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शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

muktak salila

मुक्तक सलिला
*
मुक्तक 
माँ 
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी 
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी 
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी
नारी
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी
*
पत्नि
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन
*
दीप प्रज्वलन
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप
*
परोपकार
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार
*
एकता
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना
असली गहना सत्य न भूलो
धारण कर झट नभ को छू लो
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो
***

www.divyanarmada.in, ९४२५१८३२४४ 
#हिंदी_ब्लॉगर 

शनिवार, 18 नवंबर 2017

doha deep

दोहा दीप:  
सुमन सदृश जो महकते, उन पर सलिल निसार
दोहा-दोहा दमकता, दीपित दिया उदार

गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

geet

गीत:
दीप, ऐसे जलें...
संजीव 'सलिल' 
*
दीप के पर्व पर जब जलें- 
दीप, ऐसे जलें...
*
स्वेद माटी से हँसकर मिले,
पंक में बन कमल शत खिले।
अंत अंतर का अंतर करे-
शेष होंगे न शिकवे-गिले।।
नयन में स्वप्न नित नव खिलें-
दीप, ऐसे जलें...
*
श्रम का अभिषेक करिए सदा,
नींव मजबूत होगी तभी।
सिर्फ सिक्के नहीं लक्ष्य हों-
साध्य पावन वरेंगे सभी।।
इंद्र के भोग, निज कर मलें-
दीप, ऐसे जलें...
*
जानकी जान की खैर हो,
वनगमन-वनगमन ही न हो।
चीर को चीर पायें ना कर-
पीर बेपीर गायन न हो।।
दिल 'सलिल' से न बेदिल मिलें-
दीप, ऐसे जलें...
*****
sail.sanjiv@gmail.com, 9425183244
http://divyanarmada.blogspot.com
#hindi_blogger

रविवार, 10 सितंबर 2017

doha

दोहा सलिला-
तन मंजूषा ने तहीं, नाना भाव तरंग
मन-मंजूषा ने कहीं, कविता सहित उमंग 
*
आत्म दीप जब जल उठे, जन्म हुआ तब मान 
श्वास-स्वास हो अमिय-घट, आस-आस रस-खान
*
सत-शिव-सुंदर भाव भर, रचना करिये नित्य
सत-चित-आनन्द दरश दें, जीवन सरस अनित्य
*

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

mukatak

मुक्तक 
माँ 
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी 
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी 
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी 
नारी 
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी 
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी 
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी 
*
पत्नि 
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन 
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन 
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज 
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन 
*
दीप प्रज्वलन 
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप  
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप   
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन 
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप 
*
परोपकार 
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार 
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार 
*
एकता 
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़ 
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़ 
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-   
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना 
असली गहना सत्य न भूलो 
धारण कर झट नभ को छू लो 
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा  
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो 
***

बुधवार, 26 नवंबर 2014

taanka:

ताँका 

अपना मन 
अपना अँगना है 
सच का दीप 
सतत जलना है 
सपना पलना है

रविवार, 5 अक्टूबर 2014

neh deep

नेह दीप


नेह दीप, नेह शिखा, नेह है उजाला
नेह आस, नेह प्यास,साधना-शिवाला 

नेह  गेह, गाँव, राष्ट्र, विश्व, सृष्टि-समाज 
नेह कल था, नेह कल है, नेह ही है आज 

नेह अजर, नेह अमर, नेह है अनश्वर
नेह धरा, नेह गगन, नेह ही है ईश्वर 

नेह राग सँग विराग, योग-भोग, कर्म
नेह कलम, शब्द-अक्षर, नेह ही है धर्म

नेह बिंदु, नेह सिंधु, नेह आदि-अंत
नेह शून्य, नेह सत्य, अनादि-अनंत 

नेह आशा-निराशा है, नेह है पुरुषार्थ 
नेह चाह, नेह राह, स्वार्थ संग परमार्थ 

नेह लेन, नेह देन, नेह गीत मीत 
नेह प्रीत, नेह दीप, दिवाली पुनीत 

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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

नवगीत: दिशाहीन बंजारे हैं.... संजीव 'सलिल'


*
कौन, किसे, कैसे समझाये?
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह
खुद को तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोगकर
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों-
नाहक बजते इकतारे हैं...
*
पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटखा
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या
दिशाहीन बंजारे हैं ...
*********

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com


सोमवार, 8 नवंबर 2010

दोहा के संग : दीवाली का रंग ---- संजीव 'सलिल'

दोहा के संग : दीवाली का रंग

संजीव 'सलिल'
*
अँधियारे का पानकर, करे उजाला आदान.
दीपक माटी का 'सलिल', रवि-शशि सदृश महान..

मन का दीपक लो जला, तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..
*
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, ईश्वर सबका एक..
*
मिट जाता है दीप हर, माटी भी बुझ जाय.
श्वास आख़िरी तक अथक, उजियारा फैले..
*
नन्हें दीपक की लगन, तूफां को दे मात.
'मावस का तम चीरकर, ऊषा लाये प्रभात..
*
बाती मन दीपक बदन, 'सलिल' कामना तेल.
लौ-प्रकाश, कोशिश-सुफल, जल-बुझना विधि-खेल..
*
दीपक-बाती का रहे, साथ अमर हे नाथ.
'सलिल' पगों से कभी भी, दूर नहीं हो पाथ ..
*
मृण्मय दीपक दे तभी, उजियारा उपहार.
दीप तेल बाती करें, जब हिल-मिल सहकार..
*
राजमहल को रौशनी, दे कुटिया का दीप.
जैसे मोती पालती, गुपचुप नन्हीं सीप..
*
दीप ब्रम्ह है दीप हरि, दीप काल सच मान.
सत-चित-सुन्दर भी यही, सत-चित-आनंद-गान..
*
मिले दीप से दीप तो, खिले रात में प्रात.
मिले ज्योत से ज्योत दे, तम को शह औ' मात..
*

शनिवार, 6 नवंबर 2010

गीत: प्यार उजियारा प्रिये... --- संजीव 'सलिल'

गीत:                                               

प्यार उजियारा प्रिये...

संजीव 'सलिल'
*
दीप हूँ मैं,
तुम हो बाती,
प्यार उजियारा प्रिये...
*
हाथ में हैं हाथ अपने
अधूरे कोई न सपने,
जगत का क्या?, वह बनाता
खाप में बेकार नपने.
जाति, मजहब,
गोत्र, कुनबा
घोर अँधियारा प्रिये!....
*
मिलन अपना है दिवाली,
विरह के पल रात काली,
लक्ष्मी पूजन करें मिल-
फुलझड़ी मिलकर जलाली.
प्यास बाँटी,
हास बाँटा,
हुआ पौ बारा प्रिये!...
*
आस के कुछ मन्त्र पढ़ लें.
रास के कुछ तंत्र कर लें.
श्वास से श्वासें महक लें-
मन व तन को यंत्र कर लें.
फोड़ कर बम
मिटा दें गम
देख ध्रुवतारा प्रिये!
*

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

गीत: दीपावली मनायें ------ संजीव 'सलिल'

गीत: 
                                                         
दीपावली मनायें

संजीव 'सलिल'
*
दीप-ज्योति बनकर हम जग में नव-प्रकाश फैलायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
फैले चारों और रौशनी, तनिक न हो अवरोध.
सबको उन्नति का अवसर हो, स्वाभिमान का बोध..
पढ़ने-बढ़ने, जीवन गढ़ने का सबको अधिकार.
जितना पायें, दूना बाँटें बढ़े परस्पर प्यार..

सब तम पीकर, बाँट उजाला, 'सलिल' अमर हो जायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
अमावसी करा को तोड़ें, रहें पूर्णिमा मुक्त.
निजहित में ही बसे सर्वहित, जनगण-मन संयुक्त..
श्रम-सीकर की स्वेद गंग में, नित्य करें अवगाहन.
रचें शून्य से सृष्टि रमा नारी हो, नर नारायण..

बने आत्म विश्वात्म, तभी परमात्म प्राप्त कर पायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*
एक दीप गर जले अकेला तूफां उसे बुझाता.
शत दीपोंसे जग रौशन हो, अन्धकार डर जाता.
शक्ति एकता में होती है, जो चाहे वह कर दे.
माटी के दीपक को भी वह तम हरने का वर दे..

उतरे स्वर्ग धरा पर खुद जब सरगम-स्वर सँग गायें.
नित्य आत्म-परमात्म संग-संग दीपावली मनायें...
*

दीपावली पर मुक्तकांजलि: -- संजीव 'सलिल'

दीपावली पर मुक्तकांजलि:

संजीव 'सलिल'
*
सत्य-शिव-सुंदर का अनुसन्धान है दीपावली.
सत-चित-आनंद का अनुगान है दीपावली..
प्रकृति-पर्यावरण के अनुकूल जीवन हो 'सलिल'-
मनुजता को समर्पित विज्ञान है दीपावली..
*
धर्म, राष्ट्र, विश्व पर अभिमान है दीपावली.
प्रार्थना, प्रेयर सबद, अजान है दीपावली..
धर्म का है मर्म निरासक्त कर्म ही 'सलिल'-
निष्काम निष्ठा लगन का सम्मान है दीपावली..
*
पुरुषार्थ को परमार्थ की पहचान है दीपावली.
आँख में पलता हसीं अरमान है दीपावली..
आन-बान-शान से जीवन जियें हिलमिल 'सलिल'-
अस्त पर शुभ सत्य का जयगान है दीपावली..
*
निस्वार्थ सेवा का सतत अभियान है दीपावली.
तृषित अधरों की मधुर मुस्कान है दीपावली..
तराश कर कंकर को शंकर जो बनाते हैं 'सलिल'-
वही सृजन शक्तिमय इंसान हैं दीपावली..
*
सर्व सुख के लिये निज बलिदान है दीपावली.
आस्था, विश्वास है, ईमान है दीपावली..
तूफ़ान में जो अँधेरे से जीतता लड़कर 'सलिल'-
उसी नन्हे दीप का यशगान है दीपावली..

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गुरुवार, 4 नवंबर 2010

दें उजियारा आत्म-दीप बन : --- संजीव वर्मा 'सलिल'

दें उजियारा आत्म-दीप बन :                                    

--- संजीव वर्मा 'सलिल'

जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पलते गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- छंद अमृतध्वनि

****************
रचना विधान:

1. पहली दो पंक्तियाँ दोहा: 13- 11 पर यति.

2. शेष 4 पंक्तियाँ: 24 मात्राएँ 8, 8, 8, पर यति.

3. दोहा का अंतिम शब्द तृतीय पंक्ति का प्रथम पद.

4. दोहा का प्रथम शब्द (शब्द समूह नहीं) छ्न्द का अंतिम शब्द हो.

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
ज्यों मोती को आवश्यकता सीपोंकी.
मानव मन को बहुत जरूरत दीपोंकी..

संसद में हैं गर्दभ श्वेत वसनधारी
आदत डाले जनगण चीपों-चीपोंकी..

पदिक-साइकिल के सवार घटते जाते
जनसंख्या बढ़ती कारों की, जीपोंकी..

चीनी झालर से इमारतें है रौशन
मंद हो रही ज्योति झोपड़े-चीपों की..

नहीं मिठाई और पटाखे कवि माँगे
चाह 'सलिल' मन में तालीकी, टीपोंकी..

**************