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शनिवार, 27 जुलाई 2019

बुंदेली फाग

सामयिक बुंदेली फाग:
दिल्ली के रंग
*
दिल्ली के रंग रँगो गुइयाँ।
जुलुस मिलें दिन-रैन, लगें नारे कई बार सुनो गुइयाँ।।
जे एन यू में बसो कनैया, उगले ज़हर बचो गुइयाँ।
संसद में कालिया कई, चक्कर में नाँय फँसो गुइयाँ।।
मम्मी-पप्पू की बलिहारी, माथा ठोंक हँसो गुइयाँ।।
छप्पन इंची छाती पंचर, सूजा लाओ सियों गुइयाँ।।
पैले आप-आप कर रए रे, छूटी ट्रेन न रो गुइयाँ।।
नेताजी खों दाँव चूक रओ, माया माँय धँसो गुइयाँ।।
थाना फुँका बता रईं ममता, अपराधी छूटो गुइयाँ।।
सुसमा-ईरानी जब बोलें, चुप्पै-चाप भगो गुइयाँ।।
***
२०.३.२०१६

रविवार, 19 नवंबर 2017

pad

एक पद-
अभी न दिन उठने के आये 
चार लोग जुट पायें देनें कंधा तब उठना है 
तब तक शब्द-सुमन शारद-पग में नित ही धरना है 
मिले प्रेरणा करूँ कल्पना ज्योति तिमिर सब हर ले 
मन मिथिलेश कभी हो पाए, सिया सुता बन वर ले
कांता हो कैकेयी सरीखी रण में प्राण बचाए
अपयश सहकर भी माया से मुक्त प्राण करवाए
श्वास-श्वास जय शब्द ब्रम्ह की हिंदी में गुंजाये
अभी न दिन उठने के आये

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

do pad

दो पद 
चंचल कान्हा, चपल राधिका, नाद-ताल सम, नाच नाचे 
रस-ली, जंग-जमुन सम लहर, संगम अद्भुत द्वैत तजे 
ब्रम्ह-जीव सम, हाँ-ना, ना हाँ, देखें सुर-नर वेणु बजे  
नूपुर पग, पग-नूपुर, छू म छन, वर अद्वैत न तनिक लजे
श्री वीरेंद्र सिद्धराज के नृत्य पर 
***
नाद-ताल में, ताल नाद में, रास लास में, लास रास में 
भाव-भूमि पर, भूमि भाव पर, हास पीर में, पीर हास में 
बिंदु सिंधु मिल रेखा वर्तुल, प्रीत-रीत मिल, मीत! गीत बन 
खिल महकेंगे, महक खिलेंगे, नव प्रभात में, नव उजास ले 
***

शनिवार, 19 नवंबर 2016

काव्य वार्ता
नाम से, काम से प्यार कीजै सदा 
प्यार बिन जिंदगी-बंदगी कब हुई?        -संजीव्  
*
बन्दगी कब हुई प्यार बिन जिंदगी 
दिल्लगी बन गई आज दिल की लगी 
रंग तितली के जब रँग गयीं बेटियाँ 
जा छुपी शर्म से आड़ में सादगी            -मिथलेश 
*
छोड़ घर मंडियों में गयी सादगी 
भेड़िये मिल गए तो सिसकने लगी 
याद कर शक्ति निज जब लगी जूझने 
भीड़ तब दुम दबाकर खिसकने लगी    -संजीव्

एक दोहा 
शब्दसुमन को गूंथिए, ले भावों की डोर 
गीत माल तब ही बने, जब जुड़ जाएँ छोर
*
एक कुण्डलिनी 
मन मनमानी करे यदि, कस संकल्प नकेल 
मन को वश में कीजिए, खेल-खिलाएँ खेल 
खेल-खिलाएँ खेल, मेल बेमेल न करिए 
व्यर्थ न भरिए तेल, वर्तिका पहले धरिए 
तभी जलेगा दीप, भरेगा तम भी पानी
कसी नकेल न अगर, करेगा मन मनमानी

*
एक पद-
अभी न दिन उठने के आये 
चार लोग जुट पायें देनें कंधा तब उठना है 
तब तक शब्द-सुमन शारद-पग में नित ही धरना है 
मिले प्रेरणा करूँ कल्पना ज्योति तिमिर सब हर ले 
मन मिथिलेश कभी हो पाए, सिया सुता बन वर ले
कांता हो कैकेयी सरीखी रण में प्राण बचाए
अपयश सहकर भी माया से मुक्त प्राण करवाए
श्वास-श्वास जय शब्द ब्रम्ह की हिंदी में गुंजाये
अभी न दिन उठने के आये

*
दो दोहे 
उसके हुए मुरीद हम, जिसको हमसे आस 
प्यास प्यास से तृप्त हो, करे रास संग रास

मन बिन मन उन्मन हुआ, मन से मन को चैन 
मन में बस कर हो गया, मनबसिया बेचैन
*

दोहा-मुक्तक 
मुक्तक 
मन पर वश किसका चला ?
किसका मन है मौन?
परवश होकर भी नहीं 
परवश कही कौन?
*
संयम मन को वश करे,
जड़ का मन है मौन
परवश होकर भी नहीं
वश में पर के भौन
*

मुक्तिका 
*
पहले कहते हैं आभार 
फिर भारी कह रहे उतार 
*
सबसे आगे हुए खड़े 
कहते दिखती नहीं कतार 
*
फट-फट कार चलाती वे 
जो खुद को कहतीं बेकार 
*
सर पर कार न धरते क्यों 
जो कहते खुद को सरकार? 
*
असरदार से शिकवा क्यों?
अ सरदार है गर सरदार 
*
छोड़ न पाते हैं घर-द्वार
कहते जाना है हरि-द्वार 
*
'मिथ' का 'लेश' नहीं पाया 
थे मिथलेश प्रगट साकार 
***

मुक्तिका 
*
पहले कहते हैं आभार 
फिर भारी कह रहे उतार 
*
सबसे आगे हुए खड़े 
कहते दिखती नहीं कतार 
*
फट-फट कार चलाती वे 
जो खुद को कहतीं बेकार 
*
सर पर कार न धरते क्यों 
जो कहते खुद को सरकार? 
*
असरदार से शिकवा क्यों?
अ सरदार है गर सरदार 
*
छोड़ न पाते हैं घर-द्वार
कहते जाना है हरि-द्वार 
*
'मिथ' का 'लेश' नहीं पाया 
जब मिथलेश हुई साकार 
***

मुक्तिका
*
जीने से मत डरना तुम
जीते जी मत मरना तुम
*
मन की पीड़ा कह-कहकर
पीर नहीं कम करना तुम
*
कदम-कदम चल-गिर-उठकर
मंजिल अपनी वरना तुम
*
श्रम-गंगा में नहा-नहा
तार जगत को तरना तुम
*
फूल-फलो जब-जब, तब-तब
बिन भूले नित झरना तुम

***

सोमवार, 13 सितंबर 2010

तीन पद: ---- संजीव 'सलिल'

तीन पद:                                                                                                   
                                                                                                     संजीव 'सलिल'
*
धर्म की, कर्म की भूमि है भारत,
     नेह निबाहिबो हिरदै को भात है.
          रंगी तिरंगी पताका मनोहर-
               फर-फर अम्बर में फहरात है.
                    चाँदी सी चमचम रेवा है करधन,
                        शीश मुकुट नागराज सुहात है.
                            पाँव पखारे 'सलिल' रत्नाकर,
                                 रवि, ससि, तरे, शोभा बढ़ात है..
                                                                        *
नीम बिराजी हैं माता भवानी,
     बंसी लै कान्हा कदम्ब की छैयां.
          संकर बेल के पत्र बिराजे,
              तुलसी में सालिगराम रमैया.
                   सदा सुहागन अँगना की सोभा-
                        चम्पा, चमेली, जुही में जुन्हैया.
                             काम करे निष्काम संवरिया,
                                 नाचे नचा जगती को  नचैया..
                                                                      *
बाँह उठाय कहौं सच आपु सौं,
     भारत-सुत मैया गुन गाइहौं.
        स्वर्ग के सुख सब हेठे हैं छलिया.
            ध्याइहौं भारत भूमि को ध्याइहौं.
               जोग-संजोग-बिजोग हिये धरि,
                  सेस सन्जीवनि सौं सरसाइहौं.
                     जन-गण-मन के कारण पल में-
                         प्रान दे प्रान को मान बढ़ाइहौं..
                                                                    *
--- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम