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बुधवार, 4 नवंबर 2009

लघुकथा एकलव्य आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा

एकलव्य

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'

- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'

- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'

-हाँ बेटा.'

- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'


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