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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

माननीय रूप चन्द्र जी शास्त्री को समर्पित:                                           

रूप चन्द्र जी शास्त्री, कविवर विश्व प्रसिद्ध.
रचनाकारों के शिखर, काव्य कला है सिद्ध..
काव्य कला है सिद्ध, गीत दोहा रचते हैं.
ऐसे लें मन जीत, नमन कविगण करते हैं.
धन्य लेखनी यश गाती, कविवर अनूप के.
दर्शन होते कविता में, अपरूप रूप के.. 
*
शारद की अनुपम कृपा, हुई आप पर तात.                                                            
कविता सलिला बहाकर, आप हुए प्रख्यात.
आप हुए प्रख्यात, रच रहे युग की गाथा.
कविता पढ़ भावी पीढ़ी हो उन्नत-माथा..
नमन 'सलिल' का लें अग्रज, आशीष दीजिये.                                            
मुझ जैसे अनुजों पर, हरदम कृपा कीजिये..
*
बचपन हँस-गाता रहे, करें कामना मीत.
फूलों सा खिलता रहे, जैसे पुष्प पुनीत..
जैसे पुष्प पुनीत, शारदा कृपा पा सके.
भारत माँ की जय, बोले नभ छुए-छा सके..
शास्त्री जी का आशिष पा, हो कंकर कंचन.
'सलिल' शीश पर हस्त, रहे जी लूँ फिर बचपन..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
Phone/Fax: 05943-250207, 
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