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रविवार, 29 अक्टूबर 2017

muktak,

मुक्तक 
*
स्नेह का उपहार तो अनमोल है
कौन श्रद्धा-मान सकता तौल है? 
भोग प्रभु भी आपसे ही पा रहे
रूप चौदस भावना का घोल है
*
स्नेह पल-पल है लुटाया आपने।
स्नेह को जाएँ कभी मत मापने
सही है मन समंदर है भाव का
इष्ट को भी है झुकाया भाव ने
*
फूल अंग्रेजी का मैं,यह जानता
फूल हिंदी की कदर पहचानता
इसलिए कलियाँ खिलता बाग़ में
सुरभि दस दिश हो यही हठ ठानता
*
उसी का आभार जो लिखवा रही
बिना फुरसत प्रेरणा पठवा रही
पढ़ाकर कहती, लिखूँगी आज पढ़
सांस ही मानो गले अटका रही
*

सोमवार, 12 जुलाई 2010

गीत: बात बस इतनी सी थी... संजीव वर्मा 'सलिल'

गीत:
बात बस इतनी सी थी...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
confusion.JPG

*
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
चाहते तुम कम नहीं थे, चाहते कम हम न थे.
चाहतें क्यों खो गईं?, सपने सुनहरे कम न थे..

बात बस इतनी सी थी, रिश्ता लगा उलझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
बाग़ में भँवरे-तितलियाँ, फूल-कलियाँ कम न थे.
पर नहीं आईं बहारें, सँग हमारे तुम न थे..

बात बस इतनी सी थी, चेहरा मिला मुरझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
*
दोष किस्मत का नहीं, हम ही न हम बन रह सके.
सुन सके कम दोष यह है, क्यों न खुलकर कह सके?.

बात बस इतनी सी थी, धागा मिला सुलझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी, तुमने नहीं समझा मुझे.
बात बस इतनी सी थी...
**********************
----दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मुक्तिका: ज़ख्म कुरेदेंगे.... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

ज़ख्म कुरेदेंगे....

संजीव 'सलिल'
*

peinture11.jpg

*
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..

मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..

फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..

बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..

आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..

नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..

*************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 18 मई 2010

चार चतुष्पदियाँ : तितली पर ---संजीव वर्मा 'सलिल'


                                                         तितली से बगिया हुई, प्राणवान-जीवंत.
तितली यह सच जानती, नहीं मोह में तंत..
भ्रमर लोभ कर रो रहा, धोखा पाया कंत.
फूल कहे, सच को समझ, अब तो बन जा संत..
*

जग-बगिया में साथ ही, रहें फूल औ' शूल.
नेह नर्मदा संग ही, जैसे रहते कूल..
'सलिल' न भँवरा बन, न दे मतभेदों को तूल.
हर दिल बस, हर दिल बसा दिल में, झगड़े भूल..
*

नहीं लड़तीं, नहीं जलतीं, हमेशा मेल से रहतीं.
तितलियों को न देखा आदमी की छाँह भी गहतीं..
हँसों-खेलो, न झगड़ो ज़िंदगी यह चंद पल की है-
करो रस पान हो गुण गान, भँवरे-तितलियाँ कहतीं..
*

तितलियाँ ही न हों तो फूल का रस कौन पायेगा?
भ्रमर किस पर लुटा दिल, नित्य किसके गीत गायेगा?
न कलियाँ खिल सकेंगीं, गर न होंगे चाहनेवाले-
'सलिल' तितली न होगी, बाग़ में फिर कौन जायेगा?.

******************

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

नवगीत: आओ! तम से लड़ें... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

आओ! तम से लड़ें...

संजीव 'सलिल'

आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
माटी माता,
कोख दीप है.
मेहनत मुक्ता
कोख सीप है.
गुरु कुम्हार है,
शिष्य कोशिशें-
आशा खून
खौलता रग में.
आओ! रचते रहें
गीत फिर गायें जग में.
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***
आखर ढाई
पढ़े न अब तक.
अपना-गैर न
भूला अब तक.
इसीलिये तम
रहा घेरता,
काल-चक्र भी
रहा घेरता.
आओ! खिलते रहें
फूल बन, छायें जग में.
आओ! तम से लड़ें,
उजाला लायें जग में...
***