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सोमवार, 1 नवंबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : २० संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : २०
         
संजीव 'सलिल' 
*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.      
'अग' से प्रारंभ शब्द : ७.
संजीव 'सलिल'
*
अग्रांश/अग्रान्श- पु. सं. देखें अग्रभाग.
अग्रांशु/अग्रान्शु- पु. सं. केन्द्रीय बिंदु, धुरी.
अग्राक्षण-पु./अग्राक्षि-स्त्री. - सं. कटाक्ष, तिरछी चितवन.
अग्राणीक/आग्रानीक- पु. सं. सेना का आगे जानेवाला भाग.
अग्राम्य-वि. सं. जो देहाती न हो, नागर, नगरीय, नगर का, श्री, शहर का, जो पालतू न हो, जंगली, वन्य.
अग्राशन- पु. सं. भोजन से देवता, पितरों या गऊ के निमित्त निकाला जानेवाला अंश.
अग्रासन- पु. सं. सम्मान का आसान/स्थान.
अग्राह्य- वि. सं. ग्रहण न करने योग्य, त्याज्य, अविचारणीय, अविश्वसनीय.-व्यक्ति-पु. किसी देश का राजदूत/राजपुरुष/अन्य व्यक्ति जो अन्य देश को मान्य/ग्राह्य/स्वीकार्य न हो, परसोना नों ग्रेटा इ., अमान्य/अग्राह्य/अस्वीकार्य  व्यक्ति.
अग्राह्या- वि. सं. ग्रहण न करने योग्य, त्याज्य स्त्री, शौचादि के काम आनेवाली मिट्टी, उपयोग न की जा सकनेवाली मिट्टी.
अग्रिम- वि. सं. पहला, अगला, श्रेष्ठ, उत्तम, पेशगी, आगामी, सबसे बड़ा. पु. सबसे बड़ा भाई.-धन-पु. एडवांस, वेतन/पारिश्रमिक/मूल्य का नियत तिथि/समय से पहले दिया गया अंश.
अग्रिम देय धन- पु. कार्य विशेष पर व्यय पहले से हेतु दिया गया धन जिसका समायोजन कार्य होने के बाद किया जाए, बयाना,पेशगी, इम्प्रेस्ट मनी इ.
अग्रिमा- स्त्री. सं. ग्रीष्मजा/लोणा नामक फल/वृक्ष.
अग्रिय-वि. सं. श्रेष्ठ, उत्तम.पु. बड़ा भाई, पहले लगनेवाले फल.
अग्रेदिधिशु- पु. सं. पूर्व विवाहित स्त्री से विवाह करनेवाला द्विज.
अग्रेदिधिषू- स्त्री. सं. वह विवाहिता स्त्री जिसकी बड़े बहिन अविवाहिता हो.
अग्रेमूल्य- पु. भविष्य में बिकनेवाली वस्तु का वर्तमान में लगाया गया मूल्य.
अग्रेसर पु./अग्रेसरी स्त्री.- वि. सं. आगे जानेवाला/वाली, अगुआ, नायक-नायिका.
अग्रेसरिक- पु. सं. नेता/स्वामी.मालिक के आगे जानेवाला नौकर.
अग्रय- वि सं. जो सबसे आगे हो, श्रेष्ठ, कुशल, योग्य. पु. बड़ा भाई, मकान की छत.
                                                                                  -निरंतर ....

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : २०          
संजीव 'सलिल'*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.      
'अग' से प्रारंभ शब्द : ७.
संजीव 'सलिल'*
अग्निक- पु. सं. इंद्रगोप, बीरबहूटी, एक पौधा, साँप की एक जाति.
अग्निमान/मत- पु. सं. विधि अनुसार अग्न्याधान करनेवाला द्विज, अग्निहोत्री.
अग्नीध्र- पु. सं. यज्ञाग्नि जलानेवाला ऋत्विक, ब्रम्हा, यज्ञ, होम, स्वायंभुव मनु का एक पुत्र.  
अग्न्यगार/अग्न्यागार- पु. सं. यज्ञाग्नि रखने का स्थान.
अग्न्यस्त्र/अग्न्यास्त्र- पु. सं. मन्त्रप्रेरित बाण/तीर जिससे आग निकले, अग्निचालित अस्त्र बंदूक, रायफल इ.,तमंचा, पिस्तौल इ., तोप, मिसाइल आदि.
अग्न्याधा- पु.सं. वेद मन्त्र द्वारा अग्नि की स्थापना, अग्निहोत्र.
अग्न्यालय- पु. सं. देखें अग्न्यागार.
अग्न्याशय- पु. सं. जठराग्नि का स्थान.
अग्न्याहित- पु. सं. अग्निहोत्री, साग्निक.
अग्न्युत्पात- पु. सं. अग्निकाण्ड, उल्कापात.
अग्न्युत्सादी/दिन- वि. सं. यज्ञाग्नि को बुझने देनेवाला.
अग्न्युद्धार- पु. सं. दो अरणिकाष्ठों को रगड़कर अग्नि उत्पन्न करना.  
अग्न्युपस्थान- पु.सं. अग्निहोत्र के अंत में होनेवाली पूजा/मन्त्र.
अग्य- वि. स्त्री. दे. देखें अज्ञ.
अग्या/आग्या- स्त्री. दे. देखें आज्ञा.
अग्यारी- स्त्री. आग में गुड़/दशांग आदि डालना, अग्यारी-पात्र.
अग्र- वि. सं. अगला, पहला, मुख्य, अधिक. अ. आगे. पु. अगला भाग, नोक, शिखर, अपने वर्ग का सबसे अच्छा पदार्थ, बढ़-चढ़कर होना, उत्कर्ष, लक्ष्य आरंभ, एक तौल, आहार की के मात्रा, समूह, नायक.-कर-पु. हाथ का अगला हिस्सा, उँगली, पहली किरण,-- पु. नेता, नायक, मुखिया.-गण्य-वि. गिनते समय प्रथम, मुख्य, पहला.--गामी/मिन-वि. आगे चलनेवाला. पु. नायक, अगुआ, स्त्री. अग्रगामिनी.-दल-पु. फॉरवर्ड ब्लोक भारत का एक राजनैतिक दल जिसकी स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोसने की थी, सेना की अगली टुकड़ी,.--वि. पहले जन्मा हुआ, श्रेष्ठ. पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण, अगुआ.-जन्मा/जन्मन-पु. बड़ा भाई, ब्राम्हण.-जा-स्त्री. बड़ी बहिन.-जात/ जातक -पु. पहले जन्मा, पूर्व जन्म का.-जाति-स्त्री. ब्राम्हण.-जिव्हा-स्त्री. जीभ का अगला हिस्सा.-णी-वि. आगे चलनेवाला, प्रथम, श्रेष्ठ, उत्तम. पु. नेता, अगुआ, एक अग्नि.-तर-वि. और आगे का, कहे हुए के बाद का, फरदर इ.-दाय-अग्रिम देय, पहले दिया जानेवाला, बयाना, एडवांस, इम्प्रेस्ट मनी.-दानी/निन- पु. मृतकके निमित्त दिया पदार्थ/शूद्रका दान ग्रहण करनेवाला निम्न/पतित ब्राम्हण,-दूत- पु. पहले से  पहुँचकर किसी के आने की सूचना देनेवाला.-निरूपण- पु. भविष्य-कथन, भविष्यवाणी, भावी. -सुनहु भरत भावी प्रबल. राम.,-पर्णी/परनी-स्त्री. अजलोमा का वृक्ष.-पा- सबसे पहले पाने/पीनेवाला.-पाद- पाँव का अगला भाग, अँगूठा.-पूजा- स्त्री. सबसे पहले/सर्वाधिक पूजा/सम्मान.-पूज्य- वि. सबसे पहले/सर्वाधिक सम्मान.-प्रेषण-पु. देखें अग्रसारण.-प्रेषित-वि. पहले से भेजना, उच्चाधिकारी की ओर आगे भेजना, फॉरवर्डेड इ.-बीज- पु. वह वृक्ष जिसकी कलम/डाल काटकर लगाई जाए. वि. इस प्रकार जमनेवाला पौधा.-भाग-पु. प्रथम/श्रेष्ठ/सर्वाधिक/अगला भाग -अग्र भाग कौसल्याहि दीन्हा. राम., सिरा, नोक, श्राद्ध में पहले दी जानेवाली वस्तु.-भागी/गिन-वि. प्रथम भाग/सर्व प्रथम  पाने का अधिकारी.-भुक/-वि. पहले खानेवाला, देव-पिटर आदि को खिलाये बिना खानेवाला, पेटू.-भू/भूमि-स्त्री. लक्ष्य, माकन का सबसे ऊपर का भाग, छत.--महिषी-स्त्री. पटरानी, सबसे बड़ी पत्नि/महिला.-मांस-पु. हृदय/यकृत का रक रोग.-यान-पु. सेना की अगली टुकड़ी, शत्रु से लड़ने हेतु पहले जानेवाला सैन्यदल. वि. अग्रगामी.-यायी/यिन वि. आगे बढ़नेवाला, नेतृत्व करनेवाला-योधी/धिन-पु. सबसे आगे बढ़कर लड़नेवाला, प्रमुख योद्धा.-लेख- सबसे पहले/प्रमुखता से छपा लेख, सम्पादकीय, लीडिंग आर्टिकल इ.,-लोहिता-स्त्री. चिल्ली शाक.-वक्त्र-पु. चीर-फाड़ का एक औज़ार.-वर्ती/तिन-वि. आगे रहनेवाला.-शाला-स्त्री. ओसारा, सामने की परछी/बरामदा, फ्रंट वरांडा इं.-संधानी-स्त्री. कर्मलेखा, यम की वह पोथी/पुस्तक जिसमें जीवों के कर्मों का लिखे जाते हैं.-संध्या-स्त्री. प्रातःकाल/भोर.-सर-वि. पु. आगेजानेवाला, अग्रगामी, अगुआ, प्रमुख, स्त्री. अग्रसरी.-सारण-पु. आगे बढ़ाना, अपनेसे उच्च अधिकारी की ओर भेजना, अग्रप्रेषण.-सारा-स्त्री. पौधे का फलरहित सिरा.-सारित-वि. देखें अग्रप्रेषित.-सूची-स्त्री. सुई की नोक,  प्रारंभ में लगी सूची, अनुक्रमाणिका.-सोची-वि. समय से पहले/पूर्व सोचनेवाला, दूरदर्शी. -अग्रसोची सदा सुखी मुहा.,-स्थान-पहला/प्रथम स्थान.--हर-वि. प्रथम दीजानेवाली/देय वस्तु.-हस्त-पु. हाथ का अगला भाग, उँगली, हाथी की सूंड़  की नोक.-हायण-पु. अगहन माह,-हार-पु. राजा/राज्य की प्र से ब्राम्हण/विद्वान को निर्वाहनार्थ मिलनेवाला भूमिदान, विप्रदान हेतु खेत की उपज से निकाला हुआ अन्न.
अग्रजाधिकार- पु. देखें ज्येष्ठाधिकार.
अग्रतः/तस- अ. सं. आगे, पहले, आगेसे.
अग्रवाल- पु. वैश्यों का एक वर्गजाति, अगरवाल.
अग्रश/अग्रशस/अग्रशः-अ. सं. आरम्भ से ही.
अग्रह- पु.संस्कृत ग्रहण न करना, गृहहीन, वानप्रस्थ.              ----------निरंतर                                                                                                                 

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : १९ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ६. ---संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १९       संजीव 'सलिल'*
संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     
'अग' से प्रारंभ शब्द : ६.
संजीव 'सलिल'*
अग्नि - स्त्री. सं. आग, पंच महाभूतों/पंचतत्वों में से तेज तत्व, प्रकाश, उष्णता, गर्मी, गरमी, जठराग्नि, पित्त, अग्निकर्म जलने की क्रिया, सोना, ३ की संख्या (वैद्यक/आयुर्वेद के अनुसार अग्नि के ३ भेद: १. भौमाग्नि=काष्ठादि  से उत्पन्न, २. दिव्याग्नि = उल्का, विद्युत्, तड़ित आदि, ३. जठराग्नि = उदार/पेट में उत्पन्न अग्नि. कर्मकांड के अनुसार ३ अग्नियाँ: गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि. शरीरस्थ १० अग्नियाँ: भ्राजक, रंजक, क्लेदक, स्नेहक, धारक, बंधक, द्रावक,व्यापक, मापक, श्लेष्मक), चित्रक, नीबू, भिलावाँ,' र' का प्रतीक.-कण-पु. चिंगारी, चिन्गारी.-कर्म/कर्मन -पु. अग्निहोत्र, शवदाह, अंत्येष्टि, गर्म लोहे से दागना.-कला-स्त्री. अग्नि के दशविध अवयवों-वर्णों या मूर्तियों में से कोई एक.-काण्ड/कांड-पु.
आग लगाना, जलाना, आगजनी.-कारिका-स्त्री. 'अग्निदूतं पुरोदधे...' मन्त्र जिससे अग्न्याध्यान किया जाता है.-कार्य- पु. अग्नि में आहुति देना, लोहे से दागना, गर्म तेल आदि से अर्बुद/मस्से आदि को जलाना, देखें 'प्रतिसारण'.-काष्ठ- पु. अरणीकी लकड़ी.-कीट-पु. समंदर नामक कीड़ा.-कुण्ड/कुंड-पु. वेदी, हवनकुंड.-कुक्कुट-पु. लूका.-कुमार-पु. शिवके पुत्र कार्तिकेय, एक अग्निवर्धक रस. -कुल-पु.क्षत्रियों का एक वंश जिसकी उत्पत्ति अग्निकुंड से मान्य है: परमार, 
परिहार,चालुक्य/सोलंकी, चौहान/चव्हाण.-केतु-पु. धुआँ, शिव, रावण सेना के दो राक्षस जो राम द्वारा मारे गये थे.-कोण-पु., आग्नेय-पु.-दिक्/दिशा-स्त्री. पूर्व-दक्षिण का कोना,-क्रिया-स्त्री. शव का दाह, दागना.-क्रीड़ा-स्त्री. आतिशबाजी, रंग-बिरंगी विद्युत्-सज्जा, बिजली से सजावट.-गर्भ- वि.जिसके अन्दर आग हो, जिससे आग उत्पन्न हो. पु. अरनी, सूर्यकांत मणि, आतिशी शीशा. -पर्वत-पु. ज्वालामुखी पहाड़,.-गर्भा-स्त्री. शमी वृक्ष, महाज्योतिष्मती लता, पृथ्वी.-गृह-पु.होमाग्नि रखने का स्थान.-चक्र-शरीर के अन्दर के ६ चक्रों में से एक योग.-चय/चयन- पु. अग्न्याधान/अग्न्याधान करने का मन्त्र,-चित-अग्निहोत्री,-/जन्/जन्मा/जात-पु. अग्निजार वृक्ष, सुवर्ष, कार्तिकेय, विष्णु.वि. अग्नि से उत्पन्न, अग्नि उत्पन्न करनेवाला/अग्निद, पाचक.-जार/जा-पु.सिन्धुफला, गजपिप्पली का पेड़.-जिव्ह-पु. देवता, वाराह रूपधारी विष्णु, वि. अग्नि ही जिसकी जीभ है.-जिव्हा-स्त्री. आग की लपट, अग्नि की ७ जीभें काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता,धूम्रवर्णा, उग्रा, प्रदीप्ता, लांगली वृक्ष, जिसकी जीभ आग उगलती हो, जिसके बोलने से सुननेवाले को आग लगने की तरह प्रतीत हो.-जीवी/विन-पु. अग्नि के आधार पर काम करनेवाला/जिसका काम बिना अग्नि के न हो सके-सुनार, लुहार, हलवाई आदि. -ज्वाल- पु. शिव.-ज्वाला-स्त्री.
आग की लपट, जलपिप्पली, घातकी.-टुंडावती-स्त्री. अजीर्ण दूर करने की एक गोली आयु.-तेजा/तेजस- वि. अग्नि सदृश तेजधारी.-त्रय- पु.-त्रेता/त्रयी- स्त्री. यथाविधि स्थापित ३ प्रकार की अग्नि गार्हपत्य, आहवनीय, रक्षित. -दंड- पु. आग में जलाने का दंड.-- पु. आग देने/लगाने वाला दाहक, जलानेवाला.-दग्ध-वि. चिता पर विधिवत जलाया गया.पु. एक पितृवर्ग.-दमनी-स्त्री. एक क्षुप.-दाता/तृ-पु. अंतिम कृत्य (दाहकर्म) करनेवाला. -दान-पु. जलाना, शवदाह,-दिव्य-पु.अग्निपरीक्षा,-दीपक-वि. पाचनशक्तिवर्धक,-दीपन-पु. जठराग्नि का दीपन, पाचनशक्ति की वृद्धि, पाचनशक्तिवर्धक औषधि. -दीप्ता- स्त्री. महाज्योतिष्मती लता.-दूत-पु. यज्ञ, यज्ञ में आवाहित देवता.-देव-अग्नि भगवान -'प्रगटे अगिनी देव चरु लीन्हें' राम.-देवा-स्त्री. कृत्तिका नक्षत्र.-धान- पवित्र अग्नि रखने का स्थान.-नक्षत्र-कृत्तिका नक्षत्र.-निर्यास- पु. अग्निजार वृक्ष.-नेत्र- पु. देवता मात्र.-पक्व-वि. आगपर पकाया हुआ.-पथ-पु. जलते अंगारे जिन पर भक्त चलते हैं, डॉ. हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कविता, अमिताभ बच्चन अभिनीत हिन्दी चलचित्र. 
-परिक्रिया-स्त्री. अग्निचर्या, होमादि करना.-परिगृह-पु. शास्त्रोक्त अग्नि को अखंड रखने का व्रत.-परिधान-पु. यज्ञाग्नि को परदेसे घेरना.-परीक्षा-स्त्री. अग्नि द्वारा परीक्षा,जलती आग या खौलते तेल से किसी के दोषी/
निर्दोष होने की जाँच, सोने-चाँदीआदि को आग में तपकर परखना, कठिन परीक्षा.-पर्वत-पु. ज्वालामुखी पहाड़ -पुराण-पु. महर्षि व्यास द्वारा लिखे गये १८ महापुराणों में
से एक जिसे अग्नि ने सर्वप्रथम वशिष्ठ ऋषि को सुनाया था.-पूजक-पु. आग की पूजा करनेवाला, पारसी.-प्रणयन-पु. अग्निहोत्रकी अग्नि का मन्त्रपूर्वक संस्कार करना.-प्रतिष्ठा-स्त्री. धार्मिक कृत्यों विशेषकर विवाह के अवसर पर अग्नि का आवाहन-पूजन.-प्रवेश-पु. आग में प्रवेश, स्त्री का पति की चिता में प्रवेश.-प्रस्तर-पु. चकमक पत्थर.-बाण- वह तीर जिससे आग की लपट निकले.बाहु-धुआँ, स्वायंभुव मनु का एक पुत्र.-बीज- सोना, 'र' अक्षर.--पु. सोना, कृत्तिका नक्षत्र. वि. अग्नि जैसा चमकनेवाला.-भक्षक/भक्षी-आग खानेवाला. -भू-पु.कार्तिकेय.-भूति-अंतिम तीर्थ करके लौटे ११ शिष्यों में से एक.-मंथ/मंथन-अरणी से रगड़कर आग उत्पन्न करना/इस हेतु प्रयुक्त मंत्र, गनयारी का पेड़.-मथ-पु. अरनी की दो टहनियों से रगड़कर आग उत्पन्न करनेवाला याज्ञिक, अग्निमंथनका मंत्र. अरणीकी लकड़ी.-मणि- पु. सूर्यकांत मणि, आतिशी शीशा.-मान्द्य-पु. जठराग्नि का मंद हो जाना, मन्दाग्नि, हाजमें की खराबी.-मारुति-पु. अगस्त्य ऋषि.-मित्र-पु. शुंगवंशका एक राजा, पुष्यमित्र का बेटा.मिसाइल-स्त्री.भारत का  प्रक्षेपास्त्र जो सुदूर लक्ष्य का अचूक भेदन करने में सक्षम है.-मुख-ब्राम्हण, देवता, प्रेत, अग्निहोत्री, चीते का पेड़,
भिलावाँ, एक अग्निवर्धक चूर्ण.-मुखी-स्त्री. गायत्री मंत्र, भिलावाँ, पाकशाला.-युग-पु. ज्योतिष में मानेगये ५ युगों में से एक.-योजन-पु. अग्नि प्रज्वलित करने की क्रिया.-रंजक-वि. आग से मनोरंजन करनेवाला.-रंजन-आग से खेलकर मनोरंजन करने की कला.-रजा/रजस-पु. बीरबहूटी, वर्षाकाल के बाद हरी घास में मिलनेवाला लाल-मखमली कीड़ा, सोना.-रहस्य-पु. अग्नि की उपासना का रहस्य, शतपथ ब्राम्हण का दसवाँ काण्ड.-रक्षक-पु. आगसे बचानेवाला/लड़नेवाला, फायरफाइटर.-रुहा-स्त्री. मांसरोहिणी नामक पौधा,-रेता/रेतस-पु. सोना.-रोधक- पु. वि. वारक, आग से बचनेवाला, जिस पर आग असर न करे, फायरप्रूफ देखें अग्निसह.इ.-रोहिणी-स्त्री. काँख में
निकलनेवाला फोड़ा जिसमें ज्वर होता है, कँखौरी.-लिंग-पु. आग की लपट
देखकर शुभाशुभ बताने की विद्या.-लोक- पु. अग्निदेव का लोक.-वंश- पु. अग्निकुल.-वधु-स्त्री. स्वाहा.-वर्च/वर्चस-पु. अग्नि का तेज.-वर्ण-वि. अग्नि जैसे रंगवाला.-वर्णा-स्त्री. तेज शराब.-वर्धक/न-वि. पाचनशक्ति बढ़ानेवाला.-वर्षा- स्त्री. बंदूक की गोली, तोप के गोले, बम आदि लगातार गिरना/मिलना/पड़ना.-वल्लभ-पु. अग्निदेव, शाल वृक्ष, राल.-वारक-पु. वि. रोधक, आग से बचनेवाला, जिस पर आग असर न करे, फायरप्रूफ देखें अग्निसह.-वासा/सस-वि. अग्नितुल्य शुद्ध वस्त्रवाला, जो लाल कपड़े पहने हो.-वाह-धुआँ, बकरा.वि. अग्निवाहक.-वाहन- पु. बकरा.-बिंदु-चिंगारी.-विद-वि. अग्निहोत्र जाननेवाला, पु. अग्निहोत्री.-विद्या- स्त्री. अग्निहोत्र, आग से लड़ने/को
नियंत्रित करने की विद्या.-विसर्प-पु. अर्बुद/बवासीर रोगजनित जलन.-वीर्य-अग्नि जैसे तेजवाला. पु. अग्नि का तेज, सोना.-वेश-अग्नि जैसे तेजस्वी, एक आयुर्वेदाचार्य/प्राचीन ऋषि.-शर्मा/शर्मन-अति क्रोधी, एक ऋषि.-शामक दल-दमकल, अग्नि बुझानेवाला प्रशिक्षित दल.-शाला-स्त्री. अग्न्याधान का स्थान.-शिख-पु. कुसुम का वृक्ष, केसर, सोना, दीपक, बाण.-वि. अग्नि जैसी शिखा, ज्वाला या दीप्तिवाला.-शिखा-स्त्री. आग की ज्वाला/लपट, कलियारी पौधा.-शुद्धि-स्त्री. आग में तपाकर शुद्ध करना, अग्निपरीक्षा.-शेखर-पु. केसर, कुसुम, सोना.-ष्टोम-पु. यज्ञविशेष.-ष्ठ-वि. आग पर रखा हुआ, आग पर स्थित, विस्फोटक स्थिति.-ष्वात्त-पु. पितरों का एक गण/वर्ग.-संभव-वि. आग से उत्पन्न. पु.अरन्यकुसुम, सोना, भोजन का रस.-संस्कार-पु. आग जलाना/लगाना, तप्त/गरम करना, अग्नि द्वारा शुद्धि करना, मृतक-दाह, श्राद्ध में एक विधि,-संहिता-स्त्री. अग्निवेश-रचित चिकित्सा-ग्रन्थ,-सखा/सहाय-पु. वायु, धुआँ, जंगली कबूतर,-समाधि-स्त्री.
यौगिक क्रिया द्वारा अपने शरीर को जलाना.-सह-जिस पर अग्नि का असर न हो, जो अग्नि/ताप को सहन करले, अदाह्य, जिसे जलाया न जा सके, फायरप्रूफ इ.-साक्षिक-वि. अग्नि जिसका साक्षी हो, अग्नि को साक्षी कर किया 
गया कार्य.-सात-वि. आग में जलाया हुआ, भस्मसात.-सार-पु. रसांजन.-सेवन- आग तपना/सेंकना.-स्तंभ/स्तंभन-पु. अग्नि की दाहक शक्ति रोकने की क्रिया.हेतु मन्त्र/औषधि.-स्तोक-पु. चिंगारी.-स्नान-पु. आग में जल जाना.-होत्र-पु. वैदिक मन्त्रों से अग्नि में आहुति देना, विवाह की साक्षीभूत अग्नि में नियमपूर्वक हवन करना.-होत्री/त्रिन-वि. पु. अग्निहोत्र करनेवाला.

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : १८ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ५. --संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १८       संजीव 'सलिल'

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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

'अग' से प्रारंभ शब्द : ५.

संजीव 'सलिल'
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अगु - पु. सं. राहु, अन्धकार.
अगुआ - पु. आगे चलनेवाला, मुखिया. पथप्रदर्शक, विवाह तय करानेवाला, बिचौलिया, दलाल, बिचुआ, घटक,  आगे का हिस्सा.
अगुआई - स्त्री. नेतृत्व, मार्गदर्शन, अगवानी, नायकत्व.
अगुआना - सक्रि. अगुआ बनना, अक्रि. आगे जाना.
अगुआनी - स्त्री. आगे जाकर स्वागत करना.
अगुण - वि. सं. निर्गुण, गुणरहित, गुणहीन, अनाड़ी. पु. अवगुण, दोष.-ज्ञ -जिसे गुण की परख न हो, गँवार.-वादी/दिन-वि. दोष निकलने वाला, छिद्रान्वेषी.-शील-वि. अयोग्य, निकम्मा.
अगुणी / णिन - वि. सं. गुणहीन, निर्गुण.
अगुरु - पु. सं. अगर, शीशम का पेड़. वि. हल्का, लघु (वर्ण), निगुरा, गुरु से भिन्न, जो गुरु न हो.
अगुवा - पु. देखें अगुआ.
अगुवानी - स्त्री, देखें अगवानी.
अगुसरना - अक्रि. आगे बढ़ना.
अगुसारना - सक्रि. आगे बढ़ाना.
अगूठना - सक्रि. अगोटना, घेर लेना.
अगूठा -  पु. घेरा.
अगूढ़ -  वि. सं. प्रगट, स्पष्ट, सहज.-गंध-पु.,-गंधा-स्त्री. हींग.-भाव-वि. जिसका भाव/अर्थ गूढ़/छिपा न हो. सरलचित्त.
अगूता - अ. आगे, सामने.
अगृ - वि. सं. गृहहीन, बेघर, बिना घर-द्वार का. पु. वानप्रस्थ.
अगेंद्र - पु. सं. हिमालय, हिमगिरि.
अगेथू - पु. देखें अँगेथू.
अगेह - वि. सं. देखें अगृह.
अगोई - वि. स्त्री. जो गुप्त न हो, प्रगट. नोक या सिरा -'हिरनी की खुरियाँ... जिनकी नुकीली अगोइयों ने उसकी खाल उधेड़ दी हो. -नवनीत, दिसंबर १९६२.
अगोचर - वि. सं. जिसका ज्ञान इंद्रियों से न हो सके, इन्द्रियों से परे, इन्द्रियातीत, अप्रगट. पु. वह जो इन्द्रियातीत हो, वह जिसे देखा या जाना न जा सके, ब्रम्ह, ईश्वर, भगवान.
अगोट - पु. आड़, रोक, बाधा, अटक, आश्रय, सहारा, सुरह्षित स्थान. वि. अकेला, गुटरहित, सुरक्षित.
अगोटना - सक्रि. छेंकना, घेरना, छिपा/रोक रखना, फँसना, उलझना.
अगोता - अ. सम्मुख/आगे. पु. अगवानी.
अगोरदार - पु. रखवाली करनेवाला, रखवाला, रक्षक.
अगोरना - सक्रि. बाट जोहना, रखवाली करना, रोकना.
अगोरा - पु. अगोरने की क्रिया, रखवाली देखें अगोरिया.
अगोरिया - पु. खेत आदि की रखवाली करने वाला.
अगोही - पु. आगे की ओर निकले हुए सींगोंवाला बैल.
अगोह्य - वि. सं. जो छिपाये/ढँके जाने योग्य न हो, प्रकाश्य. 
अगौंड़ी - वि. जो गौंड़ (आदिवासियों की एक जाति) न हो. स्त्री. देखें अगाव.
अगौका (कस)  - पु. सं. पर्वतवासी, सिंह, पक्षी, शरभ.
अगौढ़ - पु. पेशगी/अग्रिम ड़ी जानेवाली रकम/धनराशि.
अगौता - अ. आगे. पु. अगवानी, पेशगी.
अगौनी - स्त्री. देखें अगवानी, बरात आने पर द्वार पूजा के समय छोड़ी जानेवाली आतिशबाजी. अ. आगे.
अगौरा - पु. देखें अगाव.
अगौरी/अगौली - स्त्री. एक तरह की ईख/गन्ना.
अगौहें - अ. आगे, आगे की ओर.
अग्ग - वि., अ. देखें अग्र.
अग्गरवाल - वि. वैश्यों/वणिकों का एक वर्ग., देखें अग्रवाल.
अग्गई - स्त्री. हाथभर लम्बी पत्तियोंवाला एक वृक्ष जो अवध क्षेत्र में अधिक पाया जाता है.
अग्गे - अ. आगे, अग्र.
अग्नायी - स्त्री. सं. अग्नि देव की स्त्री/शक्ति, स्वाहा, समिधा, त्रेता युग. 
                                                                                                                                                                     निरंतर......
    

हिंदी शब्द सलिला : १७ 'अग' से प्रारंभ शब्द : ४. संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १७  संजीव 'सलिल'



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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदास-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, सूर.-सूरदास, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

'अग' से प्रारंभ शब्द : ४.

संजीव 'सलिल'
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अगि - स्त्री. अग्नि का समास में प्रयुक्त विकृत रूप,-दधा-वि. अग्निदग्धा, आग से जला हुआ,-दाह- पु. देखें अग्निदाह.-हाना-पु. अग्नि जलने या रखने का स्थान.
अगिन - स्त्री. आग, एक छोटी चिड़िया, एक घास, ईख / गन्ने का ऊपरी हिस्सा. वि. बहुत अधिक, अगणित,-झाल-स्त्री. जलपिप्पली.-वाव-पु. घोड़ों / चौपायों को होने वाला एक रोग.-बोट-स्टीमर.-गोला-नापाम बम, बम जिसके फटने पर आग लग जाये.
अगिनत / अगिनित - वि. देखें अगनित.
अगिया - स्त्री. अगिन घास. पु. एक पौधा, चौपायों गायों / घोड़ों का एक रोग जिसमें पैरों में छाले पड़ जाते हैं, विक्रमादित्य का एक बैताल.-कोइलिया- पु. बैताल पच्चीसी में वर्णित दो बैताल जिन्हें विक्रमादित्य ने सिद्ध किया था.-बैताल- पु. विक्रमादित्यको सिद्ध दो बैतालों में से एक, मुंह से आग उगलनेवाला प्रेत, घूमती हुई सी ज्योति, दलदल आदि से निकलने वाली ज्वलनशील वायु जिसकी लपट दिखाई देती है.   
अगियाना - अक्रि. गरम होना, उत्तेजित होना, गुस्सा / क्रुद्ध होना. सक्रि. बर्तन को आग में डालकर शुद्ध करना.
अगियार - पु. पूजा के लिए जलायी जानेवाली आग, वि. जिसकी दमक / आग अधिक समय तक रहे या तेज हो (ईंधन लकड़ी, कोयला, कंडा आदि)
अगियारी - स्त्री. धूप की तरह अग्नि में डालने की वस्तु. पु. पारसियों का मंदिर.
अगिर - पु. सं. स्वर्ग, सूर्या, अग्नि, एक राक्षस.
अगिरी - स्त्री. घर का अगवाड़ा.
अगिरीका / कस - वि. सं. स्वर्ग में रहनेवाला, देवता. धमकी से न रुकनेवाला.
अगिला - वि. देखें अगला.
अगिलाई - स्त्री. अग्निदाह, -'जोन्ह नहीं सु नई अगिलाई', घनानन्द, झगडा लगाना, लड़वाना.
अगीठा - पु. सामने का हिस्सा, अगवाड़ा, पान जैसा किन्तु उससे बड़े आकार के पत्तोंवाला पौधा.
अगीत - छन्दरहित/तुकहीन गीत.
अगीत-पछीत - पु. अगवाड़ा-पिछवाड़ा. अ. आगे-पीछे.

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ९ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ९ --- संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ९   संजीव 'सलिल'

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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द :

संजीव 'सलिल'
अक्ल - स्त्री. अ. बुद्धि, समझ,-मंद- चतुर, बुद्धिमान, होशियार उ., -की दुम- मूर्ख व्यंग, -मंदी- स्त्री. चतुराई, बुद्धिमानी, -क्ले-इंसानी- स्त्री. मानव बुद्धि उ., -कुल- पु. सर्वाधिक बुद्दिमान सलाहकार जिसकी सलाह बिना कोई काम न किया जाए उ., -हैवानी- स्त्री. पशुबुद्धि उ., मु. -आना- समझ होना, -औंधी होना- नासमझी करना, -का कसूर- बुद्धि का दोष, समझ की कमी, -का काम न करना- कुछ समझ में न आना, -का चकराना / का चक्कर में आना- चकित / भ्रमित होना, हैरान होना उ., -चरने जाना- समझ न रहना, -का चिराग गुल होना- समझ समाप्त होना, -का दुश्मन- नासमझ, मूर्ख. -का पुतला- बहुत बुद्धिमान, -का पूरा- मूर्ख, बुद्धू व्यंग, -का फतूर- बुद्धि की कमी, -का मारा- मूर्ख, -की पुड़िया- स्त्री. बुद्धिमती, -के घोड़े दौड़ाना- कल्पना करना, अनुमान लगाना, -के तोते उड़ जाना- होश ठिकाने न रहना, -के नाखून लेना- समझकर बात करना,  -के पीछे लट्ठ लिये फिरना- नासमझी के काम करना, -के बखिये उधेड़ना, - बुद्धि नष्ट करना, -खर्च करना- सोचना-समझना, -गुम होना- समझ न रहना, -चकराना- चकित होना, -जाती रहना- समझ न रहना, -ठिकाने आना- होश में आना, समझ का होना, -देना- समझाना, सिखाना,  
-दौड़ाना, भिड़ना, लड़ना- मन लगाकर सोचना, गौर करना, -पर पत्थर पड़ना / पर पर्दा पड़ना- समझ न रहना, -मारी जाना- हतबुद्धि रहना, -सठियाना- बुद्धि नष्ट होना, -से दूर / बहार होना- समझ में न आना.
अक्लम - पु. सं. क्लान्तिहीनता, वि. न थकनेवाला.
अक्लांत- वि. जो थका न हो, क्लान्तिरहित.
अक्लिका- स्त्री. सं. नील का पौधा.
अक्लिन्न- वि. सं. जो आर्द्र या गीला न हो, सूखा. -वर्त्म / वर्त्मन- पु. नेत्र-रोग जिसमें पलकें चिपकती हैं.
अक्लिष्ट- वि. सं. क्लेशरहित, अक्लान्न, जो शांत न हो, अनुद्विग्न, जो क्लिष्ट न हो, सरल, -कर्मा / कर्मन- वि. जो काम करने से थके नहीं.
अक्ली- बुद्धिसंबंधी, अक्ल में आनेवाली बात, बुद्धिकृत. वि. बुद्धिमान. मु. -गद्दा लगाना- अटकलबाजी करना.  
अक्लेद- पु. सं. सूखापन, रुक्षता.
अक्लेद्य- वि. सं. जो भिगाया या गीला न किया जा सके.
अक्लेश - पु. सं. क्लेशहीनता. वि. क्लेशरहित.
अक्षंतव्य- वि. सं. अक्षम्य.

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ८ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ८ --संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ८ 
संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द :

संजीव 'सलिल'
अक्टूबर - पु. ईस्वी साल का दसवां महीना.
अक्त - वि. सं. अंजन लगा हुआ, लिप्त, छिपा हुआ, व्याप्त, व्यक्त, भरा हुआ, युक्त (समासांत में- तैलाक्त), हाँका हुआ, चलाया हुआ.
अक्ता - स्त्री. सं. रात्रि.
अक्त्र
- पु.. सं. वर्म, कवच.
अकद - पु. अ.  प्रतिज्ञा, इकरार, विवाह, निकाह. -नामा- पु. विवाह का प्रतिज्ञा पत्र. -बंदी- स्त्री. विवाह सूत्र में बँधना.
अक्र - वि. सं. निष्क्रिय.
अक्रम - वि. सं. क्रमरहित, अव्यवस्थित, बेसिलसिला, गतिहीन, आगे बढ़ने में असमर्थ. पु.क्रम का अभाव, बेतरतीबी, अव्यवस्था, गतिहीनता, -सन्यास- पु. सन्यास जो आश्रम व्यवस्था के अनुसार धारण न किया गया हो. 
अक्रमातिशयोक्ति  - स्त्री. सं. अतिशयोक्ति अलंकर का एक भेद जहाँ कार्य और कारण का एक साथ ही होना वर्णित हो.
अक्रव्याद - वि. सं. निरामिषभोजी, शाकाहारी, जो मांसादि न खाता हो.
अक्रांत - वि. सं. अपराजित, जिससे कोइ आगे न निकल सका हो.
अक्रांता - स्त्री. सं. बृहती, कंटकारि.
अक्रिय - वि. सं. निष्क्रिय, काहिल, निकम्मा, जो कुछ न करे, कर्मशून्य, परमात्मा.
अक्रिया - स्त्री. सं. निष्क्रियता, कर्त्तव्य न करना, दुष्कर्म.
अक्रूर - वि. सं. दयालु, कोमल चित्त. पु. एक यादव जो श्री कृष्ण के चाचा और भक्त थे.
अक्रोध - पु. सं. क्रोध का नियंत्रण या अभाव, सहिष्णुता. वि. क्रोधरहित.
अक्रोधन - वि. सं. देखें अक्रोध. पु. एक रजा, अयुतायु का पुत्र.
अक्रोधमय - वि. सं.क्रोधरहित, बिना नाराजी का.

हिंदी शब्द सलिला : ७ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ७ ---संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ७  

संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : 

संजीव 'सलिल'

अकेतन - वि. सं. बेघर-बार, गृहहीन.
अकेतु - वि. सं. आकृतिहीन, जो पहचाना न जा सके, निराकार, चित्रगुप्त (प्रत्यधि देव केतु).
अकेल - वि. दे. अकेला, एकाकी.
अकेला - वि. एकाकी, बिना साथी का, तनहा उ., बेजोड़, फर्द, खाली (मकान) पु. निर्जन स्थान, स्त्री अकेली, एकाकिनी, -दम- पु. एक ही प्राणी, -दुकेला- वि. अकेला या जिसके साथ एक और हो, इक्का-दुक्का, -ली- स्त्री. एक तरफ़ा बात, -जान- स्त्री. जिसका कोइ साथी न हो, तन-तनहा.
अकेले - अ. बिना किसी  साथी के, तनहा, केवल, बिना किसी को साथ लिये, बगैर किसी और को शरीक किये, -दुकेले- किसी और के साथ.
अकेश - वि. सं. केशरहित, अल्प केशयुक्त, बुरे बालोंवाला.
अकैतव - पु. सं. निष्कपटता, वि. निष्कपट, निश्छल.
अकैया - पु. सामान रखने का थैला, गोन.
अकोट - पु. सं. सुपारी या उसका पेड़. वि. अनगिन, अगणित, असंख्य, करोड़ों.
अकोतर सौ - वि. सौ से एक अधिक, एक सौ एक. पु. १०१ संख्या.
अकोप - पु. सं. कोप का अभाव, रजा दशरथ का एक मंत्री.
अकोप्या पणयात्रा - स्त्री. सं. सिक्के का निर्बाध प्रचलन.
अकोर - पु. देखें अँकोर.
अकोरी - स्त्री. अंकवार, गोद.
अकोला - पु. अंकोल वृक्ष.
अकोविद - वि. सं. अपन्दित, मूर्ख, अनाड़ी.
अकोसना - सक्रि, बुरा-भला कहना, गालियाँ देना.
अकौआ - पु. मदार, आक, ललरी, गले की घंटी.
अकौटा - पु. गड़री का डंडा, धुरा, एक्सेल इं..
अकौटिल्य - पु. सं. कौटिल्य / कुटिलता का अभाव, सरलता, भोलापन.
अकौता - पु. देखें उकवत.
अकौशल - पु. सं. कुशलता का अभाव, अकुशलता, अदक्षता, अनिपुणता.
अक्का - स्त्री. सं. माता, जननी, माँ.
अक्कास - पु. अ. अक्स उतारनेवाला, छायाकार, फोटोग्राफर इं.
अक्कासी - स्त्री. छायांकन का काम, फोटोग्राफी इं.
अक्खड़ - वि. उजड्ड, गँवार, अशिष्ट, उद्धत, लड़ाका, दो टूक कहने वाला, निडर, झगड़ालू, जड़, मूर्ख.-पन- पु. उजड्डपन, उग्रता, अशिष्टता, लड़ाकापन, निर्भयता, स्पष्टवादिता.
अक्खर - पु. आखर, देखें अक्षर.
अक्खा - पु. गोन.
अक्खो-मक्खो - पु. बच्चे को बहलाने / बुरी नजर से बचाने के लिये कहा जानेवाला वाक्यांश, (स्त्रियाँ दीपक की लौ के समीप हाथ लेजाकर बच्चे के मुँह पर फेरते हुए कहती हैं- 'अक्खो-मक्खो दिया बरक्खो, जो मेरे बच्चे को तक्के, उसकी फूटें दोनों अक्खों).
* क्रमशः

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ६ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ६ -------संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ६
संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ६

संजीव 'सलिल'

अकुंठित - वि. सं. देखें अकुंठ.
अकुच - वि. आकुंचित, बिखरा हुआ.
अकुटिल - वि. सं. भोला-भला, सरल, निष्कपट.
अकुताना -  अक्रि. देखें उकताना.
अकुतोभय  - वि. सं.जिसे कहीं-किसी से भय न हो, नितांत भय शून्य, निर्भय, निडर, निर्भीक.
अकुत्सित  - वि. सं. अनिन्दनीय, जो बुरा न हो.
अकुप्य/अकुप्यक  - वि. सं.पु. सं. वह धातु जो बुरी न हो, सोना, चाँदी.
अकुमार - वि. सं. जो कुमार/कुवांरा न हो, वयस्क.
अकुल - वि. सं. अकुलीन, कुलरहित, अज्ञात कुल, निम्न कुल का,बुरा कुल, पु. शिव.
अकुला - वि. सं. अकुलीन, कुलरहित, अज्ञात कुल, निम्न कुल का,बुरा कुल, स्त्री. शिवा.
अकुलाना - अक्रि. आकुल होना, घबड़ाना, विव्हल होना, मगन होना,
अकुलिनी - स्त्री. व्यभिचारिणी, निषिद्ध आचरण करनेवाली. वि. स्त्री. व्यभिचारिणी.
अकुलीन - वि. सं. हीन / निम्न कुल का, नीच कुल में जन्मा, कमीना, भूमि से संबंध न रखनेवाला, जिसके पिता अज्ञात हों, अपार्थिव. 
अकुशल - वि. सं. अनाड़ी, काम में कच्चा, कार्य न जाननेवाला, भाग्यहीन, अशुभ. पु. बुराई, अमंगल, बुरा शब्द. -श्रमिक- पु. साधारण मजदूर, अनस्किल्ड लेबर इं.
अकुसीद - वि. सं. सूद / ब्याज / लाभ न लेनेवाला.
अकुह / अकुहक - पु. सं. ईमानदार आदमी.
अकूट - वि. सं. जो धोखा न दे, विश्वस्त, अचूक अस्त्र, जो खोटा न हो सिक्का / मनुष्य.
अकूत - वि. सं. जिसे कूतना / आँकना / अनुमानना / अंदाज़ना संभव न हो, विपुल, अपरिमित, असीम, अनंत, अशेष. अ. अचानक, अकस्मात्.
अकूपार / अकूवार - पु. सं. समुद्र, सूर्य, कच्छप, वह महाकच्छप जिसने धरती का भार उठा रखा है. वि. अच्छे परिमाणवाला, अपरिमित, असीम.
अकूर्च - वि. सं. कपटरहित, छलहीन, खल्वाट, जिसकी दाढ़ी न हो, पु. बुद्ध.
अकूल - वि. सं. बिना कूल / किनारे का. सीमा / मर्यादारहित.
अकूहल - वि. अत्यधिक, अगणित.
अकृच्छ - वि. सं. बिना क्लेश, कठिनाई का, आसान. पु. क्लेश / कठिनाई का अभाव.
कृच्छी/अकृच्छिन - वि. सं. क्लेशरहित.
अकृत - वि. सं. जो पूरा न किया गया हो, बिगड़ गया हो, अन्यथा किया हुआ, जो किसी के द्वारा बनाया न गया हो, अकृत्रिम, जिसने कुछ किया न हो, अविकसित, अपक्व. पु. अधूरा काम, किसी काम का पूरा न किया जाना, प्रकृति, कारण, मोक्ष. -कार्य- व. असफल मनोरथ. -काल- वि. कालबाह्य, गैरमियादी उ., बिना मुद्दत का (बंधक). -चिकीर्षा- स्त्री. सामादि उपायों से नयी संधि करना और उनमें  छोटे, बड़े और समकक्ष राजाओं का यथायोग्य ध्यान रखना. -ज्ञ- वि. कृतघ्न, उपकार न माननेवाला. -धी / बुद्धि- वि. जिसे पूरा ज्ञान न हो, -शुल्क- वि. चुंगी / स्थानीय कर न देनेवाला, जिस पर चुंगी न लगी हो.
अकृता - स्त्री. सं. पुत्र के समान अधिकारिणी न मानी गई कन्या.  
अकृतात्मा / अकृतात्मन - वि. सं. अज्ञानी, असंस्कृत मतवाला, साधक जिसे ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ हो.
अकृताभ्यम - पु. सं. अकृत कर्म के फल की प्राप्ति.
अकृतार्थ - वि. सं. विफल, असंतुष्ट.
अकृतास्न - वि. सं. जिसने अस्त्र-संचालन न सीखा हो.
अकृती / अकृतिन  - वि. सं. अकुशल, अनाड़ी, निकम्मा.
अकृतोद्वाह - वि., अविवाहित.
अकृत्त - वि. सं. न कटा हुआ, जिसकी कतर-ब्योंत न की गई हो.
अकृत्य - वि. सं. जो करने योग्य न हो, पु. दुष्कर्म, अपराध, पाप. -कारी / कारिन - वि. कुकर्मी, दुकर्मी, अपराधी. पापी..
अकृत्रिम - वि. सं. जो बनावटी न हो, स्वाभाविक, प्राकृतिक, सच्चा. अमली उ..
अकृत्स्न - वि. सं. अधूरा, जो पूरा न हुआ हो.
अकृप - वि. सं. निर्दय, दयाहीन.
अकृपण  - वि. सं. जो कंजूस न हो, उदार.
अकृपा - वि. सं. कृपा का अभाव, नाराजगी.
अकृश - वि. सं. जो दुबला-पतला न हो, सबल, मोटा-ताज़ा, हृष्ट-पुष्ट. -लक्ष्मी- वि. वैभवशाली. स्त्री. प्रभूत ऐश्वर्य.
अकृषिक - वि. सं. जिसका संबंध कृषि से न हो.
अकृषित - वि. सं. अहल्या, भूमि जो जोती-बोयी न गई हो, बंजर, अनकल्टीवेटेड इं. बैरन इं.
अकृष्ट - वि. सं. जो जोता / खींचा न गया हो, पु. परती जमीन, -पच्य- वि. बिना जुटे खेत में उगने-पकनेवाला, शस्य सं. -पूर्वा भूमि- स्त्री. अहल्या सं., भूमि जो जोती-बोयी न गई हो, वर्जिन सॉइल इं. -रोही/रोहिन- वि. बिना जुटी जमीन में अपने आप उगनेवाला.
अकृष्ण - वि. सं. जो काला / श्याम न हो, श्वेत, सफेद, निर्मल, शुद्ध, राधा, गौरांगी. पु. निष्कलंक, चन्द्रमा. -कर्मा / कर्मन- वि. पुण्यात्मा, निर्दोष, निष्पाप.
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हिंदी शब्द सलिला : ५ अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ५ -- संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ५


संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से प्रारंभ होनेवाले शब्द : ५

संजीव 'सलिल'

अकिंचन - वि. सं. जिसके पास कुछ न हो, अति निर्धन, विपन्न, गरीब उ., दरिद्र, कर्म शून्य, अपरिग्रही. पु. वह वस्तु जिसका कोई मूल्य न हो, निर्मूल्य, अमूल्य, दरिद्र, परिग्रह का त्याग जै., अपरिग्रही जै.. -वाद- पु. (पॉपर सूट का.) वह वाद जिसमें वादी की ओर दे कहा जाए कि उसे पास वाद-व्यय हेतु कुछ नहीं है अतः, सरकार की ओर से वाद व वकील का व्यय आदि दिया जाए. 
अकिंचनता - स्त्री. दरिद्रता, निर्धनता, गरीबी, विपन्नता.
अकिंचनत्व - पु. सं. दरिद्रता, निर्धनता, गरीबी, विपन्नता, परिग्रह (संचय) का त्याग जै..
अकिंचिज्ज - वि. सं. जो कुछ भी न जानता हो, अज्ञानी, ज्ञानहीन.
अकिंचित्कर - वि. सं. जिसके किये कुछ न हो सके, निरर्थक, तुच्छ.
अकि - अ.अथवा, या, फिर. -'आगि जरौं अकि पानी परौं. - घनानन्द ग्रंथावली.
अकितब - वि. सं. जो जारी न हो, निष्कपट.
अकिल - स्त्री. देखें अक्ल.
अकिलैनि -  स्त्री. एकाकिनी, -'कान्ह! परे बहुतायत में अकिलैनिकी वेदन जनि कहा तुम'-- घनानन्द ग्रंथावली.  
अकिल्विष - वि. सं. पापरहित, निर्मल, विमल, अमल.
 अकीक - पु. अ. लाल रंग का बहुमूल्य पत्थर.
अकीदत - स्त्री. अ. श्रृद्धा. -मंद-वि. श्रृद्धालु, श्रद्धावान.
अकीदा - पु. अ. श्रद्धा, विश्वास, आस्था.
अकीरति - स्त्री. देखें अकीर्ति.
अकीर्ति - स्त्री. सं. अपयश, बदनामी उ., अपमान.
अकुंठ - जो कुंठित या भोथरा न हो, कार्यक्षम, शक्तिशाली, खुला हुआ, तीक्ष्ण, पैना, स्थिर, अप्रतिहत,  

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सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ४ अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ४ -------संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ४

संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, इ.-इंग्लिश/अंगरेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत/संज्ञा, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ४  

अकलउता - वि. छ. एकमात्र, इकलौता.
अकलउती - वि. छ. एकमात्र, इकलौती.
अकलकरहा - सं. पु, छ. अकरकरा, एक दवा / औषधि का पौधा.
अकलमुड़ा - वि. छ. उल्टी अकल का, बेअकल. सं., पु. इकलौता, इकलौती.
अकसरिया - वि. छ. एक बार, पहली बार.
अकसी - सं. छ. पेड़ से फल तोड़ने के लिये डंडे / बाँस में जाली बाँध कर बनाई गई डंगनी जिससे तोड़ते समय फल नीचे न गिरे. 
अकाउंट - पु. इ. हिसाब, लेखा. -असिस्टेंट- पु., लेखा सहायक, -ऑफीसर- पु., लेखाधिकारी, -बुक- बही-खाता, -लैस- लेखा बिना, लेखा हीन .
अकाउन्टेंट - पु. इ. हिसाब-किताब लिखने / जाँचने वाला, मुनीम.
अकाउन्टेंसी - स्त्री. इ. लेखा-विद्या, लेखाशास्त्र, लेखा-कर्म, लेखा-विधि. 
अकाज - पु. कार्य-हानि, काम का नुक्सान, हर्ज, विघ्न, बाधा, दुष्कर्म, बुरा काम. अ., व्यर्थ ही, निष्प्रयोजन.
अकाजना - सक्रि. हानि करना. अक्रि., नष्ट होना, न रहना.
अकाजी - वि. अकाज करनेवाला, हानि करनेवाला, न करने योग्य काम / दुष्कर्म करनेवाला, निरुद्देश्य काम करनेवाला.
अकाट - वि. ऐसी दलील / तर्क जो कट न सके / जिसे काटा न जा सके, अखण्डणीय, अकाट्य.
अकाट्य - वि. ऐसी दलील / तर्क जो कट न सके / जिसे काटा न जा सके, अखण्डणीय, अकाट.
अकातर - वि. सं., जो भीरु / हतोत्साहित / डरा / भीत न हो.
अकाथ - वि. अकथनीय, न कहने योग्य, अ., अकारथ, व्यर्थ.
अकादमी - पु. उच्च शिक्षा संस्था, किसी विषय / विधा की उन्नति हेतु स्थापित विद्वानों की परिषद्.
अकाम - वि. सं. कामनारहित, निष्काम, इच्छारहित, उदासीन, अनिच्छुक, वासनाहीन. पु., दुष्कर्म, अ., निष्प्रयोजन, अकारण, निरुद्देश्य, बिना काम के. -हत- वि. जो इच्छा से प्रभावित न हो, धीर, शांत.
अकामता - स्त्री. सं. इच्छा का अभाव.   
अकामी /मिन - वि. सं. देखें अकाम.
अकाय - वि. सं. कायरहित, अशरीर. पु. राहू, परमात्मा, निराकार, चित्रगुप्त.
अकार - पु. सं. 'अ' अक्षर या उसकी उच्चारण ध्वनि.
अकारण - अ. सं. बिना कारण, बेमतलब. वि. हेतुरहित, निरुद्देश्य., पु. कारण का अभाव.
अकारत/थ - अ. व्यर्थ, बेकार (आना, जाना, होना), वि. निष्फल, लाभहीन.
अकारन   - पु. सं. देखें अकारण.
अकारांत - वि. सं. जिसके अंत में 'अ' हो.
अकारादि - वि. सं. 'अ' से आरंभ होनेवाला क्रम.
अकारपण्य - वि. सं. जो बिना नीचता या दीनता दिखाए प्राप्त किया गया हो. पु दीनता, कृपणता या हीनता का अभाव.
अकार्य - वि. सं. न करने योग्य, अकर्तव्य, अनुचित. पु. बुरा काम, अनुचित कार्य. -कारी/रिन- वि., बुरा काम करनेवाला, कर्त्तव्य का पालन न करनेवाला.
अकाल - पु. सं. अयोग्य या अनियत काल, कुसमय, अनवसर, अशुभकाल, काल के परे, परमात्मा, चित्रगुप्त. हि. दुर्भिक्ष, सूखा, कमी. वि. जो काला न हो, सफ़ेद, बेमौसिम का, असामयिक. -कुसुम-बेमौसिम का फूल, बेमौसिम की चीज. -कुष्मांड / कूष्माण्ड- पु. बेमौसिम का कुम्हड़ा, बलिदान आदि के काम न आनेवाला कुम्हड़ा, बेकार चीज, बेकाम वस्तु, निरर्थक जन्म. (गांधारी को कूष्मान्डाकार मांसपिंड का अकाल प्रसव हुआ था जिससे कुरुकुलनाशक दुर्योधन आदि सौ पुत्रों का जन्म हुआ जो कौरव कहलाये.) -ग्रस्त- दुर्भिक्ष का मारा, समय का मारा, विपदा-संकट में फँसा हुआ. --वि.असमय उत्पन्न होनेवाला. -जलद- पु. असमय का बादल, -जलोदय/मेघोदय- पु. बेवक्त, बेमौसिम बादलों का घिरना. -जात- समय से पहले, बेमौसिम उपजा हुआ. -तख़्त- सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ, अमृतसर में. -पक्व- वि. समय से पहले पक जाने वाला (फल आदि), -पुरुष/पुरुख- पु. परमेश्वर चित्रगुप्त/कायस्थ, परमात्मा सिख. -पंथ- सिखों की एक शाखा. -प्रसव- समय-पूर्व प्रसव, वक़्त से पहले जचकी. -भूत- एक प्रकार का दास जो अकाल में मिला हो. -मूर्ति- पु. अविनाशी पुरुष. -मृत्यु- स्त्री.असामयिक/दुर्घटना या अल्प वय में होने वाली मौत. -विचारणा- स्त्री. (इन्क्वेस्ट) अकाल मृत्यु आदि के संबंध में की जानेवाली कानूनी जाँच-पड़ताल, अन्वीक्षण, अपमृत्यु-समीक्षा. -वृद्ध- वि. समय से पहले बूढा, कमजोर हो जानेवाला. -बेला- स्त्री. असमय. -सह- जो देर न सह सके, अधीर, जो देर तक चल या टिक न सके.          
अकालिक - वि. सं. असामयिक.
अकाली - पु. सिखों का एक संप्रदाय, अकाल तख़्त का अनुयायी.
अकालोत्पन्न - वि. सं. समय से पहले उत्पन्न.
अकाव - पु. आक, मंदार.
अकास - पु. देखें आकाश. -दिया/दीया- पु. आकाशदीप. -नीम- पु. एक पेड़. -बानी- स्त्री. आकाशवाणी, देव-वाणी. -बेल- स्त्री. अमरबेल. मु. -बाँधना- असंभव काम करने का यत्न करना, -'सूधे बात कहौ सुख पावै, बंधन कहत अकास- सूरदास.
अकासी - स्त्री. एक पक्षी, चील, द्रव जिसे पीकर दिमाग आसमान में उड़ने की अनुभूति कराये, ताड़ी.   
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रविवार, 10 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : ३ अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ३ ---------संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : ३
 
संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, अंग.- अंग्रेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, राम.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रामा.- वाल्मीकि रामायण, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: ३ 
अकरी - स्त्री., हल में लगा हुआ चोंगा (फनल) जिसमें भरकर बाई करते समय खेत में बीज गिराया जाता है., एक विशेष पौधा.
अकरुण - वि., सं., करुणा रहित, निष्करुण, निष्ठुर.
अकर्कश - वि. सं., कर्कशतारहित, नरम, मृदु.
अकर्णक - वि., सं., कर्णहीन, भावार्थ बधिर, बहरा.
अकर्न्य - वि., सं., जो कानों के योग्य न हो, अश्रवणीय.
अकर्तन - वि., सं., नहीं काटना, बोना.
अकर्तव्य - वि., सं., न करने योग्य, अविहित, अनुचित. पु. अनुचित कर्म.
अकर्ता/ अकर्तृ  - वि., सं., जो कर्ता न हो, कर्म न करनेवाला, कर्म से अलिप्त पुरुष, अकर्मा, ईश्वर, परमब्रम्ह.
अकर्तक - वि., सं., जिसका कोई कर्ता न हो.
अकर्तृत्व - पु., सं., कर्तृत्व/कर्तापन के अभिमान का अभाव.
अकर्म - पु., सं., कर्म का अभाव, निष्क्रियता, कर्तव्य/कर्म न करना, बुरा काम. -भोग - पु., कर्मफल के भोग से मुक्ति. -शील - वि., सुस्त, आलसी, कामचोर.
अकर्मक - वि., सं., वह क्रिया जिसके लिये कर्म की अपेक्षा न हो (व्या.). पु. परमात्मा..
अकर्मण्य - वि., सं., कर्म के अयोग्य, निकम्मा, आलसी, न  कर्म न करने योग्य.
अकर्मा/अकर्मन - वि., सं., कर्मरहित, जो कुछ न कर्ता हो, निकम्मा, बेकाम, संस्कार आदि का अनधिकारी.
अकर्मान्वित - वि., सं., अपराधी, दुष्कर्मयुक्त, निठल्ला, बेकार.   
अकर्मी / अकर्मिन - वि., सं., दुष्कर्म करनेवाला, दुष्कर्मी, पापी.
अकर्षण - पु., सं., कर्षण या खिंचाव न होना, आकर्षण = खिंचाव.
अकलंक - वि., सं., कलंकरहित, निर्दोष, बेदाग़,
अकलंकता - स्त्री., सं., दोषहीनता, निर्दोषिता.
अकलंकित - वि., सं., निर्दोष, शुद्ध, बेदाग़.
अकल - वि., सं., अवयवरहित, यंत्रहीन, अखण्ड, अंशरहित, निराकार, कलाहीन, गुणहीन, स्त्री. अकल, -दाढ़- स्त्री., युवा होने पर उगनेवाली दाढ़, अक्ल का दाँत.
अकलखुरा - वि., अकेला खानेवाला, स्वार्थी, ईर्ष्यालु, जो मिलनसार न हो.
अकलवर / अकलवीर - पु., पौधा जिसकी जड़ रेशम पर रंग चढ़ाने के काम आती है.
अकलुष - वि. सं., स्वच्छ, मलहीन, निर्दोष, साफ़, गन्दगीरहित. -इस्पात- पु., क्रोमियम आदि धातुएं मिलाकर तैयार किया गया इस्पात जिसमें मोर्चा/जंग नहीं लगता, स्टेनलैस स्टील.
अकल्क - वि., सं., बिना तलछट का, निर्मल, शुद्ध, निष्पाप, स्वच्छ.
अकल्कक, अकल्कन, अकल्कल -  वि., सं., विनम्र, दंभरहित, घमंडहीन, निरहंकार, ईमानदार.
अकल्कता - स्त्री., सं., ईमानदारी, शुद्धता.
अकल्का - स्त्री., सं., चाँदनी, ज्योत्सना.
अकल्प - वि., सं., अनियंत्रित, नियम न माननेवाला, दुर्बल, अक्षम, अतुलनीय.
अकल्पनीय - वि. ,सं., जिसकी कल्पना न की जा सके, अप्रामाणिक, असंभावित.
अकल्पित -वि., सं., कल्पनारहित, अकाल्पनिक, अकृत्रिम, प्राकृतिक, प्रामाणिक, संभावित.
अकल्मष - वि., सं., बेदाग़, निर्दोष, शुद्ध.
अकल्य - वि., सं., अस्वस्थ, सत्य.
अकल्याण - पु., सं., अमंगल, अहित. वि. अशुभ.
अकव / अकवा  - वि., सं., अवर्णनीय, जो तुच्छ या कृपण न हो. रघुराजसिंह कृत राम स्वयंवर.
अकवच - वि., सं., कवचरहित, जिसके बदन पर बख्तर न हो.
अकवन - पु., अर्क / आक का पेड़.
अकवाम - स्त्री., अ., उ., कौम का बहुवचन.
अकविता - स्त्री., कविता के पूर्व प्रचलित उपादानों को नकारकर आगे बढ़नेवाली काव्य-प्रवृत्ति.
अकशेरुकी - पु. इनवर्टिब्रेट, मेरुदंड / रीढ़ विहीन प्राणी, जैसे: प्रोटोजोआ, घोंघा, अपृष्ठवंशी.
अकस - पु., द्वेष, ईर्ष्या, बराबरी, छाया, प्रतिबिम्ब.
अकस - अ., अकस्मात्. -पृथ्वीराज रासो.
अकसना - अक्रि., बराबरी करना, समसरी करना, समानता करना, बैर करना, झगड़ना, लड़ना, स्पर्धा करना.
अकसर - वि., अ., बहुत अधिक, अत्यधिक. अधिकतर, बहुधा. वि. अकेला, अकेले, बिना किसी को साथ लिये, एकाकी. कवण हेतु मन व्यग्र अति, अकसर आयेहु तात.-राम.        
अकसी - अकस / द्वेष रखनेवाला, बैरी, शत्रु, दुश्मन.
अकसीर - स्त्री., अ., कीमिया, दवा जिससे सस्ती धातु से सोना बनाया जा सके, रोग विशेष की अचूक / अति गुणकरी औषधि. वि, अचूक, अव्यर्थ. -गर- कीमियाबनानेवाला, कीमियागर, -की बूटी- सोना-चाँदी बनाने की बूटी.   
अकस्मात् - अ., सं., सहसा, अचानक, एकाएक, हठात, संयोगवश, आकारण, बिना कारण, दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द जो तांत्रिक साधना में विशिष्ट अर्थ रखता है.
अकह - वि., अवर्णनीय, न कहने योग्य, अकहनीय, अकथनीय, अनुचित.
अकहानी - स्त्री., यूरोप में प्रचलित 'एंटी स्टोरी' का हिन्दी रूप जो यह मानता है कि कहनी के परंपरागत तत्वों को नकारकर ही कहानी खुद को आधुनिक बना सकती है.
अकहुवा / अकहुआ  - वि., दे., अकथनीय, जिसका वर्णन न हो सके.

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शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

हिंदी शब्द सलिला : १ ---- अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: १ -------संजीव 'सलिल'

हिंदी शब्द सलिला : १

संजीव 'सलिल'
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संकेत : अ.-अव्यय, अर. अरबी, अक्रि.-अकर्मक क्रिया, अप्र.-अप्रचलित, अर्थ.-अर्थशास्त्र, अलं.- अलंकार, अल्प-अल्प (लघुरूप) सूचक, आ.-आधुनिक, आयु.-आयुर्वेद, इ.-इत्यादि, इब.-इबरानी, उ. -उर्दू, उदा.-उदाहरण, उप.-उपसर्ग, उपनि.-उपनिषद, अं.-अंगिका, अंक.-अंकगणित, अंग.- अंग्रेजी, का.-कानून, काम.-कामशास्त्र, क्व.-क्वचित, ग.-गणित, गी.-गीता, गीता.-गीतावली, तुलसी-कृत, ग्रा.-ग्राम्य, ग्री.-ग्रीक., चि.-चित्रकला, छ.-छतीसगढ़ी, छं.-छंद, ज.-जर्मन, जै.-जैन साहित्य, ज्या.-ज्यामिति, ज्यो.-ज्योतिष, तं.-तंत्रशास्त्र, ति.-तिब्बती, तिर.-तिरस्कारसूचक, दे.-देशज, देव.-देवनागरी, ना.-नाटक, न्या.-न्याय, पा.-पाली, पारा.- पाराशर संहिता, पु.-पुराण, पुल.-पुल्लिंग, पुर्त. पुर्तगाली, पुरा.-पुरातत्व, प्र.-प्रत्यय, प्रा.-प्राचीन, प्राक.-प्राकृत, फा.-फ़ारसी, फ्रे.-फ्रेंच, ब.-बघेली, बर.-बर्मी, बहु.-बहुवचन, बि.-बिहारी, बुं.-बुन्देलखंडी, बृ.-बृहत्संहिता, बृज.-बृजभाषा  बो.-बोलचाल, बौ.-बौद्ध, बं.-बांग्ला/बंगाली, भाग.-भागवत/श्रीमद्भागवत, भूक्रि.-भूतकालिक क्रिया, मनु.-मनुस्मृति, महा.-महाभारत, मी.-मीमांसा, मु.-मुसलमान/नी, मुहा. -मुहावरा,  यू.-यूनानी, यूरो.-यूरोपीय, योग.योगशास्त्र, रा.-रामचन्द्रिका, केशवदस-कृत, रामा.- रामचरितमानस-तुलसीकृत, रा.-पृथ्वीराज रासो, ला.-लाक्षणिक, लै.-लैटिन, लो.-लोकमान्य/लोक में प्रचलित, वा.-वाक्य, वि.-विशेषण, विद.-विदुरनीति, विद्या.-विद्यापति, वे.-वेदान्त, वै.-वैदिक, व्यं.-व्यंग्य, व्या.-व्याकरण, शुक्र.-शुक्रनीति, सं.-संस्कृत, सक्रि.-सकर्मक क्रिया, सर्व.-सर्वनाम, सा.-साहित्य/साहित्यिक, सां.-सांस्कृतिक, सू.-सूफीमत, स्त्री.-स्त्रीलिंग, स्मृ.-स्मृतिग्रन्थ, ह.-हरिवंश पुराण, हिं.-हिंदी.     

अ से आरम्भ होनेवाले शब्द: १

- उप. (सं.) हिंदी वर्ण माला का प्रथम हृस्व स्वर, यह व्यंजन आदि संज्ञा और विशेषण शब्दों के पहले लगकर सादृश्य (अब्राम्हण), भेद (अपट), अल्पता (अकर्ण,अनुदार), अभाव (अरूप, अकास), विरोध (अनीति) और अप्राशस्तस्य (अकाल, अकार्य) के अर्थ प्रगट करता है. स्वर से आरम्भ होनेवाले शब्दों के पहले आने पर इसका रूप 'अन' हो जाता है (अनादर, अनिच्छा, अनुत्साह, अनेक), पु. ब्रम्हा, विष्णु, शिव, वायु, वैश्वानर, विश्व, अमृत.
अइल - दे., पु., मुँह, छेद.
अई -
अउ / अउर - दे., अ., और, एवं, तथा.   
अउठा - दे. पु. कपड़ा नापने के काम आनेवाली जुलाहों की लकड़ी.
अजब -दे. विचित्र, असामान्य, अनोखा, अद्वितीय.
अजहब - उ.अनोखा, अद्वितीय (वीसल.) -अजब दे. विचित्र, असामान्य.
अजीब -दे. विचित्र, असामान्य, अनोखा, अद्वितीय.
अऊत - दे. निपूता, निस्संतान.
अऊलना - अक्रि., तप्त होना, जलना, गर्मी पड़ना, चुभना, छिलना.
अऋण/अऋणी/अणिन - वि., सं, जो ऋणी/कर्ज़दार न हो, ऋण-मुक्त.
अएरना - दे., सं, क्रि., अंगीकार करना, गृहण करना, स्वीकार करना, 'दियो सो सीस चढ़ाई ले आछी भांति अएरि'- वि.
अक - पु., सं., कष्ट, दुःख, पाप.
अकच - वि., सं., केश रहित, गंजा, टकला दे. पु., केतु गृह.
अकचकाना - दे., अक्रि., चकित रह जाना, भौंचक हो जाना.
अकच्छ - वि., सं., नंगा, लंपट.
अकटु  - वि., सं., जो कटु (कड़वा) न हो.
अकटुक - वि., सं., जो कटु (कड़वा) न हो, अक्लांत.
अकठोर - वि., सं., जो कड़ा न हो, मृदु, नर्म.
अकड़ - स्त्री., अकड़ने का भाव, ढिठाई, कड़ापन, तनाव, ऐंठ, घमंड, हाथ, स्वाभिमान, अहम्. - तकड़ - स्त्री., ताव, ऐंठ, आन-बान, बाँकपन. -फों - स्त्री., गर्व सूचक चाल, चेष्टा. - वाई - स्त्री., रोग जिसमें नसें तन जाती हैं. -बाज़ - वि., अकड़कर चलनेवाला, घमंडी, गर्वीला. - बाज़ी - स्त्री., ऐंठ, घमंड, गर्व, अहम्.
अकड़ना - अक्रि., सूखकर कड़ा होना, ठिठुरना, तनना, ऐंठना, घमंड करना, स्तब्ध होना, तनकर चलना, जिद करना, धृष्टता करना, रुष्ट होना. मुहा. अकड़कर चलना - सीना उभारकर / छाती तानकर चलना.
अकड़म - अकथह, पु., सं., एक तांत्रिक चक्र.
अकड़ा - पु., चौपायों-जानवरों का एक रोग.
अकड़ाव - पु., अकड़ने की क्रिया, तनाव, ऐंठन.
अकड़ू - वि., दे., अकड़बाज.
अकडैल / अकडैत - वि., दे., अकड़बाज.
अकत - वि., कुल, संपूर्ण, अ. पूर्णतया, सरासर.
अकती - एक त्यौहार, अखती, वैशाख शुक्ल तृतीया, अक्षय तृतीया, बुन्देलखण्ड में सखियाँ नववधु को छेड़कर उसके पति का नाम बोलने या लिखने का आग्रह करती हैं., -''तुम नाम लिखावति हो हम पै, हम नाम कहा कहो लीजिये जू... कवि 'किंचित' औसर जो अकती, सकती नहीं हाँ पर कीजिए जू.'' -कविता कौमुदी, रामनरेश त्रिपाठी.
अकथह - अकड़म,पु., सं., एक तांत्रिक चक्र.
अकत्थ - वि., दे., अकथ्य, न कहनेयोग्य, न कहा गया.
अकत्थन - वि. सं., दर्फीन, जो घमंड न करे.
                                                                                ....... निरंतर 
संस्कारधानी जबलपुर ८.१०.२०१०

रविवार, 3 अक्टूबर 2010

हिन्दी की पाठशाला : १

हिन्दी शब्द सलिला: १ 

औचित्य :

भारत-भाषा हिन्दी भविष्य में विश्व-वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है. हिन्दी की शब्द सामर्थ्य पर प्रायः अकारण तथा जानकारी के अभाव प्रश्न चिन्ह लगाये जाते हैं किन्तु यह भी सत्य है कि भाषा सदानीरा सलिला की तरह सतत प्रवाहिनी होती है. उसमें से कुछ शब्द काल-बाह्य होकर बाहर हो जाते हैं तो अनेक शब्द उसमें प्रविष्ट भी होते हैं. हिन्दी शब्द सलिला की योजना इसी विचार के आधार पर बनी कि व्यावसायिक प्रकाशकों के सतही और अपर्याप्त कोशों से संतुष्ट न होनेवाले हिन्दीप्रेमियों के लिये देश-विदेश की विविध भाषाओँ-बोलिओं के हिन्दी की प्रकृति के अनुकूल ऐसे शब्द जिनके पर्याय हिन्दी में नहीं हैं, को भी कोष में सम्मिलित किया जाए. इसी तरह ज्ञान-विज्ञान, कला-संकृति, व्यापार-व्यवसाय आदि जीवन के विविध क्षेत्रों में सामान्यतः प्रचलित पारिभाषिक तथा प्रबंधन संबंधी शब्द भी समाहित किये जाएँ. यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहे. शब्दों का समावेश तीन तरह से हो सकता है.

१. आयातित शब्द का मूल भाषा में प्रयुक्त उच्चारण यथावत देवनागरी लिपि में लिखा जाए ताकि बोले जाते समय हिन्दी भाषी तथा अन्य भाषा भाषी  उस शब्द को समान अर्थ में समझ सकें. जैसे अंग्रेजी से स्टेशन, जापानी से हाइकु आदि.

२. मूल शब्द के उच्चारण में प्रयुक्त ध्वनि हिन्दी में न हो अथवा अत्यंत क्लिष्ट या सुविधाजनक हो तो उसे हिन्दी की प्रकृति के अनुसार परिवर्तित कर लिया जाए. जैसे हॉस्पिटल को अस्पताल.

३. जिन शब्दों के लिये हिन्दी में समुचित पर्याय हैं या बनाये जा सकते हैं उन्हें आत्मसात किया जाए. जैसे: बस स्टैंड के स्थान पर बस अड्डा, रोड के स्थान पर सड़क या मार्ग. यह भी कि जिन शब्दों को गलत अर्थों में प्रयोग किया जा रहा है उनके सही अर्थ स्पष्ट कर सम्मिलित किये जाएँ ताकि भ्रम का निवारण हो. जैसे: प्लान्टेशन के लिये वृक्षारोपण के स्थान पर पौधारोपण, ट्रेन के लिये रेलगाड़ी, रेल के लिये पटरी.

भाषा :


अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है. भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ. ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ.

चित्र गुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप.
भाषा-सलिला निरंतर करे अनाहद जाप.

भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार ग्रहण कर पाते हैं. यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक) या लेखनी के द्वारा (लिखित) होता है.

निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द
भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द.

व्याकरण ( ग्रामर ) -

व्याकरण ( वि + आ + करण ) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है. भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि , शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेषण को जानना आवश्यक है.

वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार.
तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार.

वर्ण / अक्षर :

वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं.

अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण.
स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण.

स्वर ( वोवेल्स ) :

स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है. स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती. यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:, ऋ, .
स्वर के दो प्रकार १. हृस्व : लघु या छोटा ( अ, इ, उ, ऋ, ऌ ) तथा २. दीर्घ : गुरु या बड़ा ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं.

अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान
मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान.

व्यंजन (कांसोनेंट्स) :

व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते. व्यंजनों के चार प्रकार १. स्पर्श (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म) २. अन्तस्थ (य वर्ग - य, र, ल, व्, श), ३. ऊष्म ( श, ष, स ह)  तथा ४. संयुक्त  ( क्ष, त्र, ज्ञ) हैं. अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं.

भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव.
कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव.

शब्द :

अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ.
मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ.

अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है. शब्द भाषा का मूल तत्व है.

शब्द के भेद :

१. अर्थ की दृष्टि से : सार्थक (जिनसे अर्थ ज्ञात हो यथा - कलम, कविता आदि) एवं निरर्थक (जिनसे किसी अर्थ की प्रतीति न हो यथा - अगड़म बगड़म आदि),

२. व्युत्पत्ति (बनावट) की दृष्टि से : रूढ़ (स्वतंत्र शब्द - यथा भारत, युवा, आया आदि), यौगिक (दो या अधिक शब्दों से मिलकर बने शब्द जो पृथक किए जा सकें यथा - गणवेश, छात्रावास, घोडागाडी आदि) एवं योगरूढ़ (जो दो शब्दों के मेल से बनते हैं पर किसी अन्य अर्थ का बोध कराते हैं यथा - दश + आनन = दशानन = रावण, चार + पाई = चारपाई = खाट आदि),

३. स्रोत या व्युत्पत्ति के आधार पर तत्सम (मूलतः संस्कृत शब्द जो हिन्दी में यथावत प्रयोग होते हैं यथा - अम्बुज, उत्कर्ष आदि), तद्भव (संस्कृत से उद्भूत शब्द जिनका परिवर्तित रूप हिन्दी में प्रयोग किया जाता है यथा - निद्रा से नींद, छिद्र से छेद, अर्ध से आधा, अग्नि से आग आदि) अनुकरण वाचक (विविध ध्वनियों के आधार पर कल्पित शब्द यथा - घोडे की आवाज से हिनहिनाना, बिल्ली के बोलने से म्याऊँ आदि), देशज (आदिवासियों अथवा प्रांतीय भाषाओँ से लिए गए शब्द जिनकी उत्पत्ति का स्रोत अज्ञात है यथा - खिड़की, कुल्हड़ आदि), विदेशी शब्द ( संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओँ से लिए गए शब्द जो हिन्दी में जैसे के तैसे प्रयोग होते हैं यथा - अरबी से - कानून, फकीर, औरत आदि, अंग्रेजी से - स्टेशन, स्कूल, ऑफिस आदि),

४. प्रयोग के आधार पर विकारी (वे शब्द जिनमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया या विशेषण के रूप में प्रयोग किए जाने पर लिंग, वचन एवं कारक के आधार पर परिवर्तन होता है यथा - लड़का लड़के लड़कों लड़कपन, अच्छा अच्छे अच्छी अच्छाइयां आदि), अविकारी (वे शब्द जिनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता. इन्हें अव्यय कहते हैं. इनके प्रकार क्रिया विशेषण, सम्बन्ध सूचक, समुच्चय बोधक तथा विस्मयादि बोधक हैं. यथा - यहाँ, कहाँ, जब, तब, अवश्य, कम, बहुत, सामने, किंतु, आहा, अरे आदि) भेद किए गए हैं. इस संबंध में विस्तार से जानने के लिए व्याकरण की किताब देखें.

नदियों से जल ग्रहणकर, सागर करे किलोल.
विविध स्रोत से शब्द ले, भाषा हो अनमोल.

नाना भाषा-बोलियाँ, नाना भूषा-रूप.
पंचतत्वमय व्याप्त है, अक्षर-शब्द अनूप.

"भाषा" मानव का अप्रतिम आविष्कार है। वैदिक काल से उद्गम होने वाली भाषा शिरोमणि संस्कृत, उत्तरीय कालों से गुज़रती हुई, सदियों पश्चात् आज तक पल्लवित-पुष्पित हो रही है। भाषा विचारों और भावनाओं को शब्दों में साकारित करती है। संस्कृति वह बल है जो हमें एकसूत्रता में पिरोती है। भारतीय संस्कृति की नींव "संस्कृत" और उसकी उत्तराधिकारी हिन्दी ही है। "एकता" कृति में चरितार्थ होती है। कृति की नींव विचारों में होती है। विचारों का आकलन भाषा के बिना संभव नहीं. भाषा इतनी समृद्ध होनी चाहिए कि गूढ, अमूर्त विचारों और संकल्पनाओं को सहजता से व्यक्त कर सकें. जितने स्पष्ट विचार, उतनी सम्यक् कृति; और समाज में आचार-विचार की एकरुपता याने "एकता"।
भाषा भाव-विचार को, करे शब्द से व्यक्त.
उर तक उर की चेतना, पहुँचे हो अभिव्यक्त.

शब्द संकलन क्रम:

शब्दों को हिन्दी की सामान्यतः प्रचलित वर्णमाला में प्रयुक्त अक्षरों के क्रम में ही रखा जाएगा. तदनुसार

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं,.अ:.

क, का, कि, की,कु, कू, के, कै, को, कौ. कं, क:, ख, खा, खि, खी, खु, खू, खे, खै, खो, खौ, खं, ख:, ग, गा, गि, गी, गु, गू, गे, गै, गो, गौ, गं, ग:, घ, घ, घी, घी, घु, घू, घे, घी, घो, घौ, घन, घ:,  ङ् ,

च, चा, चि, ची, चु, चू, चे, चै, चो, चौ, चं, च:, छ, छा, छि, छी, छू, छू, छे, छै, छो, छौ, छन, छ:, ज, जा, जी, जी, जू, जू, जे, जेई, जो, जौ, जं, ज:, झ, झा, झी, झी, झु, झू, झे, झै, झो, झौ, झन, झ:, ञ् ,

ट, टा, टि, टी, टु , टू, टे, टै, टो, टौ, टं, ट:, ठ, ठा, ठि, ठी, ठु, ठू, ठे, ठै, ठो, ठौ, ठं, ठ:, ड, डा, डि, डी, डु, डू, डे, डै, डं, ड:, ढ, ढा, ढि, ढी, ढु, ढू, ढे, ढै, ढो, ढौ, ढं, ढ; ण,

त, ता, ति, ती, तु, तू, ते, तै, तो, तौ, तं, त:, थ, था, थि, थी, थु, थू, थे, थै, थो, थौ, थं, थः, द, दा, दि. दी, दु, दू, दे, दै, दो, दौ, दं, द:, ध, धा, धि, धी, धु, धू, धे, धै, धो, धौ, धं, ध:, न, ना, नि, नी, नु, नू, ने, नई, नो,नौ, नं, न:,

प, पा, पि, पी, पु, पू, पे, पै, पो, पौ, पं, प:, फ, फा, फी, फु, फू, फे, फै, फ़ो, फू, फन, फ:, ब, बा, बी, बी, बु, बू, बे, बै, बो, बौ, बं, ब:, भ, भा, भि, भी, भू, भू, भे, भै, भो. भौ, भं, भ:, म,माँ, मि, मी, मु, मू, मे, मै, मो, मौ, मन, म:,

य, या, यि, यी, यु, यू, ये, यै, यो, यू, यं, य:, र, रा, रि, री, रु, रू, रे,रै, रो, रं, र:, ल, ला, लि, ली, लू, लू, ले, लै, लो, लौ, लं:, व, वा, वि, वी, वू, वू, वे,वै, वो, वौ, वं, व:, श, शा, शि, शी, शु, शू, शे, शै, शो, शौ, शं, श:,

ष, षा, shi, षी, षु, षू, षे, shai, षो, shau, shn, ष:, स,सा, सि, सी, सु, सू, से, सै, सो, सौ, सं, स:, ह, हा, हि, ही, हु, हू, हे, है, हो, हौ, हं. ह:.  


उच्चार :

ध्वनि-तरंग आघात पर, आधारित उच्चार.
मन से मन तक पहुँचता, बनकर रस आगार.

ध्वनि विज्ञान सम्मत् शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र पर आधारित व्याकरण नियमों ने संस्कृत और हिन्दी को शब्द-उच्चार से उपजी ध्वनि-तरंगों के आघात से मानस पर व्यापक प्रभाव करने में सक्षम बनाया है। मानव चेतना को जागृत करने के लिए रचे गए काव्य में शब्दाक्षरों का सम्यक् विधान तथा शुद्ध उच्चारण अपरिहार्य है। सामूहिक संवाद का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सर्व सुलभ माध्यम भाषा में स्वर-व्यंजन के संयोग से अक्षर तथा अक्षरों के संयोजन से शब्द की रचना होती है। मुख में ५ स्थानों (कंठ, तालू, मूर्धा, दंत तथा अधर) में से प्रत्येक से ५-५ व्यंजन उच्चारित किए जाते हैं।

सुप्त चेतना को करे, जागृत अक्षर नाद.
सही शब्द उच्चार से, वक्ता पाता दाद.


उच्चारण स्थान
वर्ग
कठोर(अघोष) व्यंजन
मृदु(घोष) व्यंजन




अनुनासिक
कंठ
क वर्ग
क्
ख्
ग्
घ्
ङ्
तालू
च वर्ग
च्
छ्
ज्
झ्
ञ्
मूर्धा
ट वर्ग
ट्
ठ्
ड्
ढ्
ण्
दंत
त वर्ग
त्
थ्
द्
ध्
न्
अधर
प वर्ग
प्
फ्
ब्
भ्
म्
विशिष्ट व्यंजन

ष्, श्, स्,
ह्, य्, र्, ल्, व्


कुल १४ स्वरों में से ५ शुद्ध स्वर अ, इ, उ, ऋ तथा ऌ हैं. शेष ९ स्वर हैं आ, ई, ऊ, ऋ, ॡ, ए, ऐ, ओ तथा औ। स्वर उसे कहते हैं जो एक ही आवाज में देर तक बोला जा सके। मुख के अन्दर ५ स्थानों (कंठ, तालू, मूर्धा, दांत, होंठ) से जिन २५ वर्णों का उच्चारण किया जाता है उन्हें व्यंजन कहते हैं। किसी एक वर्ग में सीमित न रहने वाले ८ व्यंजन स्वरजन्य विशिष्ट व्यंजन हैं।

विशिष्ट (अन्तस्थ) स्वर व्यंजन :

य् तालव्य, र् मूर्धन्य, ल् दंतव्य तथा व् ओष्ठव्य हैं। ऊष्म व्यंजन- श् तालव्य, ष् मूर्धन्य, स् दंत्वय तथा ह् कंठव्य हैं।

स्वराश्रित व्यंजन: अनुस्वार ( ं ), अनुनासिक (चन्द्र बिंदी ँ) तथा विसर्ग (:) हैं।

संयुक्त वर्ण : विविध व्यंजनों के संयोग से बने संयुक्त वर्ण संयुक्ताक्षर: क्क, क्ख, क्र, कृ, क्त, क्ष, ख्य, ग्र, गृ, ग्न, ज्ञ, घृ, छ्र, ज्र, ज्ह, ट्र, त्र, द्द, द्ध, दृ, धृ, ध्र, नृ, प्र, पृ, भ्र, मृ, म्र, ऌ , व्र, वृ, श्र आदि का स्वतंत्र अस्तित्व मान्य नहीं है।

मात्रा :
उच्चारण की न्यूनाधिकता अर्थात किस अक्षर पर कितना कम या अधिक भार ( जोर, वज्न) देना है अथवा किसका उच्चारण कितने कम या अधिक समय तक करना है ज्ञात हो तो लिखते समय सही शब्द का चयन कर दोहा या अन्य काव्य रचना के शिल्प को संवारा और भाव को निखारा जा सकता है। गीति रचना के वाचन या पठन के समय शब्द सही वजन का न हो तो वाचक या गायक को शब्द या तो जल्दी-जल्दी लपेटकर पढ़ना होता है या खींचकर लंबा करना होता है, किंतु जानकार के सामने रचनाकार की विपन्नता, उसके शब्द भंडार की कमी, शब्द ज्ञान की दीनता स्पष्ट हो जाती है. अतः, दोहा ही नहीं किसी भी गीति रचना के सृजन के पूर्व मात्राओं के प्रकार व गणना-विधि पर अधिकार कर लेना जरूरी है।

उच्चारण नियम :

उच्चारण हो शुद्ध तो, बढ़ता काव्य-प्रभाव.
अर्थ-अनर्थ न हो सके, सुनिए लेकर चाव.

शब्दाक्षर के बोलने, में लगता जो वक्त.
वह मात्रा जाने नहीं, रचनाकार अशक्त.

हृस्व, दीर्घ, प्लुत तीन हैं, मात्राएँ लो जान.
भार एक, दो, तीन लो, इनका क्रमशः मान.

१. हृस्व (लघु) स्वर : कम भार, मात्रा १ - अ, इ, उ, ऋ तथा चन्द्र बिन्दु वाले स्वर।

२. दीर्घ (गुरु) स्वर : अधिक भार, मात्रा २ - आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं।

३. बिन्दुयुक्त स्वर तथा अनुस्वारयुक्त या विसर्ग युक्त वर्ण भी गुरु होता है। यथा - नंदन, दु:ख आदि.

४. संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण दीर्घ तथा संयुक्त वर्ण लघु होता है।

५. प्लुत वर्ण : अति दीर्घ उच्चार, मात्रा ३ - ॐ, ग्वं आदि। वर्तमान हिन्दी में अप्रचलित।

६. पद्य रचनाओं में छंदों के पाद का अन्तिम हृस्व स्वर आवश्यकतानुसार गुरु माना जा सकता है।

७. शब्द के अंत में हलंतयुक्त अक्षर की एक मात्रा होगी।

पूर्ववत् = पूर् २ + व् १ + व १ + त १ = ५

ग्रीष्मः = ग्रीष् 3 + म: २ +५

कृष्ण: = कृष् २ + ण: २ = ४

हृदय = १ + १ +२ = ४

अनुनासिक एवं अनुस्वार उच्चार :

उक्त प्रत्येक वर्ग के अन्तिम वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) का उच्चारण नासिका से होने का कारण ये 'अनुनासिक' कहलाते हैं।

१. अनुस्वार का उच्चारण उसके पश्चातवर्ती वर्ण (बाद वाले वर्ण) पर आधारित होता है। अनुस्वार के बाद का वर्ण जिस वर्ग का हो, अनुस्वार का उच्चारण उस वर्ग का अनुनासिक होगा। यथा-

१. अनुस्वार के बाद क वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चार ङ् होगा।

क + ङ् + कड़ = कंकड़,

श + ङ् + ख = शंख,

ग + ङ् + गा = गंगा,

ल + ङ् + घ् + य = लंघ्य

२. अनुस्वार के बाद च वर्ग का व्यंजन हो तो, अनुस्वार का उच्चार ञ् होगा.

प + ञ् + च = पञ्च = पंच

वा + ञ् + छ + नी + य = वांछनीय

म + ञ् + जु = मंजु

सा + ञ् + झ = सांझ

३. अनुस्वार के बाद ट वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चारण ण् होता है.

घ + ण् + टा = घंटा

क + ण् + ठ = कंठ

ड + ण् + डा = डंडा

४. अनुस्वार के बाद 'त' वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चारण 'न्' होता है.

शा + न् + त = शांत

प + न् + थ = पंथ

न + न् + द = नंद

स्क + न् + द = स्कंद

५ अनुस्वार के बाद 'प' वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चार 'म्' होगा.

च + म्+ पा = चंपा

गु + म् + फि + त = गुंफित

ल + म् + बा = लंबा

कु + म् + भ = कुंभ