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बुधवार, 28 सितंबर 2016

बात से बात

कार्य शाला
बात से बात
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चलो तुम बन जाओ लेखनी ... लिखते हैं मन के काग़ज पर ... जिंदगी के नए '' फ़लसफ़े ''!! - मणि बेन द्विवेदी
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कभी स्वामी, कभी सेवक, कलम भी जो बनाते हैं
गज़ब ये पुरुष से खुद को वही पीड़ित बताते हैं
फलसफे ज़िन्दगी के समझ कर भी नर कहाँ समझे?
जहाँ ठुकराए जाते हैं, वहीँ सर को झुकाते हैं -संजीव
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doha

एक दोहा-
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जब चाहा स्वामी लगा, जब चाहा पग-दास 
कभी किया परिहास तो, कभी दिया संत्रास
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