गीत:
जीवन तो...
संजीव 'सलिल'
*
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
हाथ न अपने रख खाली तू,
कर मधुवन की रखवाली तू.
कभी कलम ले, कभी तूलिका-
रच दे रचना नव आली तू.
आशीषित कर कहें गुणी जन
वाह... वाह... यह तो दिग्गज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
मत औरों के दोष दिखा रे.
नाहक ही मत सबक सिखा रे.
वही कर रहा और करेगा-
जो विधना ने जहाँ लिखा रे.
वही प्रेरणा-शक्ति सनातन
बाधा-गिरि को करती रज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
तुझे श्रेय दे कार्य कराता.
फिर भी तुझे न क्यों वह भाता?
मुँह में राम, बगल में छूरी-
कैसा पाला उससे नाता?
श्रम -सीकर से जो अभिषेकित
उसके हाथ सफलता-ध्वज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
गीत: जीवन तो... संजीव 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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