
मिहिरि -- मीठा
मिनिसा -- मनुष्य
मिट्टि -- छोटा
मामा -- मामा
माल्लुवा -- मछली
मासय -- मास
मन -- मन
हिम -- बर्फ
सिहिनय -- सपना
सुलंग -- हवा
मल -- गन्दगी
मरनवा -- मारना
मरन्नय -- मृत्यु
अवुरुद्द -- वर्ष
सामय -- शान्ति
रूपय -- सुन्दरता
रोगय -- रोग
रोहल -- अस्पताल
रुवन -- रत्न
रिदी -- चाँदी
रेय -- रात
रहस -- रहस्य
रस्ने -- गरम
रस्नय -- गर्मी
रिदेनवा -- चोट पहुँचाना
रॅय -- रात
रहस -- रहस्य
रसने -- गरम
रसनय -- गरमी
रतु -- लाल
रजय -- सरकार
रज -- राजा
रट -- विदेश
रट -- देश
ओबनवा -- प्रेस
ओककोम -- सब
एळिय -- प्रकाश
एया -- वह
एनवा -- आना
ऋतुव -- ऋतु
ऋण -- ऋण
उयनवा -- खाना बनाना
ईये -- कल
ईलन्गट -- बाद में
ईय -- तीर
ॲनुम अरिनवा -- जम्हाई लेना
ॲत -- दूर
इरनवा -- देखा
ऍस कण्णडिय -- चश्मा

ऍन्गिलल -- अंगुलू
सेनसुरादा -- शनिवार
सिकुरादा -- शुक्रवार
ब्रहसपतिनदा -- गुरुवार
ब्रदादा -- बुधवार
अन्गहरुवादा -- मंगलवार
सन्दुदा -- सोमवार
इरिदा -- रविवार
देसॅमबरय -- दिसम्बर
नोवॅमबरय -- नवम्बर
ओकतोबरय -- अक्टूबर
सॅपतॅमबरय -- सितम्बर
अगोसतुव -- अगस्त
जूलि -- जुलाई
जूनि -- जून
मॅयि -- मई
अप्रियेल -- अप्रैल
मारतुव -- मार्च
पेबरवारिय -- फरवरी
जनवारिय -- जनवरी
चूटि -- छोटा
गहनवा -- पीटना
गल -- पत्थर
गननवा -- लेना
गन्ग -- नदी
क्रीडव -- खेल
कोपि -- कॉफी
केटि -- छोटा
कुससिय -- रसोईघर
कुलिय -- वेतन
कुरुलला -- पक्षी
किकिळी -- मुर्गी
कट -- मुँह
कतुर -- कैंची
आता -- दादा
आच्ची -- दादी
सिंहल -- सिंहली
गम -- गाँव
मिनिहा -- आदमी
मिनिससु -- मनुष्य
हरिय -- क्षेत्र
कोयि -- कौन सा
पलात -- प्रान्त
दकुण्उ -- दक्षिण
उपन गम -- जन्मस्थान
नमुत -- लेकिन
पदिंcइय -- निवासी
कोहे -- कहाँ
ने -- ऐसा है या नहीं?
आयुबोवन -- Hello
नम -- नाम
सुब उपनदिनयक -- शुभ जन्मदिन
दननवा -- जानना
मतकय -- स्मृति
मतक वेनवा -- याद करना
कोलल -- बालक
केलल -- स्त्री
लोकु -- लम्बा
लससण -- सुन्दर
दत -- दाँत
दत -- दाँत
दिव -- जीभ
गसनवा -- beat
गॅयुव -- गाया
गयनवा -- गाना
हदवत -- हृदय
कपनवा -- काटना
कॅपुव -- काटा
कोन्द -- बाल
पोड्इ -- तुच्छ
रिदेनव -- hurt
ककुल -- पाँव
ऍस -- आँख
कन -- कान

ऍन्ग -- शरीर
कोनन्द -- पीठ
बलला -- कुत्ता
गिया -- जाना (perfect)
इससर -- पहले
नपुरु -- निर्दयी
पोहोसती -- धनी स्त्री
पोहोसता -- धनी पुरुष
पोहोसत -- धनी
तर -- मजबूत
तद -- कठिन
नव -- आधुनिक
ऍयि -- क्यों
कवद -- कौन
अद -- आज
मगे -- खान
ऊरो -- सूअर
ऊरु मस -- सूअर का मांस
ऊरा -- सूअर
उण -- ज्वर
गेवल -- घर
गेय -- घर
वॅड करनवा -- काम करनाकार्य
वॅड -- कार्य
देवल -- वस्तुएँ
देय -- वस्तु
देननु -- गायें
देन -- गाय
अशवयो -- घोड़े
अशवय -- घोड़ा
कपुटो -- कौवे
कपुट -- कौवा
दिविया -- चीता
बोहोम सतुतियि -- बहुत-बहुत धन्यवाद
करुणाकर -- कृपया
ओवु -- हाँ
एकदाह -- हजार
एकसीय -- सौ
दहय -- दस
नवय -- नौ
अट -- आठ
हत -- सात
हय -- छ:
पह -- पाँच
हतर -- चार
तुन -- तीन
देक -- दो
इर -- सूर्य
वन्दुरा -- बन्दर
नॅवत हमुवेमु -- अलविदा
सललि -- धन
वॅसस -- वर्षा
वहिनवा -- बरसना (वर्षा होना) पिहिय -- चाकू
हॅनद -- चम्मच
लियुम -- पत्र
कनतोरुव -- कार्यालय
तॅPआआEल -- डाकघर
यवननवा -- भेजना
पनसल -- मन्दिर
आदरय -- प्यार
गोविपळअ -- खेत
मेसय (न.) -- मेज
मेहे -- यहाँ
काल -- चौथाई
कालय -- समय
कल -- समय
कोच्चर -- कितना देर
ओया -- तुम
इननवा -- होना
होन्द -- अच्छा
इसतुति -- धन्यवाद
सनीप -- स्वास्थ्य
सॅप -- स्वास्थ्य

नगरय -- शहर
अपिरिसिदु -- गन्दा
पिरिसिदु वेनवा -- साफ होना
पिरिसिदु करनवा -- साफ
पिरिसिदु -- साफ करना
यट -- नीचे
कलिन -- पहले
नरक -- बुरा
ळदरुवा -- बच्चा
नॅनद -- चाची
सतुन -- जानवर
सह -- और
पिळितुर -- उत्तर
अतर -- के बीच में
तनिव -- अकेले
अवसर दिम -- अनुमति देना
सियलल -- सब
वातय -- हवा
एकन्गयि -- सहमत हुआ
कलहख़कर -- आक्रामक
वयस -- आयु
विरुदडव -- विरुद्ध
नॅवत -- पुन:
पसुव -- बाद में
अहसयानय -- वायुयान
वॅड्इहिति -- वयस्क
लिपिनय -- पता
हरहा -- आर-पार
अनतुर -- दुर्घटना
पिळिगननवा -- स्वीकार करना
पिटरट -- बाहर
उड -- उपर
करनवा -- काम करना
ओळूव -- सिर
मललि -- छोटा भाई
नंगि -- छोटी बहन
अकका -- बड़ी बहन
अयया -- बड़ा भाई
मेसय -- मेज
बत -- उबला चावल
हरि -- ठीक है
हरि -- बहुत
नॅहॅ -- नहीं
मोककद -- क्या
अममा -- माँ
दुवनव -- दौड़ना
गेदर -- घर
लोकु मीया -- चूहा
मीया -- चूहा
उड -- के उपर
इरिदा -- रविवार
एक -- यह
एक -- एक
एपा -- नहीं
दोर -- दरवाजा
वहनवा -- बन्द करना
पोत -- पुस्तक
इकमन -- तेज
कनवा -- खाना
अत -- भुजा
मल -- फूल
वतुर -- पानी
ले -- रक्त
किरि -- दूध
अपि -- हम लोग
मम -- मै
यनवा -- जाना
मोकक्द -- क्या
कीयद -- कितना
कोहेन्द 

 भाषिक साम्य 


सिंहली और भारतीय भाषाओं में पर्याप्त साम्य है।  


हिंदी-सिंहली

मैं आया = मामा आवेमी।  

हम आये = अपी आवेमु 

तू आया = नुम्बा आवेही।

तुम (बहुवचन) आए = नम्बला आवेहु।

आप (विनम्र, एकवचन) आए = ओबा आवेही।

आप (विनम्र, बहुवचन) आए = ओबाला आवेहु।

वह आया = ओहु आवेया।

वह आई = ईया आवाया।

वे आए = ओवुन आवोया.

मैं करता हूँ = मामा करामी/कर्णनेमि।

हम करते हैं = अपि करामु / करणनेमु।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

हिंदी : वचन देना 

सिंहली : वचन (याक) दीमा। 

बंगाली और सिंहली 

                    बंगाली और सिंहली दोनों ही इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं। इसलिए इन दोनों भाषाओं में काफ़ी समानताएँ हैं। कोई इनमें से एक भाषा जानता हो तो वह दूसरी भाषा आसानी से सीख सकता है।  

सिंहली 
मैंने किया = मामा कलेमी.

हमने किया = अपी कालेमु.

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = नुम्बा कलेही।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = नुम्बाला कलेहु।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = ओबा कालेही।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = ओबाला कालेहु।

उसने किया = ओहु कालेया.

उसने किया = ईया कलाया.

उन्होंने किया = ओवुन कालोया / कलहा।

बांग्ला 

मैंने किया = अमी कोरलाम.

हमने किया = अमरा कोरलाम.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुई कोर्ली।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तोरा कोर्ली।

आपने (अभद्र, एकवचन) किया = तुमी कोरले।

आपने (अभद्र, बहुवचन) किया = टॉमरा कोरले।

आपने (विनम्र, एकवचन) किया = अपनी कोरलेन।

आपने (विनम्र, बहुवचन) किया = अपनारा कोरलेन।

उसने / उसने किया = से कोर्लो।

उसने/उसने (विनम्र) किया = टिनी कोरलेन।

उन्होंने किया = तारा कोरलो.

सिंहली 

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

बांग्ला 

मैं करता हूँ = अमी कोरी.

हम करते हैं = अमरा कोरी.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तुई कोरिस।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तोरा कोरिस।

आप (अभद्र, एकवचन) करते हैं = तुमी कोरो।

आप (अभद्र, बहुवचन) करते हैं = तोमरा कोरो।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपनी कोरेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करते हैं = अपनारा कोरेन।

वह / वह करता है = से कोरे.

वह / वह (विनम्र) करता है = टिनी कोरेन।

वे करते हैं = तारा कोरे.

सिंहली 

मैं करूँगा = मामा करामी.

हम करेंगे = अपी करमु.

आप (एकवचन) करेंगे = ओबा / नुम्बा करन्नेही।

आप (बहुवचन) करेंगे = ओबाला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करेगा = ओहु कराई।

वह करेगी = ईया कराई।

वे करेंगे = ओवुन कराथी.

बांग्ला 

मैं करूँगा = अमी कोरबो.

हम करेंगे = अमरा कोरबो.

आप (अशिष्ट, एकवचन) करेंगे = तुई कोरबी।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोरा कोरबी।

आप (अभद्र, एकवचन) करेंगे = तुमी कोर्बे।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करेंगे = तोमरा कोर्बे।

आप (विनम्र, एकवचन) करेंगे = अपनी कोरबेन।

आप (विनम्र, बहुवचन) करेंगे = अपनारा कोरबेन।

वह / वह करेगा = से कोर्बे।

वह/वह (विनम्र) करेगा = टिनी कोरबेन।

वे करेंगे = तारा कोर्बे.

                    बंगाली में 'बा' ध्वनि को सिंहली में 'वा' ध्वनि से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। सिंहली भाषा में बंगा का उच्चारण वंगा होता है। शारीरिक भाग
                    शब्दों की अधिकांश समानताएँ स्पष्ट हैं और किसी विस्तार की आवश्यकता नहीं है। केश - केस, नाक - नासय, अक्षी - अस, मुख - मुकाय, जीव - दिवा, दथ - दथ, रिदोई - हरदय, हाथ - हाथ - अथ, अंगुल - अंगिली, लप - कुले - उकुले, पद - पाड़ा, लिंग - लिंग, देवियों - नारी - नारी, छोटा आदमी - बेटी मानुष - बेटी मिनिसा, लंबा आदमी - लोम्बा - लम्बायक जितना लंबा। इसके अलावा रक्थो का अर्थ लाल होता है और इसका तात्पर्य रक्त से है।

फल- 

                    आम - आंब - अंबा, बेल फल - बेल - बेली, अमरूद - पेरा - पेरा, गन्ना - आक - उक, अनानास - अन्नास - अन्नासी, केला - कोला - केसेल। यहां बंगाली व्यंजनों में से दो तीन सिंहली व्यंजनों के बीच दिखाई देते हैं और लेखक को छिपी हुई समानता का एहसास करने में कई साल लग गए क्योंकि कोला ध्वनि आपको पत्तियों या हरे रंग की ओर ले जाती है। स्टार फल - कबरंका - काबरंका। यह संयोग से था, जब मैंने कोलकाता में एक फुटपाथ विक्रेता को 'कबरंका, कबरंका' कहते सुना। इस गैर-व्यावसायिक, कुछ हद तक दुर्लभ फल को सिंहली शब्द से पुकारा जाना एक बड़ा आश्चर्य था।

खाद्य पदार्थ- 

                    चावल - भात - स्नान, खाना - कबेन - कन्ना, पानी - झोल - जलाया, लाल मिर्च - मोरिच - मिरिस, रोटी - रोटी, गिंगिली बॉल्स - थिला गुली - थाला गुली, कड़वा - थेथो - थिट्ठा, शराब - शरा - रा, आलू - आलू - आलु।  

स्थानों के नाम- 
                    निम्नलिखित स्थानों के नाम महानगर कोलकाता से हैं। रत्नों का मैदान - मानिकतला - मानिक थलावा, धर्म का मैदान - धर्मतला - धर्मतालवा, साल्ट लेक - नून पोकुर - लुनु पोकुना, नेशन लवर्स पार्क - देशप्रियो पार्क - देशप्रिया पार्क आदि। 

कैलेंडर/समय- 

                    चार ऋतुओं को ग्रिशमो-ग्रीष्मा, शोरोट-सारथ, शीथ-शीथा और बोसोन्टो-वसंथा कहा जाता है। सप्ताह के अंत में दिनों के बंगाली नाम 'बार' में होते हैं। ध्वनि 'बा' को सिंहली समकक्ष के लिए 'वा' से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए ताकि 'बार' 'वर' या 'वरया' या 'टर्न' हो। सोमवार से शुरू होने वाले दिनों के नाम हैं - रोबिबर - रविगेवरया, सोंबर, मोंगलबार - मंगलावरया, बुधबार - बदादा, बृहस्पतिबर - ब्रहस्पतिंडा, शुक्रोबर - सिकुराडा और शोनिबार - सेनासुरधा। नामों की ये दोनों सूची कुछ ग्रहों को संदर्भित करती हैं। एएम, पीएम - शोकले, विकले। रात्रि - रात्रि - रात्रि, शुभ रात्रि - शुबा रात्रि - सुबा रात्रिक।

तमिल और सिंहल 

                    तमिल और सिंहल दोनों में, वाक्यांश संरचना ज़्यादातर मामलों में काफी समान होती है। उदाहरण के लिए, "मैं भूखा हूँ" को "सिंहल" में "माता बदागिनी" और "तमिल" में "एनक्कु पासिक्कुथु" कहा जा सकता है। यहाँ "माता" का अर्थ "एनक्कु" और "बदागिनी" का अर्थ "पसिक्कुथु" है। कोई शिक्षक या दोस्त जब जवाब चाहता है, तो वह कहता है "कियान्ना बलन्ना", जिसका अनुवाद "सोली परपोम" है।"कियाला देनावादा" - "सोल्ली थरवा"। 

उड़िया और सिंहल  

मैंने किया = म्यू करिली.

हमने किया = अमे करिलु.

आपने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तू करिलु।

तुमने (अशिष्ट, एकवचन) किया = तुमे करीला।

आपने (अशिष्ट, बहुवचन) किया = तुमेमेन करीला। (संपादन सुझाएँ)

आपने (Polite) किया = अपोनो करिले. (संपादन सुझाएँ)

उसने / उसने किया = से करीला।

उसने / उसने (विनम्र) किया = से करिले।

उन्होंने किया = सेमेन कारिले.

सिंहली

मैं करता हूँ = मामा करामि (/करणनेमि)।

हम करते हैं = अपि करामु (/करणनेमु)।

आप (एकवचन) करते हैं = ओबा/नुम्बा करननेही।

आप (बहुवचन) करते हैं = ओबला / नुम्बाला करण्नेहु।

वह करता है = ओहू करै/करणेय।

वह करती है = ईया करै/करन्नेयया।

वे करते हैं = ओवुन कराथी / करन्नोया।

उड़िया  

मैं करता हूँ = मु करे.

हम करते हैं = अमे कारू।

आप (अशिष्ट, एकवचन) करते हैं = तू करु।

तुम (अशिष्ट, एकवचन) करते हो = तुमे कारा।

आप (अशिष्ट, बहुवचन) करते हैं = तुममेमने कारा।

आप (विनम्र, एकवचन) करते हैं = अपोनो कारंती।

वह / वह करता है = से करे।

वह/वह (विनम्र) करता है = से कारंति।

वे करते हैं = सेमने कारंती।

अन्य साम्यताएँ  
                    भारत और लंका में व्यक्तियों के नाम प्रसन्ना, महेंद्र, आदि एक जैसे हैं। सिंहली नाम "विजयरत्न" तमिल में "विजयरत्नम" हो जाता है। सिंहली लोग "भगवान कटारागामा" की पूजा करते हैं । भगवान कटारागामा को  "भगवान कंठस्वामी" के नाम से जाना जाता है, जो शिव के पुत्र हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही उनके अनुयायी हैं। बौद्ध सिंहली कोविल भी जाते हैं। 

                    
                    सिंहली भाषा में वाक्यांशों को “कर्ता-क्रिया-कर्ता” (अंग्रेजी में शब्द क्रम सख्त है) प्रारूप का पालन करना आवश्यक नहीं है।अंग्रेजी में, यदि आप कहते हैं “लड़के ने लड़की का पीछा किया”, और यदि आप एसवीओ से शब्दों के क्रम को पलट देते हैं, और इसे “लड़की ने लड़के का पीछा किया” लिखते हैं, तो विचार अलग होगा। सिंहल में SVO क्रम लचीला है। उदाहरण के लिए, "मामा अय्याता गहुवा (मैं, भाई को, मारो)" को "अय्याता, मामा, गहुवा" (भाई को, मैं, मारो) भी कहा जा सकता है। 

                    सिहली और तमिल संस्कृतियाँ मिलती-जुलती हैं। सिंहली महिलाएँ हल्के रंग की साड़ियाँ पहनती हैं, और तमिल महिलाएँ चटकीले और गहरे रंग की साड़ियाँ पहनती हैं। सिंहली और तमिल दोनों ही रूढ़िवादी हैंऔर उन्हें अपनी भाषा और इतिहास पर बहुत गर्व है। सिंहली और तमिल लोग एक जैसे दिखते हैं। 

                        सार यह कि दक्षिण भारतीयों और सिंहलियों में कई समानताएँ और असमानताएँ  हैं तथापि इस समूचे भूखंड के निवासियों की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और भाग्य साझा हैं। आधुनिक विश्व के फलक पर भारत और लंका का भविष्य भी एक समान रहना संभावित है। विश्व की महाशक्तियाँ भारत और अलंका को अलग-अलग करने  के कितने भी प्रयास कर लें, सफल नहीं हो सकेंगे। श्री लंका और भारत की सरकारें और राजनेता पारस्परिक हितों का संरक्षण करते हुए साझा उज्जवल भविष्य का निर्माण करने की दिशा में सक्रिय हैं। भारत और श्रीलंका के साहित्यकारों का दायित्व है कि वे समय की पुकार को सुनकर एक दूसरे के साथ मिलकर सारस्वत अनुष्ठानों को साकार करें और साझा साहित्य का सृजन करें। 

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संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन। जबलपुर ४८२००१, वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४