बासंती दोहा गीत...
फिर आया ऋतुराज बसंत
--संजीव 'सलिल'
फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
*'
गौरा-बौरा मुग्ध.
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
*
कुहू-कुहू की टेर सुन,
शुक भरमाया खूब.
मिली लजाई सारिका ,
प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
*
भोर सुनहरी गुनगुनी,प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
*
हुए भामिनी-भूप...
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत.....
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