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बुधवार, 21 नवंबर 2012

नवगीत: नयन में कजरा... संजीव 'सलिल'

 नवगीत:

नयन में कजरा...
संजीव 'सलिल'
*
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
नीलगगन के राजमार्ग पर
बगुले दौड़े तेज.
तारे फैलाते प्रकाश तब
चाँद सजाता सेज.
भोज चाँदनी के संग करता
बना मेघ को मेज.
सौतन ऊषा रूठ गुलाबी
पी रजनी संग पेज.
निठुर न रीझा-
चौथ-तीज के सारे व्रत भये बाँझ.
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
निष्ठा हुई न हरजाई, है
खबर सनसनीखेज.
संग दीनता के सहबाला
दर्द दिया है भेज.
विधना बाबुल चुप, क्या बोलें?
किस्मत रही सहेज.
पिया पिया ने प्रीत चषक
तन-मन रंग दे रंगरेज.
आस सारिका गीत गये
शुक झूम बजाये झाँझ.
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
साँस पतंगों को थामे
आसें हंगामाखेज.
प्यास-त्रास की रास
हुलासों को परिहास- दहेज़.
सत को शिव-सुंदर से जाने
क्यों है आज गुरेज?
मस्ती, मौज, मजा सब चाहें
श्रम से है परहेज.
बिना काँच लुगदी के मंझा
कौन रहा है माँझ?.
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*

रविवार, 3 अप्रैल 2011

एक रचना: बिन तुम्हारे... संजीव 'सलिल'

एक रचना:                                                                                                

बिन तुम्हारे...

संजीव 'सलिल'

*

बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.

चहचहाते पखेरू पर डालता कोई न डेरा.



उषा की अरुणाई मोहे, द्वार पर कुंडी खटकती.

भरम मन का जानकर भी, दृष्टि राहों पर अटकती..



अनमने मन चाय की ले चाह जगकर नहीं जगना.

दूध का गंजी में फटना या उफन गिरना-बिखरना..



साथियों से बिना कारण उलझना, कुछ भूल जाना.

अकेले में गीत कोई पुराना फिर गुनगुनाना..



साँझ बोझिल पाँव, तन का श्रांत, मन का क्लांत होना.

याद के बागों में कुछ कलमें लगाना, बीज बोना..



विगत पल्लव के तले, इस आज को फिर-फिर भुलाना.

कान बजना, कभी खुद पर खुद लुभाना-मुस्कुराना..



बि​न तुम्हारे निशा का लगता अँधेरा क्यों घनेरा?

बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.

****

शनिवार, 15 जनवरी 2011

नवगीत: सड़क पर संजीव 'सलिल'

नवगीत:

सड़क पर

संजीव 'सलिल'
*
आँज रही है उतर सड़क पर
नयन में कजरा साँझ...
*
नीलगगन के राजमार्ग पर
बगुले दौड़े तेज.
तारे फैलाते प्रकाश तब
चाँद सजाता सेज.
भोज चाँदनी के संग करता
बना मेघ को मेज.
सौतन ऊषा रूठ गुलाबी
पी रजनी संग पेज.
निठुर न रीझा-
चौथ-तीज के सारे व्रत भये बाँझ...
*
निष्ठा हुई न हरजाई, है
खबर सनसनीखेज.
संग दीनता के सहबाला
दर्द दिया है भेज.
विधना बाबुल चुप, क्या बोलें?
किस्मत रही सहेज.
पिया पिया ने प्रीत चषक
तन-मन रंग दे रंगरेज.
आस सारिका गीत गये
शुक झूम बजाये झाँझ...
*
साँस पतंगों को थामे
आसें हंगामाखेज.
प्यास-त्रास की रास
हुलासों को परिहास- दहेज़.
सत को शिव-सुंदर से जाने
क्यों है आज गुरेज?
मस्ती, मौज, मजा सब चाहें
श्रम से है परहेज.
बिना काँच लुगदी के मंझा
कौन रहा है माँझ?...
*