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मंगलवार, 28 नवंबर 2017

navgeet

नवगीत:
गीत पुराने छायावादी
मरे नहीं
अब भी जीवित हैं.
तब अमूर्त
अब मूर्त हुई हैं
संकल्पना अल्पनाओं की
कोमल-रेशम सी रचना की
छुअन अनसजी वनिताओं सी
गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा
लेकिन सच भी
संभावनाऐं शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
बिम्ब-प्रतीक 
वसन बदले हैं
अलंकार भी बदल गए हैं.
लय, रस, भाव अभी भी जीवित 
रचनाएँ हैं कविताओं सी
लज्जा, हया, शर्म की मात्रा 
घटी भले ही
संभावनाऐं प्रणय-मिलन की  
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
कहे कुंडली 
गृह नौ के नौ 
किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं 
इस पर उसकी दृष्टि जब पडी 
मुदित मग्न कामना अनछुई 
कौन कहे है कितनी पात्रा  
याकि अपात्रा?
मर्यादाएँ शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
***

शनिवार, 1 जून 2013

chhayavaad (romanticism):

 हिंदी कविता का आकर्षण छायावाद Romanticism :

दीप्ति गुप्ता - संजीव 'सलिल'

*

जब मानवीय प्रवृत्तियों व कार्य-कलापों को प्रकृति के उपादानों के माध्यम से व्यक्त करनेवाली कविता छायावादी कविता है। प्रकृति पर मानवीय भावों का आरोपण छायावादी कविता होती है! छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा तथा सुमित्रानन्दन पन्त हैं।  http://voutsadakis.com/GALLERY/ALMANAC/Year2011/Jan2011/01302011/jayashankar-prasad-3.jpghttp://lekhakmanch.com/wp-content/uploads/2012/01/suryakant-tripathi-nirala.jpghttp://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/b/be/Sumitranandan_Pant,_(1900_-_1977).jpg
 
Kaamaayani - Nirved by Jaishankar Prasad     
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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

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महादेवी वर्मा
        
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सुमित्रानंदन पन्त
  http://i234.photobucket.com/albums/ee147/MPMEHTA/poem.jpg  
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अंग्रेजी काव्य में छायावाद को रोमांटिसिज्म कहा गया है। 
Nature and love were a major themes of Romanticism favoured by 18th and 19th century poets such as Lord Byron, Percy Bysshe Shelley and John Keats. Emphasis in such poetry is placed on the personal experiences of the individual.
 
The Question
by
Percy Bysshe Shelley
I dreamed that, as I wandered by the way,
Bare Winter suddenly was changed to Spring,
And gentle odours led my steps astray,
Mixed with a sound of waters murmuring
प्रश्न: पर्सी ब्येश शैली
भटक रहा था पथ पर मैंने सपना देखा
कड़ी शीत को बासंती होते था लेखा
सलिल-धार की कलकल
मिश्रित मदिर सुरभि ने
मेरे कदमों को यायावर
कर बहकाया