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मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

doha

दोहा सलिला
*
प्रभु सारे जग का रखे, बिन चूके नित ध्यान। 
मैं जग से बाहर नहीं, इतना तो हैं भान।। 
*
कौन किसी को कर रहा, कहें जगत में याद?
जिसने सब जग रचा है, बिसरा जग बर्बाद
*
जिसके मन में जो बसा वही रहे बस याद
उसकी ही मुस्कान से सदा रहे दिलशाद
*
दिल दिलवर दिलदार का, नाता जाने कौन?
दुनिया कब समझी इसे?, बेहतर रहिए मौन
*
स्नेह न कांता से किया, समझो फूटे भाग
सावन की बरसात भी, बुझा न पाए आग
*
होती करवा चौथ यदि, कांता हो नाराज
करे कृपा तो फाँकिये, चूरन जिस-तिस व्याज
*

प्रभु सारे जग का रखें, बिन चूके नित ध्यान।
मैं जग से बाहर नहीं, इतना तो हैं भान।।
*
कौन किसी को कर रहा, कहें जगत में याद?
जिसने सब जग रचा है, बिसरा जग बर्बाद
*
जिसके मन में जो बसा वही रहे बस याद
उसकी ही मुस्कान से सदा रहे दिलशाद
*
दिल दिलवर दिलदार का, नाता जाने कौन?
दुनिया कब समझी इसे?, बेहतर रहिए मौन
*
स्नेह न कांता से किया, समझो फूटे भाग
सावन की बरसात भी, बुझा न पाए आग
*
होती करवा चौथ यदि, कांता हो नाराज
करे कृपा तो फाँकिये, चूरन जिस-तिस व्याज
*

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salil.sanjiv@gmail.com
#hindi_blogger

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

मुक्तक

मुक्तक:












*
चाँद हो साथ में चाँदनी रात हो
चुप अधर, नैन की नैन से बात हो 
पानी-पानी हुई प्यास पल में 'सलिल'
प्यार को प्यार की प्यार सौगात हो 
*
चाँद को जोड़कर कर मनाती रही
है हक़ीक़त सजन को बुलाती रही 
पी रही है 'सलिल' हाथ से किन्तु वह 
प्यास अपलक नयन की बुझाती रही 
*
चाँद भी शरमा रहा चाँदनी के सामने
झुक गया है सिर हमारा सादगी के सामने
दूर रहते किस तरह?, बस में में न था सच मान लो 
आ गया है जल पिलाने ज़िन्दगी के सामने 
*
गगन का चाँद बदली में मुझे जब भी नज़र आता
न दीखता चाँद चेहरा ही तेरा तब भी नज़र आता 
कभी खुशबू, कभी संगीत, धड़कन में कभी मिलते-
बसे हो प्राण में, मन में यही अब भी नज़र आता 
*