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मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

navgeet

नवगीत:
संजीव 'सलिल'
मैं लड़ूँगा....
.
लाख दागो गोलियाँ
सर छेद दो
मैं नहीं बस्ता तजूँगा।
गया विद्यालय
न वापिस लौट पाया
तो गए तुम जीत
यह किंचित न सोचो,
भोर होते ही उठाकर
फिर नये बस्ते हजारों
मैं बढूँगा।
मैं लड़ूँगा....
.
खून की नदियाँ बहीं
उसमें नहा
हर्फ़-हिज्जे फिर पढ़ूँगा।
कसम रब की है
मदरसा हो न सूना
मैं रचूँगा गीत
मिलकर अमन बोओ।
भुला औलादें तुम्हारी
तुम्हें, मेरे साथ होंगी
मैं गढूँगा।
मैं लड़ूँगा....
.
आसमां गर स्याह है
तो क्या हुआ?
हवा बनकर मैं बहूँगा।
दहशतों के
बादलों को उड़ा दूँगा
मैं बनूँगा सूर्य
तुम रण हार रोओ ।
वक़्त लिक्खेगा कहानी
फाड़ पत्थर मैं उगूँगा
मैं खिलूँगा।
मैं लड़ूँगा....
१८-१२-२०१४
समन्वयम,
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
९४२५१ ८३२४४, ०७६१ २४१११३१

navgeet

नवगीत:
पेशावर के नरपिशाच 
धिक्कार तुम्हें

दिल के टुकड़ों से खेली खूनी होली 
शर्मिंदा है शैतानों की भी टोली
बना न सकते हो मस्तिष्क एक भी तुम
मस्तिष्कों पर मारी क्यों तुमने गोली?
लानत जिसने भेज
किया लाचार तुम्हें
.
दहशतगर्दों! जिसने पैदा किया तुम्हें
पाला-पोसा देखे थे सुख के सपने
सोचो तुमने क़र्ज़ कौन सा अदा किया
फ़र्ज़ निभाया क्यों न पूछते हैं अपने?
कहो खुदा को क्या जवाब दोगे जाकर
खला नहीं क्यों करना
अत्याचार तुम्हें?
.
धिक्-धिक् तुमने भू की कोख लजाई है
पैगंबर मजहब रब की रुस्वाई है
राक्षस, दानव, असुर, नराधम से बदतर
तुमको जननेवाली माँ पछताई है
क्यों भाया है बोलो
हाहाकार तुम्हें?
.

१८-१२-२०१४ 

navgeet

नवगीत: 
बस्ते घर से गए पर 
लौट न पाये आज 
बसने से पहले हुईं 
नष्ट बस्तियाँ आज 
.
है दहशत का राज
नदी खून की बह गयी
लज्जा को भी लाज
इस वहशत से आ गयी
गया न लौटेगा कभी
किसको था अंदाज़?
.
लिख पाती बंदूक
कब सुख का इतिहास?
थामें रहें उलूक
पा-देते हैं त्रास
रहा चरागों के तले
अन्धकार का राज
.
ऊपरवाले! कर रहम
नफरत का अब नाश हो
दफ़्न करें आतंक हम
नष्ट घृणा का पाश हो
मज़हब कहता प्यार दे
ठुकरा तख्तो-ताज़ 


१८-१२-२०१४ 

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

navgeet

नवगीत 
*
'सौ सुनार की' भेंट तुम्हारी 
'एक लुहार की' भेंट हमारी 
*
'जैसे को तैसा'
लो यार!
नगद रहे,
क्यों रखें उधार?
एक वार से
बंटाढार।
अब रिश्तों में
करो सुधार।
नफरत छोड़ो,
लो-दो प्यार।
हार रहे बिन खेले पारी
करे न राख एक चिंगारी
*
'गधा शेर की
पाकर खाल।
भूल गया खुद
अपनी चाल।
ढेंचू-ढेंचू
रेंक निहाल।
पड़े लट्ठ
तो हुआ निढाल।
कसम खाई
दे छोड़ बवाल।
अपनी गलती तुरत सुधारी
तभी बची जां, दहशतधारी
*
'तीस मार खां'
हो तुम माना।
लेकिन तुमने
हमें न जाना।
गर्दभ सुर में
गाते गाना।
हमें सुहाता
ढोल बजाना।
नहीं मिलेगा
कहीं ठिकाना।
बन सकती जो बात बिगारी
जान बचे, आ शरण हमारी
*
२९-९-२०१६

navgeet

एक रचना 
बातें हों अब खरी-खरी 

मुँह देखी हो चुकी बहुत 
अब बातें हों कुछ खरी-खरी 
जो न बात से बात मानता
लातें तबियत करें हरी
*
पाक करे नापाक हरकतें
बार-बार मत चेताओ
दहशतगर्दों को घर में घुस
मार-मार अब दफनाओ
लंका से आतंक मिटाया
राघव ने यह याद रहे
काश्मीर को बचा-मिलाया
भारत में, इतिहास कहे
बांगला देश बनाया हमने
मत भूले रावलपिडी
कीलर-सेखों की बहादुरी
देख सरहदें थीं सिहरी
मुँह देखी हो चुकी बहुत
अब बातें हों कुछ खरी-खरी
*
करगिल से पिटकर भागे थे
भूल गए क्या लतखोरों?
सेंध लगा छिपकर घुसते हो
क्यों न लजाते हो चोरों?
पाले साँप, डँस रहे तुझको
आजा शरण बचा लेंगे
ज़हर उतार अजदहे से भी
तेरी कसम बचा लेंगे
है भारत का अंग एक तू
दुहराएगा फिर इतिहास
फिर बलूच-पख्तून बिरादर
के होंठों पर होगा हास
'जिए सिंध' के नारे खोदें
कब्र दुश्मनी की गहरी
मुँह देखी हो चुकी बहुत
अब बातें हों कुछ खरी-खरी
*
२१-९-२०१६

रविवार, 27 दिसंबर 2015

navgeet

एक रचना:
*
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे
*
लीक छोड़ तीनों चलें
शायर सिंह सपूत
लीक-लीक तीनों चलें
कायर स्यार कपूत
बहुत लड़े, आओ बने
आज शांति के दूत
दिल से लगाया
और
अंतर भुलाये रे
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे
*
राह दोस्ती की चलें
चलो शत्रुता भूल
हाथ मिलायें आज फिर
दें न भेद को तूल
मिल बिखराएँ फूल कुछ
दूर करें कुछ शूल
जग चकराया
और
हम मुस्काये रे
तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे
*
जिन लोगों के वक्ष पर
सर्प रहे हैं लोट
उनकी नजरों में रही
सदा-सदा से खोट
अब मैं-तुम हम बन करें
आतंकों पर चोट
समय न बोले
मौके
हमने गँवाये रे!तुमने बुलाया
और
हम चले आये रे
*