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रविवार, 30 जुलाई 2017

navgeet

नवगीत
*
मेघ न बरसे
बरस रही हैं
आहत जनगण-मन की चाहत।
नहीं सुन रहीं
गूँगी-बहरी
सरकारें, क्या देंगी राहत?
*
जनप्रतिनिधि ही
जन-हित की
नीलामी करते, शर्म न आती।
सत्ता खातिर
शकुनि-सुयोधन
की चालें ही मन को भातीं।
द्रोणाचार्य
बेचते शिक्षा
व्यापम के सिरमौर बने हैं।
नाम नहीं
लिख पाते टॉपर
मेघ विपद के बहुत घने हैं।
कदम-कदम पर
शिक्षालय ही
रेप कर रहे हैं शिक्षा का।
रावण के रथ
बैठ सियासत
राम-लखन पर ढाती आफत।
*
लोकतन्त्र की
डुबा झोपड़ी
लोभतन्त्र नभ से जा देखे।
शोकतंत्र निज
बहुमत क्रय कर
भोगतंत्र की जय-जय लेखे।
कोकतंत्र नित
जीता शैशव
आश्रम रथ्यागार बन गए।
जन है दुखी
व्यथित है गण
बेमजा प्रजा को शासन शामत।
*
हँसिया
गर्दन लगा काटने,
हाथी ने बगिया रौंदी रे!
चक्र गला
जनता का काटे,
पंजे ने कबरें खोदी रे!
लालटेन से
जली झुपड़िया
कमल चुभाता पल-पल काँटे।
सेठ-हितू हैं
अफसर नेता
अँधा न्याय ढा रहा आफत।
*
३०-७-२०१६
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

navgeet :

नवगीत:
संजीव
*
मेघ बजे

नभ ठाकुर की ड्योढ़ी पर
फिर मेघ बजे
ठुमुक बिजुरिया
नचे बेड़नी बिना लजे
*
दादुर देते ताल,
पपीहा-प्यास बुझी
मिले मयूर-मयूरी
मन में छाई खुशी

तोड़ कूल-मरजाद
नदी उफनाई तो
बाबुल पर्वत रूठे
तनया तुरत तजे
*
पल्लव की करताल
बजाती नीम मुई
खेत कजलियाँ लिये
मेड़ छुईमुई हुई

जन्मे माखनचोर
हरीरा भक्त पिये
गणपति बप्पा, लाये
मोदक हुए मजे
*
टप-टप टपके टीन
चू गयी है बाखर
डूबी शाला हाय!
पढ़ाये को आखर?

डूबी गैल, बके गाली
अभियंता को
डुकरो काँपें, 'सलिल'
जोड़ कर राम भजे

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

नवगीत: मेघ बजे.... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

मेघ बजे....

संजीव 'सलिल'
*
मेघ बजे, मेघ बजे,
मेघ बजे रे!
धरती की आँखों में,
स्वप्न सजे रे...
*
सोई थी सलिला.
अंगड़ाई ले जगी.
दादुर की टेर सुनी-
प्रीत में पगी..

मन-मयूर नाचता,
न वर्जना सुने.
मुरझाये पत्तों को,
मिली ज़िंदगी..

झूम-झूम झर झरने,
करें मजे रे.
धरती की आँखों में,
स्वप्न सजे रे...
*
कागज़ की नौका,
पतवार बिन बही.
पनघट-खलिहानों की-
कथा अनकही..

नुक्कड़, अमराई,
खेत, चौपालें तर.
बरखा से विरह-अगन,
तपन मिट रही..

सजनी पथ हेर-हेर,
धीर तजे रे!
धरती की आँखों में,
स्वप्न सजे रे...
*
मेंहदी उपवास रखे,
तीजा का मौन.
सातें-संतान व्रत,
बिसरे माँ कौन?

छत्ता-बरसाती से,
मिल रहा गले.
सीतता रसोई में,
शक्कर संग नौन.

खों-खों कर बऊ-दद्दा,
राम भजे रे!
धरती की आँखों में,
स्वप्न सजे रे...
*****************

शनिवार, 18 सितंबर 2010

नवगीत: मेघ बजे --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

मेघ बजे

संजीव 'सलिल'
*
नभ ठाकुर की ड्योढ़ी पर फिर मेघ बजे.
ठुमुक बेड़नी नचे, बिजुरिया बिना लजे...
*
दादुर देते ताल,
पपीहा-प्यास बुझी.
मिले मयूर-मयूरी
मन में छाई खुशी...

तोड़ कूल-मरजाद नदी उफनाई तो-
बाबुल पर्वत रूठे, तनया तुरत तजे...
*
पल्लव की करताल,
बजाती नीम मुई.
खेत कजलियाँ लिये,
मेड़ छुईमुई हुई..

जन्मे माखनचोर, हरीरा भक्त पिए.
गणपति बप्पा, लाये मोदक हुए मजे...
*
टप-टप टपके टीन,
चू गयी है बाखर.
डूबी शाला हाय!,
पढ़ाये को आखर?

डूबी गैल, बके गाली अभियंता को.
डुकरो काँपें, 'सलिल' जोड़ कर राम भजे...
*
नभ ठाकुर की ड्योढ़ी पर फिर मेघ बजे.
ठुमुक बेड़नी नचे बिजुरिया, बिना लजे...
*******************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम