गीत :
बनो फकीरा...
संजीव
*
बनो फकीरा, उठा मँजीरा साखी गाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
धूप-छाँव से रिश्ते-नाते रंग बदलते,
कभी निठुर पाषाण,मोह से कभी पिघलते .
बहला-फुसला-दहलाते, पथ से भटकाते-
नादां गिरते, दाना उठते सम्हल-सम्हलते.
प्रभु का थामो हाथ उसी को पीर सुनाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
रमता जोगी, बहता पानी साथ न कोई,
माया के सँग क्षणिक हँसी हँस, तृष्णा रोई.
तृप्ति-तार में अगर न आशामाला पोई-
डूब राह में वृत्ति विरागी बेबस सोई.
लोभ न पालो और न जग को व्यर्थ लुभाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
तेरा-मेरा त्याग राम का नाम लिये जा,
हो तटस्थ जब जो भाये निष्काम किये जा.
क्या लाया जो ले जाए?, जो मिला दिए जा-
मद-मदिरा तज, भक्ति-अमिय के घूँट पिए जा.
कहाँ नहीं वह?, कण-कण में प्रभु देख-दिखाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
***
बनो फकीरा...
संजीव
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बनो फकीरा, उठा मँजीरा साखी गाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
धूप-छाँव से रिश्ते-नाते रंग बदलते,
कभी निठुर पाषाण,मोह से कभी पिघलते .
बहला-फुसला-दहलाते, पथ से भटकाते-
नादां गिरते, दाना उठते सम्हल-सम्हलते.
प्रभु का थामो हाथ उसी को पीर सुनाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
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रमता जोगी, बहता पानी साथ न कोई,
माया के सँग क्षणिक हँसी हँस, तृष्णा रोई.
तृप्ति-तार में अगर न आशामाला पोई-
डूब राह में वृत्ति विरागी बेबस सोई.
लोभ न पालो और न जग को व्यर्थ लुभाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
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तेरा-मेरा त्याग राम का नाम लिये जा,
हो तटस्थ जब जो भाये निष्काम किये जा.
क्या लाया जो ले जाए?, जो मिला दिए जा-
मद-मदिरा तज, भक्ति-अमिय के घूँट पिए जा.
कहाँ नहीं वह?, कण-कण में प्रभु देख-दिखाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
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