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रविवार, 19 अप्रैल 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
स्मित की रेखा अधर पर, लोढ़ा थामे हाथ।
स्वागत अद्भुत देखकर, लोढ़ा जी नत-माथ।।
*
है दिनेश सँग चंद्र भी, देख समय का फेर।
धूप-चाँदनी कह रहीं, यह कैसा अंधेर?
*
एटीएम में अब नहीं, रहा रमा का वास।।
खाली हाथ रमेश भी, शर्मा रहे उदास।
*
वास देव का हो जहाँ, दानव भागें दूर।।
शर्मा रहे हुजूर क्यों? तजिए अहं-गुरूर।
*
किंचित भी रीता नहीं, कभी कल्पना-कोष।
जीव तभी संजीव हो, जब तज दे वह रोष।।
*
दोहा उनका मीत है, जो दोहे के मीत।
रीत न केवल साध्य है, सदा पालिए प्रीत।।
*
असुर शीश कट लड़ी हैं, रामानुज को देख।
नाम लड़ीवाला हुआ, मिटी न लछमन-रेख?
*
आखा तीजा में बिका, सोना सोनी मस्त।
कर विनोद खुश हो रहे, नोट बिना हम त्रस्त।।
*
अवध बसे या बृज रहें, दोहा तजे न साथ।
दोहा सुन वर दें 'सलिल' खुश हो काशीनाथ।।
*
दोहा सुरसरि में नहा, कलम कीजिए धन्य।
छंद-राज की जय कहें, रच-पढ़ छंद अनन्य।।
*
शैल मित्र हरि ॐ जप, काट रहे हैं वृक्ष।
श्री वास्तव में खो रही, मनुज हो रहा रक्ष।।
*
बिरज बिहारी मधुर है, जमुन बिहारी मौन।
कहो तनिक रणछोड़ जू, अटल बिहारी कौन?
*
पंचामृत का पान कर, गईं पँजीरी फाँक।
संध्या श्री ऊषा सहित, बगल रहे सब झाँक।।
*
मगन दीप सिंह देखकर, चौंका सुनी दहाड़।
लौ बेचारी काँपती, जैसे गिरा पहाड़।।
*
श्री धर रहे प्रसाद में, कहें चलें जजमान।
विष्णु प्रसाद न दे रहे, संकट में है जान।।
*
१९.४.२०१८
श्रीधर प्रसाद द्विवेदी
सुरसरि सलिल प्रवाह सम, दोहा सुरसरि धार।
सहज सरल रसमय विशद, नित नवरस संचार।।
*
शैलमित्र अश्विनी कुमार
आधा वह रसखान है,आधा मीरा मीर।
सलिल सलिल का ताब ले,पूरा लगे कबीर।
*
कवि ब्रजेश
सुंदर दोहे लिख रहे, भाई सलिल सुजान।
भावों में है विविधता, गहन अर्थ श्रीमान।।
*
रमेश शर्मा
लिखें "सलिल" के नाम से, माननीय संजीव!
छंदशास्त्र की नींव हैं, हैं मर्मज्ञ अतीव!!
*

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
कबिरा जो देखे कहे
नदी नरमदा सम बहे
जो पाये वह बाँट दे
रमा राम में ही रहे
घरवाली का क्रोध भी
बोल न कुछ हँसकर सहे
देख पराई चूपड़ी
कभी नहीं किंचित् दहे
पल की खबर न है जरा
कल के लिये न कुछ गहे
राम नाम ओढ़े-बिछा
राम नाम चादर तहे
न तो उछलता हर्ष से
और न गम से घिर ढहे
*
संजीव
१७-४-२०२०

सोमवार, 30 मार्च 2020

दोहा

एक दोहा
*
सुन पढ़ सीख समझ जिसे, लिखा साल-दर साल।
एक निमिष में पढ़ लिया?, सचमुच किया कमाल।।
***
संवस
७९९९५५९६१८

गुरुवार, 26 मार्च 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
सुधियाँ तुम्हारी जब तहें
अमृत-कलश तब हम गहें
श्रम दीप मंज़िल ज्योति हो
कोशिश शलभ हम मत दहें
बन स्नेह सलिला बिन रुके
नफरत मिटा बहते रहें
लें चूम सुमुखि कपोल जब
संयम किले पल में ढहें
कर काम सब निष्काम हम
गीता न कहकर भी कहें
*
संजीव
२६-३-२०२०
९४२५१८३२४४

बुधवार, 25 जनवरी 2017

doha

सामयिक दोहा सलिला 
*
गाँधी जी के नाम पर, नकली गाँधी-भक्त 
चित्र छाप पल-पल रहे, सत्ता में अनुरक्त 
लालू के लल्ला रहें, भले मैट्रिक फेल 
मंत्री बन डालें 'सलिल', शासन-नाक नकेल 
*
ममता की समता करे, किसमें है सामर्थ?
कौन कर सकेगा 'सलिल', पल-पल अर्थ-अनर्थ??
*
बाप बाप पर पुत्र है, चतुर बाप का बाप 
धूल चटाकर चचा को, मुस्काता है आप 
*
साइकिल-पंजा मिल हुआ, केर-बेर का संग 
संग कमल-हाथी मिलें, तभी जमेगा रंग 
*

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014

haiku:

हाइकु

मन विभोर
ओस कण अँजोर
सार्थक भोर
*
गुनगुनाहट
रवि ले आया, पंछी
चहचहाहट
*
जल तरगें
तरंगित किरणों
संग नर्तित
*

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

नवगीत: दिशाहीन बंजारे हैं.... संजीव 'सलिल'


*
कौन, किसे, कैसे समझाये?
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह
खुद को तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोगकर
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों-
नाहक बजते इकतारे हैं...
*
पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटखा
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या
दिशाहीन बंजारे हैं ...
*********

Acharya Sanjiv Salil

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मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

रोचक चर्चा : A good one.... कौन परिंदा?, कौन परिंदी??... -विजय कौशल, संजीव 'सलिल'

रोचक चर्चा : A good one....
कौन परिंदा?, कौन परिंदी??...
-विजय कौशल, संजीव 'सलिल'
*

For those who do not know how to tell the sex of a bird here is the easy way 
 


 *
कौन परिंदा?, कौन परिंदी? मेरे मन में उठा सवाल.
किससे पूछूं?, कौन बताये? सबने दिया प्रश्न यह टाल..
मदद करी तस्वीर ने मेरी,बिन बूझे हल हुई पहेली.
देख आप भी जान जाइये, कौन सहेला?, कौन सहेली??..
 करी कैमरे ने हल मुश्किल, देता चित्र जवाब.
कौन परिंदा?, कौन परिंदी??, लेवें जान जनाब..
*





अनथक श्रम बिन रुके नसीहत, जो दे वही परिन्दी.
मुँह फेरे सुन रहा अचाहे, अंगरेजी या हिन्दी..
बेबस हुआ परिंदा उसकी पीर नहीं अनजानी,.
'सलिल' ज़माने से घर-घर की यह ही रही कहानी..
 *
HOW TO TELL THE SEX OF A BIRD

This Is AMAZING!!!

Until now I never fully understood how to tell The difference Between Male and Female Birds. I always thought it had to be determined surgically. Until Now..


Below are Two Birds. Study them closely....See If You Can Spot Which of The Two Is The Female.
It can be done.
Even by one with limited bird watching skills.!
Send this to all of the men you know, who could do with a good laugh and to all women who have a great sense of humor..
*** 

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

बाल गीत: सोन चिरैया ---संजीव वर्मा 'सलिल'

बाल गीत: 

सोन चिरैया ---

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

सोनचिरैया फुर-फुर-फुर,      
उड़ती फिरती इधर-उधर.      
थकती नहीं, नहीं रूकती.     
रहे भागती दिन-दिन भर.    

रोज सवेरे उड़ जाती.         
दाने चुनकर ले आती.        
गर्मी-वर्षा-ठण्ड सहे,          
लेकिन हरदम मुस्काती.    

बच्चों के सँग गाती है,      
तनिक नहीं पछताती है.    
तिनका-तिनका जोड़ रही,  
घर को स्वर्ग बनाती है.     

बबलू भाग रहा पीछे,       
पकडूँ  जो आए नीचे.       
घात लगाये है बिल्ली,      
सजग मगर आँखें मीचे.   

सोन चिरैया खेल रही.
धूप-छाँव हँस झेल रही.
पार करे उड़कर नदिया,
नाव न लेकिन ठेल रही.

डाल-डाल पर झूल रही,
मन ही मन में फूल रही.
लड़ती नहीं किसी से यह,
खूब खेलती धूल रही. 

गाना गाती है अक्सर,
जब भी पाती है अवसर.
'सलिल'-धार में नहा रही,
सोनचिरैया फुर-फुर-फुर. 

* * * * * * * * * * * * * *                                                              
= यह बालगीत सामान्य से अधिक लम्बा है. ४-४ पंक्तियों के ७ पद हैं. हर पंक्ति में १४ मात्राएँ हैं. हर पद में पहली, दूसरी तथा चौथी पंक्ति की तुक मिल रही है.
चिप्पियाँ / labels : सोन चिरैया, सोहन चिड़िया, तिलोर, हुकना, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', great indian bustard, son chiraiya, sohan chidiya, hukna, tilor, indian birds, acharya sanjiv 'salil' 

बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

दोहा सलिला: एक हुए दोहा यमक --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

एक हुए दोहा यमक

-- संजीव 'सलिल'
*
दिया दिया लेकिन नहीं, बाली उसमें ज्योत.
बाली उमर न ला सकी, उजियारे को न्योत..
*
संग समय के जंग है, ताकत रखें अकूत.
न हों कुमारी अब 'सलिल', सुकुमारी- मजबूत..
*
लाल किसी का हो- मिला, खून सभी का लाल.
हों या ना हों पास में, हीरे मोती लाल..
*
चली चाल पर चाप पर, नहीं सुधारी चाल.
तभी चालवासी करें, थू-थू बिगड़े हाल..
*
पाल और पतवार बिन, पेट न पाती पाल.
नौका मौका दे चलें, जब चप्पू सब काल..
*
काल न आता, आ गया, काल बन गया काल.
कौन कहे सत्काल कब, कब अकाल-दुष्काल..
*
भाव बिना अभिनय विफल, खाओ न ज्यादा भाव.
ताव-चाव गुम हो गये, सुनकर ऊँचे भाव..
*
असरकार सरकार औ', असरदार सरदार.
अब भारत को दो प्रभु, सचमुच है दरकार..
*
सम्हल-सम्हल चल ढाल पर, फिसल न जाये पैर.
ढाल रहे मजबूत तो, मना जान की खैर..
*
दीख पालने में रहे, 'सलिल' पूत के पैर.
करे कार्य कुछ पूत हो, तभी सभी की खैर..
*
खैर मना ले जान की, लगा पान पर खैर.
पान मान का खिला-खा, मिट जाये सब  बैर..
*

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

लघुकथा निपूती भली थी -- संजीव 'सलिल'

लघुकथा 
निपूती भली थी  
    संजीव 'सलिल'     
          
बापू के निर्वाण दिवस पर देश के नेताओं, चमचों एवं अधिकारियों ने उनके आदर्शों का अनुकरण करने की शपथ ली। अख़बारों और दूरदर्शनी चैनलों ने इसे प्रमुखता से प्रचारित किया।

अगले दिन एक तिहाई अर्थात नेताओं और चमचों ने अपनी आँखों पर हाथ रख कर कर्तव्य की इति श्री कर ली। 

उसके बाद दूसरे तिहाई अर्थात अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए. 

तीसरे दिन शेष तिहाई अर्थात पत्रकारों ने मुँह पर हाथ रखे तो भारत माता प्रसन्न हुई कि देर से ही सही इन्हे सदबुद्धि तो आयी।

उत्सुकतावश भारत माता ने नेताओं के नयनों पर से हाथ हटाया तो देखा वे आँखें मूँदे जनगण के दुःख-दर्दों से दूर सत्ता और सम्पत्ति जुटाने में लीन थे।

दुखी होकर भारत माता ने दूसरे बेटे अर्थात अधिकारियों के कानों पर रखे हाथों को हटाया तो देखा वे आम आदमी की पीड़ाओं की अनसुनी कर पद के मद में मनमानी कर रहे थे। 

नाराज भारत माता ने तीसरे पुत्र अर्थात पत्रकारों के मुँह पर रखे हाथ हटाये तो देखा नेताओं और अधिकारियों से मिले विज्ञापनों से उसका मुँह बंद था और वह दोनों की मिथ्या महिमा गाकर ख़ुद को धन्य मान रहा था।

अपनी सामान्य संतानों के प्रति तीनों की लापरवाही से क्षुब्ध भारत माता के मुँह से निकला- ‘ऐसे पूतों से तो मैं निपूती ही भली थी।

*********



एक रचना: कम हैं... --संजीव 'सलिल'

एक रचना:
कम हैं...
--संजीव 'सलिल'
*
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...

अनगिनती रिश्ते दुनिया में
बनते और बिगड़ते रहते.
कुछ मिल एकाकार हुए तो
कुछ अनजान अकड़ते रहते.
लेकिन सारे के सारे ही
लगे मित्रता के हामी हैं.
कुछ गुमनामी के मारे हैं,
कई प्रतिष्ठित हैं, नामी हैं.
कोई दूर से आँख तरेरे
निकट किसी की ऑंखें नम हैं
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...

हमराही हमसाथी बनते
मैत्री का पथ अजब-अनोखा
कोई न देता-पाता धोखा
हर रिश्ता लगता है चोखा.
खलिश नहीं नासूर हो सकी
पल में शिकवे दूर हुए हैं.
शब्द-भाव के अनुबंधों से
दूर रहे जो सूर हुए हैं.
मैं-तुम के बंधन को तोड़े
जाग्रत होता रिश्ता 'हम' हैं
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...

हम सब एक दूजे के पूरक
लगते हैं लेकिन प्रतिद्वंदी.
उड़ते हैं उन्मुक्त गगन में
लगते कभी दुराग्रह-बंदी.
कौन रहा कब एकाकी है?
मन से मन के तार जुड़े हैं.
सत्य यही है अपने घुटने
'सलिल' पेट की ओर मुड़े हैं.
रिश्तों के दीपक के नीचे
अजनबियत के कुछ तम-गम हैं.
जितने रिश्ते बनते  कम हैं...
  *
Acharya Sanjiv Salil

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शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

नवगीत: उत्सव का मौसम -- संजीव 'सलिल'

नवगीत 
उत्सव का मौसम 
-- संजीव 'सलिल'
*
उत्सव का
मौसम आया
मन बन्दनवार बनो...
*
सूना पनघट और न सिसके.
चौपालों की ईंट न खिसके..
खलिहानों-अमराई की सुध
ले, बखरी की नींव न भिसके..
हवा विषैली
राजनीति की
बनकर पाल तनो...
*
पछुआ को रोके पुरवाई.
ब्रेड-बटर तज दूध-मलाई
खिला किसन को हँसे जसोदा-
आल्हा-कजरी पड़े सुनाई..
कंस बिराजे
फिर सत्ता पर
बन बलराम धुनो...
*
नेह नर्मदा सा अविकल बह.
गगनविहारी बन न, धरा गह..
खुद में ही खुद मत सिमटा रह-
पीर धीर धर, औरों की कह..
दीप ढालने
खातिर माटी के
सँग 'सलिल' सनो.
*****
Acharya Sanjiv Salil

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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

नवगीत : तुम मुस्कायीं जिस पल.... -- संजीव 'सलिल'

नवगीत 

तुम मुस्कायीं  जिस पल...

संजीव 'सलिल'

 *
तुम मुस्कायीं जिस पल
   उस पल उत्सव का मौसम.....
*
लगे दिहाड़ी पर हम
जैसे कितने ही मजदूर
गीत रच रहे मिलन-विरह के
आँखें रहते सूर
नयन नयन से मिले झुके
उठ मिले मिट गया गम
तुम शर्मायीं जिस पल
  उस पल उत्सव का मौसम.....
*
देखे फिर दिखलाये
एक दूजे को सपन सलोने
बिना तुम्हारे छुए लग रहे
हर पकवान अलोने
स्वेद-सिंधु में नहा लगी
हर नेह-नर्मदा नम
तुम अकुलायीं जिस पल
  उस पल उत्सव का मौसम.....
*
कंडे थाप हाथ गुबरीले
सुना रहे थे फगुआ
नयन नशीले दीपित
कहते दीवाली अगुआ
गाल गुलाबी 'वैलेंटाइन
डे' की नव सरगम
तुम भरमायीं  जिस पल
  उस पल उत्सव का मौसम.....
****

एक गीत: शेष है... --संजीव 'सलिल'

एक गीत:
शेष है...
संजीव 'सलिल'
*
किरण आशा की
अभी भी शेष है...
*
देखकर छाया न सोचें
उजाला ही खो गया है.
टूटता सपना नयी आशाएँ
मन में बो गया है.
हताशा कहती है इतना
सदाशा भी लेश है...
*
भ्रष्ट है आचार तो क्या?
सोच है-विचार है.
माटी का तन निर्बल
दैव का आगार है.
कालिमा अमावसी में
लालिमा अशेष है...
*
कुछ न कहीं खोया है
विधि-हरि-हर हम में हैं.
शारदा, रमा, दुर्गा
दीप अगिन तम में हैं.
आशत स्वयं में ही
चाहिए विशेष है...
***
Acharya Sanjiv Salil

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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

रचना / प्रति रचना: परिचय --राकेश खंडेलवाल / सलिल

रचना / प्रति रचना:
परिचय 
राकेश खंडेलवाल / सलिल
*
बस इतना है परिचय मेरा
भाषाओं से कटा हुआ मैं
हो न सका अभिव्यक्त गणित वह
गये नियम प्रतिपादित सब ढह
अनचाहे ही समीकरण से जिसके प्रतिपल घटा हुआ मैं
जीवन की चौसर पर साँसों के हिस्से कर बँटा हुआ मैं
बस इतना है परिचय मेरा
इक गंतव्यहीन यायावर
अन्त नहीं जिसका कोई, पथ
नीड़ नहीं ना छाया को वट
ताने क्रुद्ध हुए सूरज की किरणों की इक छतरी सर पर
चला तोड़ मन की सीमायें, खंड खंड सुधि का दर्पण कर
बस इतना है परिचय मेरा
सका नहीं जो हो परिभाषित
इक वक्तव्य स्वयं में उलझा
अवगुंठन जो कभी न सुलझा
हो पाया जो नहीं किसी भी शब्द कोश द्वारा अनुवादित
आधा लिखा एक वह अक्षर, जो हर बार हुआ सम्पादित
बस इतना है परिचय मेरा




*
प्रति रचना :
_परिचय:
संजीव 'सलिल'
*
बस इतना परिचय काफी है...
*
परिचय के मुहताज नहीं तुम.
हो न सके हो चाह कभी गुम.
तुमसे नियमों की सार्थकता-
तुम बिन वाचा होती गुमसुम.
तुम बिन दुनिया नाकाफी है...
*
भाषा-भूषा, देश-काल के,
सर्जक, ध्वंसक व्याल-जाल के.
मंजिल सार्थक होती तुमसे-
स्वेद-बिंदु शुचि काल-भाल के.
समय चाहता खुद माफी है.....
*
तुमको सच से अलग न पाया.
अनहद भी निज स्वर में गाया.
सत-चित-आनंद, सत-शिव-सुंदर -
साथ लिये फिरते सरमाया.
धूल पाँव की गद्दाफी है...
*

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

एक कुण्डलिनी: गूगल के १३ वें जन्मदिवस पर -- संजीव वर्मा 'सलिल'

एक कुण्डलिनी:
गूगल के १३ वें जन्मदिवस पर
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सकल जगत एक गाँव है, गूगल है चौपाल.
सबको सबसे जोड़ता, करता रोज कमाल.
करता रोज कमाल, धमाल मचाता जीभर.
चढ़ जाता है नशा, स्नेह की मदिरा पीकर..
कहे सलिल कविराय, अकेला रहे बे-अकल.
अकलवान है वही, जोड़ता जगत जो सकल..
Acharya Sanjiv Salil

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सोमवार, 26 सितंबर 2011

एक गीत: गरल पिया है... -- संजीव 'सलिल'

एक गीत:
गरल पिया है...
संजीव 'सलिल'
*
तुमने तो बस गरल पिया है...

तुम संतोष करे बैठे हो.
असंतोष को हमने पाला.
तुमने ज्यों का त्यों स्वीकारा.
हमने तम में दीपक बाला.
जैसा भी जब भी जो पाया
हमने जी भर उसे जिया है
तुमने तो बस गरल पिया है...

हम जो ठानें वही करेंगे.
जग का क्या है? हँसी उड़ाये.
चाहे हमको पत्थर मारे
या प्रशस्ति के स्वर गुंजाये.
कलियों की रक्षा करने को
हमने पत्थर किया हिया है
तुमने तो बस गरल पिया है...

जड़ता वर तुम बने अहल्या.
विश्वामित्र बने हम चेतन.
तुमको गलियाँ रहीं लुभातीं
हमको भाया आत्म निकेतन.
लेना-देना तुम्हें न भाया.
हमने सुख-दुःख लिया-दिया है.
तुमने तो बस गरल पिया है...

हम विषधर के फन पर नाचे,
कभी इंद्र को रहे छकाते.
कभी सुनी मीरा की वाणी
सूर कभी कुछ रहे सुनाते.
जब-जब कोई मिला सुदामा
हमने तंदुल माँग लिया है.
तुमने तो बस गरल पिया है...

तुमने अपना हमें न माना.
तुमको साया लगा पराया.
हमने गैर न तुमको जाना.
हमें गैर लग सगा सुहाया..
तुम मनमोहन को सराहते.
हमको जनगण लगा पिया है.
तुमने तो बस गरल पिया है...
  ***
Acharya Sanjiv Salil

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रविवार, 25 सितंबर 2011

एक हुए दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
*
हरि से हरि-मुख पा हुए, हरि अतिशय नाराज.
बनना था हरि, हरि बने, बना-बिगाड़ा काज?
हरि = विष्णु, वानर, मनुष्य (नारद), देवरूप, वानर
*
नर, सिंह, पुर पाये नहीं, पर नरसिंहपुर नाम.
अब हर नर कर रहा है, नित सियार सा काम..
*
बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.
मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..
*
करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.
करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..
*
खान-पान कर संतुलित, खा अजवाइन-पान.
सात्विक शुद्ध विचार रख, बन सद्गुण की खान..
*
खिला, न दे तू सुपारी, मीत न करना भीत.
खेली जिसने सु-पारी, उसने पाई जीत..
खिला = खिला दे, खेलने दे -श्लेष.
सुपारी = खाद्य पदार्थ, हत्या हेतु अग्रिम राशि- श्लेष.
सु-पारी = अच्छी पारी.
*
लीक पीटते रह गये, तजी न किंचित लीक.
चक्र प्रगति का थम गया, हवा हवा हुई लीक..
*
धर उधार अधार में, मिलती बिन आधार.
वही धार मंझधार के, मध्य मिली साधार..
*
आम लेट हरदम नहीं, खास नहीं पाबंद.
आमलेट खा रहे हैं, दोनों ले आनंद..
*
भेद रहे दे भेद जो, सकल सुरक्षा चक्र.
छेड़ बंद कर छेड़ दें, उनको जो हैं वक्र..
*
तनखा को तन खा गया, लेकिन मिटी  न भूख.
सूख रहा आनन पिचक, कैसे रहे रसूख..
*************

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

दोहा सलिला: गले मिले दोहा-यमक --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिले दोहा-यमक
संजीव 'सलिल'
*
गले मिले दोहा-यमक, भूले सारे भेद.
भेद न कहिये किसी, हो जीवन भर खेद..
*
कवितांजलि स्वीकारातीं, माँ शारद उपहार.
कवितांजलि कविगुरु करें, जग को बंदनवार..
*
कहें नीर जा मत कभी, मिट न सकेगी प्यास.
मिले नीरजा जब कभी, अधरों छाये प्यास..
*
चकमक घिस पैदा करे, अब न कोई जन आग.
चकमक देखे सब जगत, मन में भर अनुराग..
*
तुला न मन से मन 'सलिल', तौल सके तो तौल.
बात पचाना सीखिए, पड़े न मन में खौल..
*
जान न जाती जान सँग, जान न हो बेजान.
'सलिल' कौन अनजान है, कहिये कौन सुजान??
*
समर अमर होता नहीं,स-मर सकल संसार.
भ्रमर 'सलिल' से बच रहें, करे भ्रमर गुंजार..
*
हल की जब से पहेली, हलकी तबियत मीत.
मल मल मलमल धो पहन, यही जगत की रीत..
*
कर संग्रह कर ने किया, फैलाकर कर आज.
चाकर ने जाकर कहा:,आकर पहनें ताज..
*
सर ने सर को सर नवा, माँगा यह आशीष.
अवसर पा सर कर सकूँ, भव-बाधा जगदीश..
*
नीरज से रजनी कहे:, तात! अमर हैं गीत.
नीरज पा सजनी कहे, शतदल सी हो प्रीत..
*
Acharya Sanjiv Salil

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