दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 4 अगस्त 2013
bhasha vividha: sirayaki doha salila -sanjiv
संजीव
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SIRAYAKI
शनिवार, 3 अगस्त 2013
DOHA in SIRAYAKI : SANJIV
भाषा विविधा:
दोहा सलिला सिरायकी :
संजीव
[सिरायकी पाकिस्तान और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बोले जानेवाली लोकभाषा है. सिरायकी का उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से हुआ है. इसे लहंदा, पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी आदि भी कहा गया है. सिरायकी की मूल लिपि लिंडा है. मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली इससे मिलती-जुलती बोलियाँ हैं. सिरायकी में दोहा छंद अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. मेरे इस प्रथम प्रयास में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है. जानकार पाठकों से त्रुटियाँ इंगित करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]
*
बुरी आदतां दुखों कूँ, नष्ट करेंदे ईश।
साडे स्वामी तुवाडे, बख्तें वे आशीष।।
*
रोज़ करन्दे हन दुआ, तेडा-मेडा भूल।
अज सुणीज गई हे दुआं,त्रया-पंज दा भूल।।
*
दुक्खां कूँ कर दूर प्रभु, जग दे रचनाकार।
डेवणवाले देवता, वरण जोग करतार।।
*
कोई करे तां क्या करे, हे बदलाव असूल।
कायम हे उम्मीद पे, दुनिया कर के भूल।।
*
शर्त मुहाणां जीत ग्या, नदी-किनारा हार।
लेणें कू धिक्कार हे, देणे कूँ जैकार।।
*
शहंशाह हे रियाया, सपणें हुण साकार।
राजा ते हे बणेंदी, जनता ते हुंकार।।
*
गिरगिट वांगण मिन्ट विच, मणुज बदलदा रंग।
डूरंगी हे रवायत, ज्यूं लोहे नूँ जंग।।
*
हब्बो जीवण सफल हे, घटगा गर अलगाव।
खुली हवा आजाद हे, देश- न हो भटकाव।।
*
सिद्धे-सुच्चे मिलण दे, जीवन-पथ आसान।
खुदगर्जी दी भावणा, त्याग सुधर इंसान ।।
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