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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

manav aur lahar

एक रचना : मानव और लहर संजीव * लहरें आतीं लेकर ममता, मानव करता मोह क्षुब्ध लौट जाती झट तट से, डुबा करें विद्रोह * मानव मन ही मन में माने, खुद को सबका भूप लहर बने दर्पण कह देती, भिक्षुक! लख निज रूप * मानव लहर-लहर को करता, छूकर सिर्फ मलीन लहर मलिनता मिटा बजाती कलकल-ध्वनि की बीन * मानव संचय करे, लहर ने नहीं जोड़ना जाना मानव देता गँवा, लहर ने सीखा नहीं गँवाना * मानव बहुत सयाना कौआ छीन-झपट में ख्यात लहर लुटाती खुद को हँसकर माने पाँत न जात * मानव डूबे या उतराये रहता खाली हाथ लहर किनारे-पार लगाती उठा-गिराकर माथ * मानव घाट-बाट पर पण्डे- झण्डे रखता खूब लहर बहाती पल में लेकिन बच जाती है दूब * 'नानक नन्हे यूँ रहो' मानव कह, जा भूल लहर कहे चंदन सम धर ले मातृभूमि की धूल * 'माटी कहे कुम्हार से' मनुज भुलाये सत्य अनहद नाद करे लहर मिथ्या जगत अनित्य * 'कर्म प्रधान बिस्व' कहता पर बिसराता है मर्म मानव, लहर न भूले पल भर करे निरंतर कर्म * 'हुईहै वही जो राम' कह रहा खुद को कर्ता मान मानव, लहर न तनिक कर रही है मन में अभिमान * 'कर्म करो फल की चिंता तज' कहता मनुज सदैव लेकिन फल की आस न तजता त्यागे लहर कुटैव * 'पानी केरा बुदबुदा' कह लेता धन जोड़ मानव, छीने लहर तो डूबे, सके न छोड़ * आतीं-जातीं हो निर्मोही, सम कह मिलन-विछोह लहर, न मानव बिछुड़े हँसकर पाले विभ्रम -विमोह *

सोमवार, 6 जून 2016

सखी छन्द

रसानंद दे छंद नर्मदा ३३ : सखी छन्द

​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा तथा इंद्रवज्रा छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए​ सखी छन्द ​से

छन्द लक्षण -
सखी मानव जातीय चौदह मात्रिक छन्द है। सखी छन्द के पंक्तयांत में लघु गुरु गुरु (१२२ यगण) या तीन गुरु (२२२ मगण) मात्राएँ होती हैं।

लक्षण छंद -
चौदह सुमात्रा सखी है
हो य-म तुकांती सदा ही।
मानव न भूले हमेशा
है वतन - भाषा पूजा ही।।
संकेत- य-म = यगण या मगण

उदाहरण-
०१. मुक्तिका
*
आँख जब भी बोलती है
राज दिल के खोलती है
.
मन बनाता है बहाना
जुबां गुपचुप तोलती है
*
ख्वाब करवट ले रहे हैं
संग कोशिश डोलती है
*
कामना जनभावना हो
श्वास में रस घोलती है
*
वृत्ति आदिम सगा-साथी
झुका आँख टटोलती है
*
याचनामय दृष्टि, दाता
पेंडुलम संग डोलती है
*
२. राजनीति मायावी है
लोभ नीति ही प्यारी है
लोक नीति से दूरी है
देश भूल मक्कारी है
***

शनिवार, 22 अगस्त 2015

geet

एक रचना : 
मानव और लहर 
संजीव 
*
लहरें आतीं लेकर ममता, 
मानव करता मोह
क्षुब्ध लौट जाती झट तट से,
डुबा करें विद्रोह
*
मानव मन ही मन में माने,
खुद को सबका भूप
लहर बने दर्पण कह देती,
भिक्षुक! लख निज रूप
*
मानव लहर-लहर को करता,
छूकर सिर्फ मलीन
लहर मलिनता मिटा बजाती
कलकल-ध्वनि की बीन
*
मानव संचय करे, लहर ने
नहीं जोड़ना जाना
मानव देता गँवा, लहर ने
सीखा नहीं गँवाना
*
मानव बहुत सयाना कौआ
छीन-झपट में ख्यात
लहर लुटती खुद को हँसकर
माने पाँत न जात
*
मानव डूबे या उतराये
रहता खाली हाथ
लहर किनारे-पार लगाती
उठा-गिराकर माथ
*
मानव घाट-बाट पर पण्डे-
झंडे रखता खूब
लहर बहांती पल में लेकिन
बच जाती है दूब
*
'नानक नन्हे यूँ रहो'
मानव कह, जा भूल
लहर कहे चन्दन सम धर ले
मातृभूमि की धूल
*
'माटी कहे कुम्हार से'
मनुज भुलाये सत्य
अनहद नाद करे लहर
मिथ्या जगत अनित्य
*
';कर्म प्रधान बिस्व' कहता
पर बिसराता है मर्म
मानव, लहर न भूले पल भर
करे निरंतर कर्म
*
'हुईहै वही जो राम' कह रहा
खुद को कर्ता मान
मानव, लहर न तनिक कर रही
है मन में अभिमान
*
'कर्म करो फल की चिंता तज'
कहता मनुज सदैव
लेकिन फल की आस न तजता
त्यागे लहर कुटैव
*
'पानी केरा बुदबुदा'
कह लेता धन जोड़
मानव, छीने लहर तो
डूबे, सके न छोड़
*
आतीं-जातीं हो निर्मोही,
सम कह मिलन-विछोह
लहर, न मानव बिछुड़े हँसकर
पाले विभ्रम -विमोह
*

बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

navgeet:

नवगीत:

देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे

राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं

अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे

भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते

हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे

मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है 

पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे

***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर 

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

गीत : किस तरह आये बसंत?... --संजीव 'सलिल'

गीत : किस तरह आये बसंत?... --संजीव 'सलिल'

गीत :                                                                                                                                                                              

किस तरह आये बसंत?...

मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?...
*
होरी कैसे छाये टपरिया?,
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लीलकर हँसे नगरिया.
राजमार्ग बन गयी डगरिया.
राधा को छल रहा सँवरिया.

अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?...
*
बैला-बछिया कहाँ चरायें?
सूखी नदिया कहाँ नहायें?
शेखू-जुम्मन हैं भरमाये.
तकें सियासत चुप मुँह बाये.
खुद से खुद ही हैं शरमाये.

जड़विहीन सूखा पलाश लख
किस तरह भाये बसंत?...
*
नेह नरमदा सूखी-सूनी.
तीन-पाँच करते दो दूनी.
टूटी बागड़ ग़ायब थूनी.
ना कपास, तकली ना पूनी.
वैश्विकता की दाढ़ें खूनी.

खुशी बिदा हो गयी'सलिल'चुप
किस तरह लाये बसंत?...
*