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रविवार, 29 जनवरी 2012

बासंती दोहा गीत... फिर आया ऋतुराज बसंत --संजीव 'सलिल'

बासंती दोहा गीत... 

फिर आया ऋतुराज बसंत 

--संजीव 'सलिल'

बासंती दोहा गीत...
फिर आया ऋतुराज बसंत
संजीव 'सलिल' 
फिर आया ऋतुराज बसंत,
प्रकृति-पुरुष हिल-मिल खिले
विरह--शीत का अंत....
*' 
आम्र-मंजरी मोहती, 
गौरा-बौरा मुग्ध.
रति-रतिपति ने झूमकर-
किया शाप को दग्ध..
नव-कोशिश की कामिनी
वरे सफलता कंत...
*
कुहू-कुहू की टेर सुन,
शुक भरमाया खूब. 
मिली लजाई सारिका ,
प्रेम-सलिल में डूब..
कसे कसौटी पर गए
अब अविकारी संत...
भोर सुनहरी गुनगुनी,
निखरी-बिखरी धूप.                                शयन कक्ष में देख चुप- 
हुए भामिनी-भूप...
'सलिल' वरे अद्वैत जग,
नहीं द्वैत में तंत.....
*****