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कौन, किसे, कैसे समझाये?
सब निज मन से हारे हैं.....
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इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह
खुद को तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
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बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोगकर
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों-
नाहक बजते इकतारे हैं...
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पान, तमाखू, ज़र्दा, गुटखा
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस या
दिशाहीन बंजारे हैं ...
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com