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शनिवार, 19 मार्च 2011

ब्रजभाषा - होली के छन्‍द - नायक नायिका सम्‍वाद नवीन चतुर्वेदी

ब्रजभाषा - होली के छन्‍द - नायक नायिका सम्‍वाद
 
नवीन चतुर्वेदी 
 
नायक:-

गोरे गोरे गालन पे मलिहौँ गुलाल लाल,
क़ोरन में सजनी अबीर भर डारिहौँ|
सारी रँग दैहौँ सारी, मार पिचकारी प्यारी,
अंग-अंग रँग जाय, ऐसें पिचकारिहौँ|
अँगिया-चुनर-नीबी-सुपरि भिगोय डारौँ,
जो तू रूठ जैहै, हौलें-हौलें पुचकारिहौँ|
अब कें फगुनवा में कहें दैहौँ 'कविदास',
राज़ी सौं नहीं, तो जोरदारी कर डारिहौँ||
[घनाक्षरी कवित्त]

नायिका:-

दुहुँ गालन लाल गुलाल भर्यौ, अँगिया में दबी हैं अबीर की झोरी|
अधरामृत रंग तरंग भरे, पिचकारी बनीं ये निगाह निगोरी|
ढप-ढोल-मृदंग उमंगन के, रति के रसगीत करें चितचोरी|
तुम फाग की बाट निहारौ व्रुथा, तुम्हें बारहों माज़ खिलावहुँ होरी||
[सवैया]


बरसाने की लट्ठमार होली : नवीन चतुर्वेदी

बरसाने की लट्ठमार होली :

 

 

नवीन चतुर्वेदी 
 
होरी खेलिवे कों हुरियार चले बरसाने, 
संग लिएं ग्वाल-बाल हुल्लड़ मचामें हैं|
 
टेसू के फूलन कों पानी में भिगोय कें फिर,
 
भर भर पिचकारी रंगन उडामें हैं|

संगत के सरारती संगी सहोदर कछू, 
गोपिन कों घेर गोबर में हू डुबामें हैं|
 
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही,
 
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||


महीना पच्चीस दिन दूध पिएं घी हू खामें, 
जाय कें अखाडें डंड बैठक लगामें हैं|
 
इहाँ-उहाँ जहाँ जायँ, इतरायँ, भाव खायँ,
 
नुक्कड़-अथाँइन
 पे गाल हू बजामें हैं| 
पिछले बरस कौ यों बदलौ लेंगे अचूक,
 
यों
-त्यों कर दंगे ऐसी योजना बनामें हैं| 
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही,
 
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||