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शनिवार, 15 जून 2013

doha geet: baat n sunen kabir ki -sanjiv

दोहा गीत :
http://www.wallpaperswala.com/wp-content/gallery/kabir-das/snat-kabir-das-jayanti.jpg
बात न सुनें कबीर की
संजीव
*
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार.
सच्चों की है अनसुनी-
झूठे हुए लबार….
*
एकै आखर प्रेम का, नफरत के हैं ग्रन्थ।
सम्प्रदाय सौ द्वेष के, लुप्त स्नेह के पन्थ।।
अनदेखी विद्वान की,
मूढ़ों की मनुहार.
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार...
*
लोई के पीछे पड़े, गुंडे सीटी मार।
सिसक रही है कमाली, टूटा चरखा-तार।।
अद्धा लिये कमाल ने,
दिया कुटुंब उबार।
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार...
*
क्रय-विक्रय कर राम का, जग माया का दास।
त्याग-त्याग वैराग का, पग-पग पर उपहास।।
नाहर की घिघ्घी बँधी,
गरजें कूकुर-स्यार।
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार...
*


 

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

धरोहर: दोहा दुनिया

धरोहर:

दोहा दुनिया


रसखान

प्रेम प्रेम सब ही कहें, प्रेम न जानत कोय।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोय॥

काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य।
इन सबहीं ते प्रेम है - परे, कहत मुनिवर्य॥

बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि।
सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥
 

बिहारी

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अली कली में ही बिंध्यो, आगे कौन हवाल।।
चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर॥
कोटि जतन कोऊ करै, परै न प्रकृतिहिं बीच।
नल बल जल ऊँचो चढ़ै, तऊ नीच को नीच।।
 

रहीम

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुस, चून॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥

 

कबीर

तिनका कबहुँ न निंदिये, पाँव तले भलि होय ।
कबहूँ उड़ आँखन पड़े, पीर घनेरी होय ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ॥

वृन्द

कुल सपूत जान्यौ परै लखि सुभ लच्छन गात।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात॥

क्यों कीजै ऐसो जतन जाते काज न होय।
परवत पर खोदी कुआँ कैसे निकसे तोय॥

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान॥
 
कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खइयो मास
दो नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस
[इस दोहे के रचयिता के बारे में संदेह है]
 
केशवदास
केशव केसन असि करी जस अरि हु न कराय
चन्द्र वदन मृग लोचनी बाबा कह कें जाय
 
 
चंदबरदाई
चार बास चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान
ता ऊपर सुल्तान है मत चूकै चौहान
 
रसलीन
कुमति चंद प्रति द्यौस बढ़ि मास मास कढ़ि आय।
तुव मुख मधुराई लखे फीको परि घटि जाय
 
***
 

बुधवार, 20 जुलाई 2011

गीत; फिर आओ जा याचक द्वारे? संजीव 'सलिल'

गीत;
फिर आओ जा याचक द्वारे?
संजीव 'सलिल'
*
फिर आओ जा याचक द्वारे?...

कहत छंद कछु रचो-सुनाओ.
दर्द सहो चुप औ' मुस्काओ..
जौन कबीरा बसो हिया मां-
सोन न दो, कर टेर जगाओ.
सावन आओ कजरी गा रे...

जलधर-हलधर भेंटे भुजभर.
बीच हमारे अंतर गजभर.
मंतर फूँको, जंतर फूँको-
बाकी रहे न अंतर रजभर.
बन हरियाली मरु पर छा रे...

मंद छंद खों समझ न पावे.
चंद छन्द खों गले लगावे.
काव्य कामिनी टेर रही चुप-
कौन छंद खों हृदै बसावे.
ढाई आखर डूब-डूबा रे...
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

सोमवार, 4 अक्टूबर 2010

मुक्तिका : सिखा गया --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :                                                                                         

सिखा गया 

संजीव 'सलिल'
*
जिसकी उँगली थामी चुप रहना सिखा गया.
जिसने उँगली थामी चट चलना सिखा गया..

दर्पण से बात हुई तो खुद को खुद देखा.
कोई न पराया है, जग अपना सिखा गया..

जब तनी तर्जनी तो, औरों के दोष गिने.
तब तीन उँगलियों का सच जगना सिखा गया..

आते-जाते देखा, हर हाथ मिला खाली.
बोया-पाया-खोया ही तजना सिखा गया..

ढाई आखर का सच, कोई न पढ़ा पाया.
अनपढ़ न कबीरा था, मन पढ़ना सिखा गया..

जब हो विदेह तब ही, हो पात्र प्रेम के तुम.
यमुना रज का कण-कण, रस चखना सिखा गया.

जग नेह नर्मदा है, जग अवगाहन कर लो.
हर पंकिल पग-पंकज, उठ चलना सिखा गया..

नन्हा सा तिनका भी जब पड़ा नयन में तो.
सब वहम अहम् का धो, रो-चुपना सिखा गया..

रे 'सलिल' न वारी क्यों, बनवारी पर है तू?
सुन बाँस मुरलिया बन, बज सुनना सिखा गया..

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मंगलवार, 29 जून 2010

गीत: आँख का पानी ---संजीव 'सलिल'

नवगीत:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
seepage_from_waste_water.jpg
*
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
सुबह सूरज उगे या संझा ढले.
नहीं पल भर भी कभी निज कर मले.
कहे नानी नित कहानी सुन-गुनो-
श्रम-रहित सपना महज खुद को छले.
जल बचा पौधे लगा
भू को करो धानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
भुलाकर मतभेद सबसे मिल गले.
हो नहीं मन-भेद अपनापन पले.
सभी अपने किसे कहता गैर तू-
तभी तो कुल-दीप के हाथों जले.
ढाई आखर सुन-सुनाने
कहे तू बानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
कबीरा का ठाठ राजा को खले.
कोई बंधन नहीं मन-मर्जी चले.
ठेठ दिल को छुए साखी क्यों भला?
स्वार्थ सब सर्वार्थ-भट्टी में जले.
जोड़ मरती रिक्त हाथों
जिंदगानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*