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बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

फरवरी 12, उल्लाला गीत, मुक्तिका, सवैया, तलाक, सॉनेट, गणतंत्र, हिंग्लिश ग़ज़ल, वेलेंटाइन, कुंभ

सलिल सृजन १२ फरवरी
*
मुक्तक महाकुंभ ० नहा रहे जितने जन उतने, पौधे रोपें महाकुंभ में। स्वच्छ करें सब सब नदियों को, तट कर ऊँचे महाकुंभ में।। वन कुंजों में कलकल-कलरव सुनने सभी देवता आएँ- भक्ति करें निष्काम भाव से, आँखें मीचे महाकुंभ में।। 0 पूज नर्मदा कृष्णा गंगा कावेरी झेलम क्षिप्रा नित। ब्रह्मपुत्र सरयू साबरमती अरपा यमुना चंबल प्रमुदित।। महाकुंभ हो गाँव-गाँव में, जलस्रोतों की करें सफाई- तीर्थराज हो देश समूचा, पर्यावरण प्रकृति कर रक्षित।।
0
जिसने किए पाप जा धोए, मुक्त न फिर भी हो पाता है।
लौट कुंभ से माया-ममता लीन न निर्मल मति पाता है।।
भोगी-रोगी मुक्ति चाहते, छले गए श्रद्धा के मारे-
अटल कर्मफल जो जाने नित, घर में कुंभ नहा पाता है।।
0
चित्र गुप्त है परम ब्रह्म का, जैसा बोया काटो वैसा।
नहीं बदलती नियति, कमाकर रुपया दान करो यदि पैसा।।
परंपराएँ सत्य बतातीं, सब समान हैं भेद न कोई-
सुविधा भोग कैसे जाने, तप में मिलता है सुख कैसा?
0
कुम्भ-स्नान कर पुण्य कमाने, चले तोड़ कानून।
मिटा रहे संपत्ति देश की, कर नियमों का खून।।
पुण्य गँवाकर पाप कमाया, चित्र गुप्त का न्याय-
निश्चय दंड भोग रोएँगे, सारे अफलातून।। १२.२.२०२५ ०००
हिंग्लिश ग़ज़ल
वेलेंटाइन
*
आओ! मनाएँ Velentine.
Being fine paying fine.
रोज Rose day हो तज फाइट।
जब propose day पी ले wine.
Chocolate Day Chalk late दे।
Teachar पर भी 'मारो लाइन'।
Teddy day भालू बन मिलना।
प्रीत बेल से निकले bine.
वादा कर जुमला बतला दो।
Promis day कह मत दो Dine.
मत हग भर, जी भरकर Hug कर।
जहाँ वहीं हो love का shrine.
खुल्लमखुल्ला चिपको चूमो।
एक गिनो तुम kiss कर Nine.
bine = अंकुर, लाइन मारना (मुहावरा) = निकट जाने की कोशिश करना, dine = भोज, shrine = तीर्थ ।
१२.२.२०२४
***
सॉनेट
विडंबना
*
अपना दीपक आप बनो रे!
बुद्ध कह गए हमने माना।
दीप जलाना मन में ठाना।।
भूले अँखिया खोल रखो रे।।
घर झुलसा घर के दीपक से।
बैठे हैं हम आग तापते।
भोग लगा वरदान माँगते।।
केवल इतना नाता प्रभु से।।
जपें राम पर काम न करते।
तजें न सत्ता, काम सुमिरते।
भवबंधन में खुद को कसते।।
आँख न खोलें नाम नयनसुख।
निज करनी से पाते हैं दुख।
रब को कैसे दिखलाएँ मुख?
१२-२-२०२२
•••
गीत
अगिन नमन गणतंत्र महान
जनगण गाए मंगलगान
*
दसों दिशाएँ लिए आरती
नजर उतारे मातु भारती
धरणि पल्लवित-पुष्पित करती
नेह नर्मदा पुलक तारती
नीलगगन विस्तीर्ण वितान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर
जनगण की जय बोले फिर फिर
रवि बन जग को दें प्रकाश मिल
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान
रक्षक हैं सैनिक बलवान
अभियंता निर्माण करें नव
मूल्य सनातन बन इंसान
सुख-दुख सह समभाव सकें हँस
श्वास-श्वास हो रस की खान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ
करे समय अपना जयगान
२६-१-२०२१
***
मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतरिम अंतरा बनाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरी की न दिल दुखाया है
१२-२२०२१
***
तीन तलाक - दोहे
*
तीन तलाक दीजिए, हर दिन जगकर आप
नफरत, गुस्सा, लोभ को, सुख न सकेंगे नाप
जुमलों धौंस प्रचार को, देकर तीन तलाक
दिल्ली ने कर दिया है, थोथा गर्व हलाक
भाव छंद रस बिंब लय, रहे हमेशा साथ
तीन तलाक न दें कभी, उन्नत हो कवि-माथ
आँसू का दरिया कहें, पर्वत सा दर्द
तीन तलाक न दे कभी, कोई सच्चा मर्द
आँखों को सपने दिए, लब को दी मुस्कान
छीन न तीन तलाक ले, रखिए पल-पल ध्यान
दिल से दिल का जोड़कर, नाता हुए अभिन्न
तीन तलाक न पाक है, बोल न होइए भिन्न
अल्ला की मर्जी नहीं, बोलें तीन तलाक
दिल दिलवर दिलरुबा का, हो न कभी भी चाक
जो जोड़ा मत तोड़ना, नाता बेहद पाक
मान इबादत निभाएँ बिसरा तीन तलाक
जो दे तीन तलाक वह, आदम है शैतान
आखिर दम तक निभाए, नाता गर इंसान
***
सवैया
२७ वर्णिक
यति १४-१३
*
ये सवेरा तीर की मानिंद चुभता है, चलो आशा का नया सूरज उगाएँ
घेर लें बादल निराशा के अगर तो, हौसलों की हवा से उनको उड़ाएँ
मेहनत है धर्म अपना स्वेद गंगा, भोर से संझा नहा नवगीत गाएँ
रात में बारात तारों की सजाकर, चाँदनी घर चाँद को दूल्हा बनाएँ
१२-२-२०२०
***
रसानंद दे छंद नर्मदा १५ उल्लाला
*
उल्लाला हिंदी छंद शास्त्र का पुरातन छंद है। वीर गाथा काल में उल्लाला तथा रोला को मिलकर छप्पय छंद की रचना की जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित है। उल्लाला छंद को स्वतंत्र रूप से कम ही रचा गया है। अधिकांशतः छप्पय में रोला के ४ चरणों के पश्चात् उल्लाला के २ दल (पंक्ति) रचे जाते हैं। प्राकृत पैन्गलम तथा अन्य ग्रंथों में उल्लाला का उल्लेख छप्पय के अंतर्गत ही है।
जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित छंद प्रभाकर तथा ॐप्रकाश 'ॐकार' रचित छंद क्षीरधि के अनुसार उल्लाल तथा उल्लाला दो अलग-अलग छंद हैं। नारायण दास लिखित हिंदी छन्दोलक्षण में इन्हें उल्लाला के २ रूप कहा गया है। उल्लाला १३-१३ मात्राओं के २ सम चरणों का छंद है। उल्लाल १५-१३ मात्राओं का विषम चरणी छंद है जिसे हेमचंद्राचार्य ने 'कर्पूर' नाम से वर्णित किया है। डॉ. पुत्तूलाल शुक्ल इन्हें एक छंद के दो भेद मानते हैं। हम इनका अध्ययन अलग-अलग ही करेंगे।
'भानु' के अनुसार:
उल्लाला तेरा कला, दश्नंतर इक लघु भला।
सेवहु नित हरि हर चरण, गुण गण गावहु हो शरण।।
अर्थात उल्लाला में १३ कलाएं (मात्राएँ) होती हैं दस मात्राओं के अंतर पर ( अर्थात ११ वीं मात्रा) एक लघु होना अच्छा है।
दोहा के ४ विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। यह १३-१३ मात्राओं का सम पाद मात्रिक छन्द है जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में सम तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम दोहा के समान हैं। इसका मात्रा विभाजन ८+३+२ है अंत में १ गुरु या २ लघु का विधान है।
सारतः उल्लाला के लक्षण निम्न हैं-
१. २ पदों में तेरह-तेरह मात्राओं के ४ चरण
२. सभी चरणों में ग्यारहवीं मात्रा लघु
३. चरण के अंत में यति (विराम) अर्थात सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए।
४. चरणान्त में एक गुरु या २ लघु हों।
५. सम चरणों (२, ४) के अंत में समान तुक हो।
६. सामान्यतः सम चरणों के अंत एक जैसी मात्रा तथा विषम चरणों के अंत में एक सी मात्रा हो। अपवाद स्वरूप प्रथम पद के दोनों चरणों में एक जैसी तथा दूसरे पद के दोनों चरणों में
उदाहरण :
१.नारायण दास वैष्णव
रे मन हरि भज विषय तजि, सजि सत संगति रैन दिनु।
काटत भव के फन्द को, और न कोऊ राम बिनु।।
२. घनानंद
प्रेम नेम हित चतुरई, जे न बिचारतु नेकु मन।
सपनेहू न विलम्बियै, छिन तिन ढिग आनंदघन।
३. ॐ प्रकाश बरसैंया 'ॐकार'
राष्ट्र हितैषी धन्य हैं, निर्वाहा औचित्य को।
नमन करूँ उनको सदा, उनके शुचि साहित्य को।।
***
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत है,
कहीं जीत में हार है..
आसों ने पल-पल किया
साँसों का सिंगार है..
सपना जीवन-ज्योत है,
अपनापन अंगार है..
कलशों से जाकर कहो,
जीवन गर्द-गुबार है..
स्नेह-'सलिल' कब थम सका,
बना नर्मदा धार है..
******
अभिनव प्रयोग-
उल्लाला गीत:
जीवन सुख का धाम है
*
जीवन सुख का धाम है,
ऊषा-साँझ ललाम है.
कभी छाँह शीतल रहा-
कभी धूप अविराम है...*
दर्पण निर्मल नीर सा,
वारिद, गगन, समीर सा,
प्रेमी युवा अधीर सा-
हर्ष, उदासी, पीर सा.
हरी का नाम अनाम है
जीवन सुख का धाम है...
*
बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम है...
*
वागी आलमगीर सा,
तुलसी की मंजीर सा,
संयम की प्राचीर सा-
राई, फाग, कबीर सा.
स्नेह-'सलिल' गुमनाम है
जीवन सुख का धाम है...
***
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत है,
कहीं जीत में हार है..
आसों ने पल-पल किया
साँसों का सिंगार है..
सपना जीवन-ज्योत है,
अपनापन अंगार है..
कलशों से जाकर कहो,
जीवन गर्द-गुबार है..
स्नेह-'सलिल' कब थम सका,
बना नर्मदा धार है..
***
उल्लाला मुक्तक:
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*
झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*
दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की विकलता..
*
दिल ने करी गुहार है,
दिल ने सुनी पुकार है.
दिल पर दिलकश वार या-
दिलवर की मनुहार है..
*
शीत सिसकती जा रही,
ग्रीष्म ठिठकती आ रही.
मन ही मन में नवोढ़ा-
संक्रांति कुछ गा रही..
*
श्वास-आस रसधार है,
हर प्रयास गुंजार है.
भ्रमरों की गुन्जार पर-
तितली हुई निसार है..
*
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*
वह प्रभु तारणहार है,
उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है.
करता भव से पार है..
१२-२-२०१६
***
नवगीत:
.
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नवगीतों ने व्यथा-कथाएँ
कही अंतरों में गा-गाकर
छंदों ने अमृत बरसाया
अविरल दुःख सह
सुख बरसाकर
दोहा आल्हा कजरी पंथी
कर्म-कुंडली बाँच-बाँचकर
थके-चुके जनगण के मन में
नव आशा
फसलें बो पाये
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नव प्रयास के मुखड़े उज्जवल
नव गति-नव यति, ताल-छंद नव
बिंदासी टटकापन देकर
पार कर रहे
भव-बाधा हर
राजनीति की कुलटा-रथ्या
घर के भेदी भक्त विभीषण
क्रय-विक्रयकर सिद्धांतों का
छद्म-कहानी
कब कह पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
हास्य-व्यंग्य जमकर विरोध में
प्रगतिशीलता दर्शा हारे
विडंबना छोटी कहानियाँ
थकीं, न लेकिन
नक्श निखारे
चलीं सँग, थक, बैठ छाँव में
कलमकार से कहे लोक-मन
नवगीतों को नवाचार दो
नयी भंगिमा
दर्शा पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
१२-२-२०१५
.
नवगीत:
.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
मेहनतकश हाथों ने बढ़
मतदान किया.
झुकाते माथों ने
गौरव का भान किया.
पंजे ने बढ़
बटन दबाया
स्वप्न बुने.
आशाओं के
कमल खिले
जयकार हुआ.
अवसर की जय
रात हटी तो प्रात हुई.
आसमान में आयी ऊषा.
पौध जगे,
पत्तियाँ हँसी,
कुछ कुसुम खिले.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
आम आदमी ने
खुद को
पहचान लिया.
एक साथ मिल
फिर कोइ अरमान जिया.
अपने जैसा,
अपनों जैसा
नेता हो,
गड़बड़ियों से लड़कर
जयी विजेता हो.
अलग-अलग पगडंडी
मिलकर राह बनें
केंद्र-राज्य हों सँग
सृजन का छत्र तने
जग सिरमौर पुनः जग
भारत बना सकें
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
११.२.२०१५
.
मुक्तिका
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..
गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..
मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..
कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..
नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..
मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..
कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..
***
मुक्तिका
*
आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..
पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..
समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..
मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..
जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..
लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..
पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..
छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..
सूरज जाये महलों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
१२-२-२०११

*** 

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

हास्य, चाकलेट डे, वेलेंटाइन,

 हास्य

चाकलेट डे
*
रेल लेट होती रई अब लौं
चाक लेट अब आई।
टीचरनी एक
पाँच क्लास
कैसे हो पाए पढ़ाई।
ओन लैन का नाटक कर खें
सबको पास करो रे!
पीढ़ी बने निकम्मी-अनपढ़
मुफ्त राहतें दो रे!
नेता का जयकारा गूँजे
वे बनाएँ सरकार।
उनके बच्चे सेठ अफसर हों
जनता के बेकार।

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

१४ फरवरी, त्रिभंगी, बसंत, वेलेंटाइन, हाइकु, रौद्राक छंद, हरिगीतिका, लघुकथा, नवगीत, सोनेट, हास्य, दोहा

सलिल सृजन १४ फरवरी
*
सॉनेट
सदा सुहागिन
खिलती-हँसती सदा सुहागिन।
प्रिय-बाहों में रहे चहकती।
वर्षा-गर्मी हँसकर सहती।।
करे मकां-घर सदा सुहागिन।।
गमला; क्यारी या वन-उपवन।
जड़ें जमा ले, नहीं भटकती।
बाधाओं से नहीं अटकती।।
कहीं न होती किंचित उन्मन।।
दूर व्याधियाँ अगिन भगाती।
अपनों को संबल दे-पाती।
जीवट की जय जय गुंजाती।।
है अविनाशी सदा सुहागिन।
प्रिय-मन-वासी सदा सुहागिन।
बारहमासी सदा सुहागिन
•••
सॉनेट
रामजी
मन की बातें करें रामजी।
वादे कर जुमला बतला दें।
जन से घातें करें रामजी।।
गले मिलें, ठेंगा दिखला दे।।
अपनी छवि पर आप रीझते।
बात-बात में आग उगलते।
सत्य देख-सुन रूठ-खीजते।।
कड़वा थूकें, मधुर निगलते।।
टैक्स बढ़ाएँ, रोजी छीने।
चीन्ह-चीन्ह रेवड़ियाँ बाँटें।
ख्वाब दिखाते कहें नगीने।।
काम कराकर मारें चाँटे।।
सिय जंगल में पठा रामजी।
सत्ता सुख लें ठठा रामजी।।
१४-२-२०२२
•••
सॉनेट
वसुधा
वसुधा धीरजवान गगन सी।
सखी पीर को गले लगाती।
चुप सह लेती, फिर मुसकाती।।
रही गुनगुना आप मगन सी।।
करें कनुप्रिया का हरि वंदन।
साथ रहें गोवर्धन पूजें।
दूर रहें सुधियों में डूबें।।
विरह व्यथा हो शीतल चंदन।
सुख मेहमां, दुख रहवासी हम।
विपिन विहारी, वनवासी हम।
भोग-योगकर सन्यासी हम।।
वसुधा पर्वत-सागर जंगल।
वसुधा खातिर होते दंगल।
वसुधा करती सबका मंगल।।
१४-२-२०२२
•••
मुक्तिका
*
बात करिए तो बात बनती है
बात बेबात हो तो खलती है
बात कह मत कहें उसे जुमला-
बात भूलें तो नाक कटती है
बात सच्ची तो मूँछ ऊँची हो
बात कच्ची न तुझ पे फबती है
बात की बात में जो बात बने
बात सौगात होती रचती है
बात का जो धनी भला मानुस
बात से जात पता चलती है
बात सदानंद दे मिटाए गम
बात दुनिया में तभी पुजती है
बात करता 'सलिल' कवीश्वर से
होती करताल जिह्वा भजती है
१४-२-२०२१
***
कार्यशाला
दोहा+रोला=कुंडलिया
*
"बाधाओं से भागना, हिम्मत का अपमान।
बाधाओं का सामना, वीरों की पहचान।" -पुष्पा जोशी
वीरों की पहचान, रखें पुष्पा मन अपना
जोशीली मन-वृत्ति, करें पूरा हर सपना
बने जीव संजीव, जीतकर विपदाओं से
सलिल मिटा जग तृषा, जूझकर बाधाओं से।।' - सलिल
***
हास्य रचना
मिली रूपसी मर मिटा, मैं न करी फिर देर।
आँख मिला झट से कहा, ''है किस्मत का फेर।।
एक दूसरे के लिए, हैं हम मेरी जान।
अधिक जान से 'आप' को, मैं चाहूँ लें मान।।"
"माना लेकिन 'भाजपा', मुझको भाती खूब।
'आप' छोड़ विश्वास को, हो न सके महबूब।।"
जीभ चिढ़ा ठेंगा दिखा, दूर हुई हो लाल।
कमलमुखी मैं पीटता, हाय! 'आप' कह भाल।।
१४-२-२०१८
***
दोहा सलिला
*
[भ्रमर दोहा- २६ वर्ण, ४ लघु, २२ गुरु]
मात्राएँ हों दीर्घ ही, दोहा में बाईस
भौंरे की गुंजार से, हो भौंरी को टीस
*
फैलुं फैलुं फायलुं, फैलुं फैलुं फाय
चोखा दोहा भ्रामरी, गुं-गुं-गुं गुंजाय
*
श्वासें श्वासों में समा, दो हो पूरा काज,
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज?
*
जीते-हारे क्यों कहो?, पूछें कृष्णा नैन
पाँचों बैठे मौन हो, क्या बोलें बेचैन?
*
तोलो-बोलो ही सही, सीधी सच्ची रीत
पाया-खोने से नहीं, होते हीरो भीत
*
नेता देता है सदा, वादों की सौगात
भूले से माने नहीं, जो बोली थी बात
*
शीशा देखे सुंदरी, रीझे-खीझे मुग्ध
सैंया हेरे दूर से, अंगारे सा दग्ध
*
बोले कैसे बींदड़ी, पाती पाई आज
सिंदूरी हो गाल ने, खोला सारा राज
*
चच्चा को गच्चा दिया, बच्चा ऐंठा खूब
सच्ची लुच्चा हो गया, बप्पा बैठा डूब
*
बुन्देली आल्हा सुनो, फागें भी विख्यात
राई का सानी नहीं, गाओ जी सें तात
***
दोहा सलिला:
वैलेंटाइन
संजीव
*
उषा न संध्या-वंदना, करें खाप-चौपाल
मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल
*
लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप
किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप
*
बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश
घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश
*
पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व
नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व
*
उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब
प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल
*
धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज
देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज
*
रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ
मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ
*
चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम
मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम
*
पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज
मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज
***
लघु कथा
वैलेंटाइन
*
'तुझे कितना समझती हूँ, सुनता ही नहीं. उस छोरी को किसी न किसी बहाने कुछ न कुछ देता रहता है. इतने दिनों में तो बात आगे बढ़ी नहीं. अब तो उसका पीछा छोड़ दे'
"क्यों छोड़ दूँ? तेरे कहने से रोज सूर्य को जल देता हूँ न? फिर कैसे छोड़ दूँ?"
'सूर्य को जल देने से इसका क्या संबंध?'
"हैं न, देख सूर्य धरती को धू की गिफ्ट देकर प्रोपोज करता हैं न. धरती माने या न माने सोराज धुप देना बंद तो नहीं करता. मैं सूरज की रोज पूजा करून और उससे इतनी सी सीख भी न लूँ की किसी को चाहो तो बदले में कुछ न चाहो, तो रोज जल चढ़ाना व्यर्थ हो जायेगा न? सूरज और धरती की तरह मुझे भी मनाते रहना है वैलेंटाइन."
***
कार्यशाला
कुंडलिया
साजन हैं मन में बसे, भले नजर से दूर
सजनी प्रिय के नाम से, हुई जगत मशहूर -मिथलेश
हुई जगत मशहूर, तड़पती रहे रात दिन
अमन चैन है दूर, सजनि का साजन के बिन
निकट रहे या दूर, नहीं प्रिय है दूजा जन
सजनी के मन बसे, हमेशा से ही साजन - संजीव
***
मुक्तक
महिमा है हिंदी की, गरिमा है हिंदी की, हिंदी बोलिए तो, पूजा हो जाती है
जो न हिंदी बोलते हैं, अंतर्मन न खोलते हैं, अनजाने उनसे ही, भूल हो जाती है
भारती की आरती, उतारते हैं पुण्यवान, नेह नर्मदा आप, उनके घर आती है
रात हो प्रभात, सूर्य कीर्ति का चमकता है, लेखनी आप ही, गंगा में नहाती है
१४-२-२०१७
***
लघुकथा
गद्दार कौन
*
कुछ युवा साथियों के बहकावे में चंद लोगों के बीच एक झंडा दिखाने और कुछ नारों को लगाने का प्रतिफल, पुलिस की लाठी, कैद और गद्दार का कलंक किन्तु उसी घटना को हजारों बार,लाखों दर्शकों और पाठकों तक पहुँचाने का प्रतिफल देशभक्त होने का तमगा क्यों?
यदि ऐसी दुर्घटना प्रचार न किया जाए तो वह चंद क्षणों में चंद लोगों के बीच अपनी मौत आप न मर जाए? हम देश विरोधियों पर कठोर कार्यवाही न कर उन्हें प्रचारित-प्रसारित कर उनके प्रति आकर्षण बढ़ाने में मदद क्यों करते हैं? गद्दार कौन है नासमझी या बहकावे में एक बार गलती करने वाले या उस गलती का करोड़ गुना प्रसार कर उसकी वृद्धि में सहायक होने वाले?
***
रसानंद दे छंद नर्मदा १५ : हरिगीतिका
दोहा, आल्हा, सार ताटंक,रूपमाला (मदन),चौपाई, छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए हरिगीतिका से.
हरिगीतिका मात्रिक सम छंद हैं जिसके प्रत्येक चरण में २८ मात्राएँ होती हैं । यति १६ और १२ मात्राओं पर होती है। पंक्ति के अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है। भिखारीदास ने छन्दार्णव में गीतिका नाम से 'चार सगुण धुज गीतिका' कहकर हरिगीतिका का वर्णन किया है। हरिगीतिका के पारम्परिक उदाहरणों के साथ कुछ अभिनव प्रयोग, मुक्तक, नवगीत, समस्यापूर्ति (शीर्षक पर रचना) आदि नीचे प्रस्तुत हैं।
छंद विधान: हरिगीतिका X 4 = 11212 की चार बार आवृत्ति
०१. हरिगीतिका २८ मात्रा का ४ समपाद मात्रिक छंद है।
०२. हरिगीतिका में हर पद के अंत में लघु-गुरु ( छब्बीसवी लघु, सत्ताइसवी-अट्ठाइसवी गुरु ) अनिवार्य है।
०३. हरिगीतिका में १६-१२ या १४-१४ पर यति का प्रावधान है।
०४. सामान्यतः दो-दो पदों में समान तुक होती है किन्तु चारों पदों में समान तुक, प्रथम-तृतीय-चतुर्थ पद में समान तुक भी हरिगीतिका में देखी गयी है।
०५. काव्य प्रभाकरकार जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' के अनुसार हर सतकल अर्थात चरण में (11212) पाँचवी, बारहवीं, उन्नीसवीं तथा छब्बीसवीं मात्रा लघु होना चाहिए। कविगण लघु को आगे-पीछे के अक्षर से मिलकर दीर्घ करने की तथा हर सातवीं मात्रा के पश्चात् चरण पूर्ण होने के स्थान पर पूर्व के चरण काअंतिम दीर्घ अक्षर अगले चरण के पहले अक्षर या अधिक अक्षरों से संयुक्त होकर शब्द में प्रयोग करने की छूट लेते रहे हैं किन्तु चतुर्थ चरण की पाँचवी मात्रा का लघु होना आवश्यक है।
मात्रा बाँट: I I S IS S SI S S S IS S I I IS या ।। ऽ। ऽ ऽ ऽ।ऽ।।ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ
कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए ।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
उदाहरण :
०१. मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा।
नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः।
स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,
अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥
०२. निज गिरा पावन करन कारन, राम जस तुलसी कह्यो. (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०३. दुन्दुभी जय धुनि वेद धुनि, नभ नगर कौतूहल भले. (रामचरित मानस)
(यति १४-१४ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०४. अति किधौं सरित सुदेस मेरी, करी दिवि खेलति भली। (रामचंद्रिका)
(यति १६-१२ पर, ५वी-१९ वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०५. जननिहि बहुरि मिलि चलीं उचित असीस सब काहू दई। (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, १२ वी, २६ वी मात्राएँ दीर्घ, ५ वी, १९ वी मात्राएँ लघु)
०६. करुना निधान सुजान सील सनेह जानत रावरो। (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
०७. इहि के ह्रदय बस जानकी जानकी उर मम बास है। (रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १९ वी मात्रा दीर्घ)
०८. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचरित मानस)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी, १९ वी मात्राएँ दीर्घ)
०९. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचंद्रिका)
(यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी, १९ वी मात्राएँ दीर्घ)
१०. जिसको न निज / गौरव तथा / निज देश का / अभिमान है।
वह नर नहीं / नर-पशु निरा / है और मृतक समान है। (मैथिलीशरण गुप्त )
(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)
११. जब ज्ञान दें / गुरु तभी नर/ निज स्वार्थ से/ मुँह मोड़ता।
तब आत्म को / परमात्म से / आध्यात्म भी / है जोड़ता।।(संजीव 'सलिल')
अभिनव प्रयोग:
हरिगीतिका मुक्तक:
पथ कर वरण, धर कर चरण, थक मत चला, चल सफल हो.
श्रम-स्वेद अपना नित बहा कर, नव सृजन की फसल बो..
संचय न तेरा साध्य, कर संचय न मन की शांति खो-
निर्मल रहे चादर, मलिन हो तो 'सलिल' चुपचाप धो..
*
करता नहीं, यदि देश-भाषा-धर्म का, सम्मान तू.
धन-सम्पदा, पर कर रहा, नाहक अगर, अभिमान तू..
अभिशाप जीवन बने तेरा, खो रहा वरदान तू-
मन से असुर, है तू भले, ही जन्म से इंसान तू..
*
करनी रही, जैसी मिले, परिणाम वैसा ही सदा.
कर लोभ तूने ही बुलाई शीश अपने आपदा..
संयम-नियम, सुविचार से ही शांति मिलती है 'सलिल'-
निस्वार्थ करते प्रेम जो, पाते वही श्री-संपदा..
*
धन तो नहीं, आराध्य साधन मात्र है, सुख-शांति का.
अति भोग सत्ता लोभ से, हो नाश पथ तज भ्रान्ति का..
संयम-नियम, श्रम-त्याग वर, संतोष कर, चलते रहो-
तन तो नहीं, है परम सत्ता उपकरण, शुचि क्रांति का..
*
करवट बदल ऋतुराज जागा विहँस अगवानी करो.
मत वृक्ष काटो, खोद पर्वत, नहीं मनमानी करो..
ओजोन है क्षतिग्रस्त पौधे लगा हरियाली करो.
पर्यावरण दूषित सुधारो अब न नादानी करो..
*
उत्सव मनोहर द्वार पर हैं, प्यार से मनुहारिए.
पथ भोर-भूला गहे संध्या, विहँसकर अनुरागिए ..
सबसे गले मिल स्नेहमय, जग सुखद-सुगढ़ बनाइए.
नेकी विहँसकर कीजिए, फिर स्वर्ग भू पर लाइए..
*
हिल-मिल मनायें पर्व सारे, बाँटकर सुख-दुःख सभी.
जलसा लगे उतरे धरा पर, स्वर्ग लेकर सुर अभी.
सुर स्नेह के छेड़ें अनवरत, लय सधे सद्भाव की.
रच भावमय हरिगीतिका, कर बात नहीं अभाव की..
*
त्यौहार पर दिल मिल खिलें तो, बज उठें शहनाइयाँ.
मड़ई मेले फेसटिवल या हाट की पहुनाइयाँ..
सरहज मिले, साली मिले या संग हों भौजाइयाँ.
संयम-नियम से हँसें-बोलें, हो नहीं रुस्वाइयाँ..
*
कस ले कसौटी पर 'सलिल', खुद आप निज प्रतिमान को.
देखे परीक्षाकर, परखकर, गलतियाँ अनुमान को..
एक्जामिनेशन, टेस्टिंग या जाँच भी कर ले कभी.
कविता रहे कविता, यही है, इम्तिहां लेना अभी..
*
अनुरोध विनती निवेदन है व्यर्थ मत टकराइए.
हर इल्तिजा इसरार सुनिए, अर्ज मत ठुकराइए..
कर वंदना या प्रार्थना हों अजित उत्तम युक्ति है.
रिक्वेस्ट है इतनी कि भारत-भक्ति में ही मुक्ति है..
*
समस्यापूर्ति
बाँस (हरिगीतिका)
*
रहते सदा झुककर जगत में सबल जन श्री राम से
भयभीत रहते दनुज सारे त्रस्त प्रभु के नाम से
कोदंड बनता बाँस प्रभु का तीर भी पैना बने
पतवार बन नौका लगाता पार जब अवसर पड़े
*
बँधना सदा हँस प्रीत में, हँसना सदा तकलीफ में
रखना सदा पग सीध में, चलना सदा पग लीक में
प्रभु! बाँस सा मन हो हरा, हो तीर तो अरि हो डरा
नित रीत कर भी हो भरा, कस लें कसौटी हो खरा
*
नवगीत:
*
पहले गुना
तब ही चुना
जिसको ताजा
वह था घुना
*
सपना वही
सबने बना
जिसके लिए
सिर था धुना
*
अरि जो बना
जल वो भुना
वह था कहा
सच जो सुना
.
(प्रयुक्त छंद: हरिगीतिका)
नवगीत:
*
करना सदा
वह जो सही
*
तक़दीर से मत हों गिले
तदबीर से जय हों किले
मरुभूमि से जल भी मिले
तन ही नहीं मन भी खिले
वरना सदा
वह जो सही
भरना सदा
वह जो सही
*
गिरता रहा, उठता रहा
मिलता रहा, छिनता रहा
सुनता रहा, कहता रहा
तरता रहा, मरता रहा
लिखना सदा
वह जो सही
दिखना सदा
वह जो सही
*
हर शूल ले, हँस फूल दे
यदि भूल हो, मत तूल दे
नद-कूल को पग-धूल दे
कस चूल दे, मत मूल दे
सहना सदा
वह जो सही
तहना सदा
वह जो सही
*
(प्रयुक्त छंद: हरिगीतिका)
१४.२.२०१६
एक रचना-
*
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो स्याह सुफेद सरीखो
तुमरो धौला कारो दीखो
पंडज्जी ने नोंचो-खाओ
हेर सनिस्चर भी सरमाओ
घना बाज रओ थोथा दाना
ठोस पका
हिल-मिल खा जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो पाप पुन्न सें बेहतर
तुमरो पुन्न पाप सें बदतर
होते दिख रओ जा जादातर
ऊपर जा रो जो बो कमतर
रोन न दे मारे भी जबरा
खूं कहें आँसू
चुप पी जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
८.२.२०१६
***
नवगीत-
महाकुम्भ
*
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
आशाओं की
वल्लरियों पर
सुमन खिले हैं।
बिन श्रम, सीकर
बिंदु, वदन पर
आप सजे हैं।
पलक उठाने में
भारी श्रम
किया न जाए-
रूपगर्विता
सम्मुख अवनत
प्रणय-दंभ है।
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
रति से रति कर
बौराई हैं
केश लताएँ।
अलक-पलक पर
अंकित मादक
मिलन घटाएँ।
आती-जाती
श्वास और प्रश्वास
कहें चुप-
अनहोनी होनी
होते लख
जग अचंभ है।
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
एच ए ७ अमरकंटक एक्सप्रेस
३. ४२, ६-२-२०१६
***
नवगीत:
.
जन चाहता
बदले मिज़ाज
राजनीति का
.
भागे न
शावकों सा
लड़े आम आदमी
इन्साफ मिले
हो ना अब
गुलाम आदमी
तन माँगता
शुभ रहे काज
न्याय नीति का
.
नेता न
नायकों सा
रहे आक आदमी
तकलीफ
अपनी कह सके
तमाम आदमी
मन चाहता
फिसले न ताज
लोकनीति का
(रौद्राक छंद)
****
द्विपदी / शे'र
लब तरसते रहे आयीं न, चाय भिजवा दी
आह दिल ने करी, लब दिलजले का जला.
***
हाइकु
.
दर्द की धूप
जो सहे बिना झुलसे
वही है भूप
.
चाँदनी रात
चाँद को सुनाते हैं
तारे नग्मात
.
शोर करता
बहुत जो दरिया
काम न आता
.
गरजते हैं
जो बादल वे नहीं
बरसते हैं
.
बैर भुलाओ
वैलेंटाइन मना
हाथ मिलाओ
.
मौन तपस्वी
मलिनता मिटाये
नदी का पानी
.
नहीं बिगड़ा
नदी का कुछ कभी
घाट के कोसे
.
गाँव-गली के
दिल हैं पत्थर से
पर हैं मेरे
.
गले लगाते
हँस-मुस्काते पेड़
धूप को भाते
१४-२-२०१५
***
मुक्तक
वैलेंटाइन पर्व:
*
भेंट पुष्प टॉफी वादा आलिंगन भालू फिर प्रस्ताव
लला-लली को हुआ पालना घर से 'प्रेम करें' शुभ चाव
कोई बाँह में, कोई चाह में और राह में कोई और
वे लें टाई न, ये लें फ्राईम, सुबह-शाम बदलें का दौर
***
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ कंपित, प्रणय प्रतीति न 'सलिल' गयी..
*
ऋतुराज मनोहर, सुनकर सोहर, झूम-झूम हँस नाच रहा.
बौराया अमुआ, आया महुआ, राई-कबीरा बाँच रहा..
पनघट-अमराई, नैन मिलाई के मंचन के मंच बने.
कजरी-बम्बुलिया आरोही-अवरोही स्वर हृद-सेतु तने..
१४-२-२०१३
***

सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

१२ फरवरी, उल्लाला, सवैया, तलाक, दोहे, नवगीत, मुक्तक, मुक्तिका, वेलेंटाइन, सॉनेट,

सलिल सृजन १२ फरवरी
*
सॉनेट
दयानंद
जो आनंद दया कर पाता,
वह कहलाता तारणहार,
नहीं काल से भी भय खाता,
उज्जवल कल का पालनहार।

अंधकार में रवि सम चमके,
बने सहारा वह निर्बल का,
पाप-ताप हर शशि सा दमके,
करे अंत अज्ञानी खल का।

रह अशोक संतोष साधना,
दीनबंधु हिंदी हित रक्षक,
सधे लोक हित भव्य भावना,
हर अनीति हित बनता तक्षक।

धन्य हुआ जग कर कर वंदन,
जगें सुवासित हों ज्यों चंदन।
१३.२.२०२४
•••
हिंग्लिश ग़ज़ल
वेलेंटाइन
*
आओ! मनाएँ Velentine.
Being fine paying fine.

रोज Rose day हो तज फाइट।
जब propose day पी ले wine.

Chocolate Day Chalk late दे।
Teachar पर भी 'मारो लाइन'।

Teddy day भालू बन मिलना।
प्रीत बेल से निकले bine.

वादा कर जुमला बतला दो।
Promis day कह मत दो Dine.

मत हग भर, जी भरकर Hug कर।
जहाँ वहीं हो love का shrine.

खुल्लमखुल्ला चिपको चूमो।
एक गिनो तुम kiss कर Nine.

bine = अंकुर, लाइन मारना (मुहावरा) = निकट जाने की कोशिश करना, dine = भोज, shrine = तीर्थ । 
१२.२.२०२४

***
सॉनेट
विडंबना
*
अपना दीपक आप बनो रे!
बुद्ध कह गए हमने माना।
दीप जलाना मन में ठाना।।
भूले अँखिया खोल रखो रे।।
घर झुलसा घर के दीपक से।
बैठे हैं हम आग तापते।
भोग लगा वरदान माँगते।।
केवल इतना नाता प्रभु से।।
जपें राम पर काम न करते।
तजें न सत्ता, काम सुमिरते।
भवबंधन में खुद को कसते।।
आँख न खोलें नाम नयनसुख।
निज करनी से पाते हैं दुख।
रब को कैसे दिखलाएँ मुख?
१२-२-२०२२
•••
गीत 
अगिन नमन गणतंत्र महान
जनगण गाए मंगलगान
*
दसों दिशाएँ लिए आरती
नजर उतारे मातु भारती
धरणि पल्लवित-पुष्पित करती
नेह नर्मदा पुलक तारती
नीलगगन विस्तीर्ण वितान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
ध्वजा तिरंगी फहरा फरफर
जनगण की जय बोले फिर फिर
रवि बन जग को दें प्रकाश मिल
तम घिर विकल न हो मन्वन्तर
सत्-शिव-सुंदर मूल्य महान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
नीव सुदृढ़ मजदूर-किसान
रक्षक हैं सैनिक बलवान
अभियंता निर्माण करें नव
मूल्य सनातन बन इंसान
सुख-दुख सह समभाव सकें हँस
श्वास-श्वास हो रस की खान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
केसरिया बलिदान-क्रांति है
श्वेत स्नेह सद्भाव शांति है
हरी जनाकांक्षा नव सपने-
नील चक्र निर्मूल भ्रांति है
रज्जु बंध, निर्बंध उड़ान
अगिन नमन गणतंत्र महान
*
कंकर हैं शंकर बन पाएँ
मानवता की जय जय गाएँ
अडिग अथक निष्काम काम कर
बिंदु सिंधु बनकर लहराएँ
करे समय अपना जयगान
२६-१-२०२१
***
मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतरिम अंतरा बनाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरी की न दिल दुखाया है
१२-२२०२१
***
तीन तलाक - दोहे
*
तीन तलाक दीजिए, हर दिन जगकर आप
नफरत, गुस्सा, लोभ को, सुख न सकेंगे नाप
जुमलों धौंस प्रचार को, देकर तीन तलाक
दिल्ली ने कर दिया है, थोथा गर्व हलाक
भाव छंद रस बिंब लय, रहे हमेशा साथ
तीन तलाक न दें कभी, उन्नत हो कवि-माथ
आँसू का दरिया कहें, पर्वत सा दर्द
तीन तलाक न दे कभी, कोई सच्चा मर्द
आँखों को सपने दिए, लब को दी मुस्कान
छीन न तीन तलाक ले, रखिए पल-पल ध्यान
दिल से दिल का जोड़कर, नाता हुए अभिन्न
तीन तलाक न पाक है, बोल न होइए भिन्न
अल्ला की मर्जी नहीं, बोलें तीन तलाक
दिल दिलवर दिलरुबा का, हो न कभी भी चाक
जो जोड़ा मत तोड़ना, नाता बेहद पाक
मान इबादत निभाएँ बिसरा तीन तलाक
जो दे तीन तलाक वह, आदम है शैतान
आखिर दम तक निभाए, नाता गर इंसान
***
सवैया
२७ वर्णिक
यति १४-१३
*
ये सवेरा तीर की मानिंद चुभता है, चलो आशा का नया सूरज उगाएँ
घेर लें बादल निराशा के अगर तो, हौसलों की हवा से उनको उड़ाएँ
मेहनत है धर्म अपना स्वेद गंगा, भोर से संझा नहा नवगीत गाएँ
रात में बारात तारों की सजाकर, चाँदनी घर चाँद को दूल्हा बनाएँ
१२-२-२०२०
***
रसानंद दे छंद नर्मदा १५ उल्लाला
*
उल्लाला हिंदी छंद शास्त्र का पुरातन छंद है। वीर गाथा काल में उल्लाला तथा रोला को मिलकर छप्पय छंद की रचना की जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित है। उल्लाला छंद को स्वतंत्र रूप से कम ही रचा गया है। अधिकांशतः छप्पय में रोला के ४ चरणों के पश्चात् उल्लाला के २ दल (पंक्ति) रचे जाते हैं। प्राकृत पैन्गलम तथा अन्य ग्रंथों में उल्लाला का उल्लेख छप्पय के अंतर्गत ही है।
जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित छंद प्रभाकर तथा ॐप्रकाश 'ॐकार' रचित छंद क्षीरधि के अनुसार उल्लाल तथा उल्लाला दो अलग-अलग छंद हैं। नारायण दास लिखित हिंदी छन्दोलक्षण में इन्हें उल्लाला के २ रूप कहा गया है। उल्लाला १३-१३ मात्राओं के २ सम चरणों का छंद है। उल्लाल १५-१३ मात्राओं का विषम चरणी छंद है जिसे हेमचंद्राचार्य ने 'कर्पूर' नाम से वर्णित किया है। डॉ. पुत्तूलाल शुक्ल इन्हें एक छंद के दो भेद मानते हैं। हम इनका अध्ययन अलग-अलग ही करेंगे।
'भानु' के अनुसार:
उल्लाला तेरा कला, दश्नंतर इक लघु भला।
सेवहु नित हरि हर चरण, गुण गण गावहु हो शरण।।
अर्थात उल्लाला में १३ कलाएं (मात्राएँ) होती हैं दस मात्राओं के अंतर पर ( अर्थात ११ वीं मात्रा) एक लघु होना अच्छा है।
दोहा के ४ विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। यह १३-१३ मात्राओं का सम पाद मात्रिक छन्द है जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में सम तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम दोहा के समान हैं। इसका मात्रा विभाजन ८+३+२ है अंत में १ गुरु या २ लघु का विधान है।
सारतः उल्लाला के लक्षण निम्न हैं-
१. २ पदों में तेरह-तेरह मात्राओं के ४ चरण
२. सभी चरणों में ग्यारहवीं मात्रा लघु
३. चरण के अंत में यति (विराम) अर्थात सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए।
४. चरणान्त में एक गुरु या २ लघु हों।
५. सम चरणों (२, ४) के अंत में समान तुक हो।
६. सामान्यतः सम चरणों के अंत एक जैसी मात्रा तथा विषम चरणों के अंत में एक सी मात्रा हो। अपवाद स्वरूप प्रथम पद के दोनों चरणों में एक जैसी तथा दूसरे पद के दोनों चरणों में
उदाहरण :
१.नारायण दास वैष्णव
रे मन हरि भज विषय तजि, सजि सत संगति रैन दिनु।
काटत भव के फन्द को, और न कोऊ राम बिनु।।
२. घनानंद
प्रेम नेम हित चतुरई, जे न बिचारतु नेकु मन।
सपनेहू न विलम्बियै, छिन तिन ढिग आनंदघन।
३. ॐ प्रकाश बरसैंया 'ॐकार'
राष्ट्र हितैषी धन्य हैं, निर्वाहा औचित्य को।
नमन करूँ उनको सदा, उनके शुचि साहित्य को।।
***
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत है,
कहीं जीत में हार है..
आसों ने पल-पल किया
साँसों का सिंगार है..
सपना जीवन-ज्योत है,
अपनापन अंगार है..
कलशों से जाकर कहो,
जीवन गर्द-गुबार है..
स्नेह-'सलिल' कब थम सका,
बना नर्मदा धार है..
******
अभिनव प्रयोग-
उल्लाला गीत:
जीवन सुख का धाम है
*
जीवन सुख का धाम है,
ऊषा-साँझ ललाम है.
कभी छाँह शीतल रहा-
कभी धूप अविराम है...*
दर्पण निर्मल नीर सा,
वारिद, गगन, समीर सा,
प्रेमी युवा अधीर सा-
हर्ष, उदासी, पीर सा.
हरी का नाम अनाम है
जीवन सुख का धाम है...
*
बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम है...
*
वागी आलमगीर सा,
तुलसी की मंजीर सा,
संयम की प्राचीर सा-
राई, फाग, कबीर सा.
स्नेह-'सलिल' गुमनाम है
जीवन सुख का धाम है...
***
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत है,
कहीं जीत में हार है..
आसों ने पल-पल किया
साँसों का सिंगार है..
सपना जीवन-ज्योत है,
अपनापन अंगार है..
कलशों से जाकर कहो,
जीवन गर्द-गुबार है..
स्नेह-'सलिल' कब थम सका,
बना नर्मदा धार है..
***
उल्लाला मुक्तक:
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*
झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*
दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की विकलता..
*
दिल ने करी गुहार है,
दिल ने सुनी पुकार है.
दिल पर दिलकश वार या-
दिलवर की मनुहार है..
*
शीत सिसकती जा रही,
ग्रीष्म ठिठकती आ रही.
मन ही मन में नवोढ़ा-
संक्रांति कुछ गा रही..
*
श्वास-आस रसधार है,
हर प्रयास गुंजार है.
भ्रमरों की गुन्जार पर-
तितली हुई निसार है..
*
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*
वह प्रभु तारणहार है,
उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है.
करता भव से पार है..
१२-२-२०१६
***
नवगीत:
.
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नवगीतों ने व्यथा-कथाएँ
कही अंतरों में गा-गाकर
छंदों ने अमृत बरसाया
अविरल दुःख सह
सुख बरसाकर
दोहा आल्हा कजरी पंथी
कर्म-कुंडली बाँच-बाँचकर
थके-चुके जनगण के मन में
नव आशा
फसलें बो पाये
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
नव प्रयास के मुखड़े उज्जवल
नव गति-नव यति, ताल-छंद नव
बिंदासी टटकापन देकर
पार कर रहे
भव-बाधा हर
राजनीति की कुलटा-रथ्या
घर के भेदी भक्त विभीषण
क्रय-विक्रयकर सिद्धांतों का
छद्म-कहानी
कब कह पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
.
हास्य-व्यंग्य जमकर विरोध में
प्रगतिशीलता दर्शा हारे
विडंबना छोटी कहानियाँ
थकीं, न लेकिन
नक्श निखारे
चलीं सँग, थक, बैठ छाँव में
कलमकार से कहे लोक-मन
नवगीतों को नवाचार दो
नयी भंगिमा
दर्शा पाये?
आश्वासन के उपन्यास
कब जन गण की
पीड़ा हर पाये?
१२-२-२०१५
.
नवगीत:
.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
मेहनतकश हाथों ने बढ़
मतदान किया.
झुकाते माथों ने
गौरव का भान किया.
पंजे ने बढ़
बटन दबाया
स्वप्न बुने.
आशाओं के
कमल खिले
जयकार हुआ.
अवसर की जय
रात हटी तो प्रात हुई.
आसमान में आयी ऊषा.
पौध जगे,
पत्तियाँ हँसी,
कुछ कुसुम खिले.
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
.
आम आदमी ने
खुद को
पहचान लिया.
एक साथ मिल
फिर कोइ अरमान जिया.
अपने जैसा,
अपनों जैसा
नेता हो,
गड़बड़ियों से लड़कर
जयी विजेता हो.
अलग-अलग पगडंडी
मिलकर राह बनें
केंद्र-राज्य हों सँग
सृजन का छत्र तने
जग सिरमौर पुनः जग
भारत बना सकें
मफलर की जय
सूट-बूट की मात हुई.
चमरौधों में जागी आशा
शीश उठे,
मुट्ठियाँ तनीं,
कुछ कदम बढ़े.
११.२.२०१५
.
मुक्तिका
*
यहीं कहीं था, कहाँ खो गया पटवारी जी?
जगते-जगते भाग्य सो गया पटवारी जी..
गैल-कुआँ घीसूका, कब्जा ठाकुर का है.
फसल बैर की, लोभ बो गया पटवारी जी..
मुखिया की मोंड़ी के भारी पाँव हुए तो.
बोझा किसका?, कौन ढो गया पटवारी जी..
कलम तुम्हारी जादू करती मान गये हम.
हरा चरोखर, खेत हो गया पटवारी जी..
नक्शा-खसरा-नकल न पायी पैर घिस गये.
कुल-कलंक सब टका धो गया पटवारी जी..
मुट्ठी गरम करो लेकिन फिर दाल गला दो.
स्वार्थ सधा, ईमान तो गया पटवारी जी..
कोशिश के धागे में आशाओं का मोती.
'सलिल' सिफारिश-हाथ पो गया पटवारी जी..
***
मुक्तिका
*
आँखों जैसी गहरी झील.
सकी नहीं लहरों को लील..
पर्यावरण प्रदूषण की
ठुके नहीं छाती में कील..
समय-डाकिया महलों को
कुर्की-नोटिस कर तामील..
मिष्ठानों का लोभ तजो.
खाओ बताशे के संग खील..
जनहित-चुहिया भोज्य बनी.
भोग लगायें नेता-चील..
लोकतंत्र की उड़ी पतंग.
थोड़े ठुमके, थोड़ी ढील..
पोशाकों की फ़िक्र न कर.
हो न इरादा गर तब्दील..
छोटा मान न कदमों को
नाप गये हैं अनगिन मील..
सूरज जाये महलों में.
'सलिल' कुटी में हो कंदील..
१२-२-२०११
***