मुक्तिका
फूल हैं तो बाग़ में
-- संजीव 'सलिल'
*
http://divyanarmada.blogspot.com
फूल हैं तो बाग़ में
-- संजीव 'सलिल'
*
फूल हैं तो बाग़ में कुछ खार होना चाहिए.
मुहब्बत में बाँह को गलहार होना चाहिए.
लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..
क्यों डरें आतंक से हम? सामना डटकर करें.
सर कटा दें पर सलामत यार होना चाहिए..
आम लोगों को न नेता-दल-सियासत चाहिए.
फ़र्ज़ पहले बाद में अधिकार होना चाहिए..
ज़हर को जब पी सके कंकर 'सलिल' शंकर बने.
त्याग को ही राग का श्रृंगार होना चाहिए..
दुश्मनी हो तो 'सलिल' कोई रहम करना नहीं.
इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिए..
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मुहब्बत में बाँह को गलहार होना चाहिए.
लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..
क्यों डरें आतंक से हम? सामना डटकर करें.
सर कटा दें पर सलामत यार होना चाहिए..
आम लोगों को न नेता-दल-सियासत चाहिए.
फ़र्ज़ पहले बाद में अधिकार होना चाहिए..
ज़हर को जब पी सके कंकर 'सलिल' शंकर बने.
त्याग को ही राग का श्रृंगार होना चाहिए..
दुश्मनी हो तो 'सलिल' कोई रहम करना नहीं.
इश्क है तो इश्क का इज़हार होना चाहिए..
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फायलातुन फायलातुन फायलातुन फायलुन
( बहरे रमल मुसम्मन महजूफ )
*
Acharya Sanjiv Salil
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
कफिया: आर (अखबार, इतवार, बीमार आदि)
रदीफ : होना चाहिये *
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