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रविवार, 4 अगस्त 2013

bhasha vividha: sirayaki doha salila -sanjiv

भाषा विविधा:

दोहा सलिला सिरायकी :

संजीव

[सिरायकी (लहंदा, पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी, मूल लिपि लिंडा): पंजाब - पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की लोकभाषा, उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से, सह बोलियाँ मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली. सिरायकी में हिंदी के हर वर्ग का ३ रा व्यंजन (ग,ज,ड, द तथा ब) उच्च घोष में बोला तथा रेखांकित कर लिखा जाता है. उच्चारण में 'स' का 'ह', 'इ' का 'हि', 'न' का 'ण' हो जाता है. सिरायकी में दोहा लेखन में हुई त्रुटियाँ इंगित करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]

*

हब्बो इत्था मिलण हे, निज करमां डा फल।

रब्बा मैंनूँ मुकुति दे, आतम पाए कल।।

*

अगन कुंद हे पाप डा, राजनीति हे छल।

जद करणी भरणी तडी, फिर उगणे कूँ ढल।।

*

लुक्का-छिप्पी खेल कूँ, धूप-छाँव अनुमाण।

सुख-दुःख हे चित-पट 'सलिल', सूझ-बूझ वरदाण।।

*

खुदगर्जी तज जिंदगी, आपण हित दी सोच।

संबंधों डी जान हे, लाज-हया-संकोच।।

*

ह्ब्बो डी गलती करे, हँस-मुस्काकर माफ़।

कमजोरां कूँ पिआर ही, हे सुच्चा इन्साफ।।

*

                                         

शनिवार, 3 अगस्त 2013

DOHA in SIRAYAKI : SANJIV

भाषा विविधा:

दोहा सलिला सिरायकी :

संजीव

[सिरायकी पाकिस्तान और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बोले जानेवाली लोकभाषा है. सिरायकी का उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से हुआ है. इसे लहंदा, पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी आदि भी कहा गया है. सिरायकी की मूल लिपि लिंडा है. मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली इससे मिलती-जुलती बोलियाँ हैं. सिरायकी में दोहा छंद अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. मेरे इस प्रथम प्रयास में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है. जानकार पाठकों से त्रुटियाँ इंगित करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]

*

बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश।  

साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।।

*

रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल 

अज सुणी ई हे दुआं,त्रया-पंज दा भूल।।

*

दुक्खां कूँ कर दूर प्रभु, जग दे रचनाकार।  

डेवणवाले देवता, रण जोग करतार।। 

*

कोई करे तां क्या करे, हे बलाव असूल।   

कायम हे उम्मीद पे, दुनिया कर के भूल

*

शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार।  

लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।

*

शहंशाह हे रियाया, सपणें हुण साकार  

राजा ते हे बणेंदी, नता ते हुंकार।।

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गिरगिट वां मिन्ट विच, मणुदा रंग  

डूरंगी हे रवायत, ज्यूं लोहे नूँ जंग।।

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हब्बो जी सफल हे, घटगा गर अलगा। 

खुली हवा आजाद हे, देश- न हो भटकाव।।

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सिद्धे-सुच्चे मिलण दे, जीवन-पथ आसान।  

खुदगर्जी दी भावणा, त्याग सुधर इंसान ।।

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