कुल पेज दृश्य

मचलते-मचलते लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मचलते-मचलते लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 27 जनवरी 2013

मुक्तिका: मचलते-मचलते संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मचलते-मचलते
संजीव 'सलिल'
*
ग़ज़ल गाएगा मन मचलते-मचलते..
बहल जाएगा दिल बहलते-बहलते..

न चूकेगा अवसर, न पायेगा मौक़ा.
ठिठक जाएगा हाथ मलते न मलते..

तनिक मुस्कुरा दो इधर देखकर तुम
सम्हल जायेगा फिर फिसलते-फिसलते..

लाली रुखों की लगा लौ लगन की.
अरमां जगाती है जलते न जलते..

न भूलेगा तुमको चाहो जो हमको.
बदल जायेगा सब बदलते-बदलते..

दलो दाल छाती पे निश-दिन हमारी.
रहो बाँह में साँझ ढलते न ढलते..

पकड़ में न आये, अकड़ भी छुड़ाए.
जकड़ ले पलों में मसलते-मसलते..

'सलिल' स्नेह सागर न माटी की गागर.
सदियों पलेगा ये पलते न पलते..

***