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शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

फरवरी २२, सॉनेट, सवैया, सदोका, नवगीत, मैथिली हाइकु, पहेली, चौबोला, नवगीत,आस्था

सलिल सृजन फरवरी २२
*
आस्था (कृष्णा-आकाश श्रीवास्तव २२.२.२०२४) के लिए 
परी नन्हीं 'आस्था' खुश झूमती
चाँदनी आशीष देती चूमती

छू सकें 'आकाश' ये नन्हें कदम
कहे 'कृष्णा' पाओ हर सुख नाम तुम

मुदित मन मुकेश खेलें गोद ले
मुग्ध अनिता और अंबर मोद से

दुआ दे राकेश हँस चुंबन करे
हरि-रमा आशीष का वर्षण करें

साधना-संजीव की आशा यही
हो अशोक विलोकना मंजिल सभी

हर बरस नटखटपना बढ़ता रहे
सफलता की नव कथा गढ़ता रहे
२२.२.२०२५
०००
अनुवाद ऐसा भी :
एक बहुत पुराना गीत:
भीगा-भीगा है समा,
ऐसे में है तू कहाँ
मेरा दिल ये पुकारे आजा
मेरे गम के सहारे आजा
अंग्रेजी अनुवाद:
wet wet atmoshphere
where are you my dear!
my heart calls you come on
my support in sorrow come on
यह अनुवाद गीत की मूल धुन में गाया जा सकता है।
आप भी किसी गीत के साथ ऐसा प्रयोग कीजिए।
०००
इटेलियन सॉनेट
राम राज्य
*
राम-राज्य में नहीं व्यापती,
तन की पीड़ा सुख भी मिलता,
भाग्य सूर्य हो उदित न ढलता,
कमी पदार्थों की नहिं होती।
जनता स्नेह परस्पर करती,
चंद्र धर्म का पल पल खिलता,
हर पग धर्म-राह पर चलता,
श्रुति की नीति सब जगह पलती।
अधिक राम से दास राम का,
मिले राम किंकर की पग-रज,
मस्तक लगा सके जो तरता।
हो जा सेवक बिना दाम का,
मनुआ पल-पल सिया राम भज,
जो जीत भव-पार उतरता।
२२.२.२०२४
***
इंग्लिश सॉनेट
# माँ शारदे काव्य_मंच
# विषय - आ जरा मेरे पास आ।
# दिनांक- २२.२.२०२४
# विधा - इंग्लिश सॉनेट
*
मेरे पास जरा आ जा,
बुला शरण देते भगवन,
केवट शबरी बन प्रभु पा,
राम नाम सर कर मज्जन।
सिया-राम की छवि अनुपम,
आँख मूँद लख नाम सुमिर,
राम कृपा से मिटता तम,
राम नाम जप भव से तर।
सलिल राम किंकर पद-रज,
शीश लगा सब पाप कटे,
मंदाकिनी सदृश प्रभु नाम,
अवगाहे भव बंध कटे।
हनुमत दरश दिला दीजै,
राम भगति अमरित पीजै।
२२.२.२०२४
***
सॉनेट
*
पंछी जा परदेस बिसारे,
मन मोहे परबत वन नदिया,
टुकुर-टुकुर देखे नव दुनिया,
घर-अँगना नित राह निहारे।
सूरज इतै सोई ऊगत रे!
घर की मुरगी दाल कहाउत,
आन गाँव बन संत पुजाउत,
डूबत सूरज काए हेरे।
लुका-छिपी अउ कन्नागोटी,
बिसर चिरैया किट्टी खेले,
मठा पना तज कोला पी रई।
चाल समय की खाँटी खोटी,
उड़न खटोला हाँके-ठेले,
अरई लगा भारी खुस हो गई।
२२.२.२४
•••
भाभी श्री स्व. शकुंतला देवी जी की पुण्य स्मृति में
*
स्मृति काव्य
हे क्षणभंगुर भव राम राम
भाभी श्री को अगणित प्रणाम।
वे जीवट की परिभाषा थीं।
वे अन्नपूर्णा आशा थीं।।
उनमें थीं शारद-रमा-उमा।
उनमें जीवित थी सदा क्षमा।।
वे अमरनाथ का संबल थीं।
वे नाद अनाहद अविचल थीं।।
सौभाग्य मिली पद-रज मुझको।
हा! चली गईं तुम तज जग को।।
सुधियों से जा न सकोगी तुम।
संबल बन सदा मिलेगी तुम।।
मुस्कान तुम्हारी माता सी।
तुम अद्भुत ममतादाता थीं।।
तुमसे पाया कितना दुलार।
प्रेरणा मिली है बार-बार।।
छोड़ी है देह, नहीं नाता।
तुम होगी साथ सदा माता।।
यादों को सिहर सहेजेंगे।
सिर पर है हाथ समझ लेंगे।।
***
सवैया
गई हो तुम नहीं, हो दिलों में बसी, गई है देह ही, रहोगी तुम सदा।
तुम्हीं से मिल रही, है हमें प्रेरणा, रहेंगे मोह से, हमेशा हम जुदा।
तजेंगे हम नहीं, जो लिया काम है, करेंगे नित्य ही, न चाहें फल कभी।
पुराने वसन को, है दिया त्याग तो, नया ले वस्त्र आ, मिलोगी फिर यहीं।
*
सॉनेट
सूरज
रोज निकलता नभ पर सूरज।
उषा-धरा को तकता सूरज।
आँख सेकता घर-घर सूरज।।
फिर भी कभी न थकता सूरज।।
रुके नहीं यायावर सूरज।
दोपहरी भर रास रचाता।
झुके नहीं, पछताकर सूरज।।
संध्या को ठेंगा दिखलाता।।
रजनी को अपनाता सूरज।
सारी रैन बिताता सूरज।।
राज नहीं बतलाता सूरज।
हाथ नहीं फिर आता सूरज।।
जग में पूजा जाता सूरज।
क्यों आँखें दिखलाता सूरज।।
•••
सॉनेट
आँसू
यम सम्मुख सब झुके राम रे!
बन न सके क्यों कहो काम रे!
हाय! न यम से बचे राम रे!
मिट ही जाते सकल नाम रे!
कहें विधाता हुआ वाम रे!
हाथ न लेता कभी थाम रे!
मिटना तो क्यों दिया चाम रे!
हुई भोर की सदा शाम रे!
नाहक करते इंतिजाम रे!
यहाँ-वहाँ है कहाँ गाम रे!
कौन कहे कब हो विराम रे!
खास न कोई सभी आम रे!
काश हो सकें हम अकाम रे!
सम हो पाए छाँह-घाम रे!
२२-२-२०२२
•••
सॉनेट
मातृभाषा
माँ की भाषा केवल ममता।
वात्सल्य व्याकरण अनोखा।
हर अक्षर है प्यारा चोखा।।
खूब लुटाती नेह न कमता।।
बारहखड़ी दूध की धारा।
शब्द-शब्द का अर्थ त्याग है।
वाक्य-छंद में भरा राग है।।
कथ्य गीत का तन-मन वारा।।
अलंकार लोरी में अनगिन।
रस सागर की लहरें मत गिन।
शिशु बन हो आनंदित पल-छिन।।
पल में तोला, पल में माशा।
श्वास-श्वास दे जन्म तराशा।
माँ की भाषा दूध-बताशा।।
२२-२-२०२२
•••
मुक्तिका
*
कुछ सपने हैं, कुछ सवाल भी
सादा लेकिन बाकमाल भी
सावन - फागुन, ईद - दिवाली
मिलकर हो जाते निहाल जी
मौन निहारा जब जब तुमको
चेहरा क्यों होता गुलाल जी
हो रजनीश गजब ढाते हो
हाथों में लेकर मशाल जी
ब्रह्मानंद अगर पाना है
सलिल संग कर लो धमाल जी
२२-२-२०२०
***
दोहा
अमर नाथ सेवक मरे, यह कैसा है न्याय?
अरबों लुटे न फिक्र क्या, नेता का अभिप्राय।।
***
सदोका पंचक
*
ई​ कविता में
करते काव्य स्नान ​
कवि​-कवयित्रियाँ .
सार्थक​ होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।
*
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिले
कवि की डलिया में।
*
​न​ नौ नगद ​
न​ तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।
*
धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।
* ​
श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पूज्य माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय नीरव भी
क्यों हो रहा शोर?
२२-२-२०१८
***
नवगीत
दुर्योधन
*
गुरु से
काम निकाल रहा,
सम्मान जताना
सीख न पाया
है दुर्योधन.
*
कहते हैं इतिहास स्वयं को दुहराता है.
सुनते हैं जो सबक न सीखे पछताता है.
लिखते हैं कवि-लेखक, पंडित कथा सुनाते-
पढ़ता है विद्यार्थी लेकिन बिसराता है.
खुद ही
नाम उछल रहा,
पर दाम चुकाना
जान न पाया
है दुर्योधन.
*
जो बोता-उपजाता, वह भूखा मरता है.
जो करता मेहनत वह पेट नहीं भरता है.
जो प्रतिनिधि-सेवक वह करता ऐश हमेशा-
दंदी-फंदी सेठ ना डर, मन की करता है.
लूट रहा,
छल-कपट, कर्ज
लेकर लौटाना
जान न पाया
है दुर्योधन.
*
वादा करता नेता, कब पूरा करता है?
अपराधी कब न्याय-पुलिस से कुछ डरता है?
जो सज्जन-ईमानदार है आम आदमी-
जिंदा रहने की खातिर पल-पल मरता है.
बात विदुर की
मान शकुनी से
पिंड छुड़ाना
जान न पाया
है दुर्योधन.
२१.२.२०१८
***
मैथिली हाइकु
(त्रुटियों हेतु क्षमा प्रार्थना सहित)
१.
ई दुनिया छै
प्रभुक बनाओल
प्रेम स रहू
२.
लिट्टी-चोखा
मधुबनी पेंटिंग
मिथिला केर
३.
सभ सs प्यार
घृणा ककरो सय
नैई करब
४.
संपूर्ण क्रांति
जयप्रकाश बाबू
बिसरि गेल
५.
बिहारी जन
भगायल जैतई
दोसर राज?
६.
चलि पड़ल
विकासक राह प'
बिहारी बाबू
७.
चलै लागल
विकासक बयार
नीक धारणा
८.
हम्मर गाम
भगवाने के नाम
लSक चलब
९.
हाल-बेहाल
जनता परेशान
मँहगाई से
१०.
लोकतंत्र में
चुनावक तैयारी
बड़का बात
***
गीत
भैया जी की जय
*
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
फ़िक्र तुम्हारी कर वे दुबले
उतने ही जिंतने हैं बगुले
बगुलों जैसा उजला कुरता
सत्ता की मछली झट निगले
लैपटॉप की भीख तुम्हें दी
जुबां नहीं अपनी खोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
बहिना पीछे रहती कैसे?
झपट उठी झट जैसे-तैसे
आम लोग लख हक्के-बक्के
अटल इरादे इनके पक्के
गगनविहारी साईकिलधारी
वजन बात का मत तोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
धन्य बुआ जी! आग उगलतीं
फूट देख, चुप रहीं सुलगतीं
चाह रहीं जनता को ठगना
चलता बस कुर्सियाँ उलटतीं
चल-फिर कर भी क्या कर लोगे?
बनो मूर्ति सब, मत डोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
भाई-भतीजा मिल दें गच्चा
क्या कर लेंगे बोलो चच्चा?
एक जताता है हक अपना
दूजा कहे चबा लूँ कच्चा
दाग लग रहा है निष्ठा पर
कथनी-करनी भी तोलो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
*
छप्पन इंची छाती-जुमले
काले धन की रौंदी फसलें
चैन न ले, ना लेने देता
करे सर्जिकल, रोके घपले
मत मत-दान करो, मत बेचो
सोच-समझ दो, फिर सो लो
भाभी जी भाषण में बोलीं
भैया जी की जय बोलो.
२२-२-२०१७
***
मुक्तक:
*
करता करनी मनुज ख़राब
फिर कह देता समय ख़राब
वन, गिरि, नदी मिटाता रोज
फिर कहता है प्रलय ख़राब
*
पहेली
*
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन गधे से ज्यादा मूरख
खड़ा करे खुद अपनी खाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन जलाये खुद अपना घर
अपनी आप लगाते वाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन देश का दुश्मन बनकर
अपना थूका खुद ले चाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन खोदता सडक-रेल भी
ज्यों पागल कुत्ता ले काट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन जला संपत्ति देश की
चाह रहा आरक्षण-ठाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन माँगता भीख बताओ
धरकर धन-बल जैसे लाट
एक पहेली
बूझ सहेली
*
जो न जान कर नाम बताये
उस पर हँसते चारण-भाट
एक पहेली
बूझ सहेली
२२.२.२०१६
***
एक गीत :
का बिगार दओ?
*
काए फूँक रओ बेदर्दी सें
हो खें भाव बिभोर?
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
हँस खेलत ती
संग पवन खें
पेंग भरत ती खूब।
तेंदू बिरछा
बाँह झुलाउत
रओ खुसी में डूब।
कें की नजर
लग गई दइया!
धर लओ मो खों तोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
काट-सुखा
भर दई तमाखू
डोरा दओ लपेट।
काय नें समझें
महाकाल सें
कर लई तुरतई भेंट।
लत नें लगईयो
बीमारी सौ
दैहें तोय झिंझोर
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
जिओ, जियन दो
बात मान ल्यो
पीओ नें फूकों यार!
बढ़े फेंफडे में
दम तुरतई
गाड़ी हो नें उलार।
चुप्पै-चाप
मान लें बतिया
सुनें न कौनऊ सोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
अपनों नें तो
मेहरारू-टाबर
का करो ख़याल।
गुटखा-पान,
बिड़ी लत छोड़ो
नई तें होय बबाल।
करत नसा नें
कब्बऊ कौनों
पंछी, डंगर, ढोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
बात मान लें
निज हित की जो
बोई कहाउत सयानो।
तेन कैसो
नादाँ है बीरन
साँच नई पहचानो।
भौत करी अंधेर
जगो रे!
टेरे उजरी भोर।
का बिगार दो तोरो मैंने
भइया रामकिसोर??
*
२१-११-२०१५
कालिंदी विहार लखनऊ
***
नवगीत
.
दहकते पलाश
फिर पहाड़ों पर.
.
हुलस रहा फागुन
बौराया है
बौराया अमुआ
इतराया है
मदिराया महुआ
खिल झाड़ों पर
.
विजया को घोंटता
कबीरा है
विजया के भाल पर
अबीरा है
ढोलक दे थपकियाँ
किवाड़ों पर
.
नखरैली पिचकारी
छिप जाती
हाथ में गुलाल के
नहीं आती
पसरे निर्लज्ज हँस
निवाड़ों पर
२२.२.२०१५
***
छंद सलिला:
१५ मात्रा का तैथिक छंद : चौबोला
*
लक्षण: २ पद, ४ चरण, प्रतिचरण १५ मात्रा, चरणान्त लघु गुरु
लक्षण छंद:
बाँचौ बोला तिथि पर कथा, अठ-सत मासा भोगे व्यथा
लघु गुरु हो तो सब कुछ भला, उलटा हो तो विधि ने छला
(संकेत: तिथि = १५ मात्रा, अठ-सत = आठ-सात पर यति, लघु-गुरु चरणान्त)
उदाहरण:
१. अष्टमी-सप्तमी शुभ सदा, हो वही विधि लिखा जो बदा
कौन किसका हुआ कब कहो, 'सलिल' जल में कमल सम रहो
२. निर्झरिणी जब कलकल बहे, तब निर्मल जल धारा गहे
रुके तड़ाग में पंक घुले, हो सार्थक यदि पंकज खिले
३. लोकतंत्र की महिमा यही, ताकत जन के हाथों रही
जिसको चाहा उसको चुना, जिसे न चाहा बाहर किया
२२-२-२०१४

बुधवार, 31 मई 2023

कुंडली, दोहा, सिर, पहेली, मुक्तिका, तुम, नवगीत, श्री-श्री,


***
श्री-श्री चिंतन: दोहा गुंजन
*
प्लास्टिक का उपयोग तज, करें जूट-उपयोग।
दोना-पत्तल में लगे, अबसे प्रभु को भोग।।
*
रेशम-रखे बाँधकर, रखें प्लास्टिक दूर।
माला पहना सूत की, स्नेह लुटा भरपूर।।
*
हम प्रकृति को पूज लें जीव-जंतु-तरु मित्र।
इनके बिन हो भयावह, मित्र प्रकृति का चित्र।।
*
प्लास्टिक से मत जलाएँ पैरा, खरपतवार।
माटी-कीचड में मिला, कर भू का सिंगार।।
*
प्रकृति की पूजा करें, प्लास्टिक तजकर बंधु।
प्रकृति मित्र-सुत हों सभी, बनिए करुणासिंधु।।
*
अतिसक्रियता से मिले, मन को सिर्फ तनाव।
अनजाने गलती करे, मानव यही स्वाभाव।।
*
जीवन लीला मात्र है, ब्रम्हज्ञान कर प्राप्त।
खुद में सारे देवता, देख सको हो आप्त।।
*
धारा अनगिन ज्ञान की, साक्षी भाव निदान।
निज आनंद स्वरुप का, तभे हो सके ज्ञान।।
*
कथा-कहानी बूझकर, ज्ञान लीजिए सत्य।
ज्यों का त्यों मत मानिए, भटका देगा कृत्य।।
*
मछली नैन न मूँदती, इंद्र नैन ही नैन।
गोबर क्या?, गोरक्ष क्या?, बूझो-पाओ चैन।।
*
जहाँ रुचे करिए वहीं, सता कीजिए ध्यान।
सम सुविधा ही उचित है, साथ न हो अभिमान
३१.५.२०१८
***
हिंदी शब्द सलिला
इस पृष्ठ पर किसी शब्द से संबंधित जानकारी, उसका अर्थ, पर्यायवाची, विरुद्धार्थी,मुहावरों में प्रयोग आदि का स्वागत है। अन्य रचनाएँ हटा दी जाएँगी। शब्द हिंदी अथवा किसी अन्य भाषा के शब्दों (मूल उच्चारण देवनागरी लिपि में, भाषा का नाम, शब्द का अर्थ, शब्द-भेद, प्रयोग आदि) का भी स्वागत है।
संकेत: + स्थानीय / देशज, अ. अव्यय, अर. अरबी, अक. अकर्मक क्रिया, अप्र. अप्रचलित, आ. आधुनिक, आयु. आयुर्वेद, इ. इत्यादि, उ. उदाहरण, उप. उपसर्ग, उनि. उपनिषद, ए. एकवचन, का. कानून, काम. कामशास्त्र, ग. गणित, गी. गीता, चि. चित्रकला, छ. छत्तीसगढ़ी, ज. जर्मन, जै. जैन, ज्या. ज्यामिती, ज्यो. ज्योतिष, तं. तंत्रशास्त्र, ति. तिब्बती, तु. तुर्की, ना. नाटक/नाट्यशास्त्र, न्या. न्याय, पा. पाली, पु. पुल्लिंग, प्र. प्रत्यय, प्रा. प्राचीन, फा. फारसी, फ्रे. फ्रेंच, बं. बंगाली, ब. बर्मी, बहु. बहुवचन, बु. बुंदेली, बौ. बौद्ध, भा. भागवत, भू. भूतकालिक, म. मनुस्मृति, मभा. महाभारत, मी. मीमांसा, मु. मुसलमानी, यू. यूनानी, यो. योगशास्त्र, रा. रामायण, राम. रामचरितमानस, ला. लाक्षणिक, लै. लैटिन, लो. लोकप्रचलित, वा. वाक्य, वि. विशेषण, वे. वेदान्त, वै. वैदिक, व्य. व्यंग्य, व्या. व्याकरण, सं. संस्कृत, सक. सकर्मक क्रिया, सर्व. सर्वनाम, सां. सांख्यशास्त्र, सा. साहित्य, सू. सूफी, स्त्री. स्त्रीलिंग, स्म. स्मृतिग्रन्थ, हरि. हरिवंशपुराण, हिं. हिंदी।
***
चरण पूर्ति:
मुझे नहीं स्वीकार -प्रथम चरण
*
मुझे नहीं स्वीकार है, मीत! प्रीत का मोल.
लाख अकिंचन तन मगर, मन मेरा अनमोल.
*
मुझे नहीं स्वीकार है, जुमलों का व्यापार.
अच्छे दिन आए नहीं, बुरे मिले सरकार.
*
मुझे नहीं स्वीकार -द्वितीय चरण
*
प्रीत पराई पालना, मुझे नहीं स्वीकार.
लगन लगे उस एक से, जो न दिखे साकार.
*
ध्यान गैर का क्यों करूँ?, मुझे नहीं स्वीकार.
अपने मन में डूब लूँ, हो तेरा दीदार.
*
मुझे नहीं स्वीकार -तृतीय चरण
*
माँ सी मौसी हो नहीं, रखिए इसका ध्यान.
मुझे नहीं स्वीकार है, हिंदी का अपमान.
*
बहू-सुता सी हो सदा, सुत सा कब दामाद?
मुझे नहीं स्वीकार पर, अंतर है आबाद.
*
मुझे नहीं स्वीकार -चतुर्थ चरण
*
अन्य करे तो सर झुका, मानूँ मैं आभार.
अपने मुँह निज प्रशंसा, मुझे नहीं स्वीकार.
*
नहीं सिया-सत सी रही, आज सियासत यार!.
स्वर्ण मृगों को पूजना, मुझे नहीं स्वीकार.
३१.५.२०१८
***
नवगीत:
ओ उपासनी
*
ओ उपासनी!
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
हो सुहासिनी!
*
भोर, दुपहरी, साँझ, रात तक
अथक, अनवरत
बहती रहतीं।
कौन बताये? किससे पूछें?
शांत-मौन क्यों
कभी न दहतीं?
हो सुहासिनी!
सबकी सब खुशियों का करती
अंतर्मन में द्वारचार सी
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
ओ उपासनी!
*
इधर लालिमा, उधर कालिमा
दीपशिखा सी
जलती रहतीं।
कोना-कोना किया प्रकाशित
अनगिन खुशियाँ
बिन गिन तहतीं।
चित प्रकाशनी!
श्वास-छंद की लय-गति-यति सँग
मोह रहीं मन अलंकार सी
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
ओ उपासनी!
*
चौका, कमरा, आँगन, परछी
पूजा, बैठक
हँसती रहतीं।
माँ-पापा, बेटी-बेटा, मैं
तकें सहारा
डिगीं, न ढहतीं
मन निवासिनी!
आपद-विपद, कष्ट-पीड़ा का
गुप-चुप करतीं फलाहार सी
शीतल-निर्मल सलिल धार सी
सतत प्रवाहित
ओ उपासनी!
२४-२-२०१६

***

पहेली
जेब काट ले प्राण निकाल
बचो, आप को आप सम्हाल.
प्रिय बनकर जब लूटे डाकू
क्या बोलोगे उसको काकू?
उत्तर
घातक अधिक न उससे चाकू
जान बचा छोड़ो तम्बाकू
***
दोहा सलिला:
दोहा का रंग सिर के संग
*
पहले सोच-विचार लें, फिर करिए कुछ काम
व्यर्थ न सिर धुनना पड़े, अप्रिय न हो परिणाम
*
सिर धुनकर पछता रहे, दस सिर किया काज
बन्धु सखा कुल मिट गया, नष्ट हो गया राज
*
सिर न उठा पाए कभी, दुश्मन रखिये ध्यान
सरकश का सर झुककर रखे सदा बलवान
*
नतशिर होकर नमन कर, प्रभु हों तभी प्रसन्न
जो पौरुष करता नहीं, रहता सदा विपन्न
*
मातृभूमि हित सिर कटा, होते अमर शहीद
बलिदानी को पूजिए, हर दीवाली-ईद
*
विपद पड़े सिर जोड़कर, करिए 'सलिल' विचार
चाह राह की हो प्रबल, मिल जाता उपचार
*
तर्पण कर सिर झुकाकर, कर प्रियजन को याद
हैं कृतज्ञ करिए प्रगट, भाव- रहें फिर शाद
*
दुर्दिन में सिर मूड़ते, करें नहीं संकोच
साया छोड़े साथ- लें अपने भी उत्कोच
*
अरि ज्यों सीमा में घुसे, सिर काटें तत्काल
दया-रहम जब-जब किया, हुआ हाल बेहाल
*
सिर न खपायें तो नहीं, हल हो कठिन सवाल
सिर न खुजाएँ तो 'सलिल', मन में रहे मलाल
*
अगर न सिर पर हों खड़े, होता कहीं न काम
सरकारी दफ्तर अगर, पड़े चुकाना दाम
*
सिर पर चढ़ते आ रहे, नेता-अफसर खूब
पांच साल गायब रहे, जाए जमानत डूब
*
भूल चूक हो जाए तो, सिर मत धुनिये आप
सोच-विचार सुधार लें, सुख जाए मन व्याप
*
होनी थी सो हो गयी, सिर न पीटिए व्यर्थ
गया मनुज कब लौटता?, नहीं शोक का अर्थ
*
सब जग की चिंता नहीं, सिर पर धरिये लाद
सिर बेचारा हो विवश, करे नित्य फरियाद
*
सिर मत फोड़ें धैर्य तज, सर जोड़ें मिल-बैठ
सही तरीके से तभी, हो जीवन में पैठ
*
सिर पर बाँधे हैं कफन, अपने वीर जवान
ऐसा काम न कीजिए, घटे देश का मान
३१-५-२०१५

***
नवगीत:
संजीव
*
मुस्कानें विष बुझी
निगाहें पैनी तीर हुईं
*
कौए मन्दिर में बैठे हैं
गीध सिंहासन पा ऐंठे हैं
मन्त्र पढ़ रहे गर्दभगण मिल
करतल ध्वनि करते जेठे हैं.
पुस्तक लिख-छपते उलूक नित
चीलें पीर भईं
मुस्कानें विष बुझी
निगाहें पैनी तीर हुईं
*
चूहे खलिहानों के रक्षक
हैं सियार शेरों के भक्षक
दूध पिलाकर पाल रहे हैं
अगिन नेवले वासुकि तक्षक
आश्वासन हैं खंबे
वादों की शहतीर नईं
*
न्याय तौलते हैं परजीवी
रट्टू तोते हुए मनीषी
कामशास्त्र पढ़ रहीं साध्वियाँ
सुन प्रवचन वैताल पचीसी
धुल धूसरित संयम
भोगों की प्राचीर मुईं
२७-५-२०१५
***
नवगीत:
संजीव
*
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
जिंदगी नवगीत बनकर
सर उठाने जब लगी
भाव रंगित कथ्य की
मुद्रा लुभाने तब लगी
गुनगुनाकर छंद ने लय
कहा: 'बन जा संत रे!'
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
*
बिम्ब ने प्रतिबिम्ब को
हँसकर लगाया जब गले
अलंकारों ने कहा:
रस सँग ललित सपने पले
खिलखिलाकर लहर ने उठ
कहा: 'जग में तंत रे!'
*
बन्दगी इंसान की
भगवान ने जब-जब करी
स्वेद-सलिला में नहाकर
सृष्टि खुद तब-तब तरी
झिलमिलाकर रौशनी ने
अंधेरों को कस कहा:
भास्कर है कंत रे!
श्वास मुखड़े
संग गूथें
आस के कुछ अंतरे
२५-५-२०१५
***

लेख:
कुंडली मिलान में गण-विचार
*
वैवाहिक संबंध की चर्चा होने पर लड़का-लड़की की कुंडली मिलान की परंपरा भारत में है. कुंडली में वर्ण का १, वश्य के २, तारा के ३, योनि के ४, गृह मैटरर के ५, गण के ६, भकूट के ७ तथा नाड़ी के ८ कुल ३६ गुण होते हैं.जितने अधिक गुण मिलें विवाह उतना अधिक सुखद माना जाता है. इसके अतिरिक्त मंगल दोष का भी विचार किया जाता है.
कुंडली मिलान में 'गण' के ६ अंक होते हैं. गण से आशय मन:स्थिति या मिजाज (टेम्परामेन्ट) के तालमेल से हैं. गण अनुकूल हो तो दोनों में उत्तम सामंजस्य और समन्वय उत्तम होने तथा गण न मिले तो शेष सब अनुकूल होने पर भी अकारण वैचारिक टकराव और मानसिक क्लेश होने की आशंका की जाती है. दैनंदिन जीवन में छोटी-छोटी बातों में हर समय एक-दूसरे की सहमति लेना या एक-दूसरे से सहमत होना संभव नहीं होता, दूसरे को सहजता से न ले सके और टकराव हो तो पूरे परिवार की मानसिक शांति नष्ट होती है। गण भावी पति-पत्नी के वैचारिक साम्य और सहिष्णुता को इंगित करते हैं।
ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थ कल्पद्रुम के अनुसार निम्न २ स्थितियों में गण दोष को महत्त्वहीन कहा गया है:
१. 'रक्षो गणः पुमान स्याचेत्कान्या भवन्ति मानवी । केपिछान्ति तदोद्वाहम व्यस्तम कोपोह नेछति ।।'
अर्थात जब जातक का कृतिका, रोहिणी, स्वाति, मघा, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा नक्षत्रों में जन्म हुआ हो।
२. 'कृतिका रोहिणी स्वामी मघा चोत्त्राफल्गुनी । पूर्वाषाढेत्तराषाढे न क्वचिद गुण दोषः ।।'
अर्थात जब वर-कन्या के राशि स्वामियों अथवा नवांश के स्वामियों में मैत्री हो।
गण को ३ वर्गों 1-देवगण, 2-नर गण, 3-राक्षस गण में बाँटा गया है। गण मिलान ३ स्थितियाँ हो सकती हैं:
1. वर-कन्या दोनों समान गण के हों तो सामंजस्य व समन्वय उत्तम होता है.
2. वर-कन्या देव-नर हों तो सामंजस्य संतोषप्रद होता है ।
३. वर-कन्या देव-राक्षस हो तो सामंजस्य न्यून होने के कारण पारस्परिक टकराव होता है ।
शारंगीय के अनुसार; वर राक्षस गण का और कन्या मनुष्य गण की हो तो विवाह उचित होगा। इसके विपरीत वर मनुष्य गण का एवं कन्या राक्षस गण की हो तो विवाह उचित नहीं अर्थात सामंजस्य नहीं होगा।
सर्व विदित है कि देव सद्गुणी किन्तु विलासी, नर या मानव परिश्रमी तथा संयमी एवं असुर या राक्षस दुर्गुणी, क्रोधी तथा अपनी इच्छा अन्यों पर थोपनेवाले होते हैं।
भारत में सामान्यतः पुरुषप्रधान परिवार हैं अर्थात पत्नी सामान्यतः पति की अनुगामिनी होती है। युवा अपनी पसंद से विवाह करें या अभिभावक तय करें दोनों स्थितियों में वर-वधु के जीवन के सभी पहलू एक दूसरे को विदित नहीं हो पाते। गण मिलान अज्ञात पहलुओं का संकेत कर सकता है। गण को कब-कितना महत्त्व देना है यह उक्त दोनों तथ्यों तथा वर-वधु के स्वभाव, गुणों, शैक्षिक-सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में विचारकर तय करना चाहिए।
३१-५-२०१४
***
मुक्तिका:
प्यार-मुहब्बत नित कीजै..
*
अंज़ाम भले मरना ही हो हँस प्यार-मुहब्बत नित कीजै..
रस-निधि पाकर रस-लीन हुए, रस-खान बने जी भर भीजै.
जो गिरता वह ही उठता है, जो गिरे न उठना क्या जाने?
उठकर औरों को उठा, न उठने को कोई कन्धा लीजै..
हो वफ़ा दफा दो दिन में तो भी इसमें कोई हर्ज़ नहीं
यादों का खोल दरीचा, जीवन भर न याद का घट छीजै..
दिल दिलवर या कि ज़माना ही, खुश या नाराज़ हो फ़िक्र न कर.
खुश रह तू अपनी दुनिया में, इस तरह कि जग तुझ पर रीझै..
कब आया कोई संग, गया कब साथ- न यह मीजान लगा.
जितने पल जिसका संग मिला, जी भर खुशियाँ दे-ले जीजै..
अमृत या ज़हर कहो कुछ भी पीनेवाले पी जायेंगे.
आनंद मिले पी बार-बार, ऐसे-इतना पी- मत खीजै..
नित रास रचा- दे धूम मचा, ब्रज से यूं.एस. ए.-यूं. के. तक.
हो खलिश न दिल में तनिक 'सलिल' मधुशाला में छककर पीजै..
*******
३१-५-२०१०

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

पहेली

पहेली :
साहित्यकारों के नाम खोजिए।

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उत्तर
पहेली - खोजिए साहित्यकारों के नाम
उत्तर
बाएं से दाएं
महादेवी - महादेवी वर्मा म
देवी - आशापूर्णा देवी (बांग्ला)
वीर - वीर सावरकर (मराठी), क्षेत्रि वीर (मणिपुरी)
पंत गोविंद वल्लभ, सुमित्रानंदन पंत,
वृन्दावन- वृन्दावन लाल वर्मा
विराट - विष्णु विराट, चन्द्रसेन विराट,
रावी - रामप्रसाद विद्यार्थी
काका - काका हाथरसी, काका कालेलकर (मराठी)
शानी - गुलशेर खां शानी
नीरज - गोपाल प्रसाद सक्सेना नीरज,
सारथी - ओ. पी. शर्मा सारथी (डोगरी), रंजीत सारथी (सरगुजिहा)
गुरु - कामता प्रसाद, रामेश्वर प्रसाद गुरु, गुरु अन्नक-गुरु गोबिंद सिंह (पंजाबी)
रील - गुरुनाम सिंह रील, दिलजीत सिंह रील,
शिवानी - गौरा पंत शिवानी,
चक्र - सुदर्शन सिंह चक्र, कुम्भार चक्र (उड़िया), चक्रधर अशोक,
सुभद्रा - सुभद्रा कुमारी चौहान,
अमृत लाल - अमृत लाल नागर, अमृत लाल वेगड़, अमृता प्रीतम (पंजाबी)
लाल - लक्ष्मी नारायण लाल, श्रीलाल शुक्ल, लाल पुष्प (सिंधी)
ऊपर से नीचे
महावीर - महावीर रवांल्टा
महावीर प्रसाद - महावीर प्रसाद द्वुवेदी, महावीर प्रसाद जोशी (राजस्थानी)
प्रसाद - जय शंकर प्रसाद, महावीर प्रसाद, हजारी प्रसाद, शत्रुघ्न प्रसाद,
प्रभा - प्रभा खेतान
प्रभाकर - विष्णु प्रभाकर, प्रभाकर माचवे , प्रभाकर बैगा, प्रभाकर श्रोत्रिय
ऊँट - रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी'
चोंच - कांतानाथ पांडेय 'चोंच'
तनूजा - तनूजा चौधरी, तनूजा मुंडा, तनूजा मजूमदार, तनूजा शर्मा 'मीरा' तनूजा सेठिया, तनूजा चंद्रा
चौधरी - बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय "प्रेमधन, राजकमल चौधरी, रघुवीर चौधरी (गुजराती),
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
तुलसी - गोस्वामी तुलसीदास, आचार्य तुलसी, तुलसी बहादुर क्षेत्री (नेपाली), डॉ, तुलसीराम,
निराला - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,
माखन लाल - माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा'
दाएं से बाएं
प्रेमचंद - धनपत राय 'प्रेमचंद'
आड़ा
लाला - लाला भगवान दीन, लाला श्रीनिवास दास, लाला पूरणमल, लाला जगदलपुरी
रघुवीर - डॉ. रघुवीर, रघुवीर सहाय, रघुवीर चौधरी (गुजराती)

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

पहेली

पहेली
खोजें साहित्यकारों के नाम



उत्तर : 
बाएं से दाएं 
महादेवी - महादेवी वर्मा म 
देवी - आशापूर्णा देवी (बांग्ला)
वीर - वीर सावरकर (मराठी), क्षेत्रि वीर (मणिपुरी)
पंत   गोविंद वल्लभ, सुमित्रानंदन पंत, 
वृन्दावन- वृन्दावन लाल वर्मा     
विराट - विष्णु विराट, चन्द्रसेन विराट,  
रावी - रामप्रसाद विद्यार्थी  
काका -  काका हाथरसी, काका कालेलकर (मराठी)      
शानी -  गुलशेर खां शानी  
नीरज - गोपाल प्रसाद सक्सेना नीरज,    
सारथी - ओ. पी. शर्मा सारथी (डोगरी), रंजीत सारथी (सरगुजिहा)
गुरु  - कामता प्रसाद, रामेश्वर प्रसाद गुरु,  गुरु अन्नक-गुरु गोबिंद सिंह (पंजाबी)  
रील - गुरुनाम सिंह रील, दिलजीत सिंह रील, 
शिवानी  - गौरा पंत शिवानी,  
चक्र  - सुदर्शन सिंह चक्र, कुम्भार चक्र (उड़िया),  चक्रधर अशोक,
सुभद्रा  - सुभद्रा कुमारी चौहान,  
अमृत लाल -   अमृत लाल नागर, अमृत लाल वेगड़, अमृता प्रीतम (पंजाबी)
लाल - लक्ष्मी नारायण लाल, श्रीलाल शुक्ल, लाल पुष्प (सिंधी)
ऊपर से नीचे 
महावीर - महावीर रवांल्टा
महावीर प्रसाद - महावीर प्रसाद द्वुवेदी, महावीर प्रसाद जोशी (राजस्थानी)
प्रसाद - जय शंकर प्रसाद, महावीर प्रसाद, हजारी प्रसाद, शत्रुघ्न प्रसाद, 
प्रभा - प्रभा खेतान 
प्रभाकर - विष्णु प्रभाकर,  प्रभाकर माचवे , प्रभाकर बैगा, प्रभाकर श्रोत्रिय 
ऊँट - रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी' 
चोंच - कांतानाथ पांडेय 'चोंच'  
तनूजा - तनूजा चौधरी, तनूजा मुंडा, तनूजा मजूमदार, तनूजा शर्मा 'मीरा' तनूजा सेठिया, तनूजा चंद्रा 
चौधरी - बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय "प्रेमधन, राजकमल चौधरी, रघुवीर चौधरी (गुजराती), 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना  
तुलसी - गोस्वामी तुलसीदास, आचार्य तुलसी,  तुलसी बहादुर क्षेत्री (नेपाली), डॉ, तुलसीराम,  
निराला - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,      
माखन लाल  - माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा'  
दाएं से बाएं 
प्रेमचंद - धनपत राय 'प्रेमचंद' 
आड़ा 
लाला - लाला भगवान दीन, लाला श्रीनिवास दास, लाला पूरणमल, लाला जगदलपुरी  
रघुवीर - डॉ. रघुवीर,  रघुवीर सहाय, रघुवीर चौधरी (गुजराती)

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

paheli

पहेली 
*
एक पहेली 
बूझ सहेली 
*
कौन गधे से ज्यादा मूरख
खड़ा करे खुद अपनी खाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन जलाये खुद अपना घर
अपनी आप लगाते वाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन देश का दुश्मन बनकर
अपना थूका खुद ले चाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन खोदता सडक-रेल भी
ज्यों पागल कुत्ता ले काट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन जला संपत्ति देश की
चाह रहा आरक्षण-ठाट?
एक पहेली
बूझ सहेली
*
कौन माँगता भीख बताओ
धरकर धन-बल जैसे लाट
एक पहेली
बूझ सहेली
*
जो न जान कर नाम बताये
उस पर हँसते चारण-भाट
एक पहेली
बूझ सहेली
*