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सोमवार, 5 अगस्त 2019

मुक्तक

मुक्तक 

सखी-सहेली छाया धूप, जिसकी वह सूरज सा भूप
जो अरूप क्या जाने लोक, कब किसको कहता है रूप
कर्म कलश दे कीर्ति तुझे, व्यर्थ न बना महल-स्तूप
तृप्त नहीं प्यासा यदि, व्यर्थ 'सलिल' सलिला सर कूप
*

प्रार्थना है, वंदना है, अर्चना है बहुत सुन्दर
करें जब भी नव सृजन की साधना है बहुत सुंदर
कामना करिए वही जो काम आए संकटों में
सर्व हित की चाहना है, भावना है बहुत

*

शनिवार, 3 अगस्त 2019

मुक्तक

मुक्तक 
*
दीपिका दे साथ तो हो अमावस में भी दिवाली।
माहेश्वरी महेश को भज आप होती उमा-काली।।
नित सृजन कर सृष्टि का सज्जित करे, पल-पल सँवारे

जो उसे नत शिर नमन, लौ बार उसके लिए ताली।।

*
हो गए हैं धन्य हम तो आपका दीदार कर 
थे अधूरे आपके बिन पूर्ण हैं दिल हार कर 
दे दिया दिल आपको, दिल आपसे है ले लिया
जी गए हैं आप पर खुद को 'सलिल' हम वार कर 

बह्रर 2122-2122-2122-212
*
बोलिये भी, मौन रहकर दूर कब शिकवे हुए
तोलिये भी, बात कह-सुन आप-मैं अपने हुए
मैं सही हूँ, तू गलत है, यह नज़रिया ही गलत
जो दिलों को जोड़ दें, वो ही सही नपने हुए

बह्रर 2122-2122-2122-212
*****
salil.sanjiv@gmail.com

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

मुक्तक

मुक्तक
*
बन के अपना पराया तुमने किया 
हमने चुप हो ज़हर का घूँट पिया 
हों जो तूफ़ान हार जाओगे-
जलेंगे दिल में तेरे बन के दिया...

*
दूर रहकर भी जो मेरे पास है.
उसी में अपनत्व का आभास है..
जो निपट अपना वही तो ईश है-
क्या उसे इस सत्य का अहसास है?
*
भ्रम तो भ्रम है, चीटी हाथी, बनते मात्र बहाना.
खुले नयन रह बंद सुनाते, मिथ्या 'सलिल' फ़साना..
नयन मूँदकर जब-बज देखा, सत्य तभी दिख पाया-
तभी समझ पाया माया में कैसे सत्पथ पाना..
*
मुक्तक मोती माल ले, करें समय से बात।
नहीं रात को दिन कहें, नहीं दिवस को रात।।
औरों को सम मान दे, पाएँ नित सम्मान-
मत भूलें उपकार को, कभी करें मत घात।।

*
गाँठ अहं की खुल जाए तो सलिल-धार नर्मदा बने।
सुलभ सके झट सारी उलझन, भौंह न कोई रही तने।।
अपने गैर न हो पाएँगे, गैर सभी अपने होंगे-
नेह नर्मदा नित्य नहाओ, भले बचाओ चार चने।।

*
भीतर-बाहर जाऊँ जहाँ भी, वहीं मिले घनश्याम.
खोलूँ या मूंदूं पलकें, हँसकर कहते 'जय राम'..
सच है तो सौभाग्य, अगर भ्रम है तो भी सौभाग्य-
सीलन, घुटन, तिमिर हर पथ दिखलायें उमर तमाम..

*

मंगलवार, 30 जुलाई 2019

सवैया मुक्तक

सवैया मुक्तक  :
चाँद का इन्तिजार करती रही, चाँदनी ने 'सलिल' गिला न किया.  
तोड़ती है समाधि शिव की नहीं, शिवा ने मौन हो सहयोग दिया.  

नर्मदा नेह की बहा शीतल, कंठ में शिव ने ज़हर धार लिया- 
मान्यता इंद्र-भोग की न तनिक, लोक ने शिव को ईश मान लिया  

salil.sanjiv@gmail.com

मुक्तक

मुक्तक  
चाँद तनहा है ईद हो कैसे? 
चाँदनी उसकी मीत हो कैसे??
मेघ छाये घने दहेजों के, 
रेप पर उसकी जीत हो कैसे?? 
*
​salil.sanjiv@gmail.com
#divyanarmada 
#दिव्यनर्मदा

मुक्तक

मुक्तक:
कोशिशें करती रहो, बात बन ही जायेगी 
जिन्दगी आज नहीं, कल तो मुस्कुरायेगी 
हारते जो नहीं गिरने से, वो ही चल पाते- 
मंजिलें आज नहीं कल तो रास आयेंगी. 
****
salil.sanjiv@gmail.com
#divyanarmada
#दिव्यनर्मदा

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

मुक्तक, द्विपदी दोहे,

मुक्तक 

खिलखिलाती रहो, चहचहाती रहो 
जिंदगी में सदा गुनगुनाती रहो
मेघ तम के चलें जब गगन ढाँकने
सूर्य को आईना हँस दिखाती रहो
*
गए मिलने गले पड़ने नहीं,पर तुम न मानोगे.
दबाने-काटने के जुर्म में, बंदूक तानोगे.
चलाओ स्वच्छ भारत का भले अभियान हल्ला कर-
सियासत कीचड़ी कर, हाथ से निज पंक सानोगे
*
द्विपदी 
ग़ज़ल कहती न तू आ भा, ग़ज़ल कहती है जी मुझको 
बताऊँ मैं उसे कैसे, जिया है हमेशा तुझको
*
न बारिश तुम इसे समझो, गिरा है आँख से पानी. 
जो आहों का असर होगा, कहाँ जाओगे ये सोचो.
*
न केवल बात में, हालात में भी है वहाँ सीलन 
जहाँ फौजों के साए में, चुनावी जीत होती है
*


दोहे 

डर से डर ही उपजता, मिले स्नेह को स्नेह. 
निष्ठा पर निष्ठा अडिग, सम हो गेह-अगेह.



*
मन के मनसबदार! तुम, कहो हुए क्यों मौन?
तनकर तन झट झुक गया, यहाँ किसी का कौन?
*
हम सब कारिंदे महज, एक राम दीवान
करा रहा वह; भ्रम हमें, अपना होता मान 
*
वही द्विवेदी जो पढ़े, योग-भोग दो वेद.
अंत समय में हो नहीं, उसको किंचित खेद.
*
शोक न करता जो कभी, कहिए उसे अशोक.
जो होता होता रहे, कोई न सकता रोक
*
जहाँ अँधेरा घोर हो, बालें वहीं प्रदीप 
पल में तम कर दूर दे, ज्यों मोती सह सीप
*
विजय भास्कर की तभी, तिमिर न हो जब शेष
ऊषा दुपहर साँझ को, बाँटे नेह अशेष
*
चमक रहे चमचे चतुर, गोल-मोल हर बात 
पोल ढोल की खुल रही, नाजुक हैं हालात
*
सेना नौटंकी करे, कहकर आम चुनाव.
जिसको चाहे लड़ा दे, डगमग है अब नाव
*

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

मुक्तक

मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
खोजता हूँ ठाँव पग थकने लगे हैं.
ढूँढता हूँ छाँव मग चुभने लगे हैं..
डूबती है नाव तट को टेरता हूँ-
दूर है क्या गाँव दृग मुंदने लगे हैं..
*
आओ! आकर हाथ मेरा थाम लो तुम.
वक़्त कहता है न कर में जाम लो तुम..
रात के तम से सवेरा जन्म लेगा-
सितारों से मशालों का काम लो तुम..
*
आँख से आँखें मिलाना तभी मीता.
पढ़ो जब कर्तव्य की गीता पुनीता..
साँस जब तक चल रही है थम न जाना-
हास का सजदा करे आसें सुनीता..
*
मिलाकर कंधे से कंधा हम चलेंगे.
हिम शिखर बाधाओं के पल में ढलेंगे.
ज़मीं है ज़रखेज़ थोड़ा पसीना बो-
पत्थरों से ऊग अंकुर बढ़ फलेंगे..
*
ऊगता जो सूर्य ढलता है हमेशा.
मेघ जल बनकर बरसता है हमेशा..
शाख जो फलती खुशी से झूमती है-
तिमिर में जुगनू चमकता है हमेशा..
*
२५-७-२०१२
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

मुक्तक

मुक्तक:
संजीव 
*
मापनी: २११ २११ २११ २२ 
*
आँख मिलाकर आँख झुकाते
आँख झुकाकर आँख उठाते
आँख मारकर घायल करते
आँख दिखाकर मौन कराते
*
मापनी: १ २ २ १ २ २ १ २ २ १२२
*
न जाओ, न जाओ जरा पास आओ
न बातें बनाओ, न आँखें चुराओ
बहुत हो गया है, न तरसा, न तरसो
कहानी सुनो या कहानी सुनाओ
*
२५-६-२०१५
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

सवैया, मुक्तक

एक मुक्तक 
भावो- अभावों का है तालमेल दुनिया 
ममता मन में धार अकेले चल दे तू 
गैरों में भी तुझको मिल जाएँ अपने 
अपनापन सिंगार साजकर चल दे तू 
***

सवैया
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें 
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ नाक बजा लें
नाक नकेल भी डाल सखे हो, न कटे जंजाल तो नाक चढ़ा लें
छंद का नाम और लक्षण बताइए.
***
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 23 जुलाई 2019

मुक्तक माँ

 माँ के प्रति प्रणतांजलि:
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.
दोहा गीत गजल कुण्डलिनी, मुक्तक छप्पय रूबाई सी..
मन को हुलसित-पुलकित करतीं, यादें 'सलिल' डुबातीं दुख में-
होरी गारी बन्ना बन्नी, सोहर चैती शहनाई सी..
*
मानस पट पर अंकित नित नव छवियाँ ऊषा अरुणाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी..
प्यार हौसला थपकी घुड़की, आशीर्वाद दिलासा देतीं-
नश्वर जगती पर अविनश्वर विधि-विधना की परछांई सी..
*
उँगली पकड़ सहारा देती, गिरा उठा गोदी में लेती.
चोट मुझे तो दर्द उसे हो, सुखी देखकर मुस्का देती.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी-
'सलिल' अभागा माँ बिन रोता, श्वास -श्वास है रुसवाई सी..
*
जन्म-जन्म तुमको माँ पाऊँ, तब हो क्षति की भरपाई सी.
दूर हुईं जबसे माँ तबसे घेरे रहती तन्हाई सी.
अंतर्मन की पीर छिपाकर, कविता लिख मन बहला लेता-
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
*
कौशल्या सी ममता तुममें, पर मैं राम नहीं बन पाया.
लाड़ दिया जसुदा सा लेकिन, नहीं कृष्ण की मुझमें छाया.
मूढ़ अधम मुझको दामन में लिए रहीं तुम निधि पाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
१०-५-२०१५
*

कार्यशाला मुक्तक

कार्यशाला
आइये! कविता करें ६ :
संजीव
.
मुक्तक 
आभा सक्सेना
कल दोपहर का खाना भी बहुत लाजबाब था, = २६
अरहर की दाल साथ में भुना हुआ कबाब था। = २६
मीठे में गाजर का हलुआ, मीठा रसगुल्ला था, = २८
बनारसी पान था पर, गुलकन्द बेहिसाब था।। = २६
लाजवाब = जिसका कोई जवाब न हो, अतुलनीय, अनुपम। अधिक या कम लाजवाब नहीं होता, भी'' से ज्ञात होता है कि इसके अतिरिक्त कुछ और भी स्वादिष्ट था जिसकी चर्चा नहीं हुई. इससे अपूर्णता का आभास होता है. 'भी' अनावश्यक शब्द है.
तीसरी पंक्ति में 'मीठा' और 'मीठे' में पुनरावृत्ति दोष है. गाजर का हलुआ और रसगुल्ला मीठा ही होता है, अतः यहाँ मीठा लिखा जाना अनावश्यक है.
पूरे मुक्तक में खाद्य पदार्थों की प्रशंसा है. किसी वस्तु का बेहिसाब अर्थात अनुपात में न होना दोष है, मुक्तककार का आशय दोष दिखाना प्रतीत नहीं होता। अतः, इस 'बेहिसाब' शब्द का प्रयोग अनुपयुक्त है.
कल दोपहर का खाना सचमुच लाजवाब था = २५
दाल अरहर बाटी संग भर्ता-कवाब था = २४
गाजर का हलुआ और रसगुल्ला सुस्वाद था- = २६
अधरों की शोभा पान बनारसी नवाब था = २५
१८-१-२०१५ 
-----.

सोमवार, 22 जुलाई 2019

मुकतक महिला क्रिकेट

मुकतक महिला क्रिकेट
*
दीप्ति तम हरकर उजाला बाँट दे 
अब न शर्मा शतक से तम छांट दे
दस दिशाओं से सुनो तुम तालियाँ 
फाइनल लो जीत धोबीपाट दे
*
एकता है तो मिलेगी विजय भी
गेंद की गति दिशा होगी मलय सी
खाए चक्कर ब्रिटिश बल्लेबाज सब 
तिरंगा फ़हरा सके, हो जयी भी
*
स्मृति का बल्ला चला, गेंद हुई रॉकेट.
पलक झपकते नभ छुए, गेंदबाज अपसेट.
*
दीप्ति कौंधती दामिनी, गिरे उड़ा दे होश.
चमके दमके निरंतर, कभी न रीते कोश.
*
पूनम उतरी तो हुई,  अजब अनोखी बात.
घिरे विपक्षी तिमिर में,  कहें अमावस तात.
*
शर संधाना तो हुई, टीम विरोधी ढेर. 
मंधाना के वार से,  नहीं किसी की खैर
२२.७.२०१७ 
***

रविवार, 14 जुलाई 2019

मुक्तक

मुक्तक:
मत सोच यार, पा-बाँट प्यार,
सह दर्द, दे ख़ुशी तू उधार।
पतवार-नाव, हो जोश-होश
कर-करा पार, तू सलिल-धार।। 
***
salil.sanjiv@gmail.com
#हिंदी_ब्लॉगिंग
#हिंदीब्लॉगर।कॉम

शनिवार, 13 जुलाई 2019

मुकतक

मुकतक 
था सरोवर, रह गया पोखर महज क्यों आदमी ?
जटिल क्यों?, मिलता नहीं है अब सहज क्यों आदमी?
काश हो तालाब शत-शत कमल शतदल खिल सकें-
आदमी से गले मिलकर 'सलिल' खुश हो आदमी।।

शनिवार, 6 जुलाई 2019

मुक्तक

मुक्तक:
*
भारती की आरती है शुभ प्रभात
स्वच्छता ही तारती है शुभ प्रभात
हरियाली चूनर भू माँ को दो-
मैया मनुहारती है शुभ प्रभात
*
झुक बुजुर्ग से आशिष लेना शुभ प्रभात है
छंदों में नव भाव पिरोना शुभ प्रभात है
आशा की नव फसलें बोना शुभ प्रभात है
कोशिश कर अवसर ना खोना शुभ प्रभात है
*
गरज-बरसकर मेघ, कह रहे शुभ प्रभात है
योग भगाए रोग करें, कह शुभ प्रभात है
लगा-बचाकर पौध, कहें हँस शुभ प्रभात है
स्वाध्याय कर, रचें नया कुछ शुभ प्रभात है
***
#हिंदी_ब्लॉगर
***

गुरुवार, 27 जून 2019

मुक्तक

मुक्तक 
*
प्राण, पूजा कर रहा निष्प्राण की 
इबादत कर कामना है त्राण की 
वंदना की, प्रार्थना की उम्र भर- 
अर्चना लेकिन न की संप्राण की
.
साधना की साध्य लेकिन दूर था
भावना बिन रूप ज्यों बेनूर था
कामना की यह मिले तो वह करूँ
जाप सुनता प्रभु न लेकिन सूर था
.
नाम ले सौदा किया बेनाम से
पाठ-पूजन भी कराया दाम से
याद जब भी किया उसको तो 'सलिल'
हो सुबह या शाम केवल काम से
.
इबादत में तू शिकायत कर रहा
इनायत में वह किफायत कर रहा
छिपाता तू सच, न उससे कुछ छिपा-
तू खुदी से खुद अदावत कर रहा
.
तुझे शिकवा वह न तेरी सुन रहा
है शिकायत उसे तू कुछ गुन रहा
है छिपाता ख्वाब जो तू बुन रहा-
हाय! माटी में लगा तू घुन रहा
.
तोड़ मंदिर, मन में ले मन्दिर बना
चीख मत, चुप रह अजानें सुन-सुना
छोड़ दे मठ, भूल गुरु-घंटाल भी
ध्यान उसका कर, न तू मौके भुना
.
बन्दा परवर वह, न तू बन्दा मगर
लग गरीबों के गले, कस ले कमर
कर्मफल देता सभी को वह सदा-
काम कर ऐसा दुआ में हो असर
***

बुधवार, 26 जून 2019

मुक्तक

मुक्तक:
दर्द हों मेहमां तो हँसकर मेजबानी कीजिए 
मेहमानी का मजा कुछ ग़मों को भी दीजिए
बेजुबां हो बेजुबानों से करें कुछ गुफ्तगू 
जिंदगी की बंदगी का मजा हँसकर लीजिए 
***

***
दाना देते परीक्षा, नादां बाँटे ज्ञान
रट्टू तोते आ रहे, अव्वल हैं अनजान
समझ-बूझ की है कमी, सिर्फ किताबी लोग
चला रहे हैं देश को, मनमर्जी भगवान
***
गौ माता के नाम पर, लड़-मरते इंसान
गौ बेबस हो देखती, आप बहुत हैरान
शरण घोलकर पी गया, भूल गया तहजीब
पूत आप ही लूटते भारत माँ की आन
***

मुक्तक

एक मुक्तक  :
मैं सपनों में नहीं जी रहा, सपने मुझमें जीते रहे हैं 
कोशिश की बोतल में मदिरा, संघर्षों की पीते रहे हैं.
क्रंदन-रुदन न मुझको भाया, यह मत मानो दर्द नहीं है-
बाधा का शिकार करते बढ़, सच हम ही वह चीते रहे हैं. 

बुधवार, 12 जून 2019

मुक्तक

मुक्तक 
नेह नर्मदा में अवगाहो, तन-मन निर्मल हो जाएगा।
रोम-रोम पुलकित होगा प्रिय!, अपनेपन की जय गाएगा।। 
हर अभिलाषा क्षिप्रा होगी, कुंभ लगेगा संकल्पों का, 
कोशिश का जनगण तट आकर, फल पा-देकर तर जाएगा।।
७-६-२०१६