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सोमवार, 31 अगस्त 2020

अभियान समय सारिणी

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
📚📙समन्वय प्रकाशन जबलपुर📙📚
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, ग्रहप्रवेश त्यौहार।
'सलिल' बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।। 
***
संस्थापक-संचालक-संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
- : मार्गदर्शक मण्डल : -
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी
 डॉ. सुरेश कुमार वर्मा
 सुश्री आशा वर्मा
- : परामर्श मण्डल : -
इंजी. अमरेंद्र नारायण जी
डॉ. साधना वर्मा जी
डॉ. संतोष शुक्ला
श्याम देवपुरा जी
अध्यक्ष
बसंत शर्मा
सचेतक - मुख्यालय सचिव
छाया सक्सेना 'प्रभु'
सहयोगी संस्थाएँ :-
वनमाली सृजनपीठ भोपाल,
युवा उत्कर्ष साहित्यिक संस्था दिल्ली,
साहित्य संगम दिल्ली,
सृजन कुञ्ज, काव्य कलश

*
हिंदी आटा माढ़िए, देशज मोयन डाल।
सलिल संस्कृत सान दे,पूड़ी बने कमाल।।
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विक्रम संवत् २०७७, शक संवत् १९४२, वीर निर्वाण संवत् २५४६, बांग्ला संवत् १४२७, हिजरी संवत् १४४२, ईस्वी सन् २०२०.
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🔔  🔔 १ सितंबर २०२० से प्रभावी समय सारिणी 🔔  🔔

🌞अनुशासन फलदायकं 🌞। 
वंदना / चिंतन पर्व : प्रात: ६ बजे से ८ बजे
सृजन पर्व - प्रात: ८ बजे से संध्या ६ बजे
विमर्श-संवाद पर्व : संध्या ६बजे से रात्रि ८ बजे तक
मुक्त समय - रात्रि ८ बजे से प्रात: ६ बजे
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स्थाई स्तंभ : वंदना, सूक्ति-सुभाषित, कार्यशाला, पर्व-जयंती, पाठकीय, प्रतिवेदन।
व्यवस्थापक : उदयभानु तिवारी 'मधुकर', मीनाक्षी शर्मा 'तारिका', अर्चना गोस्वामी।
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 📢🐚दैनिक विषय सारिणी🐚🔔

सोमवार - धर्म / योग सत्र : सभ्यता, संस्कृति, आध्यात्म्य, योग, दर्शन, ज्योतिष, ।
व्यवस्थापक : अरुण भटनागर जबलपुर, अरुण श्रीवास्तव 'अर्णव' भोपाल, सारांश गौतम जबलपुर।
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मंगलवार - लोक / बाल सत्र : लोक / बाल संबंधित पर्व, कथा, गीत, नाट्य, साहित्य आदि।
व्यवस्थापक : पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा, प्रभा विश्वकर्मा जबलपुर, बबीता चौबे।
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बुधवार - पद्य सत्र : गीत, कविता, क्षणिका, रस, छंद, अलंकार ।
व्यवस्थापक - छाया सक्सेना जबलपुर,  मीना भट्ट जबलपुर, विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा राजस्थान  ।
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गुरुवार - गद्य सत्र : कहानी, लघुकथा, उपन्यास, निबंध, समालोचना, लेख आदि।
व्यवस्थापक : डॉ. मुकुल तिवारी जबलपुर, मनोरमा जैन 'पाँखी' भिंड, वीणा सिंह सिहोरा।
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शुक्रवार - विमर्श सत्र - संगोष्ठी  परिचर्चा, साक्षात्कार, संस्मरण, पर्यटन कथा आदि।
व्यवस्थापक : अखिलेश सक्सेना कासगंज, डॉ. अनिल जैन दमोह, सुषमा सिंह सिहोरा।
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शनिवार भाषा सत्र - भाषा विग्यान, व्याकरण, भाषांतरण, अनुवाद, अन्य भाषाओं / बोलियाँ का साहित्य।
व्यवस्थापक : डॉ आलोकरंजन जपला, डॉ. अरविंद श्रीवास्तव दतिया, निरुपमा वर्मा एटा।
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रविवार कला व विज्ञान सत्र - गायन, वादन, नर्तन, रेखांकन, चित्रांकन, छायांकन, पाक, श्रृंगार, साज-सज्जा, उद्यानिकी, मनरंजन आदि।
व्यवस्थापक : डॉ. अनिल बाजपेई जबलपुर, प्रो. शोभित वर्मा, अस्मिता शैली।
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मुक्त काल :
व्यवस्थापक : रमन श्रीवास्तव जबलपुर, सपना सराफ जबलपुर, डॉ. मीना श्रीवास्तव ग्वालियर।
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अनिल अनल भू नभ सलिल, पंचतत्व संसार 
भाषा भूषा संस्कृति, है असार में सार 
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नियम  -
१. पटल पर निर्धारित विषयानुकूल रचनाओं के सिवाय कोई लिंक, टिप्पणी या विज्ञापन प्रस्तुत न करें। विषयानुकूल लिंक, साहित्यिक आयोजनों की सूचना व्यवस्थपकों को भेजें। वे उपयुक्त होने पर मुक्त समय में प्रस्तुत करेंगे। 
२. रचनाओं व विमर्श की भाषा शिष्ट, कथ्य प्रामाणिक, शब्द सटीक हों। 
३. रचनाओं पर पाठकीय टिप्पणी, विमर्श, सुझाव आदि रचनाकार के व्यक्तिगत पटल पर भेजें। रचनाकार इन्हें उचित लगे तो अपनायें, अनावश्यक बहस न करें।
४. रचनाकाल की सभी रचनाओं पर पाठकीय प्रतिक्रिया एक बार विमर्श पर्व में दी जा सकती है। ।
५. अन्य स्रोत से ली गई सामग्री का संदर्भ अवश्य दें।
६. सामग्री की प्रामाणिकता, सत्यता, वैधानिकता हेतु केवल प्रस्तुतकर्ता जिम्मेदार हैं, पटल संचालक-प्रबंधक-व्यवस्थापक नहीं।
७. विवाद की स्थिति में संस्था सचेतक, अध्यक्ष या संयोजक का निर्णय सब पर बंधनकारी होगा।
८. विमर्श, गोष्ठी, परिसंवादम कार्यशाला आदि हेतु विधा व दिन संचालक की अनुमति-सहमति प्राप्त कर घोषित करें तथा घोषणानुसार ९.  सचेतक/व्यवस्थापक पटल पर नियमों का पालन सुनिश्चित करें, नियम भंग करनेवाले सदस्यों को सूचित कर नियम मनवाएँ। अनुरोध के अवहेलना होने पर संबंधित सदस्य को सचेतक, अध्यक्ष या संचालक अस्थायी / स्थाई रूप से निष्कासित कर सकते हैं।   
१०. जो सदस्य व्यवस्थापक मंडल में जुड़ना चाहें, सुझाव देना चाहें अथवा कोई आयोजन करना चाहें वे संचालक से संपर्क करें।

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 📢🐚दैनिक विषय सारिणी🐚🔔
.......... वार,  - ............ सत्र : .......................................................... ।
व्यवस्थापक : ...............................................................।
सचेतक - ........................................................................
🌞अनुशासन फलदायकं 🌞। 
🔔 समय सारिणी 🔔
वंदना / चिंतन पर्व : प्रात: ६ बजे से ८ बजे
सृजन पर्व - प्रात: ८ बजे से संध्या ६ बजे
संवाद पर्व : संध्या ६ बजे से रात्रि ८ बजे तक
मुक्त समय - रात्रि ८ बजे से प्रात: ६ बजे
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बुन्देली दोहे

बुन्देली दोहे
महुआ फूरन सों चढ़ो, गौर धना पे रंग।
भाग सराहें पवन के, चूम रहो अॅंग-अंग।।
मादल-थापों सॅंग परंे, जब गैला में पैर।
धड़कन बाॅंकों की बढ़े, राम राखियो खैर।।
हमें सुमिर तुम हो रईं, गोरी लाल गुलाल।
तुमें देख हम हो रए, कैसें कएॅं निहाल।।
मन म्रिदंग सम झूम रौ, सुन पायल झंकार।
रूप छटा नें छेड़ दै, दिल सितार कें तार।।
नेह नरमदा में परे, कंकर घाईं बोल।
चाह पखेरू कूक दौ, बानी-मिसरी घोल।।
सैन धनुस लै बेधते, लच्छ नैन बन बान।
निकरन चाहें पै नईं, निकर पा रए प्रान।।
तड़प रई मन मछरिया, नेह-नरमदा चाह।
तन भरमाना घाट पे, जल जल दे रौ दाह।।
अंग-अंग अलसा रओ, पोर-पोर में पीर।
बैरन ननदी बलम सें, चिपटी छूटत धीर।।
कोयल कूके चैत मा, देख बरे बैसाख।
जेठ जिठानी बिन तपे, सूरज फेंके आग।।

आनुप्रासिक द्विपदी

आनुप्रासिक द्विपदी
*
भूल भुलाई, भूल न भूली, भूलभुलैयां भूली भूल.
भुला न भूले भूली भूलें, भूल न भूली भाती भूल.
*

एकाक्षरी दोहा

एकाक्षरी दोहा
*
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु|
नुन्नोअ्नुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत||
अर्थ बताएँ.
महर्षि भारवि, किरातार्जुनीयम में.
*

माहिया, ककुप, हाइकु

माहिया
फागों की तानों से
मन से मन मिलते
मधुरिम मुस्कानों से
*
ककुप
मिल पौधे लगाइए
वसुंधरा हरी-भरी बनाइये
विनाश को भगाइए
*
हाइकु
गाओ कबीर
बुरा न माने कोई
लगा अबीर
.

द्विपदी - कल्पना

द्विपदियों में कल्पना
*
कल्पना की विरासत जिसको मिली
उस सरीखा धनी दूजा है नहीं
*
कल्पना की अल्पना गृह-द्वार पर
डाल देखो सुखों का हो सम्मिलन
*
कल्पना की तूलिका, रंग शब्द के
भाव चित्रों में झलकती ज़िन्दगी
*
कल्पना उड़ चली फैला पंख जब
सच कहूँ?, आकाश छोटा पड़ गया
*
कल्पना कंकर को शंकर कर सके
चाह ले तो कर सके विपरीत भी
*
कल्पना से प्यार करना है अगर
आप अवसर को कभी मत चूकिए
*
कल्पना की कल्पना कैसे करे?
प्रश्न का उत्तर न खोजे भी मिला
*
कल्पना सरिता बदलती रूप नित
कभी मन्थर, चपल जल प्लावित कभी
*
कल्पना साकार होकर भी विनत
'सलिल' भट नागर यही है, मान लो
*
कल्पना की शरण जा कवि धन्य है
गीत दोहे ग़ज़ल रचकर गा सका
*
कल्पना मेरी हक़ीक़त हो गयी
नर्मदा अवगाह कर सुख पा लिया
*
कल्पना को बाँह में भर, चूमकर
कोशिशों ने मंज़िलें पायीं विहँस
*
कल्पना नाचीज़ है यह सत्य है
चीज़ तो बेजान होती है 'सलिल'
*
३१-८-२०१६

रविवार, 30 अगस्त 2020

निमाड़ी पर्व

निमाड़ी पर्व के सहयोगियों को सस्नेह नमन
*
सुषमा शारद की धवल, वीना-धुन माधुर्य
भारत बैठ सुरेश भी, सुनते सह गुरुवर्य
*
पूनम कौतुक कर रही, रजनी करती खेल
रास ब्रजेश रचा रहे, शिशिर-शरद का मेल
*
बुद्धि विनीता जब हुई, पूनम हुई अशोक
सफल तपस्या तब हुई, आशा सहे न रोक
*
प्रीति पार्वती पवित्रा, शांता मंजु विभोर
गीत रचे गोविन्द ने, थामी लय-रस -डोर
*       
नभ सज्जित राकेश लख, दस दिश सौरभ आप्त    
वसुधा ने हेमंत को, पाया हर दिल व्याप्त   
*
विश्व वाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
साहित्यिक संगोष्ठी  सहयोगियों को नमन
*
बुद्धि निरुपमा कहे रख, मन मञ्जूषा बंद
बुद्धि विनीता ही कहे, रस-लय मय नव छंद
*
हरिसहाय हो तब मिले, जीवन में आलोक
अपना सपना पूर्ण हो, कोई सके न रोक
*
सरला सुषमा अपरिमित, मन में यदि संतोष
अनिल अनल भू नभ सलिल, रीते कभी न कोष
*
नमन करे अखिलेश को, छा ऋतुराज बसंत
सृजन करें मिथलेश हो, साधें छंद अनंत
*
संजीव
३०-८-२०२० 

निमाड़ी दोहे

निमाड़ी सलिला
दोहे
*
सिंदूरी सुभ भोर छे, चटक दुफेरी धूप।
संझा सरस सुहावणी,रात रूपहलो रूप।।
*
खेती बाड़ी बावड़ी, अमरित पाणी सीच।
ठुमका प$ ओरावणी, नाच सयाणी मीच।।
*
सूनी गोद भरावणी, संजा चारइ पूज
बरसूद् या खs लावणी, हिवड़ा कहीं न दूज
*
दाणी मइया नरबदा, पाणी अमरित धार
माणी घऊँ जुआर दs, धाणी जीवन सार।।
*
सांस-सांस मं$ हर घड़ी,अमर प्यार का बोल
परकम्मा कर पुन्न लइ, चल्या टोळ का टोळ।।
*

चिंतन: कौन बेहतर नर या नारी?

चिंतन:
कौन बेहतर नर या नारी?
*
स्त्री विमर्शवादियों का मत है कि स्त्री का हमेशा शोषण किया गया, समानाधिकार नहीं दिया गया। प्रगतिशीलता की चाह अश्लील लेखन, पारिवारिक बिखराव, अंग प्रदर्शन, सहजीवन (लिव इन) तक सीमित रह गई।

पुरुष वर्ग और न्यायालय का आकलन है कि सब कानून स्त्री हितों को दृष्टि में रखकर बनाए गए हैं, प्रताड़ित और पीड़ित पुरुष की हितरक्षा हेतु कोई कानून ही नहीं है।

विवाह को बंधन मानकर नकारने और उन्मुक्त संबंध का दुष्परिणाम बालिका वधुऔर प्रशांत अर्थात स्त्री-पुरुष दोनों के लिए अहितकर रहा है।
साहित्य भ्रमित समाज को दिशा दिखाता है। 

भारतीय चिंतन विद्या, धन और शक्ति की अधिष्ठात्री सरस्वती-रमा-उमा को पूजता रहा तो अप्सराओं से प्रणय-विवाह-संतान अधिकार छीननेवाली देव संस्कृति को आदर्श मानता रहा। 
धरती को माता और आसमान को पिता मानने का समन्वयपरक चिंतन वेदपूर्व से मान्य रहा है।
तुलसी ने इसी समन्वयवादी दृष्टिकोण को अपनाया। "ढोल गँवार शूद्र पशु नारी, सकल तोड़ना के अधिकारी" को उद्धृत कर तुलसी को नारी-निंदक कहनेवाले भूल जाते हैं कि तुलसी ने अपनी पत्नि द्वारा तिरस्कृत किए जाने के बाद भी "जगत जननि दामिनी सुख दाता / नहिं तव आदि मध्य अफसाना, अमित प्रभाव वेद नहिं जाना" कहकर नारी वंदना की, मीरा का पथ प्रदर्शन किया, रत्नावली को रामभक्ति हेतु प्रेरित किया और रत्नावली आजीवन उन्हें पूजती रहीं।

मैथिलीशरण गुप्त जी के मत में-
एक नही दो दो मात्राएँ,
नर से बढ़कर है नारी।

नर-नारी दोनों की प्रकृति अलग है, स्वभाव अलग है, कार्यशैली अलग है।
दोनों एक-दूसरे के पूरक है, विरोधी नहीं। कुहीं नारी श्रेष्ठ है, कहीं नर। 
नर गगन की तरह छाना चाहता है तो नारी धरती की तरह समेटना। नर पाकर खुश होता है, नारी देकर।

रामधारी सिंह दिनकर नर-नारी के मनोवैज्ञानिक अंतर को स्पष्ट करते हैं-

पुरुष चूमते तब जब वे सुख में होते हैं,
हम चूमती उन्हें जब वे दुख में होते हैं। 
नर जीतना चाहता है , नारी आत्मसात करना।

जीवन पथ पर कभी तुम जो थके
मैं शीतल जल, बन आउंगी
बुझा सकी ना प्यास तेरी
तो, थके पाँव धो जाऊँगी 

नारी प्यार में खो जाना चाहती ,प्यार में , प्रीत में मिट जाने को ही श्रेष्ठ मानती है-

दिया कहे तू सागर, मैं होती तेरी नदिया ,
लहर बहर कर तू अपने, पीया चमन जाती रे ,
सुन मेरे साथी रे

नारी पुरुषार्थ हीन नहीं है, न नर ममतारहित है। नारी का पौरुष और नर की ममता उनकी सुप्त वृत्ति है जो आवश्यकतानुसार प्रगट होती है।

वत्सला से वज्र में
ढल जाऊँगी,
मैं नहीं हिमकण हूँ
जो गल जाऊँगी।

भारतीय चिंतन संघर्ष नहीं समन्वय को इष्ट मानता है। वह सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा को पूजने में हिचकता नहीं है किंतु इन्हें क्रमश: ब्रह्मा-विष्णु-महेश का अभिन्न अंग मानता है। 

हमारे शास्त्रों में भी परमेश्वर अर्थात परम शक्ति की कभी नर रूप में कभी नारी रूप में कल्पना की गई है। वास्तुत: वह शक्ति न तो नर है, न नारी है। उस शक्ति को आश्रयदाता  के रूप में नर और पोषक के रूप में नारी कहा है। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' में यही भाव अंतर्निहित है।
उपनिषद में भी समान अभिव्यक्ति है-
 'रुद्रो नर उमा नारी तस्मै तस्यै नमो नमः।
रुद्रो ब्रह्म उमा वाणी तस्मै तस्यै नमो नमः।
रुद्रो विष्णु उमा लक्ष्मी तस्मै तस्यै नमो नमः।'
रुद्र, सूर्य है और उमा उसकी प्रभा है, रुद्र फूल है और उमा उसकी सुगंध है, रुद्र यज्ञ है और उमा उसकी वेदी है।

सृष्टि के मूल में प्रकृति और पुरुष ये दो तत्व हैं। ऐसा सांख्यदर्शन का स्पष्ट मत है। 

श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं- 'प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्धयनादी उभावपि।'
 प्रकृति और पुरुष दोनों के समन्वय-सहयोग से सृष्टि बनी है।

नर-नारी के अद्वैत को अर्धनारीश्वर (शिवा-शिव, राधा-कृष्ण) के रूप मे वर्णित किया गया है।
पुरुष के अंतःकरण में जब स्त्रीभाव का उदात्तीकरण होता है, तब वह करुणामय, प्रेमपूर्ण वात्सल्यमय बनता है, कवि और कलाकार बनता है, संवेदनाक्षम बनता है। इसी तरह स्त्री में 'पुरुष' जागृत होते ही वह धीर और दृढ़ सावित्री बनती है, उसमें से रणचंडी लक्ष्मीबाई प्रकट होती है।
इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि जहाँ स्त्रीत्व और पुरुषत्व के गुण जब एक मानव में होते हैं, तब मानव मे अर्धनारीश्वर प्रकट होते हैं।
*
संजीव 
२९-८-२०२०
स्वास्थ्य
*
- सूखी खाँसी, छींक = वायु प्रदूषण
- खाँसी, बलगम, छींक, बहती नाक = जुकाम
- खाँसी, बलगम, छींक, बहती नाक, शरीर दर्द, हल्का ज्वर, कमजोरी = फ्लू
- सूखी खाँसी, छींक, शरीर दर्द, तेज ज्वर, कमजोरी, साँस लेने में कठिनाई = कोविद या कोरोना।
टीप - नाक बहे, कफ निकले, लगभग ४० सेकेंड तक श्वास रोक सकें तो कोरोना की संभावना नहीं है।
*
गिलोय - ज्वरनाशक, पाचन वर्धक, रोग प्रतिरोधक।
तुलसी - ज्वरनाशक, खाँसी रोधक।
अश्वगंधा - शारीरिक शक्तिवर्धक, अस्थि दर्द निवारक।
सदाबहार- कैंसर, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, फोड़ा-फुंसी।
*

निमाड़ी दोहा सलिला

निमाड़ी दोहा सलिला
दोहे
*
सिंदूरी सुभ भोर छे, चटक दुपैरी धूप।
रंगीली संझा सरस, रातs सुहाणो रूप।।
*
खेती बाड़ी बावड़ी, अमरित पाणी सीच
ठुमके पर ओरावणी, नाच सयाणी मीच
*
सूनी गोद भरावणी, संजा चारइ पूज
बरसूद् या खs लावणी, हिवड़ा कहीं न दूज
*
दाणी मइया नरबदा, पाणी अमरित धार
धाणी गऊँ जुआर दs, माणी जीवन सार
*
घड़ी-घड़ी खम्माघणी, अमर प्यार के बोल
परिकम्मा कर पुन्न ले, चलाया टोल का टोल
*

कार्यशाला: डॉ. शिवानी सिंह के दोहे

कार्यशाला:
डॉ. शिवानी सिंह के दोहे
*
गागर मे सागर भरें भरें नयन मे नीर|
पिया गए परदेश तो कासे कह दे पीर||
तो अनावश्यक, प्रिय के जाने के बाद प्रिया पीर कहना चाहेगी या मन में छिपाना? प्रेम की विरह भावना को गुप्त रखना जाना करुणा को जन्म देता है.
.
गागर मे सागर भरें, भरें नयन मे नीर|
पिया गए परदेश मन, चुप रह, मत कह पीर||
*
सावन भादव तो गया गई सुहानी तीज|
कौनो जतन बताइए साजन जाए पसीज||
साजन जाए पसीज = १२
सावन-भादों तो गया, गई सुहानी तीज|
कुछ तो जतन बताइए, साजन सके पसीज||
*
प्रेम विरह की आग मे झुलस गई ये गात|
मिलन भई ना सांवरे उमर चली बलखात||
गात पुल्लिंग है., सांवरा पुल्लिंग, नारी देह की विशेषता उसकी कोमलता है, 'ये' तो कठोर भी हो सकता है.
प्रेम-विरह की आग में, झुलस गया मृदु गात|
किंतु न आया सांवरा, उमर चली बलखात||
*
प्रियतम तेरी याद में झुलस गई ये नार|
नयन बहे जो रात दिन भया समुन्दर खार||
.
प्रियतम! तेरी याद में, मुरझी मैं कचनार|
अश्रु बहे जो रात-दिन, हुआ समुन्दर खार||
कचनार में श्लेष एक पुष्प, कच्ची उम्र की नारी,
नयन नहीं अश्रु बहते हैं, जलना विरह की अंतिम अवस्था है, मुरझाना से सदी विरह की प्रतीति होती है.
*
अब तो दरस दिखाइए, क्यों है इतनी देर?
दर्पण देखूं रूप भी ढले साँझ की बेर|
क्यों है इतनी देर में दोषारोपण कर कारण पूछता है. दर्पण देखना सामान्य क्रिया है, इसमें उत्कंठा, ऊब, खीझ किसी भाव की अभिव्यक्ति नहीं है. रूप भी अर्थात रूप के साथ कुछ और भी ढल रहा है, वह क्या है?
.
अब तो दरस दिखाइए, सही न जाए देर.
रूप देख दर्पण थका, ढली साँझ की बेर
सही न जार देर - बेकली का भाव, रूप देख दर्पण थका श्लेष- रूप को बार-बार देखकर दर्पण थका, दर्पण में खुद को बार-बार देखकर रूप थका
*
टिप्पणी- १३-११ मात्रावृत्त, पदादि-चरणान्त व पदांत का लघु गुरु विधान-पालन या लय मात्र ही दोहा नहीं है. इन विधानों से दोहा की देह निर्मित होती है. उसमें प्राण संक्षिप्तता, सारगर्भितता, लाक्षणिकता, मर्मबेधकता तथा चारुता के पञ्च तत्वों से पड़ते हैं. इसलिए दोहा लिखकर तत्क्षण प्रकाशन न करें, उसका शिल्प और कथ्य दोनों जाँचें, तराशें, संवारें तब प्रस्तुत करें.
***

नवगीत

नवगीत -
*
पहले मन-दर्पण तोड़ दिया
फिर जोड़ रहे हो
ठोंक कील।
*
कैसा निजाम जिसमें
दो दूनी
तीन-पाँच ही होता है।
जो काट रहा है पौधों को
वह हँसिया
फसलें बोता है।
कीचड़ धोता है दाग
रगड़कर
कालिख गोर चेहरे पर।
अंधे बैठे हैं देख
सुनयना राहें रोके पहरे पर।
ठुमकी दे उठा, गिराते हो
खुद ही पतंग
दे रहे ढील।
पहले मन-दर्पण तोड़ दिया
फिर जोड़ रहे हो
ठोंक कील।
*
कैसा मजहब जिसमें
भक्तों की
जेब देख प्रभु वर देता?
कैसा मलहम जो घायल के
ज़ख्मों पर
नमक छिड़क देता।
अधनँगी देहें कहती हैं
हम सुरुचि
पूर्ण, कपड़े पहने।
ज्यों काँटे चुभा बबूल कहे
धारण कर
लो प्रेमिल गहने।
गौरैया निकट बुलाते हो
फिर छोड़ रहे हो
कैद चील।
पहले मन-दर्पण तोड़ दिया
फिर जोड़ रहे हो
ठोंक कील।
****
३०-८-२०१६

शनिवार, 29 अगस्त 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
दोहा
*
राधा धारा भक्ति की, कृष्ण कर्म-पर्याय.
प्रेम-समर्पण रुक्मिणी,कृष्णा चाहे न्याय.
*
कर मत कर तू होड़ अब, कर मन में संतोष
कर ने कर से कहा तो, कर को आया होश
*
दिनकर-निशिकर सँग दिखे, कर में कर ले आज
ऊषा-संध्या छिप गयीं, क्या जाने किस व्याज?
*
मिले सुधाकर-प्रभाकर, गले-जले हो मौन
गले न लगते, दूर से पूछें कैसा कौन?
*
प्रणव नाद सुन कुसुम ले, कर जुड़ होते धन्य
लख घनश्याम-महेश कर, नतशिर हुए अनन्य
*
खाकर-पीकर चोर जी, लौकर लॉकर तोड़
लगे भागने पुलिस ने, पकड़ा पटक-झिंझोर
*
२९-८-२०१६

आज की बात

मंगलवार, 29 अगस्त 2017
आज की बात
कल से नयी पारी आरंभ हो गई-शासकीय कला निकेतन पोलीटेकनिक जबलपुर में पदार्थ तकनीकी (मटीरियल टैकनालाजी) पढाना आरंभ कर दिया. बरसों पहले अंग्रेजी में पढ़ा था, पाठ्यक्रम में बदलाव स्वाभाविक है. अब हिंदी में तकनीकी विषय पढ़ाना सचमुच चुनौतीपूर्ण है. माँ शारदा के भरोसे आगे बढ़ता हूँ.
.
बाबा राम रहीम को,
गोली मारो यार.
सीख-सिखाये कुछ नया,
स्वप्न करें साकार.
.
सु मन रहे तो ही गहे,
श्री वास्तव मे आप.
सुमन सुरभि सम कीर्ति-यश,
जाए जग में व्याप.
.
सिंधु-सायना ने किया,
असामान्य संघर्ष.
महिला जीवट को मिला,
एक और उत्कर्ष.
.
सीमा से संदेश है,
रहिये सदा सतर्क.
शांति शक्ति से ही रहे,
करें न व्यर्थ कुतर्क.
.
नन्हा दीपक भी सके,
विपुल अँधेरा लील.
न्यायिक देरी को कफ़न,
मिले ठोंक दें कील.
.
अवध शरण अवधेश को,
देकर है न प्रसन्न.
रामालय में राज्य हो,
रहे न कोई विपन्न.
.
सुषमा तभी स्वराज की,
जब प्रभु हो हर आम.
सेवक प्रथम नरेंद्र हो,
काम करे निष्काम.
.

दोहा सलिला

दोहा सलिला
*
कर मत कर तू होड़ अब, कर मन में संतोष
कर ने कर से कहा तो, कर को आया होश
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दिनकर-निशिकर सँग दिखे, कर में कर ले आज
ऊषा-संध्या छिप गयीं, क्या जाने किस व्याज?
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मिले सुधाकर-प्रभाकर, गले-जले हो मौन
गले न लगते, दूर से पूछें कैसा कौन?
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प्रणव नाद सुन कुसुम ले, कर जुड़ होते धन्य
लख घनश्याम-महेश कर, नतशिर हुए अनन्य
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खाकर-पीकर चोर जी, लौकर लॉकर तोड़
लगे भागने पुलिस ने, पकड़ा पटक-झिंझोर
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२९-८-२०१६