सितारों की महफ़िल में आज डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल
लखनऊ, गुरुवार, २९ जुलाई २०१०
ब्लोगोत्सव-२०१० को आयामित करने हेतु किये गए कार्यों में जिनका अवदान सर्वोपरि है वे हैं डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक और आचार्य संजीव वर्मा सलिल जिन्होनें उत्सव गीत रचकर ब्लोगोत्सव में प्राण फूंकने का महत्वपूर्ण कार्य किया. ब्लोगोत्सव की टीम ने उनके इस अवदान के लिए संयुक्त रूप से उन दोनों सुमधुर गीतकार को वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार का अलंकरण देते हुए सम्मानित करने का निर्णय लिया है ...."जानिये अपने सितारों को" के अंतर्गत प्रस्तुत है उनसे पूछे गए कुछ व्यक्तिगत प्रश्नों के उत्तर |
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(१) पूरा नाम :
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
(२) पिता/माता का नाम/जन्म स्थान
पिता का नाम: श्री घासीराम आर्य
माता का नाम: श्रीमती श्यामवती देवी
(३) वर्तमान पता :
टनकपुर-रोड, खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) पिन- 262308
ई मेल का पता :
roopchandrashastri@gmail.com
टेलीफोन/मोबाईल न
Phone/Fax.: 05943-250207
Mobile No. 09368499921, 09997996437, 09456383898
(४) आपके प्रमुख व्यक्तिगत ब्लॉग :
"उच्चारण" http://uchcharan.blogspot.com/
"शब्दों का दंगल" http://uchcharandangal.blogspot.com/
"मयंक" http://powerofhydro.blogspot.com/
"नन्हे सुमन" http://nicenice-nice.blogspot.com/
"चर्चा मंच" http://charchamanch.blogspot.com/
"बाल चर्चा मंच" http://mayankkhatima.blogspot.com/
"अमर भारती" http://bhartimayank.blogspot.com/
(५) अपने ब्लॉग के अतिरिक्त अन्य ब्लॉग पर गतिविधियों का विवरण :
नुक्कड़, तेताला, हिन्दी साहित्य मंच, पिताजी, पल्लवी और नन्हा मन !
(६) अपने ब्लॉग के अतिरिक्त आपको कौन कौन सा ब्लॉग पसंद है ?
कविताओं के तो सभी ब्लॉग पसंद हैं!
(७) ब्लॉग पर कौन सा विषय आपको ज्यादा आकर्षित करता है?
काव्य!
(८) आपने ब्लॉग कब लिखना शुरू किया ?
21 जनवरी, 2009 से!
(९) यह खिताब पाकर आपको कैसा महसूस हो रहा है ?
अच्छा लग रहा है!
आपका आभार कि आपने इस नाचीज को इस योग्य समझा!
(१०) क्या ब्लोगिंग से आपके अन्य आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न नहीं होता ?
होता है
तो उसे कैसे प्रबंध करते है ?
अपनी रुचियों के लिए जैसे अन्य लोग समय निकालते हैं वैसे मैं भी समय निकाल ही लेता हूँ!
(११) ब्लोगोत्सव जैसे सार्वजनिक उत्सव में शामिल होकर आपको कैसा लगा ?
ब्लोगोत्सव जैसे सार्वजनिक उत्सव में शामिल होकर मैं अपने को धन्य मानता हूँ!
(१२) आपकी नज़रों में ब्लोगोत्सव की क्या विशेषताएं रही ?
छिपी हुई प्रतिभाओं को आगे लाने में ब्लोगोत्सव ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है!
(१३) ब्लोगोत्सव में वह कौन सी कमी थी जो आपको हमेशा खटकती रही ?
मेरी नजर में तो कोई भी नही!
(१४) ब्लोगोत्सव में शामिल किन रचनाकारों ने आपको ज्यादा आकर्षित किया ?
सभी ने!
(१५) किन रचनाकारों की रचनाएँ आपको पसंद नहीं आई ?
आपने तो रचनाकारों की चुनीदा रचनाओं को प्रस्तुत किया था इसलिए नापसन्द का तो प्रश्न ही नही उठता है!
(१६) क्या इस प्रकार का आयोजन प्रतिवर्ष आयोजित किया जाना चाहिए ?
अवश्य!
(१७) आपको क्या ऐसा महसूस होता है कि हिंदी ब्लोगिंग में खेमेवाजी बढ़ रही है ?
यह तो सामान्य सी बात है! गुटबाजी से तो बचना ही चाहिए!
(१८) यदि हाँ तो क्या यह हिंदी चिट्ठाकारी के लिए अमंगलकारी नहीं है ?
मंथन के बाद ही तो विष और अमृत निकलता है!
विष त्याग दीजिए और अमृत पान कीजिए!
(१९) आप कुछ अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताएं :
फिर कभी
(२०) चिट्ठाकारी से संवंधित क्या कोई ऐसा संस्मरण है जिसे आप इस अवसर पर सार्वजनिक करना चाहते हैं ?
फिर कभी
(२१) इस अवसर पर अपनी कोई रचना सुनाएँ
एक ऑडियो प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे स्वर दिया अर्चना चाव ने
बहुत बहुत धन्यवाद रूप चन्द्र शास्त्री जी .....इस अवसर पर ऋग्वेद की दो पंक्तियां आपको समर्पित है कि - ‘‘आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणी:। हृदाश्च पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें ।।’’अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले। |
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जी धन्यवाद !
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१) पूरा नाम :
संजीव वर्मा 'सलिल'
(२) माता/पिता का नाम/जन्म स्थान :
स्व. श्रीमती शांति देवी - स्व. श्री राजबहादुर वर्मा.
(३) वर्तमान पता :
समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाउन, जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश.
ई मेल का पता :
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम, दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
टेलीफोन/मोबाईल न.
०७६१ २४१११३१, ०९४२५१ ८३२४४
(४) आपके प्रमुख व्यक्तिगत ब्लॉग :
दिव्यनर्मदा, गीतसलिला, सलिल की लघुकथाएं, हाइकु सलिला, तेवर तेवरी के खूब, लघुकथा सलिला, किताबघर,
(५) अपने ब्लॉग के अतिरिक्त अन्य ब्लॉग पर गतिविधियों का विवरण :
हिन्दयुग्म पर दोहागाथा सनातन (६५ कड़ी), साहित्याशिल्पी पर काव्य का रचनाशास्त्र (६५ कड़ी), विश्व की किसी भी भाषा के साहित्य की सर्वाधिक लम्बी श्रृंखलाएं, लखनऊ ब्लोगेर्स असोसिअशन, कबीरा खडा़ बाज़ार में, भारत-ब्रिगेड, हिंदुस्तान का दर्द, रचनाकार, स्मृति दीर्घा, पिताजी, जनिक्ति, नन्हा मन, शब्दकार, हिंदीहिंदी.निंग.कॉम, जय भोजपुरी, कायस्थ परिवार पत्रिका, सृजनगाथा, मंथन, अहिव्यक्ति, अनुभूति, आखरकलश, ओपन बुक्स ऑन लाइन, सप्तरंगी, महावीर, आदि पर निरंतर लेखन.
(६) अपने ब्लॉग के अतिरिक्त आपको कौन कौन सा ब्लॉग पसंद है :
उक्त सभी को लगभग नित्य पढता हूँ.
(७) ब्लॉग पर कौन सा विषय आपको ज्यादा आकर्षित करता है?
पद्य रचनाएँ.
(८) आपने ब्लॉग कब लिखना शुरू किया ?
लगभग ३ वर्ष पूर्व.
(९) यह खिताब पाकर आपको कैसा महसूस हो रहा है ?
आनंदित हूँ.
(१०) क्या ब्लोगिंग से आपके अन्य आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न नहीं होता ?
होता है. पत्रिका/पुस्तकों का मुद्रण, दिव्यनर्मदा अलंकरण अभियान, नित्य पत्र लेखन, रचना प्रेषण, मित्रों से मिलन, कार्यक्रमों में जाना अवरुद्ध है. समय सदा कम होता है कार्य अधिक. प्राथमिकता का चयन करना होता है मेरी प्राथमिकता में चिट्ठा लेखन सर्वोपरि है.
यदि होता है तो उसे कैसे प्रबंध करते है ?
कुछ पाने के लिये कुछ खोना ही पड़ता है. घरेलू कार्य श्रीमती जी सम्हाल लेती हैं. शेष अनिवार्य होने पर कम से कम करता हूँ शेष समय हिंदी और चिट्ठाकारी को. हिंदी माँ की सेवा के लिये शेष सब सहर्ष छोड़ा जा सकता है.
(११)ब्लोगोत्सव जैसे सार्वजनिक उत्सव में शामिल होकर आपको कैसा लगा ?
दुर्भाग्य से अवकाश न मिलने से सम्मिलित नहीं हो सका, अधम चाकरी की माया. स्थानीय व् अन्यत्र चिट्ठाकारों के कार्यक्रमों में गया हूँ और आनंद भी मिला है.
(१२) आपकी नज़रों में ब्लोगोत्सव की क्या विशेषताएं रही ?
अनेकता में एकता... रचनात्मकता और स्नेहपरकता.
(१३) ब्लोगोत्सव में वह कौन सी कमी थी जो आपको हमेशा खटकती रही ?
मेरी अनुपस्थिति जिसके कारण बहुतों से नहीं मिल सका, अपूरणीय क्षति हुई है मेरी.
(१४) ब्लोगोत्सव में शामिल किन रचनाकारों ने आपको ज्यादा आकर्षित किया ?
सभी की रचनाओं का प्रशंसक हूँ. संगीता पुरी, रश्मिप्रभा,
(१५) किन रचनाकारों की रचनाएँ आपको पसंद नहीं आई ?
ऐसा तो कोई भी नहीं है. हर रचना में कुछ न कुछ ग्रहणीय होता है.
(१६) क्या इस प्रकार का आयोजन प्रतिवर्ष आयोजित किया जाना चाहिए ?
नहीं. फक बार से क्या होगा? प्रति वर्ष अलग-अलग स्थानों पर कई बार.
(१७) आपको क्या ऐसा महसूस होता है कि हिंदी ब्लोगिंग में खेमेवाजी बढ़ रही है ?
जी हाँ और राजनीति भी. बरसाती नदी में सलिल के साथ कचरा भी आता ही है.
(१८)तो क्या यह हिंदी चिट्ठाकारी के लिए अमंगलकारी नहीं है ?
नहीं. बरसाती नदी में कचरा एक साथ हो ही जाता है पर नदी के प्रवाह को रोक नहीं पाता. अंततः निर्मल जल ही शेष रहता है.
(१९) आप कुछ अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताएं :
क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाये, बिन कहे भी रहा नहीं जाये की सी स्थिति है. ... पूज्य बुआ श्री (महीयसी महादेवी जी) के सानिन्ध्य में गुजरे पल मेरे जीवन की थाती हैं. स्व. कृष्ण बिहारी 'नूर' के कर कमलों से प्रथम काव्य संकलन 'लोकतंत्र का मकबरा' का लखनऊ में विमोचन, श्री नाथद्वारा में श्री नरेंद्र कोहली व् मुख्य पुजारी जी, जयपुर में राजस्थान के मुख्यमंत्री स्व. शिवचरण लाल माथुर व् राज्यपाल सर्व श्री सिंह, लखनऊ में स्व. विष्णुकांत शास्त्री, व्यंग्य सम्राट के.पी.सक्सेना, कविवर नरेश सक्सेना व् डॉ. राय महापौर, अयोध्या में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद शास्त्री, बेलगाम कर्णाटक में गोवा के राज्यपाल स्व. केदारनाथ साहनी, अहमदाबाद में डॉ. अम्बाशंकर नागर, प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र, इंदौर में चन्द्रसेन 'विराट', जबलपुर में गाँधी जी के सचिव प्रो महेश दत्त मिश्र, प्रो, ज्ञान रंजन, श्री अमृत लाल वेगड़, डॉ. छाया राय, कुलपति डॉ. जगदीश प्रसाद शुक्ल, , विधान सभा अध्यक्ष श्री ईश्वर दास रोहाणी आदि से स्नेह-सम्मान पाना जीवन की निधि है. आप जैसे मित्रों की उदारता से देश के विविध प्रान्तों में असीम स्नेह और दुलार की वर्ष हुई है.
नानाजी राय बहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' ऑनरेरी मजिस्ट्रेट मैनपुरी गाँधीजी के आव्हान पर वैभव को ठोकर मारकर स्वतंत्रता सत्याग्रही बन गए थे. फूफाजी स्व. जगन्नाथप्रसाद वर्मा नागपुर में डॉ. हेडगेवार व् कैप्टेन मुंजे के साथ राम सेना वा शिव सेना के संस्थापक थे. ताऊ जी स्व. ज्वाला प्रसाद वर्मा घर के व्यवसाय को छोड़कर सत्याग्रही बन गए थे. इस विरासत के रहते मैं वह नहीं कर या रच पाता जो आज बहुत लोकप्रिय है. साहित्य सृजन, हिंदी प्रचार,पर्यावरण सुधार, अंध श्रृद्धा उन्मूलन, नागरिक-उपभोक्ता अधिकार संरक्षण, सामूहिक विवाह, दहेज़ निषेध, जातीय सद्भाव, पौधारोपण, कचरा निस्तारण, पर्यटन, छायांकन, जल संरक्षण आदि मुझे प्रिय हैं.
फैजाबाद में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अज्ञातवास-स्थली देखने, ग्वालियर में जे.पी.के समक्ष आत्म समर्पण किए दस्युओं से मिलने, भोपाल में गैस कांड के ही दिन साढ़े दस हज़ार अभियंताओं की रैली का नेतृत्व करने, १९९४ में सड़क दुर्घटना में घायल होकर विकलांग होने और २००८-२००९ में माता-पिता से बिछुड़ने के पल भुलाये नहीं भूलता.
(२०) चिट्ठाकारी से संवंधित क्या कोई ऐसा संस्मरण है जिसे आप इस अवसर पर सार्वजनिक करना चाहते हैं ?
अनेक में से एक: उन दिनों चिट्ठा जगत से नया-नया ही जुड़ा था. जिन चिट्ठों को प्रकाशनार्थ रचना भेजता उनसे उपेक्षा मिलती. कुछ दिन बाद इन्हीं चिट्ठों के संचालक बार-बार रचना हेतु अनुरोध करने लगे. बिना किसी राग-द्वेष के मैं अन्यों के साथ उन्हें भी रचना भेज देता हूँ. पता नहीं उन्हें प्रारंभ में मेरे साथ किया व्यवहार याद है या नहीं पर मैंने सब कुछ याद रहते हुए भी प्रतिकार न करने का निर्णय किया है.... एक अन्य दिग्गज रचनाकार जो विदेशवासी हैं को मेरे नाम के साथ 'आचार्य' जुड़ा देखकर आपत्ति थी कि यह कब, किसने, क्यों दिया? पर वे कहते नहीं थे. प्रभु कृपा से गत मातृ-दिवस पर उनका सन्देश मिला कि माँ की स्मृति में मेरे द्वारा एक साथ रचित एक नव गीत तथा एक बाल गीत पढ़कर उन्हें अनुभूति हुई कि मैं इसका पात्र हूँ. मैं अब भी मौन हूँ और उनसे स्नेह संबंध बना ही नहीं है प्रगाढ़ भी हुआ है. अब तो विदेश में बसे कई श्रेष्ठ-ज्येष्ठ रचनाकारों (जिनसे कभी भेँट नहीं हुई) केवल चिट्ठाकरी के परिचय से अपनी सद्य प्रकाशित कृतियाँ प्रतिक्रिया या समीक्षा हेतु भेज रहे हैं. मुझ बाल बुद्धि विद्यार्थी को इतना स्नेह-सम्मान चिट्ठाकारी से मिला कि अभिभूत हूँ.
(२१) अपनी कोई पसंदीदा रचना की कुछ पंक्तियाँ सुनाएँ : (यदि आप चाहें तो यहाँ ऑडियो/विडिओ का प्रयोग भी कर सकते हैं )
अपना बिम्ब सँवारो दर्पण मत तोड़ो
कहता है प्रतिबिम्ब कि दर्पण मत तोड़ो
स्वयं सराह न पाओ मन को बुरा लगे
तो निज रूप सुधारो दर्पण अंत तोड़ो...
शीश उठाकर चलो झुकाओ शीश नहीं.
खुद से बढ़कर और दूसरा ईश नहीं.
तुम्हीं परीक्षार्थी हो तुम्हीं परीक्षक हो-
खुद को खुदा बनाओ, दर्पण मत तोड़ो...
पथ पर पग रख दो तो मंजिल पग चूमे.
चलो झूमकर दिग-दिगंत वसुधा झूमे.
आदम हो इंसान बनोगे, प्राण कर लो-
पंकिल चरण पखारो, दर्पण मत तोड़ो...
बाँटो औरों में जो भी अमृतमय हो.
गरल कंठ में धारण कर लो निर्भय हो.
वरण मौत का कर जो जीवन पाते हैं-
जीवन में 'सलिल' उतारो, दर्पण मत तोड़ो...
बहुत बहुत धन्यवाद संजीव जी .....इस अवसर पर ऋग्वेद की दो पंक्तियां आपको समर्पित है कि - ‘‘आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणी:। हृदाश्च पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें ।।’’अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले। |
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आभार: लखनऊ ब्लोगेर्स असोसिअशन.