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मंगलवार, 9 जून 2015

muktak: aansu -sanjiv

मुक्तक:
संजीव
*
आँसू-नहाओ तो 
दिल में बसाओ तो
कंकर से शंकर हो 
सर पर चढ़ाओ तो
*
आँसू नहीं नियम बंधन हैं  
आँसू नहीं प्रलय संगम हैं 
आँसू ममता स्नेह प्रेम हैं-
आँसू नहीं चरण-चुम्बन हैं 
*
आँसू ये अगड़े हैं, किंचित न पिछड़े हैं 
गीतों के मुखड़े हैं, दुनिया के दुखड़े हैं 
शबनम के कतरे हैं, कविता की सतरें हैं 
ग़ज़लों की बहरें हैं, सागर से गहरे हैं 
*
चंद पल आँसू बहाकर भूल जाते हैं 
गलत है आरोप, हम गंगा नहाते हैं 
श्राद्ध करते ले ह्रदय के भाव अँजुरी में- 
चादरें सुधियों की चुप मन में तहाते हैं 
शक न उल्फत पर हुआ विश्वास पर शक आपको.
हौसलों पर शक नहीं है, ख्वाब पर शक आपको..
त्रास को करते पराजित, प्रयासों का साथ दे-
आँसुओं पर है भरोसा, हास पर शक आपको..
*

सोमवार, 18 जुलाई 2011

कविता : -- संजीव 'सलिल'

कविता
संजीव 'सलिल'
*
युग को सच्चाई का दर्पण, हर युग में दिखाती चले कविता.
दिल की दुनिया में पलती रहे, नव युग को बनाती पले कविता..
सूरज की किरणों संग जागे, शशि-किरणों संग ढले कविता.
योगी, सौतन, बलिदानी में, बन मन की ज्वाल जले कविता.
*