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बुधवार, 10 नवंबर 2021

गीत देव उठनी एकादशी, गन्ना ग्यारस

देव उठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) पर
नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर
देव उठनी एकादशी पर
नव गीत
सोये बहुत देव अब जागो
*
सोये बहुत
देव! अब जागो...
तम ने
निगला है उजास को।
गम ने मारा
है हुलास को।
बाधाएँ छलती
प्रयास को।
कोशिश को
जी भर अनुरागो...
रवि-शशि को
छलती है संध्या।
अधरा धरा
न हो हरि! वन्ध्या।
बहुत झुका
अब झुके न विन्ध्या।
ऋषि अगस्त
दक्षिण मत भागो...
पलता दीपक
तले अँधेरा ।
हो निशांत
फ़िर नया सवेरा।
टूटे स्वप्न
न मिटे बसेरा।
कथनी-करनी
संग-संग पागो...
**************
रविवार, १५ मार्च २००९

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021

नवगीत

नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***

नवगीत:
सुख-सुविधा में
मेरा-तेरा
दुःख सबका
साझा समान है
पद-अधिकार
करते झगड़े
अहंकार के
मिटें न लफ़ड़े
धन-संपदा
शत्रु हैं तगड़े
परेशान सब
अगड़े-पिछड़े
मान-मनौअल
समाधान है
मिल-जुलकर जो
मेहनत करते
गिरते-उठते
आगे बढ़ते
पग-पग चलते
सीढ़ी चढ़ते
तार और को
खुद भी तरते
पगतल भू
करतल वितान है
***
नवगीत:
ज़िम्मेदार
नहीं है नेता
छप्पर औरों पर
धर देता
वादे-भाषण
धुआंधार कर
करे सभी सौदे
उधार कर
येन-केन
वोट हर लेता
सत्ता पाते ही
रंग बदले
यकीं न करना
किंचित पगले
काम पड़े
पीठ कर लेता
रंग बदलता
है पल-पल में
पारंगत है
बेहद छल में
केवल अपनी
नैया खेता
***

नवगीत:
आओ रे!
मतदान करो
भारत भाग्य विधाता हो
तुम शासन-निर्माता हो
संसद-सांसद-त्राता हो
हमें चुनो
फिर जियो-मरो
कैसे भी
मतदान करो
तूफां-बाढ़-अकाल सहो
सीने पर गोलियाँ गहो
भूकंपों में घिरो-ढहो
मेलों में
दे जान तरो
लेकिन तुम
मतदान करो
लालटेन, हाथी, पंजा
साड़ी, दाढ़ी या गंजा
कान, भेंगा या कंजा
नेता करनी
आप भरो
लुटो-पिटो
मतदान करो
पाँच साल क्यों देखो राह
जब चाहो हो जाओ तबाह
बर्बादी को मिले पनाह
दल-दलदल में
फँसो-घिरो
रुपये लो
मतदान करो
नाग, साँप, बिच्छू कर जोड़
गुंडे-ठग आये घर छोड़
केर-बेर में है गठजोड़
मत सुधार की
आस धरो
टैक्स भरो
मतदान करो
***
२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर२८ -११-२०१४
संजीवनी चिकित्सालय रायपुर

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

navgeet

नवगीत:
देव सोये तो
सोये रहें
हम मानव जागेंगे
राक्षस
अति संचय करते हैं
दानव
अमन-शांति हरते हैं
असुर
क्रूर कोलाहल करते
दनुज
निबल की जां हरते हैं
अनाचार का
शीश पकड़
हम मानव काटेंगे
भोग-विलास
देवता करते
बिन श्रम सुर
हर सुविधा वरते
ईश्वर पाप
गैर सर धरते
प्रभु अधिकार
और का हरते
हर अधिकार
विशेष चीन
हम मानव वारेंगे
मेहनत
अपना दीन-धर्म है
सच्चा साथी
सिर्फ कर्म है
धर्म-मर्म
संकोच-शर्म है
पीड़ित के
आँसू पोछेंगे
मिलकर तारेंगे
***

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

navgeet

देव उठानी एकादशी पर नव गीत सोये बहुत देव अब जागो * सोये बहुत देव! अब जागो... तम ने निगला है उजास को। गम ने मारा है हुलास को। बाधाएँ छलती प्रयास को। कोशिश को जी भर अनुरागो... रवि-शशि को छलती है संध्या। अधरा धरा न हो हरि! वन्ध्या। बहुत झुका अब झुके न विन्ध्या। ऋषि अगस्त दक्षिण मत भागो... पलता दीपक तले अँधेरा । हो निशांत फ़िर नया सवेरा। टूटे स्वप्न न मिटे बसेरा। कथनी-करनी संग-संग पागो... **************

navgeet

देव उठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) पर नवगीत:
* देव सोये तो सोये रहें हम मानव जागेंगे राक्षस अति संचय करते हैं दानव अमन-शांति हरते हैं असुर क्रूर कोलाहल करते दनुज निबल की जां हरते हैं अनाचार का शीश पकड़ हम मानव काटेंगे भोग-विलास देवता करते बिन श्रम सुर हर सुविधा वरते ईश्वर पाप गैर सर धरते प्रभु अधिकार और का हरते हर अधिकार विशेष चीन हम मानव वारेंगे मेहनत अपना दीन-धर्म है सच्चा साथी सिर्फ कर्म है धर्म-मर्म संकोच-शर्म है पीड़ित के आँसू पोछेंगे मिलकर तारेंगे