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शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

सॉनेट,गीत,छंद कृष्णमोहन,कान्ति शुक्ला,

सॉनेट
कठपुतली 
कठपुतली सरकार बन गई
अंगुली नर्तन होगा खूब
जब रिमोट का बटन दबेगा
हलचल तभी मचेगी खूब

इसके कंधे पर उसकी गन
साध निशाना जब मारेगी
सत्ता के गलियारे में तब
छल-बल से निज कुल तारेगी

बगुला भगत स्वांग बहुतेरे
रचा दिखाएँगे निज लीला
जाँच साँच को दफनाएगी
ठाँस करेगी काला-पीला

पाला बदला बात बन गई
चाट अंगुली घी में सन गई
१-७-२०२२
•••
गीत
दे दनादन
*
लूट खा अब
देश को मिल
लाट साहब
लाल हों खिल

ढाल है यह
भाल है वह
आड़ है यह
वार है वह

खेलता मन
झेलता तन
नाचते बन
आप राजन

तोड़ते घर
पूत लायक
बाप जी पर
तान सायक

साध्य है पद
गौड़ है कद
मोल देकर
लो सभासद

देखते कब
है कहाँ सच?
पूछते पथ
जा बचें अब

जेब में झट
ले रखो धन
है खनाखन
दे दनादन
(छंद: कृष्णमोहन)
१-७-२०२२
•••
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
इंजीनियर्स फोरम (भारत) जबलपुर,
इंडियन जिओटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर
*
रचनाधर्मी अभियंता - २०२२-२३
*
बंधुओं!
वंदे भारत-भारती।
'रचनाधर्मी अभियंता - २०२२-२३ ' में ७५ श्रेष्ठ-सक्रिय-सामजसेवी अभियंताओं के व्यक्तित्व-कृतित्व की संक्षिप्त जानकारी संकलित की जाना है।
उन सभी मित्रों का आभार जिन्होंने उत्साहपूर्वक सामग्री उपलब्ध कराई है।
संकलन हेतु ऐसे अभियंताओं को वरीयता दी जाएगी जिन्होंने अपने सामान्य व्यावसायिक/विभागीय कार्यों के अतिरिक्त देश व समाज के हित में कुछ असाधारण कार्य किए हों।
कृपया, पुस्तक हेतु जिन्हें आप उपयुक्त समझें उन अभियंताओं संबंधी निम्न विवरण मुझे ९४२५१ ८३२४४ पर या salil.sanjiv@gmail.com पर ईमेल से अविलंब भेजिए।
प्राप्त सामग्री को अंतिम रूप दिया जा रहा है। विलंब से प्राप्त सामग्री का समायोजन करना संभव न होगा।
आप सबके सहयोग हेतु आभार।

(संजीव वर्मा 'सलिल')
संयोजक
*
विवरण हेतु प्रारूप
(यह सामग्री ९४२५१ ८३२४४ पर वाट्स ऐप या salil.sanjiv@gmail.com पर ईमेल से अविलंब भेजिए।)


१. नाम-उपनाम -
२. जन्मतिथि, जन्मस्थान -
३. माता-पिता के नाम -
४. जीवन साथी/संगिनी का नाम व विवाह तिथि -
५. शैक्षणिक योग्यता -
६. कार्यानुभव -
७. उल्लेखनीय कार्य -
८. उपलब्धियाँ -
९. प्रकाशित कार्य -
१०. भावी योजनाएँ (सूक्ष्म संकेत) -
११. डाक का पता, वाट्स ऐप क्रमांक, ईमेल
१२. पासपार्ट आकार का चित्र -
हस्ताक्षर

अब तक सम्मिलित अभियंता
* अनिल कोरी, जबलपुर,
* अनूप भार्गव, प्लेब्सबोरो अमेरिका
* अमरनाथ अग्रवाल, लखनऊ
* अमरेंद्र नारायण, जबलपुर
* अरविन्द कुमार 'असर', दिल्ली
* अरविन्द कुमार वर्मा, फतेहपुर
* अरुण अर्णव खरे , भोपाल
* अवधेश कुमार 'अवध', गुवाहाटी
* अशोक पलंदी, जबलपुर
* अशोक कुमार मेहरोत्रा 'अशोक', लख़नऊ
* अशोक कुमार शुक्ला, जबलपुर
* अशोक शर्मा, जयपुर
* इंद्र बहादुर श्रीवास्तव ९३२९६ ६४२७२ जबलपुर
* उदयभान तिवारी 'मधुकर' जबलपुर
* उदय भान पांडे, लखनऊ
उमेशचंद्र दुबे 
* ओ.पी.श्रीवास्तव, जबलपुर
* ओमप्रकाश 'यति', दिल्ली
* कमल मोहन वर्मा, जबलपुर
* कुंवर किशोर टंडन (स्मृतिशेष)
* केदारनाथ, मुज़फ़्फ़रपुर
* कोमलचंद जैन, जबलपुर
* गोपाल कृष्ण चौरसिया 'मधुर' (स्मृतिशेष) जबलपुर
* तरुण आनंद, जबलपुर 
* त्रिलोक सिंह ठकुरेला, आबूरोड
* दयाचंद जैन, जबलपुर
* दिव्यकांत मिश्र, मंडला
दुर्गेश पाराशर, जबलपुर
* दुर्गेश ब्योहार, जबलपुर
देवकीनंदन 'शांत', लखनऊ
* देवनाथ सिंह 'आनंदगौतम' (स्मृतिशेष)
* देवेंद्र गोंटिया 'देवराज', जबलपुर
नरेंद्र कुमार समाधिया, रुड़की
* नरेश सक्सेना, लखनऊ
* प्रताप नारायण सिंह, गाजियाबाद
* बसंत विश्वकर्मा (स्मृतिशेष), भोपाल
* बृन्दावन राय 'सरल'
* भूपेंद्र कुमार दवे (स्मृतिशेष), जबलपुर
* मणिशंकर अवध, जबलपुर
* मदन श्रीवास्तव ९२२९४३६०१० जबलपुर  
* मधुसूदन दुबे, जबलपुर
* मनोज श्रीवास्तव 'मनोज', लखनऊ 
* महेंद्र कुमार जैन, सागर  
* महेंद्र कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर
* मुक्ता भटेले, जबलपुर 
* मुरलीधर झा, रांची 
* राजीव चांडक, जबलपुर
* राजेश अरोर 'शलभ' 
आर.के.श्रीवास्तव, जबलपुर
* रामकृष्ण विनायक सहत्रबुद्धे, नागपुर
* रामप्रताप खरे, रायपुर
* वेदांत श्रीवास्तव, जबलपुर
* विनोद जारोलिया 'नयन', जबलपुर
* विपिन त्रिवेदी, जबलपुर
* विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', भोपाल 
विश्वमोहन तिवारी, 
* शार्दुला नोगजा, सिंगापुर
* शिव मोहन सिंह, देहरादून 
शोभित वर्मा, जबलपुर
* श्रवण कुमार उर्मलिया ०१२० २८८३३४२८, ९८६८५ ४९०३६
* संजय वर्मा, जबलपुर
* संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर
* संतोष कुमार माथुर, लखनऊ 
* संतोष कुमार हरदहा, गाज़ियाबाद 
* संदीप राशिनकर, इंदौर
* सतीश सक्सेना 'शून्य, ग्वालियर '
* सलीम अंसारी, जबलपुर
* साजन ग्वालियरी, ग्वालियर
* सुधीर पांडेय 'व्यथित', जबलपुर
* सुनील बाजपेई, लखनऊ 
* सुरेन्द्रनाथ मेहता (स्मृतिशेष) जबलपुर
* सुरेंद्र सिंह पवार, जबलपुर
* सुरेश जैन 'सरल', जबलपुर ९४२५४ १२३७४
* हेमंत कुमार, बिजनौर
***
स्वास्थ्य के लिए याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें:
1. बीपी: 120/80
2. पल्स: 70 - 100
3. तापमान: 36.8 - 37
4. सांस : 12-16
5. हीमोग्लोबिन: पुरुष -13.50-18. स्त्री- 11.50 - 16
6. कोलेस्ट्रॉल: 130 - 200
7. पोटेशियम: 3.50 - 5
8. सोडियम: 135 - 145
9. ट्राइग्लिसराइड्स: 220
10. शरीर में खून की मात्रा: पीसीवी 30-40%
11. शुगर लेवल: बच्चों के लिए (70-130) वयस्क: 70 - 115
12. आयरन: 8-15 मिलीग्राम
13. श्वेत रक्त कोशिकाएं WBC: 4000 - 11000
14. प्लेटलेट्स: 1,50,000 - 4,00,000
15. लाल रक्त कोशिकाएं RBC: 4.50 - 6 मिलियन.
16. कैल्शियम: 8.6 -10.3 मिलीग्राम/डीएल
17. विटामिन D3: 20 - 50 एनजी/एमएल.
18. विटामिन B12: 200 - 900 पीजी/एमएल.
वरिष्ठों से अनुरोध :
1- प्यास न लगे या जरूरत न हो तो भी पानी पीते रहिए। अधिकतर स्वास्थ्य समस्याएँ शरीर में पानी की कमी से होती हैं। हर दिन कम से कम २ लीटर पानी पीजिए।
2- शरीर से यथाशक्ति अधिक से अधिक काम लीजिए। पैदल चलिए, खेलिए, गाइए, बजाइए, धूल झाड़िए, पौधे लगाइए, जो मन करे वह कीजिए पर निष्क्रिय न बैठिए।
3- खाना उतना ही खाइए जितना आवश्यक हो। तला, भुना, बासी कम से कम खाइए। भाजियाँ, हरी सब्जियाँ, फल, अंकुरित अन्न आदि को प्राथमिकता दीजिए। शीतल पेय (कोल्ड ड्रिंक), बाजारू फ़ास्ट गुड, चाट, शराब, मांस आदि का सेवन न करें। बहुत ठंडा, बाहर गरम, मसालेदार आहार न लीजिए।
4- वाहन का प्रयोग कम से कम कीजिए। पैरों से अधिक से अधिक काम लें। चलें-दौड़ें, चढ़ें-उतरें।
5- क्रोध व चिंता छोड़िए। व्यर्थ की बहस, उत्तेजक भाषण, फिल्म या समाचारों से दूर रहिए। नकारात्मक विचार न करिए, न सुनिए। शांतिपूर्वक सोच-विचारकर बोलिए।
6- धन-संपत्ति से अंध मोह मत रखिए पर अपनी जरूरतों के लिए बचाकर रखिए। यह रखिए आप दूसरों को दे सकते हैं पर दूसरों से ले नहीं सकते। धन-संपत्ति आपके लिए है, आप धन-संपत्ति के लिए नहीं।
7- हो चुकी गलतियों से सबक सीखिए, उन्हें सुधारिए पर दुहराइए और पछताइए मत। दूसरों की गलती सामान्यत: देखकर अनदेखा करिए पर उसे प्रोत्साहन मत दीजिए।
8- पैसा, पद, प्रतिष्ठा, शक्ति, सुन्दरता, दंभ, श्रेष्ठता का भाव, अहंकार आदि छोड़ दीजिए। स्नेह, विनम्रता, दया तथा सरलता आपको शांति तथा सम्मान का पात्र बनाती है।
9- वृद्धावस्था अभिशाप नहीं वरदान है। आशावादी बनिए, मधुर यादों साथ रहिए। याद रखिए राम अयोध्या में हों या वन में सामान्य जीवन जीते हैं।
10- अपने से छोटों से भी प्रेम, सहानुभूति ओर अपनेपन से मिलिए। कोई व्यंग्यात्मक बात न कहिए। चेहरे पर मुस्कुराहट बनाकर रखिए।
11- अपना दुःख-दर्द किसी से मत कहिए, सुनकर लोग अवहेलना करेंगे, बाँट कोई नहीं सकता।
१-७-२०२२
***
लाडले लला संजीव सलिल
कान्ति शुक्ला
*
मानव जीवन का विकास चिंतन, विचार और अनुभूतियों पर निर्भर करता है। उन्नति और प्रगति जीवन के आदर्श हैं। जो कवि जितना महान होता है, उसकी अनुभूतियाँ भी उतनी ही व्यापक होतीं हैं। मूर्धन्य विद्वान सुकवि छंद साधक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी का नाम ध्यान में आते ही एक विराट साधक व्यक्तित्व का चित्र नेत्रों के समक्ष स्वतः ही स्पष्टतः परिलक्षित हो उठता है। मैंने 'सलिल' जी का नाम तो बहुत सुना था और उनके व्यक्तित्व, कृतित्व, सनातन छंदों के प्रति अगाध समर्पण संवर्द्धन की भावना ने उनके प्रति मेरे मन ने एक सम्मान की धारणा बना ली थी और जब रू-ब-रू भेंट हुई तब भी उनके सहज स्नेही स्वभाव ने प्रभावित किया और मन की धारणा को भी बल दिया परंतु यह धारणा मात्र कुछ दिन ही रही और पता नहीं कैसे हम ऐसे स्नेह-सूत्र में बँधे कि 'सलिल' जी मेरे नटखट देवर यानी 'लला' (हमारी बुंदेली भाषा में छोटे देवर को लला कहकर संबोधित करते हैं न) होकर ह्रदय में विराजमान हो गए और मैं उनकी ऐसी बड़ी भौजी जो गाहे-बगाहे दो-चार खरी-खोटी सुनाकर धौंस जमाने की पूर्ण अधिकारिणी हो गयी। हमारे बुंदेली परिवेश, संस्कृति और बुंदेली भाषा ने हमारे स्नेह को और प्रगाढ़ करने में महती भूमिका निभाई। हम फोन पर अथवा भेंट होने पर बुंदेली में संवाद करते हुए और अधिक सहज होते गए। अब वस्तुस्थिति यह है कि उनकी अटूट अथक साहित्य-साधना, छंद शोध, आचार्यत्व, विद्वता या समर्पण की चर्चा होती है तो मैं आत्मविभोर सी गौरवान्वित और स्नेहाभिभूत हो उठती हूँ।
व्यक्तित्व और कृतित्व की भूमिका में विराट को सूक्ष्म में कहना कितना कठिन होता है, मैं अनुभव कर रही हूँ। व्यक्तित्व और विचार दोनों ही दृष्टियों से स्पृहणीय रचनाकार'सलिल' जी की लेखनी पांडित्य के प्रभामंडल से परे चिंतन और चेतना में - प्रेरणा, प्रगति और परिणाम के त्रिपथ को एकाकार करती द्वन्द्वरहित अन्वेषित महामार्ग के निर्माण का प्रयास करती दिखाई देती है। उनके वैचारिक स्वभाव में अवसर और अनुकूलता की दिशा में बह जाने की कमजोरी नहीं- वे सत्य, स्वाभिमान और गौरवशाली परम्पराओं की रक्षा के लिए प्रतिकूलता के साथ पूरी ताकत से टक्कर लेने में विश्वास रखते हैं। जहाँ तक 'सलिल'जी की साहित्य संरचना का प्रश्न है वहाँ उनके साहित्य में जहाँ शाश्वत सिद्धांतों का समन्वय है, वहाँ युगानुकूल सामयिकता भी है, उत्तम दिशा-निर्देश है, चिरंतन साहित्य में चेतनामूलक सिद्धांतों का विवरण है जो प्रत्येक युग के लिए समान उपयोगी है तो सामयिक सृजन युग विशेष के लिए होते हुए भी मानव जीवन के समस्त पहेलुओं की विवृत्ति है, जहाँ एकांगी दृष्टिकोण को स्थान नहीं।
"सलिल' जी के रचनात्मक संसार में भाव, विचार और अनुभूतियों के सफल प्रकाशन के लिए भाषा का व्यापक रूप है जिसमें विविधरूपता का रहस्य भी समाहित है। एक शब्द में अनेक अर्थ और अभिव्यंजनाएँ हैं, जीवन की प्रेरणात्मक शक्ति है तो मानव मूल्यों के मनोविज्ञान का स्निग्धतम स्पर्श है, भावोद्रेक है। अभिनव बिम्बात्मक अभिव्यंजना है जिसने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया है। माँ वाणी की विशेष कृपा दृष्टि और श्रमसाध्य बड़े-बड़े कार्य करने की अपूर्व क्षमता ने जहाँ अनेक पुस्तकें लिखने की प्रेरणा दी है, वहीं पारंपरिक छंदों में सृजन करने के साथ सैकड़ों नवीन छंद रचने का अन्यतम कौशल भी प्रदान किया है- तो हमारे लाड़ले लला हैं कि कभी ' विश्व वाणी संवाद' का परचम लहरा रहे हैं, कभी दोहा मंथन कर रहे हैं तो कभी वृहद छंद कोष निर्मित कर रहे हैं ,कभी सवैया कोष में सनातन सवैयों के साथ नित नूतन सवैये रचे जा रहे हैं। सत्य तो यह है कि लला की असाधारण सृजन क्षमता, निष्ठा, अभूतपूर्व लगन और अप्रतिम कौशल चमत्कृत करता है और रचनात्मक कौशल विस्मय का सृजन करता है। समरसता और सहयोगी भावना तो इतनी अधिक प्रबल है कि सबको सिखाने के लिए सदैव तत्पर और उपलब्ध हैं, जो एक गुरू की विशिष्ट गरिमा का परिचायक है। मैंने स्वयं अपने कहानी संग्रह की भूमिका लिखने का अल्टीमेटम मात्र एक दिन की अवधि का दिया और सुखद आश्चर्य रहा कि वह मेरी अपेक्षा में खरे उतरे और एक ही दिन में सारगर्भित भूमिका मुझे प्रेषित कर दी ।
जहाँ तक रचनाओं का प्रश्न है, विशेष रूप से पुण्यसलिला माँ नर्मदा को जो समर्पित हैं- उन रचनाओं में मनोहारी शिल्पविन्यास, आस्था, भाषा-सौष्ठव, वर्णन का प्रवाह, भाव-विशदता, ओजस्विता तथा गीतिमत्ता का सुंदर समावेश है। जीवन के व्यवहार पक्ष के कार्य वैविध्य और अन्तर्पक्ष की वृत्ति विविधता है। प्राकृतिक भव्य दृश्यों की पृष्ठभूमि में कथ्य की अवधारणा में कलात्मकता और सघन सूक्ष्मता का समावेश है। प्रकृति के ह्रदयग्राही मनोरम रूप-वर्णन में भाव, गति और भाषा की दृष्टि से परिमार्जन स्पष्टतः परिलक्षित है । 'सलिल' जी के अन्य साहित्य में कविता का आधार स्वरूप छंद-सौरभ और शब्दों की व्यंजना है जो भावोत्पादक और विचारोत्पादक रहती है और जिस प्रांजल रूप में वह ह्रदय से रूप-परिग्रह करती है , वह स्थायी और कालांतर व्यापी है।
'सलिल' जी की सर्जना और उसमें प्रयुक्त भाषायी बिम्ब सांस्कृतिक अस्मिता के परिचायक हैं जो बोधगम्य ,रागात्मक और लोकाभिमुख होकर अत्यंत संश्लिष्ट सामाजिक यथार्थ की ओर दृष्टिक्षेप करते हैं। जिन उपमाओं का अर्थ एक परम्परा में बंधकर चलता है- उसी अर्थ का स्पष्टीकरण उनका कवि-मन सहजता से कर जाता है और उक्त स्थल पर अपने प्रतीकात्मक प्रयोग से अपने अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है जो पाठक को रसोद्रेक के साथ अनायास ही छंद साधने की प्रक्रिया की ओर उन्मुख कर देता है। अपने सलिल नाम के अनुरूप सुरुचिपूर्ण सटीक सचेतक मृदु निनाद की अजस्र धारा इसी प्रकार सतत प्रवाहित रहे और नव रचनाकारों की प्रेरणा की संवाहक बने, ऐसी मेरी शुभेच्छा है। मैं संपूर्ण ह्रदय से 'सलिल' जी के स्वस्थ, सुखी और सुदीर्घ जीवन की ईश्वर से प्रार्थना करते हुए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त करती हूँ ।
[लेखिका परिचय : वरिष्ठ कहानीकार-कवयित्री, ग़ज़ल, बाल कविता तथा कहानी की ५ पुस्तकें प्रकाशित, ५ प्रकाशनाधीन। सचिव करवाय कला परिषद्, प्रधान संपादक साहित्य सरोज रैमसीकी। संपर्क - एम आई जी ३५ डी सेक्टर, अयोध्या नगर, भोपाल ४६२०४१, चलभाष ९९९३०४७७२६, ७००९५५८७१७, kantishukla47@gamil.com .]
1-7-2019
***

बुधवार, 1 जुलाई 2020

लाडले लला संजीव सलिल कान्ति शुक्ला

लाडले लला संजीव सलिल
कान्ति शुक्ला
*
मानव जीवन का विकास चिंतन, विचार और अनुभूतियों पर निर्भर करता है। उन्नति और प्रगति जीवन के आदर्श हैं। जो कवि जितना महान होता है, उसकी अनुभूतियाँ भी उतनी ही व्यापक होतीं हैं। मूर्धन्य विद्वान सुकवि छंद साधक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी का नाम ध्यान में आते ही एक विराट साधक व्यक्तित्व का चित्र नेत्रों के समक्ष स्वतः ही स्पष्टतः परिलक्षित हो उठता है। मैंने 'सलिल' जी का नाम तो बहुत सुना था और उनके व्यक्तित्व, कृतित्व, सनातन छंदों के प्रति अगाध समर्पण संवर्द्धन की भावना ने उनके प्रति मेरे मन ने एक सम्मान की धारणा बना ली थी और जब रू-ब-रू भेंट हुई तब भी उनके सहज स्नेही स्वभाव ने प्रभावित किया और मन की धारणा को भी बल दिया परंतु यह धारणा मात्र कुछ दिन ही रही और पता नहीं कैसे हम ऐसे स्नेह-सूत्र में बँधे कि 'सलिल' जी मेरे नटखट देवर यानी 'लला' (हमारी बुंदेली भाषा में छोटे देवर को लला कहकर संबोधित करते हैं न) होकर ह्रदय में विराजमान हो गए और मैं उनकी ऐसी बड़ी भौजी जो गाहे-बगाहे दो-चार खरी-खोटी सुनाकर धौंस जमाने की पूर्ण अधिकारिणी हो गयी। हमारे बुंदेली परिवेश, संस्कृति और बुंदेली भाषा ने हमारे स्नेह को और प्रगाढ़ करने में महती भूमिका निभाई। हम फोन पर अथवा भेंट होने पर बुंदेली में संवाद करते हुए और अधिक सहज होते गए। अब वस्तुस्थिति यह है कि उनकी अटूट अथक साहित्य-साधना, छंद शोध, आचार्यत्व, विद्वता या समर्पण की चर्चा होती है तो मैं आत्मविभोर सी गौरवान्वित और स्नेहाभिभूत हो उठती हूँ।
व्यक्तित्व और कृतित्व की भूमिका में विराट को सूक्ष्म में कहना कितना कठिन होता है, मैं अनुभव कर रही हूँ। व्यक्तित्व और विचार दोनों ही दृष्टियों से स्पृहणीय रचनाकार'सलिल' जी की लेखनी पांडित्य के प्रभामंडल से परे चिंतन और चेतना में - प्रेरणा, प्रगति और परिणाम के त्रिपथ को एकाकार करती द्वन्द्वरहित अन्वेषित महामार्ग के निर्माण का प्रयास करती दिखाई देती है। उनके वैचारिक स्वभाव में अवसर और अनुकूलता की दिशा में बह जाने की कमजोरी नहीं- वे सत्य, स्वाभिमान और गौरवशाली परम्पराओं की रक्षा के लिए प्रतिकूलता के साथ पूरी ताकत से टक्कर लेने में विश्वास रखते हैं। जहाँ तक 'सलिल'जी की साहित्य संरचना का प्रश्न है वहाँ उनके साहित्य में जहाँ शाश्वत सिद्धांतों का समन्वय है, वहाँ युगानुकूल सामयिकता भी है, उत्तम दिशा-निर्देश है, चिरंतन साहित्य में चेतनामूलक सिद्धांतों का विवरण है जो प्रत्येक युग के लिए समान उपयोगी है तो सामयिक सृजन युग विशेष के लिए होते हुए भी मानव जीवन के समस्त पहेलुओं की विवृत्ति है, जहाँ एकांगी दृष्टिकोण को स्थान नहीं।
"सलिल' जी के रचनात्मक संसार में भाव, विचार और अनुभूतियों के सफल प्रकाशन के लिए भाषा का व्यापक रूप है जिसमें विविधरूपता का रहस्य भी समाहित है। एक शब्द में अनेक अर्थ और अभिव्यंजनाएँ हैं, जीवन की प्रेरणात्मक शक्ति है तो मानव मूल्यों के मनोविज्ञान का स्निग्धतम स्पर्श है, भावोद्रेक है। अभिनव बिम्बात्मक अभिव्यंजना है जिसने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया है। माँ वाणी की विशेष कृपा दृष्टि और श्रमसाध्य बड़े-बड़े कार्य करने की अपूर्व क्षमता ने जहाँ अनेक पुस्तकें लिखने की प्रेरणा दी है, वहीं पारंपरिक छंदों में सृजन करने के साथ सैकड़ों नवीन छंद रचने का अन्यतम कौशल भी प्रदान किया है- तो हमारे लाड़ले लला हैं कि कभी ' विश्व वाणी संवाद' का परचम लहरा रहे हैं, कभी दोहा मंथन कर रहे हैं तो कभी वृहद छंद कोष निर्मित कर रहे हैं ,कभी सवैया कोष में सनातन सवैयों के साथ नित नूतन सवैये रचे जा रहे हैं। सत्य तो यह है कि लला की असाधारण सृजन क्षमता, निष्ठा, अभूतपूर्व लगन और अप्रतिम कौशल चमत्कृत करता है और रचनात्मक कौशल विस्मय का सृजन करता है। समरसता और सहयोगी भावना तो इतनी अधिक प्रबल है कि सबको सिखाने के लिए सदैव तत्पर और उपलब्ध हैं, जो एक गुरू की विशिष्ट गरिमा का परिचायक है। मैंने स्वयं अपने कहानी संग्रह की भूमिका लिखने का अल्टीमेटम मात्र एक दिन की अवधि का दिया और सुखद आश्चर्य रहा कि वह मेरी अपेक्षा में खरे उतरे और एक ही दिन में सारगर्भित भूमिका मुझे प्रेषित कर दी ।
जहाँ तक रचनाओं का प्रश्न है, विशेष रूप से पुण्यसलिला माँ नर्मदा को जो समर्पित हैं- उन रचनाओं में मनोहारी शिल्पविन्यास, आस्था, भाषा-सौष्ठव, वर्णन का प्रवाह, भाव-विशदता, ओजस्विता तथा गीतिमत्ता का सुंदर समावेश है। जीवन के व्यवहार पक्ष के कार्य वैविध्य और अन्तर्पक्ष की वृत्ति विविधता है। प्राकृतिक भव्य दृश्यों की पृष्ठभूमि में कथ्य की अवधारणा में कलात्मकता और सघन सूक्ष्मता का समावेश है। प्रकृति के ह्रदयग्राही मनोरम रूप-वर्णन में भाव, गति और भाषा की दृष्टि से परिमार्जन स्पष्टतः परिलक्षित है । 'सलिल' जी के अन्य साहित्य में कविता का आधार स्वरूप छंद-सौरभ और शब्दों की व्यंजना है जो भावोत्पादक और विचारोत्पादक रहती है और जिस प्रांजल रूप में वह ह्रदय से रूप-परिग्रह करती है , वह स्थायी और कालांतर व्यापी है।
'सलिल' जी की सर्जना और उसमें प्रयुक्त भाषायी बिम्ब सांस्कृतिक अस्मिता के परिचायक हैं जो बोधगम्य ,रागात्मक और लोकाभिमुख होकर अत्यंत संश्लिष्ट सामाजिक यथार्थ की ओर दृष्टिक्षेप करते हैं। जिन उपमाओं का अर्थ एक परम्परा में बंधकर चलता है- उसी अर्थ का स्पष्टीकरण उनका कवि-मन सहजता से कर जाता है और उक्त स्थल पर अपने प्रतीकात्मक प्रयोग से अपने अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है जो पाठक को रसोद्रेक के साथ अनायास ही छंद साधने की प्रक्रिया की ओर उन्मुख कर देता है। अपने सलिल नाम के अनुरूप सुरुचिपूर्ण सटीक सचेतक मृदु निनाद की अजस्र धारा इसी प्रकार सतत प्रवाहित रहे और नव रचनाकारों की प्रेरणा की संवाहक बने, ऐसी मेरी शुभेच्छा है। मैं संपूर्ण ह्रदय से 'सलिल' जी के स्वस्थ, सुखी और सुदीर्घ जीवन की ईश्वर से प्रार्थना करते हुए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त करती हूँ ।
[लेखिका परिचय : वरिष्ठ कहानीकार-कवयित्री, ग़ज़ल, बाल कविता तथा कहानी की ५ पुस्तकें प्रकाशित, ५ प्रकाशनाधीन। सचिव करवाय कला परिषद्, प्रधान संपादक साहित्य सरोज रैमसीकी। संपर्क - एम आई जी ३५ डी सेक्टर, अयोध्या नगर, भोपाल ४६२०४१, चलभाष ९९९३०४७७२६, ७००९५५८७१७, kantishukla47@gamil.com .]