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गुरुवार, 15 जुलाई 2021

दोहा सलिला

दोहा सलिला
झलक दिखा बादल गए, दूर क्षितिज के पार.
जैसे अच्छे दिन हमें , दिखा रही सरकार.
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मन में क्या है!; क्यों कहें?, आप करें अनुमान.
सच यह है खुद ही हमें. पता नहीं श्रीमान.
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गगरी कहीं उलट रहे, कहीं न बूँद-प्रसाद.
शिवराजी सरकार सम, बादल करें प्रमाद.
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नहीं पेंशनर को मिले, सप्तम वेतनमान.
सत्ता सुख में चूर जो, पीड़ा से अनजान.
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नित्य नई कर घोषणा, जीत न सको चुनाव.
गर न पेंशनर का मिटा, सकता तंत्र अभाव.
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चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी, बाँटें अंधे रोज.
देते सिर्फ अपात्र को, क्यों इसकी हो खोज.
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नाले सँकरे कर दिए, जमीं दबाई खूब.
धरती टाइल से पटी, खाक उगेगी दूब.
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दूब नहीं असली बची, नकली है मैदान.
गायब होंगे शीघ्र ही, धरती से इंसान.
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पौध लगा मत; पेड़ जो काट सके तो काट.
मानव कर ले तू खड़ी खुद ही अपनी खाट.
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सादा जीवन अब नहीं, रहा हमारा साध्य.
उच्च विचार न रुच रहे, स्वार्थ कर रहा बाध्य.
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आवश्यकता से अधिक, पा न कहें: पर्याप्त
जो वे दनुज, मनुज नहीं सत्य वचन है आप्त.
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पत्ता-पत्ता चीखकर, कहता: काट न वृक्ष.
निज पैरों पर कुल्हाड़ी, चला रहे हम दक्ष.
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धरती का मंगल न कर, मंगल भेजें यान.
करें अमंगल लड़-झगड़ दंगल कर इंसान.
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खूं के आँसू रोय हम, वे ले लाल गुलाब.
कहते हुआ विकास अब, हँस लो जरा जनाब.
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इधर भुखमरी पेट में, लगी हुई है आग.
उधर न वे खा पा रहे, इतना पाया भाग.
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दिल ने दिल को तौलकर, दिल से की पहचान.
दिल ने दिल का दिल दुखा, कहा न तू अरमान.
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१५-७-२-१८ 


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