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शनिवार, 27 जुलाई 2019

दोहा सलिला

दोहा सलिला 
*
सद्गुरु ओशो ज्ञान दें, बुद्धि प्रदीपा ज्योत
रवि-शंकर खद्योत को, कर दें हँस प्रद्योत 
*

गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर. 
शंका मिट विश्वास हो, दिव्य-चक्षु युत सूर.
*

गुरु गुरुता पर्याय हो, खूब रहे सारल्यदृढ़ता में गिरिवत रहे, सलिला सा तारल्य
*
गुरु गरिमा हो हिमगिरी, शंका का कर अंत 
गुरु महिमा मंदाकिनी, शिष्य नहा हो संत

*
गरज-गरज कर जा रहे, बिन बरसे घन श्याम. 
शशि-मुख राधा मानकर, लिपटे क्या घनश्याम.

*

बुधवार, 10 जुलाई 2019

गुरु पर दोहे

: विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर :
गुरु पूर्णिमा पर दोहोपहार 
*
दर्शन को बेज़ार हूँ, अर्पित करूँ प्रणाम 
सिखा रहे गुरु ज्ञात कुछ, कुछ अज्ञात-अनाम
*

नहीं रमा का, दिलों पर, है रमेश का राज।
दौड़े तेवरी कार पर, पहने ताली ताज।।
*
आ दिनेश संग चंद्र जब, छू लेता आकाश।
धूप चाँदनी हों भ्रमित, किसको बाँधे पाश।।
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श्री वास्तव में साथ ले, तम हरता आलोक।
पैर जमाकर धरा पर, नभ हाथों पर रोक।।
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चन्द्र कांता खोजता, कांति सूर्य के साथ।
अग्नि होत्री सितारे, करते दो दो हाथ।।
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देख अरुण शर्मा उषा, हुई शर्म से लाल।
आसमान के गाल पर, जैसे लगा गुलाल।।
*
खिल बसन्त में मंजरी, देती है पैगाम।
देख आम में खास तू, भला करेंगे राम।।
*
जो दे सबको प्रेरणा, उसका जीवन धन्य।
गुप्त रहे या हो प्रगट, है अवदान अनन्य।।
*
जो दे सबको प्रेरणा, उसका जीवन धन्य।
गुप्त रहे या हो प्रगट, है अवदान अनन्य।।
*
वही पूर्णिमा निरूपमा, जो दे जग उजियार।
चंदा तारे नभ धरा, उस पर हों बलिहार।।
*
प्रभा लाल लख उषा की, अनिल रहा है झूम।
भोर सुहानी क्यों हुई, किसको है मालूम?
*
श्वास सुनीता हो सदा, आस रहे शालीन।
प्यास पुनीता हो अगर, त्रास न कर दे दीन।।
*
भाव अल्पना डालिए, कर कल्पना नवीन।
शब्दों का ऐपन सरस, बिम्ब-प्रतीक नवीन।।
*
हीरा लाल न जोड़ते, लखे नेह अनिमेष।
रहे विनीता मनीषा, मन मोहे मिथलेश।।
*
जिया न रज़िया बिन लगे,बेकल बहुत दिनेश।
उषा दुपहरी साँझ की, आभा शेष अशेष।।
*
कांता-कांति न घट सके, साक्षी अरुण-उजास।
जय प्रकाश की हो सदा, वर दे इंद्र हुलास ।।
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शनिवार, 6 जुलाई 2019

दोहा: गुरु महिमा

गुरु महिमा 
*
जीवन के गुर सिखाकर, गुरु करता है पूर्ण 
शिष्य बिना गुरु,शुरू बिना रहता शिष्य अपूर्ण 
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गुरु उसको ही जानिए, जो दे ज्ञान-प्रकाश
आशाओं के विहग को, पंख दिशा आकाश
*
नारायण-आनंद का, माध्यम कर्म अकाम
ब्रम्हा-विष्णु-महेश ही, कर्मदेव के नाम
*
गुरु को अर्पित कीजिये, अपने सारे दोष
लोहे को सोना करें, गुरु पाये संतोष
*
गुरु न गूढ़, होता सरल, क्षमा करे अपराध
अहंकार-खग मारता, ज्यों निष्कंपित व्याध
***

शनिवार, 28 जुलाई 2018

दोहा सलिला: गुरु

गुरु पर दोहे:
*
जग-गुरु शिव शंकारि हैं, रखें अडिग विश्वास।
संग भवानी शक्ति पर, श्रद्धा बरती त्रास।।
*
गुरु गिरि सम गरिमा लिए, रखता सिर पर हाथ।
शिष्य वही कुछ सीखा,  जिसका नत हो माथ।।
*
गुरुघंटाल न हो कहीं, गुरु रखिए यह ध्यान।
तन-अर्पित मत कीजिए, मन से करिए मान।।
*
गुरु-वंदन कर ध्यान से, सुनिए उसके बोल।
ग्यान-पिटारी से मिलें, रत्न तभी अनमोल।।
*
गुरु से करिए प्रश्न हो, निज जिग्यासा शांत।
जो गुरु की ले परीक्षा, भटके होकर भ्रांत।।
*
मात्र एक दिन गुरु सुमिर, मिले न पूरा ग्यान।
गुरु सुमिरन कर सीख नित, दुहरा तज अभिमान।।
*
सूर्य-चंद्र की तरह ही, हों गुरु-शिष्य हमेश।
इसकी ग्यान-किरण करे, उसमें विकल प्रवेश।।
*
गुरु-प्रति नत शिर नमन कर, जो पाता आशीष।
उस पर ईश्वर सदय हों, बनता वही मनीष।।
*
अंध भक्ति से दूर रह, भक्ति-भाव हर काल।
रखिए गुरु के प्रति सदा, दोनों हों खुशहाल।।
*
गुरु-मत को स्वीकारिए, अगर रहे मतभेद।
नहीं पनपने दीजिए, किंचित भी मनभेद।।
*
नया करें तो मानिए,  गुरु का ही अाभार।
भवन तभी होता खड़ा, जब गुरु दें आधार।।
***
28.7.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com

सोमवार, 8 जनवरी 2018

laghukatha


लघुकथा-
गुरु जी 
*
मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है, क्या आप मुझे शिष्य बना नहीं सिखायेंगे? 
बार-बार अनुरोध होने पर न स्वीकारने की अशिष्टता से बचने के लिए सहमति दे दी। रचनाओं की प्रशंसा, विधा के विधान आदि की जानकारी लेने तक तो सब कुछ ठीक रहा। 
एक दिन रचनाओं में कुछ त्रुटियाँ इंगित करने पर उत्तर मिला- 'खुद को क्या समझते हैं? हिम्मत कैसे की रचनाओं में गलतियाँ निकालने की? मुझे इतने पुरस्कार मिल चुके हैं।  फेस बुक पर जो भी लिखती हूँ सैंकड़ों लाइक मिलते हैं।  मेरी लिखे में गलती हो ही नहीं सकती।  आइंदा ऐसा किया तो...' 


आगे पढ़ने में समय ख़राब करने के स्थान पर शिष्या को ब्लोक कर चैन की सांस लेते कान पकड़े कि अब नहीं  बनेंगे किसी के गुरु। ऐसों को गुरु नहीं गुरुघंटाल ही मिलने चाहिए। 
***

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

laghukatha

लघुकथा
कर्तव्य और अधिकार
*
मैं उन्हें 'गुरु' कहता हूँ, कहता ही नहीं मानता भी हूँ। मानूँ क्यों नहीं, उनसे बहुत कुछ सीखा भी है। वे स्वयं को विद्यार्थी मानते हैं। मुझ जैसे कई नौसिखियों का गद्य-पद्य की कई विधाओं में मार्गदर्शन करते हैं, त्रुटि सुधारते हैं और नयी-नयी विधाएँ सिखाते हैं,सामाजिक-पारिवारिक कर्तव्य निभाने की प्रेरणा और नए-नए विचार देते हैं। आधुनिक गुरुओं के आडम्बर से मुक्त सहज-सरल
एक दिन सन्देश मिला कि उनके आवास पर एक साहित्यिक आयोजन है। मैं अनिश्चय में पड़ गया कि मुझे जाना चाहिए या नहीं? सन्देश का निहितार्थ मेरी सहभागिता हो तो न जाना ठीक न होगा, दूसरी ओर बिना आमंत्रण उपस्थिति देना भी ठीक नहीं लग रहा था। मन असमंजस में था।
इसी ऊहापोह में करवटें बदलते-बदलते झपकी लग गयी।
जब आँख खुली तो अचानक दिमाग में एक विचार कौंधा अगर उन्हें गुरु मानता हूँ तो गुरुकुल का हर कार्यक्रम मेरा अपना है, आमंत्रण की अपेक्षा क्यों? आगे बढ़कर जिम्मेदारी से सब कार्य सम्हालूँ। यही है मेरा कर्तव्य और अधिकार भी।
*
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada@blogspot.com
#हिंदी_ब्लोगर

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

एक रचना
*
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
टीचर-प्रीचर के क्या फीचर?
ऐसे मत हों जैसे क्रीचर
रोजी-रोटी साध्य न केवल
अंतर्मन है बाध्य व बेकल
कहता-सुनता
बात अधूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
शिक्षक अगर न खुद सीखा तो
समझहीन सब सा दीखा तो
कुछ मौलिकता, कुछ अन्वेषण
करे ग्रहण नित, नित कुछ प्रेषण
पढ़े-पढ़ाये
बिन मजबूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
४-१२-२०१६
प्रिमिउर टेक्निकल इन्स्तित्युत
कौन बताये आदि कहाँ है?
कोई न जाने अंत कहाँ है?
झुक जाते हैं वहीं अगिन सर
पड़ जाते गुरु-चरण जहाँ हैं
सत्य बात
समझाये पूरी
गुरु में होना
ज्ञान जरूरी
*
४-१२-२०१६
प्रीमिअर टेक्निकल इंस्टीटयूट जबलपुर


सोमवार, 5 सितंबर 2016

गुरु वंदन

मेरे गुरु, अग्रजवत श्री सुरेश उपाध्याय जी 
शत-शत वंदन    


दोहा मुक्तिका


*
गुरु में भाषा का मिला, अविरल सलिल प्रवाह 
अँजुरी भर ले पा रहा, शिष्य जगत में वाह 
*
हो सुरेश सा गुरु अगर, फिर क्यों कुछ परवाह? 
अगम समुद में कूद जा, गुरु से अधिक न थाह 
*
गुरु की अँगुली पकड़ ले, मिल जाएगी राह 
लक्ष्य आप ही आएगा, मत कर कुछ परवाह 
*
गुरु समुद्र हैं ज्ञान का, ले जितनी है चाह
नेह नर्मदा विमल गुरु, ज्ञान मिले अवगाह *
हर दिन नया न खोजिए, गुरु- न बदलिए राह
मन श्रृद्धा-विश्वास बिन, भटके भरकर आह 
*  
एक दिवस क्यों? हर दिवस, गुरु की गहे पनाह
जो उसकी शंका मिटे, हो शिष्यों में शाह
*
नेह-नर्मदा धार सम, गुरु की करिए चाह
दीप जलाकर ज्ञान का, उजियारे अवगाह
***

बुधवार, 20 जुलाई 2016

doha

दोहा मुक्तिका

*
भ्रम-शंका को मिटाकर, जो दिखलाये राह 

उसको ही गुरु मानकर, करिये राय-सलाह 
*

हर दिन नया न खोजिए, गुरु- न बदलिए राह

मन श्रृद्धा-विश्वास बिन, भटके भरकर आह 
*  

करें न गुरु की सीख की, शिष्य अगर परवाह

गुरु क्यों अपना मानकर, हरे चित्त की दाह?
*

सुबह शिष्य- संध्या बने, जो गुरु वे नरनाह  

अपने ही गुरु से करें, स्वार्थ-सिद्धि हित डाह
*

उषा गीत, दुपहर ग़ज़ल, संध्या छंद अथाह  

व्यंग्य-लघुकथा रात में, रचते बेपरवाह
*

एक दिवस क्यों? हर दिवस, गुरु की गहे पनाह

जो उसकी शंका मिटे, हो शिष्यों में शाह
*
नेह-नर्मदा धार सम, गुरु की करिए चाह
दीप जलाकर ज्ञान का, उजियारे अवगाह
***
एक दोहा-
गुरुघंटालों से रहें, सजग- न थामें बाँह

गुरु हो गुरु-गंभीर तो, गहिए बढ़कर छाँह
*