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शनिवार, 3 जुलाई 2021

संस्मरण कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड

संजीव वर्मा सलिल मेरी दृष्टि में

एशिया का सबसे बड़ा गाँव.. उत्तर प्रदेश का गहमर..। फौजी गाँव , .. कई बार दूरदर्शन पर देखा सुना....। उपन्यासकार गोपाल राम गहमरी का गाँव....। ...अब, अखंड गहमरी ( अखंड प्रताप सिंह) का साहित्यिक कार्यक्रम। ... हॉल में फोल्डिंग चार पाइयां लगी हुई हैं। .. साहित्यकार एक-एक कर आते जा रहे हैं।
दो व्यक्ति आये। एक की दाड़ी बढ़ी हुई सी, कुछ छितरी हुई सी। पैंट शर्ट पहने। दूसरे की दाड़ी-मूँछ सफाचट, सिर के अधपके बाल कुछ बिखरे हुए से। कुर्ता-पाजामा पहने बहुत साधारण से। .... अपने बगल में पड़े खाली पलंगों पर बैठने का इशारा करता हूँ। दुआ सलाम के बाद, सामान्य सा परिचय ....। सामान रखकर ...बहुत गर्मी है... कहकर अपने कपड़े खोलकर पंखे की हवा लेने का प्रयास करते हैं दोनों। .... बातों का सिलसिला शनैः शनैः आगे बढ़ता है। परिचय की परतें खुलने लगती हैं। पता लगता है, जबलपुर से हैं, संस्मरण लेखिका एवं छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा के भतीजे...। जबलपुर के कवि आचार्य भगवत दुबे एवं गार्गीशरण मिश्र से परिचय होने की बात कहता हूँ .... बात और आगे बढ़ती है। धीरे धीरे नाम पता चलता है ... संजीव वर्मा सलिल। .. एक बार कोलकाता के श्यामलाल उपाध्याय के मुँह से सुना था उनका नाम...। उनके दो संकलनों की भूमिका लेखक यही थे। बड़ी ही विद्वता पूर्ण भूमिका थी।
आधुनिक कविता को लेकर काफी चर्चा होती रही। प्रश्न था.. आजकल के कवियों की कविताओं में छंद भंग का दोष..., छंद के व्याकरण की जानकारी का अभाव...। कविताओं में रसानुभूति की कमी...। मंच पर बढ़ती हुई लप्फाजी .... आदि आदि। उनका विचार था कि कविता पर चर्चा के लिए कार्यशाला होना अति आवश्यक है। एक समय था जब गोष्ठियों में समस्या पूर्तियाँ दी जाती थीं, सुनी जाती थीं, कविताओं की आलोचना की जाती थी, वरिष्ठ कवि कनिष्ठों को समझाते थे और कनिष्ठ बड़े अदब के साथ उनके सुझावों को सुनते, गुनते व मानते थे। मगर अब स्थिति बदल गई है। अब तो “आपै गुरु आपै चेला” वाली स्थिति आ गई है। कोई किसी की सुनता ही नहीं। दो चार लाइनें लिख कर .. महाकवि होने का भ्रम पाल लेते हैं। बहुत सारी बातें हुईं.... कार्यक्रम समाप्त हुआ। जो जहाँ से आये थे, वापस चले गये।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद का जबलपुर अधिवेशन....। साढ़े छह सौ लोगों का जमावड़ा...। मैं भी पहुँचा हुआ था। प्रवेश द्वार पर एक सज्जन दिखे....। वही कुर्ता पाजामा वाले सज्जन ...। पुरानी यादें ताजा हो गईं। दुआ सलाम के बाद चले गये। हम लोग भी कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में व्यस्त हो गये।
दूसरे दिन सूचना मिली ... बसंत कुमार शर्मा जी के निवास पर एक गोष्ठी है, आप को आना है। रामेश्वर शर्मा उर्फ रामू भैया (कोटा), डॉ. राम सनेही लाल शर्मा यायावर जी (फीरोजाबाद), श्रीमती क्रान्ति कनाटे (ग्वालियर) , मैं (कोलकाता) और भी कई लोग विशेष रूप से आमंत्रित थे। गाड़ी भेज दी थी। हम लोग समय से थोड़े बाद में पहुंचे। कार्यक्रम आरंभ हुआ, सबका परिचय दिया गया। कविता पाठ हुए। कविता पर फिर कुछ चर्चा हुई। “साहित्य त्रिवेणी” के एक अंक का विमोचन भी हुआ।
मेरे मस्तिष्क में गहमर में छन्दों पर हुई चर्चा .... उमड़ घुमड़ रही थी। मैंने सलिल के सामने प्रस्ताव रखा कि “भारतीय छंद विधा” को लेकर “साहित्य त्रिवेणी” का एक विशेषांक निकाला जाय और आप उसके अतिथि संपादन का भार संभालें। उससे पहले यायावर जी के अतिथि संपादन में “साहित्य त्रिवेणी” का “नवगीत विशेषांक” भी आ चुका था। जिसमें सलिल जी का भी नवगीत छपा था। वे पत्रिका के स्तर को देख चुके थे। अतः तुरंत तैयार हो गये।
विशेषांक की तैयारी शुरू हो गई। रचनाएं मंगाई जाने लगीं। उन्होंने अथक परिश्रम किया। मैं शनैः शनैः उनके ज्ञान के अपार भंडार से परिचित होता चला गया। मुझे पता लगा वे वाट्सएप पर ‘अभियान जबलपुर’, ‘हिन्दी व्याकरण और साहित्य’, ‘सवैया सलिला’ और फेसबुक पर ‘विश्व वाणी हिन्दी संस्थान’ का संचालन-परिचालन करते हैं। इसके अलावा अंतर्जाल पर ‘हिन्द युग्म’ पर ‘छंद-शिक्षण’, ‘साहित्य शिल्पी’ पर ‘काव्य का रचना शास्त्र’ सिखाते आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने छंद और अलंकारों पर अनेक लेख भी लिखे हैं। तात्पर्य यह है वे पूर्णरूपेण साहित्य को समर्पित हैं। उनकी एक-एक सांस साहित्य सेवा में संलग्न है।
उनका अपना रचना संसार तो है ही, संपादन आदि के लिए भी समय निकालते हैं। उनका एक-एक पल साहित्यमय बन गया है। इसमें कोई शक नहीं।
मैं उनके दीर्घ जीवन, अच्छे स्वास्थ्य, यशस्वी व कीर्तिमय जीवन की कामना करते हुए ‘ट्रू मिडिया’ एवं उसके संपादक मण्डल को भी धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने अपने विशेषांक हेतु उचित व्यक्ति को चुना है। उनका जीवन हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। इन्ही शब्दों के साथ..
डॉ. कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड
संपादक : साहित्य-त्रिवेणी ( बहुभाषिक त्रैमाषिक साहित्य-पत्रिका)
डी-1, 94/A, पश्चिम पुटखाली, मंडलपाड़ा, पो.- दौलतपुर वाया विवेकानंद पल्ली, महेशतला, कोलकाता– 700139,
मो.– 9831062362, email: sahityatriveni@gmail।.com

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